jajaजब भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास और सुशासन को अपनी सरकार का मूलमंत्र बताया था. वह अपने भाषणों में भाजपा शासित राज्यों के सुशासन की बात कहते हैं, जिनमें मध्य प्रदेश भी शामिल है. सुशासन के नारे को लेेकर ही दिसंबर-2013 में भाजपा तीसरी बार मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ हुई और शिवराज सिंह एक बार फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन सूबे के सीधी ज़िले में जिस तरह सरकारी योजनाओं को लूट और बंदरबांट का ज़रिया बना लिया गया है, उससे शिवराज सरकार का सुशासन का दावा खोखला साबित होता है.

मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में मनरेगा (महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना) सहित विभिन्न योजनाओं में जमकर धांधली और सरकारी पैसों की बंदरबांट की शिकायतें सामने आई हैं, जिनमें सरपंच, पंचायत सचिव से लेकर जनपद सीईओ, ज़िला पंचायत सीईओ और कलेक्टर आदि के शामिल होने के आरोप लग रहे हैं. स्थानीय लोगों ने मनरेगा में धांधली करके आदिवासी मज़दूरों का हक़ छीनने वालों के ख़िलाफ़ मुख्यमंत्री ऑनलाइन, समाधान ऑनलाइन और कलेक्टर जन-सुनवाई में कई बार शिकायतें कीं. मज़दूर और स्थानीय निवासी अपने शिकायती आवेदन की पावती लेकर घूम रहे हैं, लेकिन कोई भी उनकी गुहार सुनने के लिए तैयार नहीं है. शिकायतों पर कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है. अपनी आवाज़ उठाने के लिए आदिवासी मज़दूरों ने धरना-प्रदर्शन का रास्ता भी अपनाया. हर बार आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के आश्‍वासन के अलावा उनके हाथ अब तक कुछ नहीं लगा. इस वजह से आदिवासी मज़दूर आक्रोशित हैं. आज स्थिति यह है कि सीधी ज़िले के मज़दूर और प्रशासन आमने-सामने हैं.
पिछले साल फर्जी तरीके से जॉब कार्डधारकों के खातों से मज़दूरी की राशि आहरित कर ली गई. इसके विरुद्ध ग्राम सेमरिया के आदिवासी समुदाय के लोगों ने बीते 25-26 नवंबर को सेमरिया पुलिस चौकी के सामने धरना दिया और आरोपियों के ख़िलाफ़ वित्तीय धांधली और धोखाधड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज करने की मांग की. टोको-ठोकों-रोको क्रांतिकारी मोर्चा के तत्वावधान में हुए हल्ला बोल, जॉबकार्ड फर्जीवाड़ा की पोल खोल आंदोलन का नेतृत्व करने वाले उमेश तिवारी ने बताया कि ज़िले की पांच जनपद पंचायतों के अंतर्गत आने वाली 402 पंचायतों में यही हाल है. उन्होंने कहा, हम आपके सामने कुछ सुबूत पेश कर सकें हैं, यही दस्तावेज़ हमने शिकायती पत्रों के साथ भी भेजे हैं, लेकिन सरकार ने आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की. तिवारी ने कहा, इससे जाहिर होता है कि बिना वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत के ऐसे कामों को अंजाम नहीं दिया जा सकता. नीचे से लेकर ऊपर तक, सारे अधिकारी इस धांधली में शामिल हैं.
