उत्तराखंड शासन, खासकर वहां के भाजपा शासन के लिए हरिद्वार में 2010 के महाकुंभ का आयोजन एक बहुत बड़ी चुनौती है. उत्तराखंड राज्य गठन के बाद ही नहीं, बल्कि हरिद्वार में नई सदी का भी यह पहला महाकुंभ है, जिसमें शासन, प्रशासन और पुलिस की अग्निपरीक्षा होनी है. आज जब सारी दुनिया आतंकवाद की चपेट में है और भारत तो इस समस्या से लगातार दो-चार हो रहा है, तब महाकुंभ का यह विशेष अवसर भी इस खतरे से मुक्त नहीं है. पिछले साल के 26/11 के ख़ौ़फनाक दृश्य अभी तक लोगों के मानस पर अंकित हैं कि किस तरह आतंकवादी सार्वजनिक स्थानों को अपना निशाना बनाते हैं और पूरी व्यवस्था को बंधक बना लेते हैं. इसके मद्देनज़र महाकुंभ की व्यवस्थाओं की दृष्टि से प्राय: अनुभवहीन इस शिशु राज्य के अगले साढ़े पांच महीने सचमुच गंभीर तैयारी के रहेंगे. महाकुंभ में अनुभवहीनता की स्थिति यह है कि पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने अधिकारियों की एक बैठक में पूछा कि आप में से कितनों को कुंभ की व्यवस्थाओं का अनुभव है तो उन्हें भी यह जानकर आश्चर्य हुआ कि महाकुंभ के पूरे अमले में उनके अपने प्रमुख सचिव सुभाष कुमार के अलावा केवल एक आईपीएस डीआईजी-कुंभ आलोक शर्मा, कुल यही दो उच्चाधिकारी कुंभ मेले की व्यवस्थाओं का अनुभव रखते हैं. लेकिन, अनुभवहीनता की इस स्थिति के बावजूद कुंभ की तैयारियां जोरों पर हैं. मुख्यमंत्री से लेकर मेलाधिकारी आनंद वर्धन तक सभी जोश में हैं. मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब मेले में!
इस संदर्भ में जब डीआईजी-कुंभ आलोक शर्मा से बातचीत हुई तो सुरक्षा व्यवस्थाओं से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आईं. आलोक शर्मा हरिद्वार के महाकुंभ 1998 के अलावा इलाहाबाद के महाकुंभ 2001 का भी पूरा अनुभव रखते हैं. उन्होंने उज्जैन के सिंहस्थ मेले की व्यवस्थाओं का भी नज़दीक से अध्ययन किया है. हरिद्वार के महाकुंभ के लिए पुलिस प्रभारी के रूप में शासन ने महीनों पहले उन्हें डीआईजी-कुंभ के रूप में हरिद्वार में तैनात कर दिया था. उन्होंने बताया कि आतंकवाद के जिस ख़तरे से सारा देश जूझ रहा है, उससे कुंभ मेले को बरी नहीं माना जा सकता, लेकिन हम चौकस हैं और हर तरह के खतरे से निपटने के लिए अपने सुरक्षाकर्मियों को तैयार कर रहे हैं. शर्मा का कहना है कि सुरक्षा की चेतना और परिवेश पर चौकस निगाह अगर हर सुरक्षाकर्मी, हरिद्वार के हर नागरिक और आने वाले हर तीर्थयात्री की होगी तो हम इन संभावित खतरों का मुक़ाबला करने में सक्षम हो सकेंगे. कुंभ मेले में बम विस्फोट के खतरे को देखते हुए पुलिस बल के विशेष प्रशिक्षण की बात उन्होंने कही और बताया कि अब तक ढाई हज़ार पुलिसकर्मियों के अलावा पीएसी के 2000 जवानों को भी मेला ड्यूटी के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका है. इन सभी को बम निरोध के नज़रिए से भी प्रशिक्षित किया गया है.

