nanana28 दिसंबर 2014 को वरिष्ठ भाजपा नेता रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व वाली दो दलों की एनडीए के तहत गठबंधन वाली सरकार ने झारखंड राज्य में शपथ ले लिया है. अब देखना यह है कि इस आदिवासी राज्य को राजनीतिक मजबूती के साथ-साथ विकास देने के नाम पर बनी ये दसवीं गठबंधन सरकार कितनी कामयाब होती है?

इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाय कि चौदह वर्ष पूर्व 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया झारखंड भारत के चालीस प्रतिशत खनिज पदार्थों के स्वामी होने के बावजूद अभी तक एक पिछड़ा हुआ राज्य है. बीते चौदह वर्षों में नौ सरकारों ने यहां राज्य किया और यहां तीन बार राष्ट्रपति शासन लागू रहा. इस राजनीतिक अस्थिरता ने राज्य के पिछड़ेपन को और अधिक बढ़ाया और ये विकास के लिए तरसता रहा. इन सबके बीच यहां 6.54 मिलियन आदिवासी उजाड़े गए और यहां नक्सलवाद पनपता और बढ़ता रहा. ज्ञात रहे कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस राज्य के बनने से लेकर अब से पहले तक नक्सल हिंसा से संबंधित कुल 4430 घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 399 पुलिस के जवान शहीद हुए. 395 आम लोगों को अपनी जान गंवानी प़डी. 916 नक्सलवादी मारे गए. जाहिर सी बात है कि इन सब घटनाओं से राज्य में खौफ का माहौल बरकरार रहता है.
यही कारण है कि नरेंद्र मोदी ने इस बार जनता से भाजपा को पूर्ण बहुमत से जिताने के अपील की थी ताकि राज्य को राजनीतिक स्थिरता एवं मजबूती दी जा सके और फिर यहां की समस्याएं हल हों और यह राज्य अन्य राज्यों की तरह विकास की दौ़ड में शामिल हो सके. इस अपील के नतीजे में 81 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा को 37 सीटें मिली और यह सदन में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी मगर यह अपने बल पर 41 के मैजिक नंबर तक पहुंच नहीं पाई. गौरतलब है कि इसने चुनाव पूर्व 28 वर्ष पुरानी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन(आजसू) और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी(एलजेपी) से एनडीए के तहत गठबंधन कर रखा था. अतएव आजसू को 5 सीटें प्राप्त होने से एलजेपी को शून्य सीट मिलने के बावजूद इस गठबंधन की कुल 42 सीटें हो गईं. इस प्रकार भाजपा पूर्ण बहुमत के मैजिक नंबर से 1 सीट अधिक हासिल करके आजसू के साथ सरकार बनाने के योग्य हो गई.
28 दिसंबर को भाजपा, आजसू गठबंधन सरकार ने मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत पांच लोगों ने बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टोडियम रांची में शपथ ग्रहण भी कर लिया अन्य चार मंत्रियों में भाजपा के तीन नीलकंठ सिंह मुंडा(खुंती), चंद्रेश्‍वर प्रसाद सिंह(राची) और लुईस मरांडी(दुमका) एवं आजसू के एक चंद्रप्रकाश चौधरी शामिल हैं. इस राज्य में मुख्यमंत्री समेत अधिक से अधिक एक दर्जन मंत्रिगण हो सकते हैं. आशा है कि और सात मंत्री जल्द ही रघुवर दास मंत्रिमंडल में शामिल होंगे देखना ये है कि आजसू के कितने विधायकों को मंत्रिमंडल विस्तार के समय और लिया जाता है. आजसू उस क्षण की प्रतिक्षा कर रही है.
रघुवर दास एक आदिवासी राज्य के गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने हैं. इसके पीछे वजह यह बताई जाती है कि खरसवां एसटी असेंबली विधानसभा क्षेत्र से चार बार नुमाइंदगी करने वाले गत 14 वर्षों में तीन बार मुख्यमंत्री रहे भाजपा के हेवीवेट अर्जुन मुंडा के झारखंड मुक्तिमोर्चा(जेएमएम) के दशरथ गगराई के हाथों हार जाने के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए जाना पहचाना आदिवासी चेहरा हाथ से निकल गया और फिर गैर आदिवासी हेविवेट रघुवर दास पर भाजपा को संतोष करना पड़ा. आश्‍चर्य की बात यह भी है कि जहां एक ओर अर्जुन मुंडा की शक्ल में यह जाना पहचाना चेहरा भाजपा को परेशान कर गया वहीं दूसरी ओर सिल्ली विधानसभा क्षेत्र से 15 वर्षों तक नुमाइंदगी करने वाले भाजपा के सहयोगी दल आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो भी हार कर अपनी पार्टी को दुख दे गए.