इसी तरह ग्राम पंचायत क्षेत्र रामगढ़ नं-1 में हितग्राही मूलक योजना में मेड़ बंधान का कार्य कृषि विभाग की भूमि पर कराया जाना बताकर तक़रीबन 17 लाख रुपये आहरित कर लिए गए. सबसे मजेदार बात यह है कि इसमें जिन लोगों द्वारा कार्य करना बताया गया है, उनमें से एक की मृत्यु कार्य प्रारंभ होने के पहले हो चुकी थी. ग्राम पंचायत क्षेत्र क्रमांक-1 के देउक्षा टोला निवासी स्वर्गीय वीरभान केवट का जॉब कार्ड क्रमांक 47 है, उनके द्वारा मेड़ बंधान कार्य में 25 जून से 30 जून, 2011 तक कार्य करना बताया गया है, जबकि उनकी मृत्यु 25 जनवरी, 2010 को हो चुकी है. एक अन्य मामले में जनपद पंचायत रामपुर नैकिन के अंतर्गत आने वाले ग्राम उमरिहा के चंद्रशेखर तिवारी ने अपनी पैतृक भूमि पर मेड़ बंधान अपने खर्चे पर जेसीबी मशीन के ज़रिये कराया, लेकिन पंचायत ने इस कार्य को मस्टररोल में श्रमिकों द्वारा करना बताया और अधिकारियों की मदद से मेड़ बंधान की राशि निकाल ली. ग्राम पंचायत उमरिहा, पोस्ट धनहा, ब्लॉक रामपुर नैकिन के सचिव राजाराम विश्‍वकर्मा और सरपंच उदयराज सिंह ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना द्वारा निर्मित सड़क से लेकर सावित्री सिंह के घर तक सड़क का निर्माण करना बताया. इसके बाद माध्यमिक विद्यालय उमरिहा से भैयालाल के घर तक सड़क का निर्माण करना बताया गया. दोनों बार नाम बदल कर निर्माण राशि निकाल ली गई, जबकि वह सड़क एक ही है. दो बार निर्माण कार्य होने के बावजूद नाली का निर्माण अब तक अधूरा है. इन्हीं सरपंच और सचिव की साझेदारी में समग्र स्वच्छता अभियान के तहत 3.33 लाख रुपये आहरित कर लिए गए, लेकिन गांव में इस मद से एक भी शौचालय का निर्माण नहीं कराया गया. दोनों मामलों के संबंध में चंद्रशेखर तिवारी ने जन सुनवाई के दौरान कलेक्टर सीधी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, लेकिन आज तक न तो किसी मामले की जांच हुई और न किसी आरोपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई.
जॉब कार्डधारक मज़दूरों के नाम से फर्जी तरीके से राशि निकाली गई, मृत लोगों एवंसरकारी कर्मचारियों के नाम से राशि निकाली गई. यही नहीं, शौचालय निर्माण के बगैर ही शौचालय निर्माण की राशि आहरित कर ली गई, जबकि जिस शख्स के नाम उक्त योजना स्वीकृत हुई, उसे ही उसकी कोई जानकारी नहीं है. मज़दूरों के फर्जी हस्ताक्षर से उनके बैंक खाते से राशि निकाली जा रही है. शिकायत दर्ज कराने और इसके ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने वालों का कहना है कि सरपंच एवं सचिव जैसे छोटे पदाधिकारी बड़े अधिकारियों की मदद और शह के बिना ऐसे काम अंजाम नहीं दे सकते. ग्राम पंचायत क्षेत्र रामगढ़ क्रमांक-1 के सरपंच एवं सचिव के विरुद्ध कमिश्‍नर रीवा द्वारा 14 सितंबर, 2012 को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया था, लेकिन आज तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई.
एक अन्य मामले में बेल्हद गांव निवासी सुदामा प्रसाद ने जनपद पंचायत रामपुर अंतर्गत आने वाली पंचायत बेल्हद की सरपंच अर्चना यादव और सचिव दया शंकर मिश्र के ख़िलाफ़ गबन की शिकायत दर्ज कराई थी. उप पुलिस अधीक्षक राजमणि त्रिपाठी ने जांच के उपरांत 11 नवंबर, 2014 को शिकायतकर्ता को पत्रांक-2509/14 के माध्यम से जानकारी दी है कि सरपंच एवं सचिव के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 38 के अवयव विद्यमान पाए गए हैं. उनके विरुद्ध अपराध पंजीकृत करने के लिए जांच प्रतिवेदन भेजा गया है. इसी तरह ग्राम पंचायत नैकिन में मनरेगा में हुई धांधली की जांच के लिए कलेक्टर सीधी ने एक जांच दल गठित किया था और उसे 15 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने को कहा था, लेकिन आज तक उसका भी कोई नतीजा सामने नहीं आया. इसी तरह कई अन्य मामलों में पुलिस जांच के दौरान फर्जीवाड़े के संबंध में मिली शिकायतें सही पाई गई हैं, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के कथित गठजोड़ की वजह से आगे की कार्रवाई अटकी पड़ी है.

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