Santosh-Sirअब स्टिंग ऑपरेशन के नए पात्रों के बारे में जानिए. मेरे पास एक फोन आता है. फोन करने वाला व्यक्ति ख़ुद को ओडिशा का इंडस्ट्री मिनिस्टर बद्री पात्रा बताता है और कहता है कि हमारे मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आपसे बहुत ज़रूरी बात करना चाहते हैं. इसके बाद वह व्यक्ति कहता है कि आपने अन्ना हजारे जी का बहुत साथ दिया और अन्ना जी के अनशन के बाद जिस तरह से लोकपाल बिल पास हुआ और उसमें आपने जो भूमिका निभाई उसे लेकर हम सब आपकी बहुत प्रशंसा करते हैं. उसने फिर दोहराया कि नवीन जी आपसे बहुत ज़रूरी बात करना चाहते हैं. मैंने कहा, लोकपाल बिल तो सांसदों के माध्यम से पास हुआ. इसमें ससंद की भूमिका है, मेरा क्या रोल है? मैंने कहा, रही बात नवीन पटनायक जी से बात करने की, तो उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है, मैं उनसे बात करूंगा. तब उस व्यक्ति ने कहा कि नवीन पटनायक जी जनरल वी. के. सिंह से बात करना चाहते हैं. मैंने कहा कि तो फिर आप जनरल वी. के. सिंह को फोन करिए. इस पर उन महाशय ने जवाब दिया कि मैं चाहता हूं कि आप अगर जनरल साहब को फोन करके यह संदेश दे देते कि नवीन पटनायक किसी व्यक्तिगत काम के लिए उनसे बात करना चाहते हैं तो बेहतर रहता. मैंने कहा कि ठीक है अगर नवीन पटनायक को जनरल वी. के. सिंह से व्यक्तिगत काम है तो मैं उनसे कह दूंगा.
मैंने जनरल वी. के. सिंह को फोन लगाया. वी. के. सिंह जी उस समय श्री श्री रविशंकर के पास बेंगलुरु में थे. मैंने जनरल साहब से कहा कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी का आपसे कोई व्यक्तिगत काम है, वह आपसे बात करना चाहते हैं. ओडिशा के उद्योग मंत्री ने मुझे फोन करके यह कहा है कि मुख्यमंत्री जी को कोई बहुत ज़रूरी काम है, इसलिए वे चाहते हैं कि आप उन्हें फोन कर लें. अब तक मेरे दिमाग़ में कोई संशय नहीं आया था. रात के आठ बजे दोबारा उस व्यक्ति का फोन आया और उसने कहा कि मैं ओडिशा का उद्योग मंत्री बद्री पात्रा बोल रहा हूं, लीजिए नवीन पटनायक साहब से बात करिए. पटनायक साहब ने मुझसे कहा कि संतोष जी, लोकपाल के लिए आपने जो रोल प्ले किया, उसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई. हम लोग लोकपाल के पक्ष में हैं. फिर उन्होंने कहा कि मेरा एक व्यक्तिगत काम जनरल वी. के. सिंह से है. मैंने कहा कि आप बताएं क्या काम है, अगर हम लोग कुछ मदद कर सकते हों तो? उन्होंने कहा कि मेरे एक रिश्तेदार का एक्सीडेंट हो गया है आंध्र प्रदेश में और वहां पर समझौते की बात करनी है. मैं ख़ुद कोई बात नहीं कर सकता. जनरल वी. के. सिंह बड़े आदमी हैं. अगर उनका कोई आदमी वहां हो तो वो समझौते की बात कर लें और अगर कोई लेन-देन का मसला हो तो वो भी कराया जा सकता है, पर इस केस को दबाना है. यहां से मेरा माथा ठनका. मैंने कहा, मुख्यमंत्री जी आपके पास लोग हैं. आप चाहें तो उन्हें भेज सकते हैं. उधर से जवाब मिला कि नहीं, मैं भेज सकता तो ज़रूर भेजता. किरण कुमार रेड्डी से मैं बात नहीं करना चाहता, क्योंकि वो मुझे पसंद नहीं करते या मैं उन्हें पसंद नहीं करता, इसलिए मैं चाहता हूं कि जनरल वी. के. सिंह जी इस काम को करवा दें. मैंने कहा,  मैंने बद्री पात्रा जी को उनका नंबर दे दिया है आप सीधे जनरल साहब से ही बात कर लीजिए.
