narkankal29 मार्च को जब संसद भवन परिसर में लोकसभाध्यक्ष सहित हमारे तमाम सांसद फुटबॉल को किक मारकर फीफा वर्ल्ड कप के लिए माहौल बना रहे थे, ठीक उसी समय इन्हीं की रहनुमाई में रहने वाले कुछ लोग अपनी कुछ मांगों को लेकर इनका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए गले में नरमुंड लटकाए जंतर-मंतर पर आंदोलन कर रहे थे. लेकिन अ़फसोस कि उस दिन के तमाम समाचार चैनलों और अगले दिन के अखबारों में हमारे नेताओं द्वारा फुटबॉल को लात मारना तो सुर्खियां बन गया.

लेकिन उन्हें ख़बरों में जगह नहीं मिल पाई जो सत्ता, सियासत व व्यवस्था की उपेक्षा के कारण बीते कई वर्षों से बदहाली में जी रहे हैं और अब सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए अपने उन लोगों के नरमुंडों के साथ दिल्ली तक आ पहुंचे हैं, जिन्हें कर्ज के बोझ और मुफलिसी ने आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया. 12 मार्च को शुरू हुआ आंदोलन अब भी जंतर-मंतर पर जारी है, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक इनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है.

तमिलनाडु पिछले दो सालों से लगातार सूखे की मार झेल रहा है. एक तरफ कमजोर मानसून और दूसरी तरफ कावेरी जल को लेकर कर्नाटक तमिलनाडु के बीच के संघर्ष में किसान पीस रहे हैं. साल दर साल कम होती उपज और फिर अगली फसल के लिए बैंको से लिए गए कर्ज ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी. दबाव में आकर किसान दम तोड़ने लगे. अपनी जमा पूंजी खत्म होने के बाद जब सरकारी योजनाओं ने भी साथ नहीं दिया, तब इन्होंने आवाज उठानी शुरू की. अलग-अलग गांवों से निकला आंदोलन जब चेन्नई पहुंचा, तब स्थानीय सरकार की तंद्रा भंग हुई.

बैंको के कर्ज से दबे किसानों को तब कुछ राहत मिली जब तमिलनाडु सरकार ने वहां के कॉर्पोरेटिव बैंको से किसानों द्वारा लिए गए 5,765 करोड़ के कर्ज को माफ कर दिया. लेकिन इतने भर से राहत नहीं मिली. इस बीच तमिलनाडु की राजनीति में उठापटक के बीच इन किसानों की आवाज दब गई. लेकिन अपनों की आत्महत्या, चारे के अभाव में मवेशियों की मौत और अपने लिए दाने-दाने को मोहताज हो रहे इन किसानों ने फिर से दिल्ली आने की ठानी और 100 दिनों के भूख हड़ताल का ऐलान करते हुए 12 मार्च को इन्होंने दिल्ली के जंतर-मंतर पर डेरा डाल लिया.

ये किसान साउथ इंडियन रिवर लिंकिंग फार्मर्स एसोसिएशन के बैनर तले आंदोलन कर रहे हैं. इस संगठन के अध्यक्ष पी अय्याकन्नू ने चौथी दुनिया को बताया कि हम इस बार पीछे हटने वाले नहीं हैं. हम 100 किसान तब तक यहां से नहीं हटेंगे जब तक हमारी समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता. पिछले चार महीनों में चार सौ से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. अगर सरकार अब भी हमारी सहायता नहीं करती है, तो चार लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर लेंगे.

अपनी मांगों को लेकर इन किसानों ने पिछले साल भी मार्च में जंतर-मंतर पर धरना दिया था. ये तब वित्त मंत्री अरुण जेटली से भी मिले थे. उन्होंने इनकी सहायता का आश्वासन भी दिया था. लेकिन तब इनके लंबे आंदोलन को पुलिसिया कार्रवाई से दबा दिया गया. तब पुलिस की लाठी से अपना पैर तुड़वा चुके जी महादेवन अब भी उस दर्द के साथ जी रहे हैं और इस बार भी जंतर-मंतर पर आंदोलन करने आए हैं. 29 मार्च को आंदोलन पर बैठे जी महादेवन मूर्छित होकर गिर पड़े.

इससे पहले 16 मार्च को भी भूख हड़ताल कर रहे एक किसान रामास्वामी बेहोश हो गए थे, फिर उन्हें अस्पताल भेजना पड़ा था. शुरू के कुछ दिनों तक इन सभी किसानों ने भूख हड़ताल किया, लेकिन कई लोगों की हालत बिगड़ते देखकर इन्होंने कुछ-कुछ खाना शुरू कर दिया. इन किसानों के साथ महिलाएं भी बड़ी संख्या में आई हैं. इन किसानों ने नरमुंडों और हरे रंग के कपड़ों को अपने आंदोलन की पहचान बनाई है. इसके बारे में पूछे जाने पर ये कहते हैं कि ये इनके उन लोगों के नरमुंड हैं, जिन्होंने कर्ज के दबाव और खेती में घाटे से तंग आकर आत्महत्या कर ली. इनका कहना है कि हरा रंग हमारी धरती और उपज का प्रतिक है, इसलिए हम इन्हें अपने शरीर पर लपेटकर आंदोलन कर रहे हैं.

