रबी की फसल बोने का व़क्त है, खाद और बीज का कोई अता-पता नहीं है, किसान बेचारा करे तो क्या करे? दलाल डीएपी की एक– बोरी 600 रुपये में बेचकर अपनी तिजोरी भरने में जुटे हैं और सूबे की सरकार कान में तेल डालकर बैठी हुई है. तिस पर राज्य के कृषि मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण का को़ढ में खाज वाला बयान कि किसान अनावश्यक उर्वरक न ख़रीदें.
बुवाई का मौसम है और सरकार की संवेदनहीनता अपने चरम पर. किसान परेशान हैं. कहीं उन्हें खाद के बदले पुलिस की लाठियां मिल रही हैं तो कहीं वे दलालों के  हाथों लुटने के साथ-साथ नक़ली और मिलावटी खाद लेने के लिए मजबूर हैं. प्रदेश में सहकारिता के आधार पर किसानों तक खाद पहुंचाने की व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई है. सहकारी समितियों पर दलालों का क़ब्ज़ा है और सरकारी खाद खुले बाज़ार में बिक रही है. बुंदेलखंड के महोबा जनपद में खाद न मिलने से किसान मारे-मारे फिर रहे हैं. वहीं दलाल डीएपी की एक बोरी 600 रुपये में बेच रहे हैं. विरोध में धरना-प्रदर्शन करने वाले किसानों को खाद के बदले पुलिस की लाठियां मिल रही हैं. पिछले छह वर्षों से प्रकृति के प्रकोप ने किसानों को बदहाल कर दिया है. सूखे के कारण खरी़फ की फसल पूरी तरह ख़राब हो चुकी है.
इधर अक्टूबर में पानी बरसने से रबी की बुवाई की उम्मीद जगी, लेकिन अब खाद न मिल पाने से किसान समितियों के चक्कर लगा रहे हैं. सहकारिता विभाग अब तक चार हज़ार टन खाद बांट देने का दावा कर रहा है. बावजूद इसके ज़िले की सहकारी समितियों में रोज सैकड़ों किसान एक-एक बोरी के लिए आपस में भिड़ जाते हैं. एक दर्ज़न से ज़्यादा समितियों में तो पिछले एक हफ़्ते से एक बोरी खाद नहीं पहुंची. नकरा के किसान लगातार समिति में धरना देने के बाद भी खाद नहीं पा सके हैं.

कुलपहाड़ में खाद के  लिए सड़क जाम कर रहे किसानों पर पुलिस ने जमकर लाठियां बरसाईं, जिसमें आधा दज़र्र्न लोग घायल हो गए. सिजहरी साधन सहकारी समिति में आधा दर्ज़न से ज़्यादा गांवों के सैकड़ों किसानों ने सागर-कानपुर राजमार्ग पर अपनी वेदना प्रशासन तक पहुंचाने की कोशिश की तो पुलिस ने लाठियां चटकाते हुए आधा दर्ज़न लोगों के विरुद्ध मुक़दमा दर्ज़ कर लिया.

