एक साधारण घटना से निकली चिनगारी कब ज्वाला बनकर बड़ी क्रांति का रूप अख्तियार कर ले, इसका एहसास आईएसआईएस के हाल की हिंसक प्रवृत्तियों से हो जाता है. 2011 में पुलिस के अत्याचार ने एक ऐसी क्रांति फैलाई थी कि पूरी सरकार का तख़्ता पलट हो गया और फिर यह तूफ़ान अरब क्रांति के रूप में कई खाड़ी देशों को अपनी चपेट में ले लिया.अब ऐसा ही कुछ इराक में होने वाला है और आईएसआईएस द्वारा जॉर्डन के एक पायलट को पिंजरे में बंद करके,जिंदा जला कर दर्दनाक तरीके से मारने की घटना आईएसआईएस की तबाही का कारण बनती नज़र आ रही है.

page-112014 में अलबगदादी इराक के कुछ हिस्से पर क़ब्ज़ा करने के बाद इराक की ज़मीन पर जिस प्रकार से अपना दायरा बढ़ाता जा रहा था, उसको देखते हुए ऐसा लगता था कि अलबगदादी की ताक़त के सामने दुनिया के दिग्गज भी बेबस हैं. जब उसने मूसल के बाद शहर कोबानी पर क़ब्ज़ा कर लिया, उसके बाद तो ऐसा लगने लगा था कि अब यह मिलिटेंट संगठन इराक और सीरिया से बाहर दूसरे देशों को भी अपनी चपेट में ले लेगा. अलबगदादी बार-बार दावा करता था कि वह यूरोप तक अपनी सरकार क़ायम करेगा. उसकी रफ्तार को रोकने के लिए कोबानी में अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी. ताबड़तोड़ हमले हुए, कुछ हद तक आईएसआईएस की रफ्तार को रोका भी गया, लेकिन अमेरिका जिस तरह से दावा कर रहा था, वैसा नहीं हो सका. आईएसआईएस को रोका नहीं जा सका, लेकिन अचानक यह ख़बर आई कि आईएसआईएस के लड़ाके कोबानी खाली कर वापस जा रहे हैं. फिर एक और ख़बर आई कि बशमर्गा की सेना ने मूसल में आईएसआइएस को तीन ओर से घेर लिया है. इस घेराव की वजह से आईएसआईएस का दायरा तंग हो रहा है. उत्तर की ओर से बशमर्गा नैनवी के पहाड़ी क्षेत्रों में अपनी ताक़त मज़बूत करके मूसल की ओर से बढ़ रहे हैं. पूर्व की ओर से ख़ाज़र, मख़मूर और कोबर और पश्‍चिम में कसक, आसकी, वाना, तिलअफर और संजर की ओर से बशमर्गी सेना ने घेराबंदी कर दी है. दक्षिण में सलाहुद्दीन अय्यूबी में इराक की सेना मौजूद है. इस सेना ने मूसल को आईएसआईएस से आज़ाद करने की कार्रवाई शुरू कर दी है. अब सवाल यह पैदा होता है कि जिस आईएसआईएस के बारे में अमेरिका के विदेश मंत्री कहते थे कि आईएसआईएस को ख़त्म करने में सालों लग जाएंगे. ब्रिटेन कहता था कि आईएसआईएस को ख़त्म करना मुश्किल भरा काम है. ऐसे में अचानक ऐसा क्या हुआ कि आईएसआईएस का दायरा सिमटने लगा. इसी को समझने के लिए हमें यूरोप और इस्लामी देशों के युवाओं में आईएसआईएस के प्रति जो भावनाओं हैं, उस पर एक नज़र
डालनी होगी.
