एनजीओ का मानना है धनराशि पर FCRA एफसीआरए क्लॉज में बदलाव उनके प्रोजेक्ट्स के लिए घातक साबित हो सकता है।

एक साल पहले बिहार नवादा और दरभंगा डिस्ट्रिक्ट से 40 लड़कियों ने हेल्थ मिनिस्टर मंगल पांडेय के ऑफिस जा कर अपील की थी की गवर्मेंट उन्हें सेनेटरी नैपकिन्स उपलब्ध कराये और साथ ही उन्हें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर मदद करने के लिए किशोर केंद्र स्थापित करे। पांडे ने दोनों को मंजूरी दे दी।

भारत के नॉनप्रोफिट्स संगठन जनसंख्या फाउंडेशन में सामुदायिक कार्रवाई और जवाबदेही के एसोसिएट डायरेक्टर बिजित रॉय ने कहा सरकार ने इन जिलों के गांवों में वितरित किए गए सेनेटरी नैपकिन की खरीद की।

जनसंख्या फाउंडेशन बिहार में पंचायतों में क्षमता निर्माण करना चाहता है, और महिलाओं और लड़कियों को उनके लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में शिक्षित करना चाहता है।

भारत में, ऐसे कई बड़े नॉनप्रोफिट्स है जो लाभकारी फंड्स को जुटाने और सामाजिक हस्तक्षेप की रणनीति तैयार करने के लिए काम करते है। द फॉरिन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट FCRA जो की 29 सितम्बर को पार्लियामेंट के मानसून सेशन मे पास किया गया है उसके तहत बड़े एनजीओ से फॉरिन धनराशि को छोटे एनजीओ को पारित करना गैर कानूनी माना जायेगा।

कुछ एनजीओ का कहना है की इस अमेंडमेंट से उन्हें काफी दिक्कतें आएंगी जैसे पांच साल से चल रहे प्रोजेक्ट को अगले तीन साल के लिए बढ़ाया जाना था – लेकिन यह अब संभव नहीं हो पायेगा। पॉपुलेशन फ़ाउंडेशन की कार्यकारी निदेशक पूनम मुटरेजा ने कहा कि नॉनप्रोफिट्स के अधिकांश काम राजकीय परियोजनाओं के पूरक हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी योजनाएँ ठीक से लागू हों। उन्होने यह भी कहा की “हमारा काम सबूत आधारित है, जिसमें अनुसंधान और डेटा संग्रह शामिल है, जो सब- ग्रांटिंग देने की अनुमति नहीं होने पर गंभीर रूप से प्रभावित होगा, और हम विश्वविद्यालयों या अनुसंधान संगठनों के साथ साझेदारी करने में असमर्थ रहेंगे। “

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