रघुवर दास एक आदिवासी राज्य के गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने हैं. इसके पीछे वजह यह बताई जाती है कि खरसवां एसटी असेंबली विधानसभा क्षेत्र से चार बार नुमाइंदगी करने वाले गत 14 वर्षों में तीन बार मुख्यमंत्री रहे भाजपा के हेवीवेट अर्जुन मुंडा के झारखंड मुक्तिमोर्चा(जेएमएम) के दशरथ गगराई के हाथों हार जाने के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए जाना पहचाना आदिवासी चेहरा हाथ से निकल गया और फिर गैर आदिवासी हेविवेट रघुवर दास पर भाजपा को संतोष करना पड़ा.

इस प्रकार सत्तारू़ढ भाजपा एवं आजसू के लिए यह आजमाइश के क्षण हैं. मोदी लहर ने तो 37 सीटें दिलाकर भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया है. मगर इसे चार सीटें कम रहने के कारण पांच सीटें जीतने वाली आजसू, जिससे इसका चुनाव पूर्व गठबंधन था, पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
काबिले गौर है कि आजसू असम राज्य कि ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के अंदाज पर 1986 में बनी एक ऐसी पार्टी है जो झारखंड राज्य के गठन के आंदोलन में आगे-आगे रही है. 1990 से इसने बिहार विधानसभा के लिए झारखंड के मुक्ति मोर्चा के निशान पर चुनाव लड़ा और फिर बाद में अपने नाम पर ल़डने लगी 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान इसका भाजपा से गठबंधन था मगर एक वर्ष बाद 2005 के झारखंड विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए संबंध तोड़ लिया और एलजेपी से गठबंधन कर लिया फिर 2014 चुनाव से पूर्व इसका एनडीए के तहत भाजपा से गठबंधन हो गया.
इस लिहाज से ऐसा महसूस होता है कि भाजपा एवं आजसू का एनडीए के तहत गठबंधन एक ऐसा गठबंधन है जो कि बीते दिनों में टूटा भी है और इसके टूटने की वजह इन दोनों पार्टियों के बीच आपसी मतभेद थे. जाहिर है कि आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो वर्तमान सरकार से बाहर रहकर अपनी पार्टी के अधिक से अधिक स्वार्थों को पूरा करना चाहेंगे एवं भाजपा के लिए गियर या एक्सीलेटर के तौर पर भूमिका अदा करने को कहेंगे. अगर यह स्थिति रहती है तो वैचारिक तौर पर अलग इन दोनों पार्टियों के लिए बहुत बड़ी परीक्षा होगी कि यह गठबंधन को हर हाल में बरकरार रखें ताकि राज्य में राजनीतिक स्थिरता और मजबूती कायम रहे और राज्य विकास करे. ज्ञात रहे कि झारखंड वह क्षेत्र जहां 1908 से गैर आदिवसियों को आदवासी जमीन को बेचने से बचाने के लिए एवं आदिवसियों के दिगर स्वार्थों के लिए छोटा नागपुर टेनेन्सी ऐक्ट एवं अन्य कानून संविधान के तहत लागू है. इसके अलावा यह बात भी है भाजपा का कोई नेता इस राज्य का पहली बार मुख्यमंत्री नहीं बना है. इसके वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा इस राज्य के तीन बार और उनसे पहले बाबू लाल मरांडी एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. पहली बार राज्य के गठन से कुछ माह पहले 2000 के चुनाव में भाजपा ही 32 सीटें पाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.
2014 से पूर्व राज्य में कुल 9 सरकारों में भाजपा की 4 बार सरकार रही है. इस दौरान तीन बार तो यह सबसे बड़ी पार्टी और एक बार दो बड़ी पार्टियों में शामिल थी. बहरहाल इतना जरूर है कि इस बार इसे एक पार्टी को ही विश्‍वास में लेकर चलना पड़ेगा. अब देखना है विकास का अपना मुद्दा बनाकर चुनाव ल़डने वाली भाजपा आखिर अपने वायदों पर कितना खरा उतर पाती है?

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