आने वाले समय में एक हज़ार और पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया जाएगा. शर्मा का अनुमान है कि मेले में तैनात उत्तराखंड पुलिस के 80 प्रतिशत सिपाही बम निरोध के नज़रिए से विशेष प्रशिक्षित होंगे. प्रशिक्षण के लिए दस से पंद्रह दिनों के शिविर लगाने का क्रम पिछले कई महीनों से जारी है. जिन लोगों की ड्यूटी कुंभ में लगनी है,

उन्हें हरिद्वार बुलाकर यहां के मेलाक्षेत्र, विशेषकर हरिद्वार, ज्वालापुर, कनखल, भूपतवाला और भेल-सिडकुल दिखाया घुमाया जाता है. समाज के पंडा, व्यापारी, राजनीतिक, और मीडिया आदि वर्गों के प्रमुख लोगों से उनकी बातचीत कराई जाती है, ताकि वे आम जनता की अपेक्षाओं को समझ सकें. एक जनवरी 2010 से 30 अप्रैल 2010 तक यानी चार माह का समय औपचारिक तौर पर शासकीय मेलाकाल होगा. इस बीच हरिद्वार, देहरादून, टिहरी और पौड़ी ज़िलों के हिस्सों को मिलाकर एक नया कुंभ जनपद प्रभावी रहेगा. इस अस्थायी मिश्रित जनपद की कमान मेलाधिकारी के रूप में नियुक्त आईएएस आनंद वर्धन और डीआईजी-कुंभ आलोक शर्मा के हाथों में होगी. शर्मा ने बताया कि फिलहाल 300 जवानों का पुलिस बल स्थायी तौर पर हरिद्वार में डेरा डाल चुका है, जिसमें 10 इंस्पेक्टर शामिल हैं. नवंबर मध्य तक यह बल 500 पुलिसकर्मियों का हो जाएगा. फिर 15 दिसंबर तक 1500, 15 जनवरी तक 2500, 15 फरवरी तक 3750 और मार्च मध्य तक इस बल में उत्तराखंड के 5000  सिविल पुलिसकर्मी शामिल हो जाएंगे. इसके अलावा पीएसी और होमगार्ड्‌स के 4000 जवान और अर्द्धसैनिक बलों की 60 कंपनियां भी हरिद्वार में तैनात हो जाएंगी. कुल मिलाकर कुंभ का महीना आते-आते हरिद्वार में क़रीब 20,000 सुरक्षाकर्मी तीर्थयात्रियों की सेवा में मौज़ूद रहेंगे, जिनमें जल पुलिस, घुड़सवार पुलिस, स्निफर डॉग्स, वायरलेस, अग्निशमन, बीएसएफ, आरएएफ और आरपीएफ आदि शामिल हैं.
इतने सारे पुलिसकर्मियों के कुंभ आ जाने का मतलब यह है कि राज्य के कुल पुलिसबल का दो तिहाई हिस्सा हरिद्वार में होगा. आठ ज़िले लगभग पुलिस विहीन हो जाएंगे. राजधानी देहरादून में मौज़ूदा पुलिस बल का चौथाई और नैनीताल व उधमसिंह नगर का आधा हिस्सा हरिद्वार में तैनात रहेगा. शर्मा के अनुसार, तीर्थयात्रियों और उनके वाहनों की व्यवस्था पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जा रहा है. क़रीब एक लाख वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था की जा रही है. सबसे बड़ी पार्किंग कनखल में दक्षद्वीप में होगी, जहां क़रीब 40,000 वाहन खड़े हो सकेंगे. उसके बाद 25-25 हज़ार वाहन खड़ा करने के लिए नजीबाबाद मार्ग पर गौरीशंकर द्वीप और ज्वालापुर में धीरवाली क्षेत्र निश्चित किए गए हैं. ऋषिकेश व देहरादून से आने वाले लोगों के लिए रायवाला, मोतीचूर और सप्तसरोवर में क़रीब 10 हज़ार छोटे-बड़े वाहनों की पार्किंग की सुविधा रहेगी. ज़रूरत पड़ने पर सिडकुल में राजा बिस्कुट फैक्टरी के सामने क़रीब 20,000 वाहन खड़े किए जा सकेंगे. सारे पार्किंग स्थल हरिद्वार नगर और मुख्य स्नान-स्थल हरकी पौड़ी से छह-सात किलोमीटर दूर होंगे. प्रशासन इन पार्किंग स्थलों से क़रीब 80 सिटी बसें चलाने की योजना बना रहा है, लेकिन इसके बाद भी यात्रियों को हरकी पौड़ी पहुंचने के लिए कम से कम तीन-चार किलोमीटर पैदल चलना ही पड़ेगा.
