जदयू के लिए जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में कई दावेदार थे. पूर्व विधायक मंजर आलम, इनके बहनोई पूर्व जदयू जिलाध्यक्ष नौशाद आलम, पलासी के मियांपुर पंचायत के मुखिया मुर्शिद आलम जदयू के टिकट के लिए प्रयासरत थे. लेकिन टिकट मुखिया मुर्शिद आलम को मिला है. वे पलासी के मियांपुर पंचायत में लगातार तीनबार से मुखिया हैं. जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में 2,70415 मतदाता हैं, जिसमें 144176 पुरुष तथा 126225 महिला मतदाता हैं. इसमें 70 फीसदी संख्या अल्पसंख्यक मतदाताओं की है. कई और प्रत्याशी भी विभिन्न दलों तथा निर्दलीय के रूप में हैं. इन सभी का यह कहना है कि आखिर कब तक जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र एक ही परिवार को जिताते रहेगा.

biharबिहार के जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव बिहार की राजनीति की दिशा को तय करने वाला है. साथ ही पूर्व केन्द्रीय मंत्री मरहूम तस्लीमुद्दीन की विरासत को लेकर भी 28 मई 2018 को होने वाला उपचुनाव बेहद अहम हो गया है. दूसरी तरफ जदयू के लिए भी यह सीट प्रतिष्ठा का विषय है. कारण यह कि 2015 में जदयू के टिकट से अररिया के राजद सांसद पूर्व केन्द्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम ने रिकॉर्ड मतों से जोकीहाट से विधान सभा का चुनाव जीता था.

तब जदयू महागठबंधन का हिस्सा था, अब बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आ गया है. गठबंधन और राजनीतिक समीकरण बदला हुआ है. ऐसे में जोकीहाट विधान सभा क्षेत्र का उपचुनाव बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. विशेषकर बिहार में अल्पसंख्यक राजनीति के लिए, क्योंकि जोकीहाट में 70 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी है. इसलिए यहां के नतीजे यह तय करने के लिए काफी हैं कि मुस्लिम वोटों का झुकाव अब भी लालू प्रसाद के साथ बना हुआ है या फिर नीतीश कुमार ने अपने प्रयासों से इसमें सेंध लगा दी है.

एक तरह से कहा जाए तो जोकीहाट अररिया के मरहूम सांसद तस्लीमुद्दीन का पुश्तैनी विधानसभा क्षेत्र है. यहां से पांच बार 1969, 1972, 1977, 1985 और 1995 में तस्लीमुद्दीन विधानसभा का चुनाव जीते थे. चार दफे इनके बेटे सरफराज आलम 1996, 2000, 2010, तथा 2015 में चुनाव जीते थे. जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र का गठन जब से हुआ है, तब से यहां 14 बार चुनाव हुआ है. इसमें नौ बार तस्लीमुद्दीन तथा इनके बेटे ही चुनाव जीतते रहे हैं. इसी से पता चलता है कि इस विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव में तस्लीमुद्दीन की सहानुभूति का असर रहेगा. यहां से रिकॉर्ड मतों से जीते जदयू के सरफराज आलम के इस्तीफा देने के कारण उपचुनाव हो रहा है. अररिया लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ने के लिए सरफराज आलम पार्टी जदयू और विधानसभा से इस्तीफा देकर राजद में चले गए थे. अररिया लोकसभा उपचुनाव में सरफराज आलम राजद से लड़कर सांसद हो गए हैैं.

अररिया लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्र में चार पर एनडीए का कब्जा है तो एक पर कांग्रेस का. जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र से जब उपचुनाव की घोषणा हुई तब राजद तथा जदयू दोनों दलों के स्थानीय नेताओं ने टिकट के लिए दौड़ शुरू कर दी. महागठबंधन में जब जदयू  था, तब भी यह सीट जदयू के पास थी और आज जदयू एनडीए में है, तब भी यह सीट जदयू के हिस्से में ही है. यानी  इस बार जदयू का प्रत्याशी एनडीए प्रत्याशी के रूप में जोकीहाट विधानसभा का उपचुनाव लड़ रहा है. शुरू में तो लगा कि जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव की घोषणा के बाद तस्लीमुद्दीन के परिवार में विवाद हो गया है. लेकिन अंत में तस्लीमुद्दीन के सबसे छोटे बेटे शाहनवाज आलम के राजद प्रत्याशी घोषित होते ही सभी संभावनाओं पर विराम लग गया. विवाद का कारण था कि अररिया का सांसद तस्लीमुद्दीन के दूसरे बेटे सरफराज आलम चाहते थे कि जोकीहाट से उनके बेटे आमिर आलम को राजद का टिकट मिले.

लेकिन मरहूम तस्लीमुद्दीन की पत्नी और अन्य सभी परिवार के लोग चाहते थे कि उपचुनाव में राजद का टिकट छोटे बेटे शाहनवाज को मिले. इसी को लेकर परिवार में विवाद बढ़ गया था. राजद का टिकट शाहनवाज आलम को मिलने की घोषणा के साथ ही विवाद तो थम गया, लेकिन मनमुटाव अब भी बना हुआ है. इसी बात को लेकर लोगों को आशंका है कि राजद प्रत्याशी को आपसी विवाद में भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि अररिया लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में छह विधानसभा क्षेत्रों में से जोकीहाट ही ऐसी सीट थी, जिसपर सरफराज आलम को सबसे अधिक वोट मिले थे.

