kamal morarkaभारत के अगले राष्ट्रपति का चुनाव हो गया. इसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं हुआ. रामनाथ कोविंद एक ज़िम्मेदार वरिष्ठ नेता हैं. मुझे यकीन है कि वे अपने पद के साथ न्याय करेंगे. बेशक वे भाजपा की तरफ से हैं, आम तौर पर यही होता है कि सत्ताधारी पक्ष राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करता है. इसमें किसी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए.

दूसरा जो महत्वपूर्ण मुद्दा है, वो है जीएसटी का. एक छोटी अवधि में किसी प्रणाली को पूरी तरह से बदल देना आसान नहीं होता. बहरहाल, शुरुआत तो करनी थी और शुरुआत हुई भी, लेकिन इसको लेकर व्यापारियों में बड़े पैमाने पर रोष है. अब ये रोष वास्तविक है या वे जीएसटी को समझ नहीं पाए हैं या फिर इसके प्रावधानों में बदलाव की आवश्यकता है, इन सब को लेकर सरकार को अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए, ताकि उनकी भावनाओं को शांत किया जा सके.

गुजरात समेत देश के अलग-अलग भागों में व्यापारियों के व्यापक प्रदर्शन को बहुत दिनों तक जारी नहीं रहने दिया जा सकता. गुजरात में लोग व्यवसायिक प्रवृति के होते हैं. यदि आप उनकी नहीं सुनेंगे, तो अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा. वाणिज्य विभाग और उद्योग विभाग राज्य के मुख्य सचिव के साथ मिल कर इसपर ज़रूर विचार-विमर्श कर रहे होंगे. बहरहाल, जीएसटी एक कठिन काम है. आपको यह अवश्य पता होना चाहिए कि स्थिति सामान्य होने में वक़्त लगेगा. देश के भले के लिए हम यह आशा करते हैं कि वे इसमें कामयाब हों.

इसके बाद चीन के साथ गतिरोध का मुद्दा है. पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण ने यह सुझाव दिया कि सबसे पहले भारत और चीन दोनों को अपनी पूर्व घोषित स्थिति पर वापस आना चाहिए. चीन ने अपनी पूर्व की स्थिति में बदलाव किया है. उन्होंने कहा कि चीन को कुटनीतिक रास्ता अख्तियार करना चाहिए. अपनी पूर्व घोषित स्थिति से हटना न तो भारत के हित में है और न ही चीन के हित में. यह स्थिति वर्षों तक दोनों देशों के बीच कायम रही है. दोनों देशों की सेनाओं का एक दूसरे से टकराव किसी के लिए भी ठीक नहीं है.

चीन के लोग समझदार हैं और मुझे विश्वास है कि वे वही करेंगे जिसकी आवश्यकता है. हमें पाकिस्तान के द्वारा चीन से हाथ मिलने से अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है. पाकिस्तान एक अवसरवादी देश है. उन्हें भारत को चोट पहुंचाने का जहां भी मौक़ा मिलेगा, वे उसका इस्तेमाल करेंगे. लेकिन सबसे अहम बात यह है कि हमें चीन को ज़िम्मेदारी के साथ कूटनीतिक रूप से व्यस्त रखना चाहिए और बिना टकराव के मामलों को सुलझाना चाहिए.

कर्नाटक में झंडे का विवाद खड़ा हुआ है. दरअसल, कोई भी व्यक्ति अपना व्यक्तिगत झंडा रख सकता है, इसमें परेशानी कहां हैं. राष्ट्र, राष्ट्र होता है. पहले दिन से ही तमिलनाडु का अपना झंडा है. यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसे तूल दिया जाए. हर मुद्दे को कांग्रेस भाजपा मुद्दा बना देने का कोई मतलब नहीं है. जो लोग इस पर आपत्ति जता रहे हैं, उनमे इतनी साहस नहीं है कि वे तमिलनाडु को उसका झंडा छोड़ देने के लिए कह सकें. कश्मीर की एक विशेष स्थिति है.

कश्मीर का झंडा संविधान सम्मत है. आर्टिकल 370 इसकी मान्यता देता है. यह झंडा केवल एक निशानी है. इस झंडे की कोई अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं है. भारत का राष्ट्रीय झंडा तिरंगा है और इसकी ही अंतरराष्ट्रीय मान्यता है. भारतीय संघ के अंदर यदि कोई व्यक्ति अपनी अलग पहचान चाहता है, तो इसमें क्या आपत्ति हो सकती है. यह भाषा की तरह है, जैसे कन्नड़ है, मराठी है. ऐसे मुद्दों को बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बनाना चाहिए.

सरकार चुनावी मोड में चली गई है. फिलहाल वे 2019 के चुनाव में दिलचस्पी ले रहे हैं. उन्हें व्यवसाइयों या किसानों या किसी अन्य की कोई चिंता नहीं है. यह हमारी बदकिस्मती है. लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है, जिसके वे अधिकारी होते हैं. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि आगे अच्छा होगा.

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