हरिद्वार के स्थायी नागरिकों का सामान्य जीवन इस तरह के  पर्वों-मेलों पर प्राय: बाधित हो जाता है. कुंभ पुलिस उनका भी ध्यान रखने वाली है. उनके सामान्य आवागमन में बाधाएं न हों, इसके लिए उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार धारा के विरुद्ध चलने के लिए पैदल पास, वाहन पास और अनेक स्थलों पर एंबुलेंस की व्यवस्था की जाएगी. इसके लिए एक व्यापक सर्वेक्षण करके हर परिवार से पूछताछ का अभियान भी चलाया जा रहा है. अनुमान है कि चार महीने के पूरे मेलाकाल में कम से कम 24 और अधिकाधिक 30 दिन ऐसे होंगे, जबकि स्थानीय निवासियों पर भी पुलिस का कड़ा अनुशासन हावी होगा.
महामेले की सुरक्षा व्यवस्था को चाकचौबंद करने के लिए  डीआईजी-कुंभ के अधीन हरिद्वार में एसएसपी-कुंभ के रूप में आईपीएस अधिकारी अजय रौतेला अपना कामकाज संभाल चुके हैं. अभी और तीन एसपी, छह-सात एएसपी, पचास डिप्टी एसपी, तीस निरीक्षक, छह सौ उपनिरीक्षक, छह सौ हेड कांस्टेबल और पांच हज़ार कांस्टेबलों की तैनाती होनी है.
राज्य सरकार ने इस मद में क़रीब 17 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है. इसमें से क़रीब ग्यारह-बारह करोड़ रुपये सीधे पुलिस मुख्यालय देहरादून व्यय करेगा, जबकि शेष राशि हरिद्वार की व्यवस्थाओं पर यहीं खर्च की जाएगी. पुलिस द्वारा खर्च की जाने वाली राशि का बड़ा भाग टिन, टेंट और छोलदारियों पर खर्च किया जाता है. क़रीब  डेढ़-डेढ़ करोड़ रुपये अग्निशमन और वायरलेस व्यवस्थाओं पर खर्च किए जाते हैं. क़रीब एक करोड़ रुपये तो सुरक्षाकर्मियों के आगमन, भोजन और अस्थायी आवास पर ही व्यय हो जाते हैं. पिछले कुंभों में साधु-संन्यासियों के बीच हुई हिंसक वारदातों की चर्चा आने पर शर्मा ने वर्तमान परिस्थितियों पर संतोष प्रकट करते हुए कहा कि अब सब कुछ सामान्य है. साधु-संन्यासियों के सभी अखाड़े परस्पर सौहार्द और मैत्री का वातावरण बनाए हुए हैं. 1998 के महाकुंभ में हरिद्वार में जो हिंसक घटनाएं और विवाद हुए थे, उन्हें 2001 के इलाहाबाद महाकुंभ में सुलझा लिया गया था. उन्होंने कहा कि यह परंपराओं का मेला है. अगर  साधु-संन्यासी, आम जनता और पुलिस-प्रशासन सभी अपने-अपने दायित्व निभाएंगे तो कोई समस्या नहीं आएगी.

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