दो दिन पहले राहुल गांधी की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस थी जिसमें वे आक्रामक थे । उसके फौरन बाद ‘सत्य हिंदी’ के आशुतोष, आलोक जोशी और शीतल पी सिंह उस कांफ्रेंस पर टिप्पणी के लिए बैठे। मेरे पास मेरे एक मित्र बैठे हुए थे।‌ मैंने कहा देखिए अब राहुल का स्तुतिगान होगा। लगभग लगभग वही हुआ । वह कांफ्रेंस मुझे बेहद फूहड़ और वाहियात सी लगी थी । आज सुबह ही किसी ने बताया कि कल एक चर्चा में अभय कुमार दुबे ने भी उस कांफ्रेंस की भूरि भूरि तारीफ की । ये सब लोग दिग्गज हैं। मैं हमेशा इनके कहे को गौर से और गम्भीरता से सुनता हूं। पर क्या यह मान लिया जाए कि मोदी विरोध में हमारे स्वर, सोच और नजरिया भी फोटोस्टेट कॉपी जैसा हो जाना चाहिए। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उठाया गया सवाल क्या था पल भल के लिए उसे भूल जाइए क्योंकि वह सवाल कोई भी उठा सकता है। असल बात यह है कि राहुल गांधी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कैसे और किस अंदाज में नजर आ रहे हैं। मेरा शक है कि राहुल गांधी मोदी के ट्रैप में अनजाने में फंसते जा रहे हैं। मोदी को आदमी की कितनी पहचान है वह उनका जीवन बताता है। पहले राहुल गांधी को पप्पू बना कर खत्म करने की कोशिश करना और अब उस शख्स के व्यक्तित्व पर ऐसा बुलडोजर चला देना कि वह बौखला कर अनाप शनाप बोलने लगे। हम वही होते देख रहे हैं।‌ जो शख्स चार हजार किमी की सफल सौहार्द यात्रा करके लौटा हो उसे तो विनम्रता की प्रतिमूर्ति हो जाना चाहिए। अगर ऐसा होता तो राहुल गांधी के साथ जितनी फूहड़ता और पागलपन के साथ जो किया गया उसे लेकर वह उसी विनम्रता के साथ ठंडे दिमाग से रणनीति बनाते । पर न ठंडा दिमाग और न कोई ठोस रणनीति। वास्तव में रणनीति है क्या इसे लेकर तो अभी तक शायद सारे छोटे बड़े कांग्रेसियों में भ्रम बना हुआ है । कोर्ट में जाएंगे, नहीं जाएंगे, जेल जाएंगे नहीं जाएंगे तो क्या करेंगे । बस एक ही बात ‘,मैं इसी तरह सवाल पूछता रहूंगा , तपस्या करूंगा।’ तपस्या किस चिड़िया का नाम है कोई राहुल गांधी से पूछे । दावा है कि वे इसे भी परिभाषित नहीं कर पाएंगे। किसी ने यह शब्द कान में डाला और वे ले उड़े । प्रेस कॉन्फ्रेंस में विनम्रता की जगह एक पत्रकार से झुंझला कर जिस तरह से पेश आए उसके लिए आज मुंबई प्रेस क्लब ने राहुल गांधी से माफी मांगने को कहा है। सोचिए इस व्यक्ति के नाम कितनी माफियां इकठ्ठी होती जा रही हैं। और गुरूर देखिए कि ‘मैं सावरकर नहीं हूं, राहुल गांधी हूं माफी नहीं मांगूंगा’ यह अलग बात है कि अब तक अलग अलग प्रसंगों में छः बार माफी मांग चुके हैं। तो इतना गुरूर किस काम का है। कोई घुटा हुआ और विनम्र नेता किसी पत्रकार से इस तरह की भाषा बोल सकता है कि – ‘हवा निकल गई’ । फिर वह चाहे आपका नापसंदीदा पत्रकार ही क्यों न हो।
