मुख्य बातें…..

  1. जिनको डर है, वही CBI को आने से मना करते हैं.
  2. नायडू ने (डीएसपीई) एक्ट को खत्म किया.

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी के बयानों पर निशाना साधते हुए कहा कि जिनके पास छुपाने को बहुत कुछ होता है. वही केंद्रीय जांच एंजेसी को अपने राज्य में आने से रोकते हैं, क्योंकि ऐसे लोगों को डर होता है कि कहीं सीबीआई की जांच होगी तो उनके काले कारनामें सबके सामने उजागर हो जाएंगे.

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री का ये बयान शनिवार को तब आया है जब गत शुक्रवार को चंद्रबाबू नायडू और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बयान जारी कर कहा था कि सीबीआई को हमारे राज्य में जांच करने से पहले अनुमति लेनी होगी. वहीं, चंद्रबाबू नायडू ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून(डीएसपीई एक्ट) के तहत सीबीआई के पदाधिकारियों को दिए गए अधिकार को समाप्त कर दिया है.

बता दें कि दोनों सूबे के मुखियाओं के इस बयान को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा के बाजार का पारा चढ़ा हुआ है. तमाम सियासी दलों के नुमाइंदे दोनों मंत्रियों के बयानों को लेकर अपनी राय रख रहे हैं.

हालांकि, दोनों राज्यों के मुखियाओं ने अपने इस बयान को लेकर कहा कि उनका अब सीबीआई से भरोसा उठ चुका है. मालूम हो कि सीबीआई में गत दिनों घमासान का आलम था. हालांकि, अभी-भी इस घमासान का सिलसिला जारी है. बता दें कि हैदराबाद के व्यपारी सतीश सना ने सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश के ऊपर ये आरोप लगाया था कि उन्होंने उनसे 2 करोड़ रुपए लिये थें, ताकि उनका नाम मानी लांड्रिंग केस से निरस्त कर सकें. इस आरोप के बाद राकेश अस्थाना ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के ऊपर भी रिश्वत लेने का आरोप लगाया था.

बता दें कि इन आरोपों के दौर के बाद सियासी पारा भी उफान पर चढ़ चुका था, जिसके नतीजतन पीएम मोदी ने रातों-रात सीबीआई के निदेशक व विशेष निदेशक को छुट्टी पर भेज दिया था. हालांकि, बाद सीबीआई के कामकाज को देखने के बाबत कार्यकारी के तौर एम नागेश्वर राव निदेशक बनाया था.

इतना ही नहीं, सरकार के इस फैसले को लेकर विपक्षी पार्टियां खासतौर पर कांग्रेस के राष्ट्रीय राहुल गांधी पीएम मोदी पर निशाना साधने से नहीं चुके. उन्होंने इस मुद्दों को राफेल डील से जोड़कर पीएम मोदी पर जुबानी हमला किया. उन्होंने कहा कि मोदी ने राफेल जांच की डर से आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया है. फिलहाल अभी मामला कोर्ट में विचाराधीन है और अंतिम फैसला कोर्ट के हाथों में है.

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