नई दिल्ली। गाय को देश की पवित्र संपदा मानते हुए हैदराबाद हाईकोर्ट के एक जज ने कहा है कि गाय मां और भगवान का विकल्प है. कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान माननीय जज बी शिव शंकर राव ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि बकरीद के मौके पर मुस्लिम धर्म के लोगों को सेहतमंद गाय काटने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. माननीय जज ने उन डॉक्टरों पर भी कर्रावाई किए जाने की बात कही, जो धोखे से सेहतमंद गाय को अनफिट साबित कर सर्टिफिकेट देकर कह देते हैं कि वो दूध नहीं दे सकती. उन्होंने ऐसे डॉक्टरों को आंध्रप्रदेश गौहत्या एक्ट 1977 के अंतर्गत लाने की मांग भी की. गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बूढ़ी और दूध नहीं देने वाली गायों को काटने की इजाजत है.
दरअसल, ये मामला जब्त किए गए मवेशियों को छुड़ाने से जुड़ा है. रामावथ हनुमा नाम के एक शख्स की 63 गायों और दो बैलों को जब्त किया गया था. उसपर आरोप है कि वो अपने कुछ साथियों के साथ पास के किसानों से उन गायों और बैलों को खरीद कर लाया था, ताकि बकरीद पर उनको काट सके. जबकि हनुमा का कहना है कि वो उन पशुओं को वहां चराने के लिए लाया था. उन्हें छड़ाने की कोशिश में वो ट्रायल कोर्ट गया था, जहां उसकी याचिका ठुकरा दी गई. उसके बाद वो हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट में माननीय जज बी शिव शंकर राव ने ये कहकर हनुमा की दलील ठुकरा दी कि हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट के फैसले में दखल नहीं देना चाहता.
हालांकि इस मामले में माननीय जज शिवशंकर ने सवाल उठाया कि जिस शख्स पर गायों को हत्या के लिए लेकर जाने का आरोप हो क्या उस शख्स के पास उनको लेकर जाने का अधिकार है? उन्होंने कहा कि ये सवाल पूछा जाना चाहिए और गाय के राष्ट्रीय महत्व जो कि मां और भगवान का विकल्प हैं, उसके लिए इसका जवाब मिलना चाहिए. उन्होंने इसके लिए कई उदाहरण भी दिए. उन्होंने कहा कि बाबर ने गौहत्या पर पाबंदी लगाई थी और उसने अपने बेटे हूमायूं को भी ऐसा ही करने को कहा था. जज ने कहा कि अकबर, जहांगीर और अहमद शाह ने भी गौहत्या पर पाबंदी रखी थी. माननीय जज ने जानवरों के साथ होने वाली क्रूरता को रोकने वाले अधिनियम, 1960 के सेक्शन 11 और 26 में बदलाव की भी बात कही. उन्होंने ये भी कहा कि इस कानून के तहत लिने वाली सजा को बढ़ाकर पांच साल कर देना चाहिए.
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