सवाल यह है कि राहुल गांधी क्या हैं। पहले कई बार लिख चुका हूं फिर दोहरा देता हूं। राहुल गांधी राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं। राजनीति के अनुभवों से शून्य गांधी परिवार से आने वाला एकमात्र ऐसा व्यक्ति जिसकी स्तुति में उसकी मां से लेकर पूरी कांग्रेस नतमस्तक रहना चाहती है । बिना यह देखे कि वह नॉन सीरियस है, उसमें राजनीतिक अनुभव के साथ साथ राजनीतिक कौशल और वक्तृत्व शैली का नितांत अभाव है। जो युवा होने के कारण थोड़ा गुस्सैल भी है । और पिछले अनुभव यह भी बताते हैं कि इस शख्स की मूर्खता और अहंकार के चलते कई करीब के लोग कांग्रेस से छिटक कर बीजेपी में गये हैं। दो का है नाम लेना जरूरी है हेमंत बिस्वसर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया। जिस व्यक्ति का अतीत ऐसा हो और जिसे कांग्रेसी बार बार खींच कर लाएं और वह बार बार विदेश भाग जाए ऐसे व्यक्ति पर कांग्रेस क्यों दांव लगाना चाहती है। सिर्फ इसलिए कि वह गांधी परिवार से है और कांग्रेस में चाटुकारिता की पुरानी परंपरा है। मोदी की बीजेपी और राहुल की कांग्रेस में मोटा मोटा यह फर्क है कि मोदी की बीजेपी में कोई चाटुकार नहीं है सब डरे हुए हैं जबकि राहुल की कांग्रेस में कोई डरा हुआ नहीं है सब चाटुकार हैं। तो राहुल में हम आजादी के आंदोलन से आज तक किस नेता की छाप देखें। यह सोचते सोचते आप डिप्रेशन में आ सकते हैं। न वह कांग्रेस, न वे नेता । मर चुकी कांग्रेस का हम ठोक पीट कर नेता तैयार कर रहे हैं। मोदी जानते हैं कि कांग्रेस चापलूसों के बल पर खड़ी हुई है इसलिए उनका वार राहुल गांधी पर है । अब रही सही कसर खुद राहुल गांधी के अहंकार ने पूरी कर दी उसका नतीजा हम देख रहे हैं। लोकसभा की सदस्यता तो गई ही चुनाव लड़ने योग्य भी शायद नहीं रहे । अब वे केवल बाहर रह कर सवाल पूछने वाली तपस्या करेंगे।
हम बीजेपी और मोदी की बेशर्मी और उनके प्रचार तंत्र की बेशर्मी भी खुली आंखों से देख रहे हैं। न कांग्रेस, न विरोधी कोई उसके मुकाबले कहीं नहीं ठहरता । कितना बेहतर होता कि कांग्रेस राहुल गांधी पर जिद न कर किसी और को पार्टी का नेता चुनती जैसे अध्यक्ष खड़गे को चुना गया है। यह मान कर चलिए कि राहुल गांधी में इतनी समझ तो है ही जो उन्हें यह बताती है कि वे राजनीति के लिए नहीं बने हैं। इसीलिए उन्होंने जिद करके खड़गे को अध्यक्ष बनवाया। चाटुकार आज तक उनकी समझ को जान नहीं पाए कि वे सत्ता की राजनीति नहीं करना चाहते। और शायद हमारे दिग्गज पत्रकार बंधु भी। अब विपक्ष के लिए रास्ता साफ है कि राहुल गांधी से अलग कांग्रेस को साथ लेकर गुप्त एकता का प्रयास करें । गुप्त इसलिए कि मोदी को किसी रणनीति का भान न हो । जब मोदी गुजरात में रह कर केजरीवाल पर नजर रख सकते हैं तो इन दिनों विपक्ष की गतिविधियों पर नजर क्यों नहीं होगी। राहुल गांधी ने अतीत में बहुत बचकानी हरकतें की हैं अध्यादेश फाड़ने, मोदी को गले लगाने, कुर्ते की फटी जेब से हाथ बाहर निकालने जैसी कई ऐसी हरकतें जो न उन्हें अच्छा और मजबूत नेता स्वीकार करने देती हैं न बीजेपी की बनाई छवि से मजबूती के साथ बाहर निकलने देती हैं। बीजेपी की आज भी यही कोशिश है कि राहुल को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया जाए। इसीलिए सारे बीजेपी नेता पिले पड़े हैं। एक अंतिम बात और कि राहुल के बारे में हमको और किसी को भी यह तो सोचना ही चाहिए था कि जो शख्स पिछले बारह पंद्रह सालों राजनीति में होकर भी गम्भीर राजनीति के गुर नहीं सीख पाया हो उसे कैसे देश के नेता के लिए भी स्वीकार कर लिया जाए । किसी पत्रकार से कोई नेता कह सकता है कि – ‘हवा निकल गई।’ मैंने पिछले कई लेखों में राहुल गांधी के बारे में अपनी राय रखी है । वह न बदली है न बदल सकती है । आलोक जोशी, शीतल पी सिंह और अभय कुमार दुबे को सलाम है लेकिन भिन्नता में ही तो एकता है ।
