सानेगुरुजी के आंतरभारती के सही सिपाहियों में से एक मधु लिमये ! जीनकी आने वाले एक मई से जन्मशताब्दी की शुरुआत हो रही है !

महाराष्ट्र के पुणे में एक मई 1922 को पैदा हुआ मधु, शुरुआत के बीस साल पहले पूणे की शिक्षा और उसके बाद खानदेश के समाजवादि और राष्ट्र सेवा दल के कामों को अंजाम देने के लिए और उसी बीच आजादी के आंदोलन के दौरान जेल यात्रा के सभी समय मिलाकर !
यानी लगभग उम्र के पैंतालीस साल के पस्चात महाराष्ट्र के खानदेश (जळगाव, धुळेअब नंदुरबार भी , नासिक और कुछ बुलढाणा जिल्हा का पस्चिमी हिस्सा) जिसे खानदेश कहा जाता है ! उसे छोड़कर सुदूर बीहार से अपने संसदीय जीवन की शुरुआत करते हैं इसमें उनके साहस के साथ बिहार के लोगों के बडप्पन की दाद देनी होगी ! वह भी आजसे साठ साल पहले ! नही तो आज प्रादेशिकता से लेकर जाती – धर्म की दल – दल की स्थिति में असंभव नजर आता है !
मधु लिमये 1922 में पैदा हुए मतलब भारत छोडो आंदोलन के दौरान वह गिनकर बीस साल के थे ! और 1934 को बारह साल के होने के पहले से ही अपने पढ़ाई के अलावा अन्य किताबों का अध्ययन करना यह उनके जिवनक्रम का हिस्सा बन गया था ! और इस कारण अंग्रेजी, हिंदी तथा मराठी की काफी किताबों का अध्ययन किया ! जिसमें उन्होंने नेपोलियन के बारे में काफी गहन अध्ययन किया ! और शिवाजी के अलावा सामान्य परिवेश में जन्मे नेपोलियन जो मुकाम हासिल किया ! इसका मधु के मनपर काफी गहरा प्रभाव हुआ था ! और नेपोलियन के फ्रांस की राज्यक्रांती का अमेरिकी राज्यक्रांती पर काफी असर हुआ है ! यह भी उन्हें अपने अध्ययन के बाद पता चला ! उसी तरह हिटलर की समस्त विश्व को जितने कि कोशिशों का भी !1935 की बात है ! यह सब अध्ययन वह अपने मॅट्रिक के परिक्षा के पहले से ही वह कर चुके थे ! और तत्कालीन शिक्षा के क्षेत्र में वह एक मेघावी छात्र के रूप में मशहूर हो चुके थे ! तो बोर्ड के तरफसे उन्हें 1936 में ही जबकि उनकी उम्र सिर्फ चौदह साल की ही उम्र के रहने के बावजूद ! मॅट्रिक की परीक्षा देने की इजाजत मीलने की वजह से ! वह अन्य विद्यार्थियों की तुलना में पहले 15 से भी कम उम्र में ही मॅट्रिक की परीक्षा पास होकर पुणे के मशहूर कालेजों में से एक फर्ग्यूसन कालेज में पढ़ने के लिए दाखिल हो गए थे !
लेकिन इसी दौरान भारत और विश्व की घटनाओं पर पैनी नजर रखने वाले मधू ! सिर्फ अपने पढ़ाई के साथ-साथ अपने सामाजिक और राजनीतिक दायित्वों के अनुरूप मुख्य रूप से आभ्यास मंडल और सामाजिक – राजनीतिक घटनाओं का संज्ञान लेते रहने के कारण 1939 तक यानी उम्र के सत्रहवीं में ही पूर्ण खादीधारी हो गया था !