स्थानीय युवा, जो देश के दूसरे हिस्सों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं, वे भी इन किसानों का साथ दे रहे हैं. साथ ही अपने इन लोगों के दर्द बयानी का माध्यम बन रहे हैं, जो अंग्रेजी बोलने में भी असमर्थ हैं. इन किसानों से उनकी भाषा में बात कर हमारे लिए अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले शिव, बेंगलुरु में रहकर पढ़ाई करते हैं और साथ-साथ जॉब भी. वे इस किसानों का साथ देने वहां से दिल्ली आए हैं.

21 मार्च को जब इनके नेता पी अय्याकन्नू अपनी मांगों को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिले, तो उन्होंने कहा था कि हमें दो दिन का समय दीजिए हम आरबीआई के गवर्नर से इस मामले में बात करते हैं. दो दिन क्या, दो सप्ताह बीत गए, लेकिन पता नहीं चला कि वित्त मंत्री जी की आरबीआई के गवर्नर से क्या बात हुई, या हुई भी या नहीं. ये किसान उमा भारती से भी मिले और उनसे नदियों को जोड़े जाने के मुद्दे पर अपनी बात कही. इनके आंदोलन का एक मुख्य मुद्दा नदियों को जोड़ा जाना भी है, क्योंकि इससे सूखे की समस्या पर बहुत हद तक निजात पाया जा सकता है. उमा भारती ने कहा कि नदियों को जोड़े जाने के मुद्दे पर अभी रिसर्च का काम चल रहा है.

हम इस दिशा में निरंतर प्रयास में लगे हैं कि नदियों के द्वारा किसानों के खेत में पानी पहुंचाया जा सके. हालांकि मंत्री जी ये नहीं बता सकीं कि ये प्रयास कब फलीभूत होगा. मंत्री जी ने इनकी उस मांग पर कुछ नहीं कहा, जो कर्नाटक सरकार की तरफ से कावेरी पर प्रस्तावित मेकेदातु बांध निर्माण को रोकने को लेकर था. इन किसानों का मानना है कि वो बांध बन जाने के बाद तमिलनाडु के किसानों के लिए और भी गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी. 22 मार्च को इनके नेता पी अय्याकन्नू अपनी समस्याओं को लेकर कृषि मंत्री से मिले. कृषि मंत्री ने भी आश्वसन ही दिया. उन्होंने कहा कि केंद्रीय टीम ने सूखा ग्रस्त तमिलनाडु का दौरा कर लिया है, जल्द ही आपको राहत मिलेगी. गौरतलब है कि कृषि मंत्री ने ही 10 मार्च को राज्यसभा में कहा था कि सूखे से निपटने के लिए तमिलनाडु को वित्तिय सहायता दी जाएगी.

हालांकि अब तक कुछ नहीं हुआ. 28 मार्च को पी अय्याकन्नू के नेतृत्व में इन किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मुलाकात कर उनके समक्ष अपनी मांगे रखीं, जिनमें किसानों का कर्ज माफ करना और सूखा राहत पैकेज देना मुख्य रूप से शामिल है. इस प्रतिनिधिमंडल में तमिल मनीला कांग्रेस के अध्यक्ष जी के वासन भी थे. इन किसानों को तमिलनाडु के लगभग सभी दलों और नेताओं का समर्थन मिल रहा है. मशहुर अभिनेता प्रकाश राज भी इन्हें अपना समर्थन देने पहुंचे. उन्होंने कहा कि मैं आया हूं, ताकि उनकी आवाज संबंधित मंत्रालय सुन सके. इससे पहले इन्हें किसान मंच का भी समर्थन मिला. किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह ने आंदोलन के नेता पी अयकन्नू से मिलकर उन्हें इस आंदोलन में हर संभव सहयोग देने की बात कही.

चौथी दुनिया से बातचीत में पी अय्याकन्नू ने कहा कि सरकार हमारी समस्याओं को लेकर गंभीर नहीं है. सरकारी विभाग एक दूसरे के पाले में गेंद डालने की कोशिश कर रहे हैं. हम इतने दिनों से जंतर-मंतर पर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार से जुड़े किसी भी बड़े नेता ने हमारी सुध नहीं ली, समाधान तो दूर की बात है. अय्याकन्नू कहते हैं कि सरकार हमारे साथ पूरी तरफ से सौतेला व्यवहार कर रही है. हमारी कर्ज मा़फी के लिए सरकार को आरबीआई के गवर्नर से बात करने की जरूरत पड़ रही है, लेकिन हाल में हुए यूपी चुनावों में भी क्या सरकार ने आरबीआई के गवर्नर से पूछ कर किसानों का कर्ज मा़फ करने का वादा किया था. उन्होंने कहा कि हम अपने लोगों को और मरता नहीं देख सकते. सूखा और कर्ज की मार से हजारों लोगों ने आत्महत्या कर लिया. केवल पिछले चार महीनों में 400 से ज्यादा किसानों की मौत हुई है, लेकिन सरकार को ये सब दखाई नहीं दे रहा.