इस्लामी देशों और यूरोप में एक ऐसा वर्ग मौजूद था, जो आईएसआईएस के लिए नरम रुख़ रखता था. रूस की एक पब्लिक ओपिनियन सर्वे करने वाली कंपनी आइसीएम ने यूरोप के कई देशों के सर्वे के बाद ख़ुलासा किया है कि फ्रांस के 18-24 वर्षोंं के 16 प्रतिशत युवा आईएसआईएस को लेकर नरम रुख़ रखते थे, जबकि ब्रिटेन के 7 प्रतिशत युवा आईएसआईएस से हमदर्दी रखते थे. अगर इस सर्वे की पृष्ठभूमि देखी जाये तो हैरानी बढ़ जाती है कि आईएसआईएस किस प्रकार से युवाओं को अपनी टीम में शामिल करता था. आईएसआईएस में शामिल होने वाले अधिकतर ऐसे युवा है, जिनका परिवार किसी और देश से पलायन करके वहां बसा हुआ है. आईएसआईएस के लिए एजेंट के रूप में काम करने वाले लोग उन युवाओं से संपर्क करते थे. विशेष रूप से जेलों में बंद युवाओं से वे संपर्क करते थे और ज़मानत पर या सज़ा पूरी कर लेने के बाद जब वह जेल से बाहर आते थे तो इस्लाम के नाम पर उन्हें आईएसआईएस में शामिल होने के लिए प्रभावित किया जाता था. ये युवा आसानी से उनका चारा बन जाते थे. अलबग़्दादी जानते थे कि ऐसे युवाओं को भटकाकर आसानी से अपनी सेना में शामिल किया जा सकता है. लिहाज़ा उसने फ्रांसीसी युवाओं को आईएसआईएस में शामिल होने के लिए कई बार बयान जारी किया. चार्ली एब्दो पर हमले के बाद भी फ्रांसीसी युवाओं के लिए इसका एक प्रभावित करने वाला बयान आया था. आईएसआईएस ने यूरोपीय देशों में सबसे अधिक ध्यान फ्रंास पर इसीलिए दिया था, क्योंकि वहां मुस्लिम युवाओं का एक बड़ा वर्ग जेलों में बंद है. इनमें अधिकतर बेरोज़गार नौजवान हैं. एक राजनीतिक पार्टी यूएमपी के उपाध्यक्ष लैरिव की रिपोर्ट के अनुसार इस समय फ्रंास की जेलों में जितने कै़दी बंद हैं, उनमें से 60 प्रतिशत कै़दी मुसलमान हैं, जबकि देश में मुसलमानों की संख्या केवल 7.5 प्रतिशत है, लेकिन जेलों में बंद मुसलमानों की कुल संख्या 40 हज़ार यानी कुल कैदियों का 60 प्रतिशत. ऐसे युवाओं को गुमराह करना आईएसआईएस के लिए बहुत आसान होता है. यही कारण है कि वहां से युवाओं का एक बड़ा वर्ग आईएसआईएस में शामिल हुआ. इन शामिल होने वालों में लड़के और लड़कियां दोनों ही थे. इसी प्रकार जर्मनी के ऐसे युवाओं में भी आईएसआईएस के प्रति नरम रुख़ देखने को मिलता था. जर्मन शासकों का अनुमान है कि लगभग 400 जर्मन युवा आईएसआईएस लड़ाकों में शामिल हैं. इराक के पड़ोसी देश जॉर्डन में भी ऐसे लोगों की अच्छी-ख़ासी संख्या थी, जो आइएसआइएस पर हवाई हमला करने से अपनी सरकार पर ऐतराज़ कर रही थी. यही कारण था कि सहयोगी सेना में शामिल होने के बावजूद जॉर्डन आईएसआईएस पर कम से कम हवाई हमले करता था. यहां तक कि इराक के दो आरोपी साजिदा रशावी और ज़दबा करबलावी को गिरफ्तार करने के बावजूद इसे फांसी देने में जॉर्डन संशय में था. सऊदी युवाओं में भी आइएसआइएस के लिए किसी हद तक नरम रुख़ था. अभी दो महीने पहले ही सऊदी अरब के 8 युवा आईएसआईएस की ओर से लड़ते हुए कुर्द सेना के हाथों मारे गये थे. सऊदी गजट के अनुसार, वहां आईएसआईएस इस्लाम के नाम पर अनपढ़ सऊदी नौजवानों को बरग़लाता है. अफगानिस्तान में पूर्व तालिबानी कमांडर अब्दुर्रऊफ आईएसआईएस के लिए नौजवानों की भर्ती करता था. यह भी 2001 से 2006 तक ग्वांतनामो बे जेल में रह चुका था. स्वीडन की कई लड़कियां भाग कर आईएसआईएस में शामिल हो गई थीं. इसके बाद से ही स्वीडन की आंतरिक सुरक्षा की ख़ुफिया संस्था सीबू ने केन्द्र से सिफारिश की थी कि विदेश जाने वाली लड़कियों पर नज़र रखी जाये. स्वीडन इमीग्रेशन ने पिछले वर्ष 20 ऐसे लोगों को पकड़ा था, जिन पर आईएसआईएस में शामिल होने का संदेह था. इस्लाम के नाम पर यूरोप से लेकर खाड़ी देशों तक एक ऐसा वर्ग पाया जाता था, जो आइएसआइएस के लिए नरम रवैया रखता था. वह यह समझता था कि आईएसआईएस इस्लाम का सच्चा प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन है,लेकिन जब उसने जॉर्डन के एक पायलट को दर्दनाक मौत दी, जिसको इस्लाम किसी भी तरह से पसंद नहीं करता है, विशेष रूप से जलाकर मारने पर कड़ी पाबंदी है तो आईएसआईएस का जो भ्रम था, वह खुल गया और वही युवा, जो अब तक आईएसआईएस का समर्थन करते थे, अब उसका विरोध करने लगे हैं. इस नफरत का एक असर तो यह हुआ कि नये युवाओं की भर्ती कम हो गई और दूसरा यह कि जो युवा उसके लिए लड़ रहे हैं, वह भी अब असमंजस में हैं कि आख़िर वह किसके लिए लड़ रहे हैं. एक दमनकारी तानाशाह के लिए या इस्लाम के लिए.
