newभारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी ने अपने ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन को लेकर भाजपा के अधिकतर आदिवासी विधायक एकजुट हो गए हैं और सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. एक तरह से कहा जाय तो भाजपा के सत्ता एवं संगठन में सबकुछ सामान्य नहीं है. सत्ता से संगठन तक विरोध के स्वर तेज हो गए हैं. इधर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने यह कहकर कि भाजपा के 17 विधायक उनके संपर्क में हैं, भाजपा के आला नेताओं की नींद उड़ा दी है. वहीं सरकार के सहयोगी दल आजसू ने भी रघुवर सरकार के विरुद्ध मुहिम छेड़ कर सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने कहा कि सरकार ने स्थानीय नीति व सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन का जो निर्णय लिया है, उससे आदिवासी आहत हैं. वैसे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी के सरकार विरोधी स्वर मुखर होते ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मरांडी से इस्तीफा मांग लिया है, वैसे शाह के इस फैसले से आदिवासी विधायक और आक्रोशित हो गए हैं. भाजपा के 28 विधायक इस एक्ट में संशोधन के खिलाफ हैं. भाजपा के अभी 43 विधायक हैं.

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी जोरों पर है कि अचानक ताला मरांडी का आदिवासी प्रेम क्यों छलक पड़ा? क्या ताला की चाबी किसी और के पास है? वैसे यह भी चर्चा है कि राज्य के एक पूर्व मुख्यमंत्री, जो आजकल हाशिए पर हैं, का ताला से मधुर संबंध स्थापित हो गया है. वैसे इसी नेता के काट के रूप में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ताला मरांडी को आगे कर प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, पर अचानक ताला मरांडी ने रघुवर के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और रघुवर सरकार को आदिवासी विरोधी करार करने में लग गए. इधर सरकार की सहयोगी दल आजसू ने भी इस नीति को लेकर सरकार पर हमला तेज कर दिया है. आजसू नेताओं का भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री से मधुर संबंध हैं. भाजपा के आला नेताओं को अपनी तरफ आकर्षित नहीं किया गया तो पार्टी के भीतर किसी भी वक्त इसे मुद्दा बनाकर आदिवासी विधायक पार्टी से बगावत कर सरकार गिरा सकते हैं. पार्टी के अधिकतर आदिवासी विधायक पूर्व मुख्यमंत्री के संपर्क में हैं, जिनका राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ छत्तीस का रिश्ता है. वैसे रघुवर ने पदभार ग्रहण करते ही रिश्ते में मिठास लाने की कोशिश जरूर की, पर दोनों के बीच इतनी खटास है कि ऐसा करना लगभग असंभव है.

संगठन के भीतर नेताओं में खासा रोष है. प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी द्वारा नई कार्यसमिति की घोषणा के साथ ही नया विवाद खड़ा हो गया है. पार्टी के वरीय नेताओं ने ताला मरांडी पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. कार्यसमिति की घोषणा होते ही कई नेताओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. पार्टी के भीतर बगावत होने पर पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं ने ताला मरांडी को दिल्ली बुलाकर इस्तीफा ले लिया, पर इससे भी मामला शांत नहीं हुआ. कुछ आदिवासी विधायकों ने ताला के इस्तीफे को लेकर आला नेताओं के खिलाफ हमला बोल दिया. मांडर क्षेत्र की विधायक गंगोत्री कुजूर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव से मिलकर आदिवासी हितों की रक्षा के लिए उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की, साथ ही कुछ विधायकों ने ताला मरांडी को ही प्रदेश अध्यक्ष बने रहने की वकालत की. अब पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष विषम स्थिति उत्पन्न हो गयी है, एक तरफ कुआं तोे दूसरी तरफ खाई. अगर प्रदेश अध्यक्ष के पद से ताला मरांडी को हटाते हैं तो आदिवासी विधायक एकजुट होकर सरकार को अस्थिर करने का प्रयास करेंगे और अगर रहने देते हैं तो भी आदिवासी मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला करेंगे, जिससे पार्टी की छवि तो धूमिल होगी ही, विपक्षी दल भी इसे भुनाने का पूरा प्रयास करेंगे. अब पार्टी एवं सरकार के समक्ष एक ही रास्ता बचा है कि वह सीएनटी एसपीटी एक्ट को वापस ले ले.

इधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का मानना है कि अगर इस एक्ट में संशोधन हुआ तो आदिवासी मूलवासी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा. सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट को सख्ती से लागू करने की जरूरत है. विकास व आधारभूत संरचना के लिए भूमि अधिग्रहण एक्ट को और प्रभावी बनाने की जरूरत है, न कि सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन की आवश्यकता. इस अध्यादेश को संशोधन के साथ राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए रघुवर सरकार ने भेज दिया, इस कारण राज्य के आदिवासी विधायकों में आक्रोश है. प्रदेश अध्यक्ष मरांडी ने भी कहा कि इस मसले पर राज्यपाल, रघुवर दास एवं केंद्र के आला नेताओं को विधायक लोगों की भावना से अवगत करा दिया गया है. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस संशोधन का विरोध नहीं करते तो जनता सबक सिखा देती.

इधर विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी तरकश से ऐसा तीर छोड़ा कि भाजपा के आला नेताओं की नींद उड़ गई. खुद रघुवर दास अपने को संकट में घिरा महसूस कर रहे हैं. भाजपा के 43 विधायकों में से 28 विधायक इस विधेयक में हुए संशोधन का विरोध कर रहे हैं. हेमंत सोरेन ने सार्वजनिक तौर पर यह बयान भी दिया कि भाजपा के 17 से अधिक विधायक उनके सम्पर्क में हैं और समय आने पर इसे उजागर किया जाएगा. इस बयान के बाद भाजपा में खलबली मच गयी है. विश्‍व आदिवासी दिवस पर हेमंत सोरेन एवं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की अत्यधिक आत्मीयता चर्चा का विषय बनी हुई है. ऐसी चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, रघुवर दास से शुरू से ही नाराज चल रहे हैं, पर रघुवर दास की पीठ पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की कृपा होने से रघुवर अपने पद पर बने रहने में सफल हो रहे हैं.

वैसे इस बार भाजपा के भीतर उठे आदिवासी विधायकों का विरोध रघुवर सरकार पर कितना असर डालता है, यह तो समय ही बताएगा. पर अब इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि सत्ता एवं संगठन में सबकुछ सामान्य नहीं है. सरकार पर गहरे काले संकट के बादल मंडराने लगे हैं.

संघ का पसंदीदा होगा नया प्रदेश अध्यक्ष

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि संघ परिवार का भाजपा में दखल बढ़ता जा रहा है. संघ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष के पद पर किसी आदिवासी को ही लाना चाहता है. नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन में संघ परिवार की अहम भूमिका रहेगी एवं नाम की सहमति के पूर्व पसंद-नापसंद का भी ख्याल रखा जाएगा. ताला मरांडी की प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी के समय संघ परिवार को नजरअंदाज किया गया था. अमूमन संघ और उससे जुड़े तमाम संगठनों में जिम्मेदारी के पदों पर मनोनयन से पहले राय-मशविरा किया जाता है और इसके लिए राज्य स्तर पर एक समन्वय समिति भी बनी हुई है, जो अहम फैसले पर अंतिम मुहर लगाती है. फिलहाल ताला मरांडी के विकल्प के रूप में कई नामों पर विचार चल रहा है, पर ज्यादा जोर किसी संथाली कद्दावर नेता को इस पद पर बैठाने का है. इस पद की दौड़ में राज्य की समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी का नाम सबसे आगे है. लुईस संथाल परगना क्षेत्र से आती हैं और मृदुभाषी होने के कारण कार्यकर्ताओं में काफी लोकप्रिय हैं. संथाल परगना से ही नाला के विधायक रहे सुनील सोरेन, चाईबासा के सांसद लक्ष्मण गिलुवा के नाम भी सामने आ रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव के नाम पर भी चर्चा चल रही है. दिनेश उरांव ने जिस तरह से विधानसभा की कार्यवाही को पूरे अनुशासन के साथ चलाया, इससे भाजपा के आला नेता खुश हैं, पर इस बार पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की अनदेखी भी भाजपा के आला नेता नहीं कर सकते. आदिवासी नेता और विधायकों पर मुंडा की अच्छी पकड़ है और मुंडा की सहमति लेना भाजपा के आला नेताओं की मजबूरी मानी जा रही है. पार्टी के आला नेताओं को यह अहसास है कि अगर मुंडा की अनदेखी की गयी, तो झारखंड में भाजपा आदिवासी और गैर-आदिवासी में बंट जाएगी.

इधर भाजपा का एक गुट ताला मरांडी को अभयदान दिलाने को लेकर दिल्ली में कैंप कर रहा है. विधायक गंगोत्री कुजूर के नेतृत्व में पार्टी नेता केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव सहित अन्य से मिलकर ताला मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखने की वकालत कर रहे हैं.