अररिया विधानसभा में भी उन्हें लीड वोट मिले थे, जबकि शेष चार विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सिंह आगे थे. अब जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में जदयू प्रत्याशी का मुकाबला सरफराज आलम के भाई शाहनवाज आलम से है. राजद के कद्ावर नेता रहे तस्लीमुद्दीन की सीमांचल में अल्पसंख्यक वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रही है. उनकी मौत के बाद उनके पुत्र सरफराज आलम के विरासत को संभालते हुए अररिया लोकसभा क्षेत्र से राजद के टिकट पर सांसद बने. इस संसदीय सीट के अन्तर्गत आने वाले जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में सरफराज आलम को मिले रिकॉर्ड वोट को देखते हुए जदयू के लिए यह उपचुनाव आसान नहीं होगा. जदयू के लिए इस सीट को बचाना बड़ी चुनौती है.

जदयू के लिए जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में कई दावेदार थे. पूर्व विधायक मंजर आलम, इनके बहनोई पूर्व जदयू जिलाध्यक्ष नौशाद आलम, पलासी के मियांपुर पंचायत के मुखिया मुर्शिद आलम जदयू के टिकट के लिए प्रयासरत थे. लेकिन टिकट मुखिया मुर्शिद आलम को मिला है. वे पलासी के मियांपुर पंचायत में लगातार तीनबार से मुखिया हैं. जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में 2,70415 मतदाता हैं, जिसमें 144176 पुरुष तथा 126225 महिला मतदाता हैं. इसमें 70 फीसदी संख्या अल्पसंख्यक मतदाताओं की है. कई और प्रत्याशी भी विभिन्न दलों तथा निर्दलीय के रूप में हैं.

इन सभी का यह कहना है कि आखिर कब तक जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र एक ही परिवार को जिताते रहेगा. किसी दूसरे को भी मौका मिलना चाहिए. इन प्रत्याशियों का कहना है कि अधिकतर समय तक जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र एक परिवार के बीच रहा है. यही कारण है कि यहां विकास की बजाय सिर्फ राजनीति हुई. जोकीहाट का विकास करना है तो इस सीट को एक परिवार से मुक्त करना होगा. किसी की सहानुभूति के लिए जोकीहाट को राजनीतिक रूप से पिछड़ेपन का शिकार बनाने से रोकना होगा. जदयू के लिए 28 मई को जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव कई कारणों से अहम हो गया है.

अव्वल तो यह है कि यह सीट जदयू के ही कब्जे में थी. इसके अलावा, महागठबंधन से नाता तोड़ने के पश्चात यह दूसरा मौका होगा, जब पार्टी जनता का सामना करेगी. पिछले दिनों जहानाबाद में हुए उपचुनाव में जदयू को हार का सामना करना पड़ा था. तीसरी अहम बात यह भी है कि इस सीट पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या अधिक है और यह चुनाव जदयू के प्रति उनके रुख को भी स्पष्ट कर देगा.

जदयू के लिए वैसे यह अच्छी स्थिति है कि अररिया लोकसभा क्षेत्र की छह में से चार विधानसभा सीटें अभी राजग के कब्जे में हैं, जबकि एक पर कांग्रेस का कब्जा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, अररिया लोकसभा क्षेत्र में अल्पसंख्यक मतदाता 42.95 प्रतिशत हैं, मगर जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में इनकी संख्या करीब 70 प्रतिशत है. सीमांचल में अररिया के अलावा पूर्णिया, कटिहार एवं किशनगंज जिले आते हैं और इन जिलों में अल्पसंख्यक मतदाताओं की आबादी 40 प्रतिशत से अधिक है.

पटना में आयोजित दीन बचाओ देश बचाओ सम्मेलन की सफलता से जदयू के हौसले बुलंद हैं. इसके ठीक बाद सम्मेलन के संयोजक खुर्शीद अनवर को जदयू ने विधान परिषद का टिकट देकर यह साफ संदेश दे दिया कि पार्टी अब अल्पसंख्यक वोटरों को राजद के लिए अकेला नहीं छोड़ने वाली है. जोकीहाट में जो उपचुनाव हो रहा है, उसमें अल्पसंख्यक वोटरों की तादाद ही जीत हार का फैसला करेगी. इस चुनाव का रिजल्ट यह तय कर देगा कि मुस्लिम आबादी को अपनी तरफ करने का जो अभियान जदयू ने छेड़ रखा है, वह कितना सफल हो पाया है. अगर जदयू अपने मिशन में सफल रहा तो फिर राजद को पूरे बिहार में अपने वोट बैंक को बचाने के लिए नए सिरे से सोचना होगा.

अभी तक की धारणा तो यही है कि मुसलमान राजद को वोट करते हैं और कांग्रेस के साथ आ जाने के बाद तो यह भी माना जाता है कि इसमें बिखराव नहीं होगा. लेकिन नीतीश कुमार की नई कोशिशों से राजद खेमा घबराहट में है. राजद हर हाल में जोकीहाट की सीट जदयू से छीनना चाहता है ताकि यह संदेश सूबे की जनता के बीच साफ तौर पर चला जाए कि उसका माय समीकरण पूरी तरह से एकजुट है. दूसरी तरफ जदयू के लिए चुनौती दोहरी है. पहली तो यह कि उसे अपनी पुरानी सीट बरकरार रखनी है और दूसरी उसे अल्पसंख्यक वोटों में विभाजन का भी संदेश देना है. अब यह जोकीहाट उपचुनाव का परिणाम तय करेगा कि इस महामुकाबले में बाजी राजद के हाथ में लगेगी या जदयू अपने मंसूबे में सफल होगा.

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