gangaसियासत के मंच पर सत्ताधारी नेताओं ने ‘नमामि’ गंगे का प्रहसन फिर खेला. यह प्रहसन तब हो रहा था जब गंगा सफाई को लेकर हो रहे सियासी ‘बकवास’ के खिलाफ 22 जून से हरिद्वार में आमरण अनशन पर बैठे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की हालत मरणासन्न हो गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. गंगा को लेकर संजीदगी का प्रदर्शन करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी के कई पत्रों की अनदेखी की, उनका जवाब देने की भी जरूरत नहीं समझी. आखिरकार स्वामी को आमरण अनशन शुरू करना पड़ा.

बाद में केंद्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती और नितिन गडकरी ने स्वामी सानंद को पत्र लिख कर झेंप मिटाने की कोशिश की, लेकिन स्वामी कहते हैं कि इससे गंगा पवित्र थोड़े ही हो जाएगी! स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का उमा भारती को लिखा पत्र पढ़ें तो आपके दिमाग में बना बहुत सारा भ्रम दूर होगा. स्वामी सानंद ने साफ-साफ लिखा है, ‘सत्ता के मद में उन्हें (मोदी को) न गंगा मां की चिंता है, न मेरा पत्र पढ़ने का समय.’ इसके बाद ही स्वामी गंगावतरण-दिवस से प्राणांत तक की जिद लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी समेत तमाम सत्ताधारी नेता 13 अगस्त को जब कानपुर में ‘नमामि गंगे’ के नाम पर परियोजनाओं की घोषणा और बयानबाजी कर रहे थे, तो लोगों को उम्मीद थी कि वे हरिद्वार में आमरण अनशन पर बैठे वयोवृद्ध स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का उल्लेख करेंगे, लेकिन नेताओं ने स्वामी का नाम लेने की जरूरत नहीं समझी.

मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय जल संसाधन मंत्री ने कानपुर और बिठूर के 20 घाटों का लोकार्पण किया और गंगा की सफाई के कानपुर में किए गए कामों पर खूब कहा. लेकिन जमीन की सच्चाई इन ‘कह-कहों’ से बिल्कुल अलग है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि नमामि गंगे परियोजना सहित कुम्भ के आयोजन में धन की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी. इस मौके पर ‘गंगा टास्क फोर्स’ की शुरुआत भी की गई और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीसामऊ नाले का निरीक्षण भी किया.

कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में आयोजित किए गए शिलान्यास और लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रयाग कुम्भ-2019 को देखते हुए इस वर्ष 15 दिसम्बर के बाद किसी भी नाले का गंदा पानी गंगा में प्रवाहित नहीं होने दिया जाएगा. योगी बोले कि सबसे पहले कानपुर से इलाहाबाद के बीच गंगा को निर्मल बनाना है. अभी तक वाराणसी में गंगा को निर्मल करने की बातें हो रही थीं. बहरहाल, योगी ने गंगा और यमुना को शुद्ध रखने के लिए कई बड़े-बड़े सुझाव भी दे डाले. मसलन, बड़े जलाशय बनाए जाएं, वृक्षारोपण किया जाए, नदी में पानी कम होने पर जलाशयों से पानी छोड़ा जाए वगैरह वगैरह.

इस पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने नमामि गंगे पर हो रही धन-वर्षा का ब्यौरा दिया. गडकरी ने कहा कि 20 हजार करोड़ रुपए के बजट में उत्तर प्रदेश के लिए 8900 करोड़ रुपए की परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं. इनमें अकेले कानपुर में 2200 करोड़ रुपए की परियोजनाओं पर काम चल रहा है. गडकरी ने यह भी जोड़ा कि धन की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी. गडकरी ने यह माना कि गंगा को प्रदूषित करने वाले 10 शहरों में कानपुर अव्वल है. उन्होंने सुझाव भी दिया कि कानपुर अपने कचरे का उपयोग बायो सीएनजी बनाकर कर सकता है, जिससे प्रदेश में पांच हजार बसें संचालित हो सकती हैं.

अब देखते हैं सियासी प्रहसन के बरक्स कानपुर में गंगा की दुर्दशा असली तस्वीर. केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने हरिद्वार में आमरण अनशन पर बैठे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को पत्र लिखा कर यह बताया था कि गंगा के शुद्धिकरण को लेकर कई कदम उठाए जा रहे हैं. कई परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और बाकी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाई गई है. गडकरी ने कानपुर का उदाहरण देते हुए लिखा कि वहां शीशामऊ नाले का 140 एमएलडी पानी गंगा में जाता था, जिसमें से 80 एमएलडी पानी डायवर्ट करके बिंगावन सीवरेज जल-शोधन पम्प पर भेजा जा रहा है. स्वामी सानंद को लिखे पत्र में नितिन गडकरी ने जो दावे किए वो जमीनी हकीकत से बहुत दूर हैं. करीब दो वर्ष पूर्व बनाए गए बिनगांव एसटीपी सीवरेज पम्प की क्षमता 200 एमएलडी है.