14 अगस्त 1939 के दिन कांग्रेस(जवाहरलाल नेहरू के आदेश पर) ने अंदमान की जेल में बंद रहे कैदियों की मुक्ति के लिए संपूर्ण देश में मनाने की घोषणा की थी !( और विनायक दामोदर सावरकर आराम से रत्नागिरी में अंग्रेजी पेन्शन पर जीवन जी रहे थे !) उसी कार्यक्रम की पुणे की शनिवारवाडा की सभा को सूनने के लिए मधू लिमये, अपने अन्य मित्रों के साथ गए थे ! और उन्होंने पहली बार समाजवादी नेता एस एम जोशी का भाषण सुना ! और उन्हें प्रत्यक्ष देखने का अवसर मिला ! उसके बाद फर्ग्यूसन कालेज में श्री अच्युत पटवर्धन का दुसरे विश्वयुद्ध के उपर अंग्रेजी में भाषण सुनने का मौका मिला था ! 1935 में फर्ग्युसन कॉलेज के इतिहास विषय के प्रोफेसर केळावाला ने मधू लिमये को मोर्ले-मिंटो सुधार के उपर भारत के राजनीतिक विकास के लिए ब्रिटिशों के दृष्टिकोण को 1935 के सुधार के उपर एक समीक्षा लिखने की जिम्मेदारी सौंपी ! इस तरह कालेज के जीवन में ही देश के संसद के भावी सदस्य के राजनीतिक – सामाजिक जीवन को फलने-फूलने का सुअवसर प्राप्त हुआ !
मधूजी के बारे मे एक बार मै पूराने समाजवादी लेकिन बाद में कांग्रेस के साथ चले गए ! श्री वसंत साठे के दिल्ली स्थित आवास पर बातचीत में “उन्होंने कहा कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने हम कांग्रेसियों के संसद सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि देखो मेरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कभी-कभी इतने कम विरोधी दलों के सदस्यों को रहते हुए देखा है ! लेकिन अकेले मधू लिमये अपने संसदीय कानून के अनुसार ही दो – दो दिन संसद ठप्प कर सकते थे ! और आप लोग तो सौ से अधिक होने के बावजूद कुछ नहीं कर रहे हो !” मधू लिमये के संसदीय कामकाज के उपर एक स्वतंत्र किताबों के इतनी सामुग्री उपलब्ध है और मेरे तरफसे शताब्दी समिती के साथीयो को विनम्र सुचना है कि इस विषय पर अवश्य ही एक किताब निकलना चाहिए !

मेरे हीसाब से कुछ लोग जन्मना प्रतिभाशाली होते हैं और मधूजी उनमेसे एक थे ! जैसे मराठी संत ज्ञानेश्वर अपनी उम्र के बीस साल पहले ही समाधी ले चुके हैं ! लेकिन आज हजारों सालों के बाद भी ! ज्ञानेश्वरी से लेकर उनके पसायदान की महत्ता कायम है ! पंडित कुमार गंधर्व उम्र के सात साल के थे ! तब कलकत्ता संगीत समारोह में गाना शुरु किया है ! और काफी हदतक लता मंगेशकर, एम एन रॉय, शिवाजी, नेपोलियन जैसे विश्व के विभिन्न देशों के और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की प्रतिभा को देखते हुए ! मुझे लगता है “कि मधू लिमये समाजवादी आंदोलन के जन्मना प्रतिभाशाली लोगों में से एक रहे हैं !” और इसी कारण सानेगुरुजी से उम्र में छोटे होने के बावजूद (23) साल का फासला उस समय के पिता और पुत्र के उम्र का फासला था ! लेकिन धुलिया जेल के अंदर दोनों को एक साथ रहते हुए साने गुरुजी ने मधूजी के जनतांत्रिक समाजवादी दर्शन पर के व्याख्यान सुनने के बाद समझ लिया कि ! यह बच्चा अपने से बौद्धिक रुप से बहुत आगे है ! और यही सच्चा जनतांत्रिक समाजवादी होता है ! (अन्यथा समाजवादियों का सबसे ज्यादा नुकसान एक दूसरे से इर्शा करने के कारण ही हुआ है! इसलिए सानेगुरुजी के बडप्पन की बात बहुत ही मायने रखती है!)
और गुरुजिके पत्रों को देखते हुए लगता है ! कि समाजवादी पार्टी के किसी भी अन्य लोगों की तुलना में उनका सबसे ज्यादा प्रेम मधूजी के उपर ही था !

उसी तरह श्री अच्युत पटवर्धन जी भले मधूजी ने उन्हें अपने कालेज जीवन में एक वक्ता के रूप में सुना होगा ! लेकिन भविष्य में बयालीस के भारत छोडो आंदोलन और खानदेश के मजदूर – किसानों के आंदोलनों ! और सबसे महत्वपूर्ण बात इन सबके साथ राष्ट्र सेवा दल के काम ! (भले ही 1941मे स्थापना हुई थी!) लेकिन मधू लिमये और सानेगुरुजी के कारण खानदेश में गांव – गांव में राष्ट्र सेवा दल के शाखाओं का जाल फैलाने वाले लोगों में ! मधूजी का नाम अग्रणी लोगों में आज भी लिया जाता है ! सबसे अहम बात बौद्धिक और शाखाओं के विस्तार के कारण खान्देश राष्ट्र सेवा दल का गढ रहा हैं !

बादमे 1950 मे सानेगुरुजी के चले जाने के बाद उम्र के तीस – पैतिस साल के मधूजी डॉ राम मनोहर लोहिया के कारण खानदेश से एकदम बीहार जैसे हजारों किलोमीटर दूर से ! अपने संसदीय राजनीति की शुरुआत करते हैं ! और अंत में देश की राजधानी दिल्ली में अपने अंतिम सांस छोड़ते हैं ! यही सानेगुरुजींके आंतरभारती का सपना था ! जिसे उनके सबसे करीबी मधूजी की आने वाली एक मई को शताब्दी की शुरुआत में और उनके स्मृति में मेरा विनम्र अभिवादन !
डॉ सुरेश खैरनार 11 अप्रैल 2022, नागपुर

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