iromआर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफस्पा) के खिलाफ लंबे समय से इरोम शर्मिला का अनशन समाप्त हो गया. केंद्र सरकार ने सोलह साल के सत्याग्रह का सम्मान न कर निश्‍चित तौर पर लोकतंत्र में अन्याय के खिलाफ अहिंसक संघर्ष की परंपरा को कमजोर किया है. शर्मिला ने मणिपुर के आने वाले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय लड़ने का निर्णय लिया है. शर्मिला के राजनीति में कदम रखने के फैसले से राजनीतिक पार्टियों में भी खलबली मची है. आम आदमी पार्टी ने शर्मिला को अगले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के लिए ऑफर किया है. शर्मिला ने यह ऑफर अभी स्वीकारा नहीं है. अभी वे इस फैसले पर कायम हैं कि आनेवाले विधानसभा में निर्दलीय चुनाव लड़ेंगी. आम आदमी पार्टी मणिपुर के अध्यक्ष टीएच मणिहार सिंह ने कहा कि शर्मिला सोच-विचार कर आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री कैंडिडेट के रूप में चुनाव लड़ने का निर्णय बताएंगी, हमें उनके फैसले का इंतजार है. आम आदमी पार्टी ने इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी शर्मिला को चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था.

हालांकि, राजनीति में आने के उनके इस निर्णय से स्थानीय लोग नाखुश हैं. लोगों का कहना है कि शर्मिला की सामाजिक शख्सियत पर उनके निजी फैसले ज्यादा हावी हो गए. लोगों में गुस्सा इस बात पर भी है कि राजनीति में कदम रखने का फैसला लेने से पहले उन्होंने लोगों से बातचीत नहीं की. शर्मिला के करीबियों को भी यह पता नहीं था कि वे क्या कदम उठाने वाली हैं? शर्मिला की मां और भाई भी उनके इस निर्णय से खुश नहीं हैं. उनके भाई सिंगजीत ने शर्मिला को चिट्ठी लिखकर उनके फैसले का विरोध किया.

विडंबना है कि शर्मिला हॉस्पिटल के जिस जेल वार्ड में 16 साल तक रहीं, दोबारा उन्हें वहीं रहना पड़ रहा है. उन्हें रहने के लिए कोई जगह नहीं मिली. जिस मणिपुर के लिए उन्होंने 16 साल तक संघर्ष किया, उन्होंने पनाह तक देने से इनकार कर दिया. उनके समर्थन में कोई भी आगे नहीं आया.   शर्मिला के अनशन खत्म करने पर स्थानीय लोगों को लगता है कि उनको मुक्ति की राह दिखाने वाला मसीहा अचानक खुद राह से भटक गया है. उन्हें ऐसा लगता है कि इसके आगे कुछ और नहीं है, अब सब कुछ खत्म हो गया है. शर्मिला के चुनाव लड़ने के निर्णय के बाद प्रदेश की महिलाओं का संगठन शकल (शर्मिला कनबा लूप) ने भी उनके समर्थन में आंदोलन खत्म कर दिया है. शकल के ऑफिस के आगे टांगे बैनर उतार दिए गए हैं. शकल के कन्वेनर सोइबम मोमोन ने कहा कि शर्मिला का निर्णय सुनने के बाद यह संगठन भंग कर दिया गया है. आगे शकल इस ऑफिस में अन्य सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर अफस्पा के विरोध में आंदोलन जारी रखेगा. मोमोन ने आगे कहा कि राजनीति और सामाजिक आंदोलन एक साथ नहीं चल सकते हैं इसलिए हमने शर्मिला से अलग होने का निर्णय लिया है.

इतने लंबे अनशन के बाद शर्मिला अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में जिस तरह से विफल रहीं और अपने समाज में ही अलग-थलग पड़ गई हैं, वह स्थिति चिंताजनक है. दूसरी तरफ शर्मिला को मणिपुर के लोग एक देवी स्वरूप देखने लगे थे कि जैसे शर्मिला उनकी समस्या का समाधान चंद दिनों में कर देंगी. मणिपुर के उग्रवादी संगठनों ने शर्मिला को धमकी तक दे दी. शर्मिला के करीबी इससे भी नाराज हैं कि उन्होंने ब्रिटिश मूल के डेसमंड कोतिन्हो से शादी करने का फैसला किया है. दूसरा आरोप यह भी है कि सरकार ने उन्हें जेल में लैपटॉप देकर और उनसे वार्ताएं कर मणिपुर के लोगों के मन में संदेह पैदा कर दिया है. मणिपुर के लोग नहीं चाहते थे कि अफस्पा हटे बिना उनका अनशन टूटे.

दूसरी तरफ ऑर्गेनाइजेशन फॉर इंडियन विमेन अगेन्स्ट क्राइम की फाउंडर सेक्रेटरी अराम्बम रोबिता ने शर्मिला के बदले में अफस्पा के खिलाफ आमरण अनशन करने का ऐलान किया है. 32 वर्षीय रोबिता दो बच्ची की मां हैं. सामाजिक संगठनों ने उनको अनशन करने से रोकने का प्रयास किया कि उनके छोटी-छोटी बच्चियों के लिए यह कदम उचित नहीं होगा.  हालांकि, रोबिता का अनशन कहां तक चलेगा, यह कहना अभी जल्दी होगी.

शर्मिला ने सत्याग्रह के हथियार का अधिकतम उपयोग कर  दुनिया में यह साबित कर दिया कि किसी संकल्पवान व्यक्ति और विशेषकर स्त्री का आत्मबल कितना प्रबल होता है और राज्य की प्रचंड शक्ति के आगे भी किस हद तक टिका रहा जा सकता है. अब देखना यह है कि अगर मणिपुरी समाज उनके साथ नहीं खड़ा होगा तो उनके साथ सरकार और शेष भारत के लोगों की सहानुभूति का क्या मतलब होगा?

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