पहला संशय तो यह था कि एक मुख्यमंत्री बिना-जान पहचान के संतोष भारतीय के माध्यम से जनरल वी. के. सिंह से क्यों संपर्क करना चाह रहा है. और दूसरा नवीन पटनायक की जो आवाज़ मैंने टीवी पर सुनी है, वह मैंने कभी हिंदी में नहीं सुनी है. वह अंग्रेज़ी में सुनी है या उड़िया में सुनी है. नवीन पटनायक की आदत हिंदी में बात करने की नहीं है, लेकिन जो व्यक्ति मुझसे नवीन पटनायक बनकर बात कर रहा था, वह शुद्ध हिंदी में बात कर रहा था, भले ही वह उड़िया हिंदी थी.
मैंने फौरन वी. के. सिंह साहब को फोन किया और कहा कि जनरल साहब आप उन लोगों से लैंडलाइन पर फोन करने को कहिएगा, क्योंकि मुझे यह कोई फ्रॉड लग रहा है. शायद यह कोई ट्रैप है, जिसमें वह कुछ भी पूछकर फंसाना चाहता है. यह ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक नहीं है. जनरल साहब ने कहा कि बिल्कुल! अगर फोन आता है तो मैं यही कहूंगा. जनरल साहब ने कहा और फिर मेरा इससे क्या वास्ता? मैं तो साधारण आदमी हूं, आंध्र से मेरा क्या लेना-देना? उसके बाद फिर उस व्यक्ति का फोन आता है जो ख़ुद को ओडिशा का उद्योग मंत्री बताता है. उसने कहा कि चलिए कि कोई बात नहीं, अगर नहीं हो सकता तो बहुत सारे ठेकेदार हैं, जो मंत्रालय के माध्यम से जुड़े हैं. मैं उनसे इस काम को कराता हूं. मैंने कहा कि आप जिससे भी चाहते हों, अपना काम कराएं और हम लोग तो दिल्ली में हैं, साधारण लोग हैं.
सवाल यह खड़ा होता है कि यह कौन लोग कर रहे हैं और उन्होंने क्यों एक एक्सीडेंट के समझौते में काम आने के लिए मेरे ज़रिए जनरल वी. के. सिंह से बातचीत करनी चाही. शायद ये लोग जनरल वी. के. सिंह का और मेरी आवाज़ का नमूना लेना चाहते थे. आवाज़ का नमूना लेने के बाद आप उस आवाज़ में किसी अच्छे आर्टिस्ट या कंप्यूटर के ज़रिए से इस आवाज़ को किसी भी बातचीत में इस्तेमाल कर सकते हैं. या इसके पीछे कोई और भी उद्देश्य हो सकता है, जो मुझे समझ में नहीं आया. इसके बाद मैंने अपने ओडिशा संवाददाता सेे बद्री पात्रा का नंबर मांगा, तो पता चला कि बद्री पात्रा ओडिशा के इंडस्ट्रिएल मिनिस्टर न होकर उच्च शिक्षा मंत्री हैं. जब मैंने उन्हें फोन किया तो उधर से एक बुजुर्ग आवाज़ आई. जबकि पहले जो आवाज़ थी वह किसी जवान व्यक्ति की आवाज़ थी. मैंने बद्री पात्रा से कहा कि मैं संतोष भारतीय बोल रहा हूं तो उन्होंने कहा कि हां, बताइए. मैंने पूछा, अभी थोड़ी देर पहले मेरी आपसे शायद बातचीत हुई थी, तो उन्होंने कहा कि नहीं, फिर भी आप मुझे बताइए अगर कोई बात हो तो. मैंने कहा कि नहीं, फ़िलहाल तो कोई बात नहीं, अगर होगी तो मैं आपको फोन करूंगा. मैंने फिर से अपने ओडिशा संवाददाता को फोन किया और कहा कि आप इस नंबर पर फोन करके पता करिए कि यह कौन है. जब मेरे संवाददाता ने फोन किया तो उधर से थोड़े स़ख्त लहजे में जवाब मिला और जब संवाददाता ने पता लगाया कि यह कहां का फोन है तो पता चला कि यह फोन गोवा में रजिस्टर है और दिगंबर कामत के नाम पर है. दिगंबर कामत गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री हैं.