इस पम्प को जल निगम कानपुर संचालित करता है. इस पम्प में 65.09 एमएलडी क्षमता वाले गंदे नाले, 11.44 क्षमता वाले हलवा नाले, 30.40 क्षमता वाले थर्मल पावर नाले और 1.00 एमएलडी क्षमता वाले आईसीआई नाले का पानी शोधन के लिए ले जाया जाता है. महज एक माह पूर्व ही गंगा में गिरने वाले 140 एमएलडी क्षमता वाले शीशामऊ नाले को डायवर्ट कर बिनगांव एसटीपी सीवरेज पम्प ले जाया गया है. खास बात यह है कि शीशामऊ नाले के 80 एमएलडी सीवर पानी को डायवर्ट करने का जो दावा गडकरी ने किया, वह सच नहीं है. बिनगांव एसटीपी सीवरेज पम्प पर तैनात कर्मचारियों के मुताबिक, पूर्व में पम्प पर 72-80 एमएलडी पानी शोधन के लिए आता था. जब से शीशामऊ नाला डायवर्ट हुआ है, उसके बाद से लगभग 127-130 एमएलडी पानी पम्प पर शोधन के लिए आता है.

इसकी पड़ताल के लिए चौथी दुनिया ने पम्प पर आने वाले सीवर पानी का ब्यौरा रखने वाले रजिस्टर में दर्ज रीडिंग देखी, तो असलियत उजागर हुई. एक जून 2018 से 10 जून 2018 तक का ब्यौरा यह था; 1 जून- 92.69 एमएलडी, 2 जून- 108.83 एमएलडी, 3 जून- 96.15 एमएलडी, 4 जून- 96.15 एमएलडी, 5 जून- 89.73 एमएलडी, 6 जून- 96.67 एमएलडी, 7 जून- 83.32 एमएलडी, 8 जून- 95.29 एमएलडी, 9 जून- 105.02 एमएलडी और 10 जून- 124.98 एमएलडी. पम्प कर्मचारियों ने यह भी बताया कि यहां 12 पम्प हैं, लेकिन इस समय मात्र तीन पम्प ही काम कर रहे हैं. विद्युत अवरोध होने पर पम्प काम नहीं करता. ऐसे में आने वाला पानी बिना शोधन के ही आगे बढ़ जाता है. कर्मचारी के अनुसार, यहां दो बड़े जेनरेटर बिना काम के ही रखे हुए हैं.

कानपुर का भयावह दृश्य यह है कि यहां गंगा नदी में 17 नालों का गंदा सीवर का पानी डाला जाता है. जल निगम के प्रोजेक्ट मैनेजर घनश्याम द्विवेदी बताते हैं कि परमिया पुरवा नाले का 3.5 एमएलडी गंदा पानी, नबाबगंज नाले का 0.52 एमएलडी गंदा पानी, रानी घाट नाले का 0.43 एमएलडी गंदा पानी, शीशामऊ नाले का 140.146 एमएलडीगंदा पानी, टेफ्को नाले का 0.43 एमएलडीगंदा पानी, परमट नाले का1.78 एमएलडी गंदा पानी, म्योर मिल नाले का 3.25 एमएलडी गंदा पानी, पुलिस लाइन नाले का 0.79 एमएलडी गंदा पानी, जेल नाले का 1.22 एमएलडी गंदा पानी, गोला घाट नाले का 1.44 एमएलडी गंदा पानी, गुप्ता घाट नाले का 2.38 एमएलडी गंदा पानी, सत्तीचौरा नाले का 2.0 एमएलडी गंदा पानी, दबकेश्वर नाले का 2.56 एमएलडी गंदा पानी, शीतला बाज़ार नाले का 5.75 एमएलडी गंदा पानी, बुढ़िया घाट नाले का 2.34 एमएलडी गंदा पानी और वाज़िदपुर नाले का 7.66 एमएलडी गंदा पानी गंगा नदी में गिरता है.

इसी तरह पांडु नदी से होकर गंदा नाले का 65.09 एमएलडीगंदा पानी, हलवा नाले का 11.44 एमएलडी गंदा पानी, सीओडी नाले का 8.81 एमएलडी गंदा पानी, थर्मल पावर नाले का 30.00 एमएलडी गंदा पानी और आईसीआई नाले का 1.00 एमएलडी गंदा पानी गंगा में गिरता है. कुम्भ से पहले गंगा को निर्मल करने की घोषणा का जमीनी सच यही है.

नालों और सीवर के पानी के अलावा फर्रुखाबाद, कानपुर और उन्नाव की नौ डाइंग फैक्टरियां भी गंगा में अपना जहर घोल रही हैं. एचबीटी तकनीकी विश्वविद्यालय की जांच रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है. यह रिपोर्ट केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के पास भी है. अध्ययन में 63 डाइंग इकाइयों को शामिल किया गया, जिनमें नौ इकाइयां मानकों पर खरी नहीं उतरीं. इन इकाइयों में ईटीपी की क्षमता मानक के विपरीत है. डिस्चार्ज वाटर के लिए जो मापदंड सरकार ने तय किए हैं, उससे कहीं ज्यादा डिस्चार्ज होता पाया गया है.