हमें हर रोज़ दाना मांझी देखने पड़ते हैं: वी राजलक्ष्मी

तिरुचिरापल्ली से आईं वी राजलक्ष्मी भी इन 100 किसानों में शामिल हैं, जो जंतर मंतर पर अपनी कई मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं. वे कहती हैं कि हमारी बात ना सरकार सुन रही है और ना ही मीडिया. एंबुलेंस के अभाव में अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लेकर जाने वाले दाना मांझी की खबर पूरे देश में फैल गई, लेकिन हमें रोज ऐसे दाना मांझी देखने पड़ते हैं, जो किसी अपने के शव को कंधे पर ढोने के लिए मजबूर होते हैं. लेकिन हमारी सहायता के लिए कोई नहीं है. ये पूछे जाने पर कि औरतों को दिल्ली तक क्यों आना पड़ा, केवल पुरुष भी तो प्रदर्शन कर सकते थे, राजलक्ष्मी कहती हैं कि कर्ज के दबाव या पानी के अभाव में फसलों के ना उपजने का कष्ट केवल पुरुषों को ही नहीं सहना पड़ता है. उनके साथ-साथ हम भी भूखे पेट रह रहे हैं और बच्चों को भूख से तड़पता देख रहे हैं. राजलक्ष्मी ने कहा, देश में कहीं भी बाघ मरता है, या जंगलों में कोई शिकार करता है, तो उसके लिए आवाज उठाने वाले कई संगठन हैं. सरकारों ने उसके लिए कानून भी बनाई है. लेकिन हमारे लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं है. हम कई सालों से आधा पेट खा रहे हैं, अपने सामने अपने कई लोगों को फांसी के फंदे पर झूलते देख चुके हैं. हमने हर उस दरवाजे पर दस्तक दी, जहां हमारी सहायता की कोई आस दिखी. लेकिन हुआ कुछ नहीं. केंद्र सरकार से सहायता की आस लेकर हम यहां आए हैं, हमारे छोटे-छोटे बच्चे घर पर अकेले हैं. अनाज के अभाव में उन्हें सांप और चूहे खाने पड़ रहे हैं… ये कहते हुए राजलक्ष्मी फफक पड़ीं.प

सूखे ने किसानों की कमर तोड़ दी

तमिलनाडु में सूखे की समस्या नई नहीं है. यहां की खेती का एक बड़ा आधार नार्थ ईस्ट मानसून है. जो इस बार पूरी तरह से दगा दे गया. राज्य में इस बार अब तक की सबसे कम बारिश रिकॉर्ड की गई. सूखे की समस्या कितनी विकट है, ये इस बात समझा जा सकता है कि केवल कावेरी डेल्टा क्षेत्र में ही 80,000 एकड़ में लगी फसलें बर्बाद हो गई हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार महीनों में 400 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. वहीं, किसानों के एक स्थानीय संगठन का कहना है कि रोजाना औसतन दो किसान मौत को गले लगा रहे हैं. अक्टूबर 2016 से अब तक 250 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. 2015 में भी तमिलनाडु में 600 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की थी. एनसीआरबी के आकड़ों पर गौर करें, तो 2011 से 2015 तक 5 वर्षों में तमिलनाडु के 2,728 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

किसानों की कर्जमाफी को लेकर राज्य सरकार ने केंद्र से गुहार लगाई है. जनवरी में ही तत्कालिन मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ने प्रधानमंत्री से मिलकर 39,565 करोड़ के सूखा पैकेज की मांग की थी. इसके बाद नए मुख्यमंत्री पलानिस्वामी ने भी प्रधानमंत्री से मिलकर इस मांग को दोहराया. इस बीच राज्य सरकार ने अपनी तरफ से 2,247 करोड़ के सूखा पैकेज की घोषणा कर दी, लेकिन किसानों के लिए ये नाकाफी है.

 

ये हैं मांगें

1    तमिलनाडु को रेगिस्तान बनने से रोकना

2    कावेरी नदी को सूखने से रोकना

3    कावेरी नदी के लिए प्रबंधन समिति का गठन

4    मदुरै इंजीनियर ए.सी. कामराज के स्मार्ट जलमार्ग परियोजना द्वारा सभी नदियों को जोड़ना

5    कृषि उत्पादों के लिए उचित लाभदायक मूल्य का निर्धारण

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