पार्टी में खुलेआम पैसा लिया जाता है: ताला

प्रदेश अध्यक्ष का ताज ताला मरांडी के लिए सचमुच कांटों भरा ताज साबित हो रहा है. तीन माह के कार्यकाल में ही विवादों में घिर गए और अंततः उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. वैसे अब भी वे प्रहार करने से चूक नहीं रहे हैं और स्पष्ट तौर पर यह कह रहे हैं कि शीर्ष नेतृत्व ऊंगली उठाए यह उन्हें बर्दाश्त नहीं. वे अपने पद को बड़ा नहीं मानते हैं और कहते हैं कि देश और क्षेत्र की जनता हमारे लिए बड़ी है. वे अपने ऊपर लगे सारे आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं कि पार्टी के नियम-कानूनों के तहत ही उन्होंने काम किया है.

जब उनसे यह पूछा गया कि ऐसी चर्चा है कि आपने पैसा लेकर पार्टी में पद बांटा है, तो उन्होंने कहा कि अगर पैसा लेने का ही काम करता तो मैं भीख नहीं मांगता. जो खुलेआम पैसा लेते हैं, उसे झारखंड के लोग जानते हैं कि कौन पैसा ले रहा है? कौन कितने में बिक रहा है? यह किसी से छिपा नहीं है. हमलोग शांत रहते हैं और सीधे-सादे लोगों पर ही गाज गिरती है. भ्रष्ट लोगों पर नहीं. प्रदेश की नयी कमिटी बनाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कमिटी की घोषणा से पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास एवं अन्य से विचार-विमर्श किया गया था. जिन लोगों को कमिटी में जगह नहीं मिली, वही सवाल उठा रहे हैं. संगठन में काम करने वाले लोग चाहिए थे, पद को सुशोेभित करने वाले नहीं.

आपने खुद इस्तीफा दिया या केंद्रीय नेतृत्व का दबाव था, उन्होंने कहा कि हमें यह लगा कि जिस पार्टी ने मुझे इतना सम्मान दिया है, इतने बड़े पद पर बिठाया, हमारे कारण अगर किरकिरी हो रही है, तो मैं इस पद पर क्यों बैठा रहता और इस कारण मैंने नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के बाद आला नेताओं ने आपको क्या निर्देश दिए हैं तो उन्होंने कहा कि इस बिन्दु पर अभी कुछ नहीं कह सकते. मैंने अपना इस्तीफा सौंप दिया है. इसके बाद मैं क्या करूंगा, अभी इस पर कुछ विचार नहीं किया है. पर शीर्ष नेतृत्व मुझ पर ऊंगली उठाए, यह मुझे बर्दाश्त नहीं.

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ बातचीत हुई या नहीं, इस संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अभी पार्टी अध्यक्ष से मुलाकात नहीं हो पायी है, मैं पार्टी अध्यक्ष से मिलकर अपना पक्ष रखना चाहता हूं.

भाजपा के आदिवासी विधायक हमारे संपर्क में: हेमंत

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी के इस्तीफे के बाद पार्टी के भीतर उत्पन्न विवादों के बीच हेमंत सोरेन का यह बयान कि भाजपा के 17 विधायक उनके संपर्क में हैं. इस बयान के बाद झारखंड की राजनीति गरमा गयी है. वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि झारखंड भाजपा में पार्टी के भीतर ही आदिवासी और गैर आदिवासी विधायकों का दो गुट बन गया है. मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा लाए गए सीएनटी, एसपीटी विधेयक का भाजपा के आदिवासी विधायक खुलकर विरोध कर रहे हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन एवं स्थानीय नीति के मुद्दे पर भाजपा में ही घमासान मचा है. पार्टी के कई सांसद और विधायक इसका विरोध कर रहे हैं. इनमें से 17 से अधिक विधायक झामुमो के सम्पर्क में हैं. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर विधानसभा के पटल पर भी भाजपा के 17 विधायक विपक्ष के साथ खड़े मिलें, तो कोई आश्‍चर्य की बात नहीं होगी. जब उनसे पूछा गया कि कौन सांसद एवं विधायक झामुमो के सम्पर्क में है तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि समय आने पर नामों का खुलासा किया जाएगा. क्या भाजपा के आदिवासी विधायक पार्टी छोड़कर नयी पार्टी बनाएंगे या झामुमो के साथ आएंगे तो उन्होंने कहा कि समय का इंतजार कीजिए, सब मालूम हो जाएगा.

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