गाय बचाने वाली सरकार के लिए एक संन्यासी की जान बचाना प्राथमिकता नहीं है

86 वर्षीय स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद गंगा संरक्षण के लिए अधिनियम बनाने की मांग को लेकर 22 जून 2018 से हरिद्वार में अनशन पर बैठे हुए हैं, लेकिन न तो केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उनसे मिलने आए और न केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि ही आया. आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर और केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के सचिव रहे प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल संन्यास लेने के बाद स्वामी ज्ञानस्वरूपसानंद हुए. स्वामी का कहना है कि जैसे ‘गंगा एक्शन प्लान’ के नाम पर पांच सौ करोड़ रुपए खर्च हो गए, लेकिन गंगा पहले से ज्यादा प्रदूषित हुई, वैसे ही ‘नमामि गंगे’ परियोजना के नाम पर मिले 20 हजार करोड़ भी खर्च हो जाएंगे, लेकिन गंगा रत्ती भर भी साफ नहीं होगी, क्योंकि ‘नमामि गंगे’ योजना का काम भी ‘गंगा एक्शन प्लान’ की तर्ज पर ही चल रहा है.

‘नमामि गंगे’ परियोजना पर अब तक सात हजार करोड़ रुपए खर्च भी हो चुके हैं. स्वामी कहते हैं कि औद्योगिक कचरा साफ करने के लिए बनाए जाने वाले ‘कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट’ और शहर की गंदी नालियों का कचरा साफ करने के लिए ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ इतने बने ही नहीं हैं कि सारा कचरा साफ कर सकें. जो बने हैं वे भी ठीक से काम नहीं करते. बिना साफ किए हुए ही दोनों किस्म के कचरे नदियों में सीधे गिराए जा रहे हैं, चाहे वह गंगा हो या साबरमती या कोई अन्य नदी.

साबरमती का रंग तो एकदम काला पड़ गया, जबकि साबरमती की सफाई पर भी दो सौ करोड़ रुपए खर्च हो चुके. अब नर्मदा नदी का पानी डालने के बाद साबरमती किसी तरह सांस ले पा रही है. ‘कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट’ और ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ बनाने से सिर्फ ठेकेदारों को फायदा हुआ है. गंगा और अन्य नदियों को साफ करने की नीयत नहीं दिखाई पड़ती, इसीलिए स्वामी सानंद गंगा संरक्षण के लिए अलग कानून बनाने की मांग कर रहे हैं.

आम लोग भी इस बात पर हैरत जताते हैं कि खुद को गंगा की हितैषी बताने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्वामी सानंद के आमरण अनशन की उपेक्षा क्यों कर रही है? सरकार के दबाव या प्रलोभन में मीडिया भी स्वामी के अनशन को महत्व नहीं दे रहा है. हरिद्वार में आम लोग यह कहते मिलेंगे, ‘गाय बचाने का रोना रोने वाली सरकार के लिए एक संन्यासी की जान बचाना प्राथमिकता नहीं है.’ स्वामी सानंद ने 24 फरवरी को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर गंगा संरक्षण विधेयक लाने और गंगा भक्त परिषद गठित करने की मांग की थी. न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय समिति गंगा संरक्षण विधेयक लाने की सिफारिश पहले ही कर चुकी है.

स्वामी ने मोदी से यह भी आग्रह किया था कि गंगा को बचाने के लिए अलकनन्दा बाहु को नष्ट करने वाली विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना और मन्दाकिनी बाहु को नष्ट करने वाली फाटा-ब्यूंग और सिगोली-भटवारी परियोजनाओं का काम तत्काल बंद किया जाए. प्रधानमंत्री की तरफ से कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाने पर उन्होंने दोबारा चिट्‌ठी लिखी, लेकिन मोदी की तरफ से उपेक्षा ही मिली. स्वामी ने मोदी को लिखा, ‘वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव तक तुम मां गंगा के समझदार, लाडले और समर्पित बेटे होने की बात करते थे, पर चुनाव जीतने के बाद अब तुम मां के ही कुछ लालची और विलासिता प्रिय बेटे-बेटियों के समूह में फंस गए हो.

उनकी विलासिता का साधन जुटाने के लिए कभी जल मार्ग तो कभी ऊर्जा की आवश्यकता पूर्ति का हल निकालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन तुम्हें मां गंगा के स्वास्थ्य का जरा सा भी ध्यान नहीं है. अग्रज होने तथा विद्या-बुद्धि में भी बड़ा होने और मां गंगा के स्वास्थ्य-सुख-प्रसन्नता के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के लिए तैयार रहने के कारण मैं मां गंगा से सम्बन्धित विषयों पर तुम्हें समझाने और निर्देश देने का हक रखता हूं.’ इस पत्र के बाद गडकरी ने झूठे तथ्यों पर आधारित पत्र लिख कर स्वामी का अनशन समाप्त कराने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे.

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