जॉर्डन में जो वर्ग आईएसआईएस पर हवाई हमले के ख़िलाफ़ था, उस घटना के बाद वह भी अपनी सरकार पर दबाव बना रहा है कि माज़ कसासबा का बदला लिया जाए. जनता के दबाव के कारण जॉर्डन ने आईएसआईएस के कई ठिकानों पर ताबड़तोड हमले करके इसके 55 से अधिक महत्वपूर्ण लीडरों को मार दिया है. बात यहीं पर ख़त्म नहीं होती है, बल्कि जॉर्डन के शाह का कहना है कि वह कसासबा के ख़ून को व्यर्थ नहीं जाने देंगे और आईएसआईएस को जड़ से उखाड़कर दम लेंगे. आईएसआईएस के ख़िलाफ़ कार्रवाई तेज़ करने के लिए अमेरिका और जर्मनी ने हथियारों की और अधिक खेप इराक भेज दी है, ताकि मोसुल में आईएसआईएस का दायरा अधिक तंग कर दिया जाये. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने अपने एक बयान में साफ़ कर दिया है कि आईएसआईएस का अत्याचार सिर से ऊंचा हो चुका है, अब इसे ख़त्म करके ही दम लेंगे. ब्रिटेन, जो अब तक आईएसआईएस पर हवाई हमले के मसले में टालमटोल कर रहा था, अब उसने भी कड़ा रुख़ अपना लिया है. चारों ओर से कार्रवाई के कारण आईएसआईएस का दायरा तेज़ी से सिमटता जा रहा है. अब हालत यह है कि जहां एक ओर आईएसआईएस के लड़ाकों की संख्या में कमी हो रही है, वहीं इसकी आमदनी भी कम होती जा रही है. वह अब तक 3 से 5 लाख डॉलर का तेल प्रतिदिन बेचा करता था. तेल का बड़ा भंडार मोसुल के आसपास है, लेकिन अब इसकी ज़मीन तंग होती जा रही है, जिससे आईएसआईएस की आमदनी पर भी गहरा असर पड़ेगा.लिहाज़ा इराक में रक्षा आयोग के सदस्य मौफिक़ अलरबीई कहते हैं कि चारों ओर से घेराबंदी करके सीरिया की ओर से तेल एक्सपोर्ट करने का रास्ता बंद कर दिया गया है. अब ऐसा लगता है कि आईएसआईएस ने जॉडर्न के पायलेट(माज़ कसासबा) को मारकर अपनी क़ब्र ख़ुद खोद ली है. कल तक जिन लोगों की आंखों पर पर्दा पड़ा था, वह भी अब आईएसआईएस को विलेन समझने लगे हैं. इसकी आय कम हो गई है और अमेरिकी सहयोगियों ने अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी हैं. ऐसे में यह कहना उचित होगा कि इराक के बेगुनाहों की बर्बर हत्या करने, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिकी नागरिकों को मौत के घाट उतारते हुए वीडियो जारी करने के कारण आईएसआईएस का हौसला बढ़ा था और वह एक के बाद एक अन्य अत्याचारों की अति कर रहा था. इस पर माज़ कसासबा के ख़ून ने विराम लगा दिया है. माज़ कसासबा को दिसंबर में अलरक़ा के क्षेत्र से उस समय पकड़ा गया था, जब उसका जहाज़ दौलत-इस्लामिया के नियंत्रित क्षेत्र में गिरने से क्षतिग्रस्त हो गया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिस तरह से आईएसआईएस ने वैश्‍विक मानचित्र पर रक्तपात का नंगा नाच शुरू किया था, उसपर पर्दा जल्द ही गिरने वाला है. आईएसआईएस की कब्र तैयार हो चुकी है, अमन-चैन पसंद देशों को इंतजार है तो बस उसके दफन होने का.

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