इस घटना ने मुझे थोड़ा चिंतित कर दिया. मुझे यह लगा कि स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर या तो इंटेलीजेंस एजेंसीज या हिंदुस्तान के वो लोग जो पत्रकारिता को या जनरल वी. के. सिंह को बदनाम करना चाहते हैं, उनकी यह सोची-समझी साज़िश है. दरअसल, यह कोशिश आवाज़ का नमूना लेने की थी, इसमें कोई संदेह नहीं. इससे एक सीख़ मिलती है कि आप से अगर कोई फोन करके कहता है कि मैं अमुक व्यक्ति बोल रहा हूं, जिससे सामान्यत: आपकी बातचीत न होती हो, तो उस पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए और उस फोन को किसी और व्यक्ति से सत्यापित करवा लेना चाहिए. पिछले दिनों देश में स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर बहुत सारी भड़ैंती हुई है और अब एक नए तरह का स्टिंग ऑपरेशन करने की कोशिश की जा रही है ताकि जनरल वी. के. सिंह या फिर मैं सवालों के घेरे में आ जाएं.
कौन लोग हो सकते हैं? या तो हथियारों के दलालों की लॉबी है जो जनरल वी. के. सिंह की सारी इज़्ज़त के ऊपर सवालिया निशान खड़ा करना चाहती है या फिर पत्रकारिता में ही कुछ ऐसे लोग हैं जो पीआर जर्नलिज्म करते हैं और जो लोग अंग्रेजी कहावत मोर लॉयल दैन किंग के आधार पर कुछ न कुछ उन लोगों के हित में खड़े दिखाई देते हैं जो सही पत्रकारिता को पसंद नहीं करते और तीसरे शायद इंटेलीजेंस एजेंसीज़ हो सकती हैं जो हम लोगों के फोन दिन-रात टेप कर रही हैं. इसको देखकर मुझे यह चिंता होती है कि निकट भविष्य में कुछ ऐसा होगा जो पुन: इज़्ज़त के ऊपर कीचड़ फेंकने जैसा होगा. मैं यह नहीं मानता कि इसमें किसी विदेशी एजेंसी का हाथ हो सकता है, लेकिन मेरा यह मानना ज़रूर है कि किसी न किसी एजेंसी ने कुछ लोगों को हायर किया है ताकि वो जनरल वी. के. सिंह और मेरे ख़िलाफ़ एक बड़ी साज़िश रच सकें और उस साज़िश में हमें फंसा सकें. पर सच्चाई, सच्चाई रहती है. मैं ख़ुद तो कोई एफआईआर नहीं करा रहा हूं, लेकिन इस प्रकरण को सार्वजनिक इसलिए कर रहा हूं, ताकि अगर कोई एजेंसी इस पर नोटिस ले तो मेरे पास वह नंबर मौजूद है, जिस नंबर पर मेरी बातचीत उस व्यक्ति से हुई थी. जनरल वी. के. सिंह के पास भी वह नंबर मौजूद है, जिससे उस व्यक्ति ने इंडस्ट्री मिनिस्टर बनकर बात की थी. हम जानते हैं कि इंटेलीजेंस एजेंसी के पास जनरल वी. के. सिंह या मेरे ख़िलाफ़ होने वाले किसी षडयंत्र के लिए वक्त नहीं है, क्योंकि वे बहुत महत्वपूर्ण काम में उलझे हुए हैं. पर हम अपना कर्त्तव्य इस समूचे प्रकरण को पाठकों के सामने लाकर पूरा करने की दिशा में एक क़दम तो उठा रहे ही हैं.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here