चिचारा के किसान राम संजीवन वर्मा, शिव विशाल, कुबेर सिंह, सुरेंद्र और लालाराम बताते हैं कि समिति में आई खाद बाहर बाज़ार में छह सौ रुपये प्रति बोरी के हिसाब से बेची जा रही है. कबरई में एक बीज की दुकान में धड़ल्ले से खाद बिक रही है. चरखारी के  नामनरेश, देवेंद्र कुमार और हरीराम के मुताबिक़, यहां भी कई बिचौलिए ब्लैक में खाद बेच रहे हैं. उपनिबंधक सहकारिता हृदयराम के मुताबिक़, ज़िले को लक्ष्य से कई गुना ज़्यादा पांच हज़ार टन खाद की आपूर्ति की गई है.
महाराजगंज के किसान सुरेंद्र प्रताप कहते हैं कि हमारे उपजाए अन्न से ग़रीबों व अमीरों दोनों का ही पेट भरता है, लेकिन खेतों को तैयार करने के बाद खाद के लिए हमें लाइन लगानी पड़ती है, लाठियां तक खानी पड़ती हैं. जब खाद मिल जाती है तो फिर बीज के लिए हफ़्तों केंद्र के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इसके  बाद मचता है पानी के लिए हाहाकार. कटाई-मड़ाई के बाद जब हम अपनी उपज बेचने के लिए ख़रीद केंद्रों पर जाते हैं तो वहां भी लाइन लगानी पड़ती है. यही हम किसानों की नियति है.
फतेहपुर जनपद में गेहूं व आलू की बुवाई के लिए एक साथ डीएपी की मांग बढ़ी तो ज़िले में ज़बर्दस्त किल्लत शुरू हो गई. बत्तीस सौ मीट्रिक टन का ब़फर स्टॉक होने के बाद भी साठ फीसदी सहकारी समितियों में खाद नहीं  का बोर्ड लगा हुआ है. बताते हैं कि प्रशासन के निर्देश पर जब रमवा के एक खाद विक्रेता के यहां छापा मारा गया तो वहां डीएपी की 80 बोरियां बरामद हुईं. यही हाल बिजनौर जनपद का है. यहां भी डीएपी की कमी के चलते छोटे और मझोले किसान भटक रहे हैं. 472 रुपये वाली एक बोरी डीएपी किसानों को छह सौ रुपये से भी अधिक में ख़रीदनी पड़ रही है. धामपुर तहसील क्षेत्र में 55 फीसदी रकबे में रबी की फसलों की बुवाई खरी़फ की फसलों की कटाई के बाद होती है, जबकि 45 फीसदी रकबे में पेड़ी गन्ना काटकर रबी की फसलों की बुवाई की जाती है. खरी़फ की फसलों की कटाई का काम ख़त्म होने को है. ऐसे में रबी की फसलों की बुवाई की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं, लेकिन ब्लॉक अल्हैपुर, कासमपुरगढ़ी व आकू की अधिकांश किसान सेवा सहकारी समितियों व गन्ना समितियों के गोदामों पर खाद का कोई अता-पता नहीं है. सहकारी गन्ना समिति के सचिव-प्रभारी दिलीप सिंह बताते हैं कि ज़िला गन्ना अधिकारी बी के अरविंद ने ज़िले की सभी नौ गन्ना समितियों के लिए 1500 मीट्रिक टन डीएपी की मांग ज़िला कृषि अधिकारी के माध्यम से शासन को भेजी थी. लेकिन अभी तक मात्र ढाई सौ मीट्रिक टन डीएपी मिली है. इफ्को को एडवांस चेक देने के बाद भी डीएपी नहीं मिल पा रही है. उधर ज़िला कृषि अधिकारी शिव कुमार सिंह का दावा है कि उर्वरकों की कोई कमी नहीं है. खरी़फ में लक्ष्य से अधिक डीएपी प्राप्त हुई थी. रबी के लिए भी एक-दो दिन में डीएपी की रैंक ज़िले में पहुंचने वाली है.
संत कबीर नगर में भी खाद-बीज का संकट गहरा गया है. किसान कृषि रक्षा इकाइयों से लेकर साधन सहकारी समितियों तक की खाक छान रहे हैं. उन्हें न तो खाद मिल रही है और न ही बीज. सूखे के असर को देखते हुए शासन ने इस साल गेहूं, दलहन व तिलहन के बीजों पर सब्सिडी बढ़ा दी है, सो कालाबाज़ारी भी धड़ल्ले से हो रही है. विकास खंड बेलहार कला क्षेत्र स्थित साधन सहकारी समिति रमवापुर, बूढ़ी बेलहर, सिसवा, ब्लॉक– मुख्यालय मेहदावल, ब्लॉक मुख्यालय सांथा, सेमरियावां, नायनगर हैंसर व पौली में रोज़ाना हज़ारों किसान सहकारी समितियों व कृषि रक्षा इकाइयों पर लंबी लाइनें लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें बीज व खाद के दर्शन नहीं हो रहे हैं. जबकि ज़िला कृषि अधिकारी राजकुमार का कहना है कि खाद और बीज की कोई कमी नहीं है. उन्नाव जनपद को मिली 7500 टन खाद में से अधिकांश का आवंटन सहकारिता से हटकर निजी क्षेत्र के लाइसेंसधारकों कर  दिया गया. इससे किसानों में त्राहि-त्राहि की स्थिति है.
उधर नक़ली खाद का कारोबार भी अलीगढ़, बिजनौर और लखनऊ में  खुलेआम चल रहा है. यहां से नक़ली खाद पूरे प्रदेश में भेजी जा रही है, लेकिन कुछ सत्ताधारी नेताओं के संरक्षण के चलते ऐसे कारोबारियों पर कार्रवाई करने के लिए कोई तैयार नहीं है. रस्म अदायगी के लिए कृषि विभाग ने कौशांबी में नक़ली खाद के 14 नमूने एकत्र किए हैं और प्रतापगढ़ से 389 बोरियां बरामद की हैं. हाथरस के सादाबाद इलाक़े में भी 200 बोरी सरकारी खाद एक निजी मकान से बरामद की गई है,  लेकिन इस संदर्भ में अभी तक किसी के ख़िला़फ कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

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