हमारे सारे चैनल एक स्वर के भौंपू बनते जा रहे हैं। कटुता के ऐसे दौर में कोई भी मोदी और बीजेपी की धुर आलोचना करते हुए अपना चैनल चला दे, हिट हो जाएगा। जैसे एक चैनल है ‘4 पीएम’ । मुझे तो चपंडूक किस्म का चैनल लगता है और उसके मालिक की आवाज इतनी कर्कश लेकिन वह भी सुपर डुपर हो रहा है क्योंकि उसमें भी एनके सिंह, अभय कुमार दुबे जैसे कई दिग्गज आ बैठते हैं। और उस चैनल की बल्ले बल्ले हो जाती है । दरअसल समाज से गम्भीरता गायब हो रही है । कुछ भी उदात्त और उत्कृष्ट नहीं रह गया है। राजनीति से कला तक हर क्षेत्र में गिरावट और बौनापन आया है। पचास ,साठ और सत्तर के दशक का कोई व्यक्ति इस दशक में कैसे जीने को अभिशप्त है यही चिंता की बात है ।
दूसरी ओर सिनेमा हमारे समाज का बहुत ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली माध्यम है। कभी कभी तो मुझे लगता है कि सिनेमा ही राजनीतिक सत्ता को स्पष्ट चुनौती दे सकता है। हमारे फिल्मकार उठें और डर को जीत कर सत्ता के सामने चुनौतियां पेश करें। लेकिन सिनेमा की जगह अब ओटीटी ले रहा है। वह अभी अपने शैशव काल में है इसीलिए इतना भौंडा और अभद्र है । उसमें भी अच्छा देखने को मिलता है कभी कभी। आजकल ‘राकेट ब्यायज़’ नाम की सीरीज परिवार में साथ बैठ देखने लायक है।
अमिताभ श्रीवास्तव ने इस बार ऑस्कर के बॉलीवुड प्रभाव पर कार्यक्रम किया। रोचक लगा। अजय ब्रह्मात्मज की दो टूक बातें पसंद आती हैं। सौम्या को इन चर्चाओं में आते रहना चाहिए । उनका आकलन निष्पक्ष व्यक्ति का जैसा आकलन होता है। विजय विद्रोही की अखबारों की पेशकश बहुत पसंद आती है लोगों को। लेकिन इस बार उन्होंने मानहानि के मुद्दे पर विदेशों के संदर्भ को बहुत लंबा खींचा । काफी उबाऊ था।
अब कांग्रेस की स्थिति क्या और कैसी होने वाली है इसको लेकर हर कांग्रेसी दुविधा में है। राहुल गांधी ने खुद ही यह कह कर अपना बाजा बजा दिया है कि मुझे परवाह नहीं कि सांसदी जाए न जाए तो देश क्या हिलेगा। हर चीज टांय टांय फिस्स हो रही है । संसद में आप हैं नहीं बाहर रह कर सवाल उठाते रहिए किसी को क्या फर्क पड़ता है। मोदी का प्रचार तंत्र बहुत मजबूत है। जी 20 के बाद मार्च 24 में अरुण पुरी ने मोदी को ‘इंडिया टुडे कांक्लेव’ के लिए अभी से अनुबंधित कर लिया है। हमने इस बार ही देखा था कि अरुण पुरी और इंडिया टुडे किस तरह मोदी के कदमों में थे। उसका परिणाम आप देखेंगे ही । फिलहाल केजरीवाल ने मोदी पर आक्रामक होकर जो बोला उससे शायद प्रियंका गांधी को भी ऊर्जा मिली । कल उन्होंने कांग्रेस के सत्याग्रह में लगभग ललकारते हुए कहा मोदी तुम कायर हो । मोदी क्या हैं वे तो अपने भाषणों में बताएंगे ही । पर हमें विपक्ष और सिविल सोसायटी पर बहुत तरस आता है। यदि ये चाहते तो मोदी पर असंख्य मुकदमे जड़ सकते थे जो जो मोदी ने जिन जिन के लिए जब जब कहा है । वहां भी हम सब चूके हैं। आगे भी चूकेंगे । बस भरोसा अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर है । यह भरोसा भी कहीं हमारी नादानी साबित न हो । दुआ कीजिए।

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