यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के लखनऊ में तैनात अफसरों की ऋण आवंटन घोटाले में अहम भूमिका रही है. लखनऊ में भी ऋण बांटने में घोर अनियमितताएं की गई हैं. दिवालिया होने वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों, घोटालेबाज कंपनियों और फर्जी फर्मों को ऋण की रेवड़ियां बांटने में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का नाम अव्वल रूप से सामने आया है. ऋण लेकर फरार हो जाने वाली कंपनियों या ऋण लेने के बाद खुद को दिवालिया घोषित कर देने वाली फर्मों से वसूली में नाकाम होने के बाद वसूली ट्रिब्यूनल के समक्ष मत्था टेक देने का यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने चलन बना लिया है. चौथी दुनिया की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.

final-page-1सारधा चिटफंड घोटाले से जुड़ी फर्म से लेकर फर्जी एविएशन कंपनियों तक को अरबों रुपये का ऋण बांटने और सरकारी ज़मीनों को भी गिरवी रखने में कोई संकोच न करने वाले यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ख़िलाफ़ केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने जांच-पड़ताल शुरू कर दी है. सीबीआई ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के कोलकाता मुख्यालय के कुछ आला अफसरों से सख्त पूछताछ भी की है. इससे अफरातफरी में आए बैंक प्रबंधन ने दो दर्जन से अधिक आला अफसरों के ख़िलाफ़ चार्जशीट जारी की है और उनका तबादला कर दिया है. लेकिन, यह कार्रवाई भी धोखा है. ऋण आवंटन का घोटाला करने वाले अफसरों को बचाने के लिए यह कार्रवाई की गई है. इसमें भी प्रबंधन के शीर्ष अधिकारियों ने खुद को बचा लिया है. यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के लखनऊ में तैनात अफसरों की ऋण आवंटन घोटाले में अहम भूमिका रही है. लखनऊ में भी ऋण बांटने में घोर अनियमितताएं की गई हैं. दिवालिया होने वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों, घोटालेबाज कंपनियों और फर्जी फर्मों को ऋण की रेवड़ियां बांटने में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का नाम अव्वल रूप से सामने आया है. ऋण लेकर फरार हो जाने वाली कंपनियों या ऋण लेने के बाद खुद को दिवालिया घोषित कर देने वाली फर्मों से वसूली में नाकाम होने के बाद वसूली ट्रिब्यूनल के समक्ष मत्था टेक देने का यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने चलन बना लिया है. रद्दी ऋण (बैड-लोन) के कारण यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की ग़ैर उत्पादक आस्तियां (एनपीए) इतनी अधिक हो चुकी हैं कि वे उत्तर प्रदेश के समूचे बजट से भी बहुत ऊपर चली गई हैं. ऋण घोटाले के बोझ से दबे यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के बंद होने का ख़तरा बढ़ता जा रहा है.
हेलिकॉप्टर खरीदने के नाम पर ऋण देने का तो यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को शौक है. लखनऊ हो या कोलकाता, हेलिकॉप्टर खरीदने के लिए ऋण का प्रस्ताव दें और ऋण फौरन हाजिर. फिर ऋण लेकर बड़े आराम से फरार हो जाएं. बैंक भी खुश और आप भी खुश. बैंक के सीएमडी और सीआरएम, यानी चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक और चीफ रीजनल मैनेजर सेवा-भक्ति से प्रसन्न हुए नहीं कि ऋण जारी हुआ. ऋण लेकर फरार होने के बाद भी लंबे अर्से तक उस ऋण को अनुत्पादक आस्तियों में डालने या ट्रिब्यूनल में जाने की बैंक को फुर्सत नहीं रहती. यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की सीएमडी रहीं अर्चना भार्गव के स्वैच्छिक अवकाश की वजहें अब भी रहस्य में हैं. लेकिन, उन वजहों पर खुफिया एजेंसियां काफी सक्रियता से काम कर रही हैं. अब धीरे-धीरे यह बात खुल रही है कि अर्चना भार्गव का स्वैच्छिक अवकाश पूर्व नियोजित था और बैंक के शीर्ष प्रबंधन और तत्कालीन सत्ता के शीर्ष गलियारे की इसमें सहमति थी. उनके इस्ती़फे के पीछे लगातार बढ़ता हुआ वह सारा ऋण भी प्रमुख कारण था, जिसकी वसूली नहीं की गई. दिसंबर 2013 के अंत तक यूबीआई का वसूल न हो पाने वाला ऋण (एनपीए) रिकॉर्ड 8,546 करोड़ रुपये पर था. यह कौन-सा ऋण था, जिसकी वसूली नहीं की गई? वसूली क्यों नहीं की गई? या कुछ ऋणों को नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट वाले खाते में डालने से शातिराना तरीके से रोक लिया गया? इसी वजह से तो नहीं अर्चना भार्गव इस्तीफ़ा देकर दृश्य से अचानक गायब हो गईं? तब सत्ता कांग्रेस की थी और कांग्रेस के नेता भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उपकृत थे, लिहाजा अर्चना भार्गव के विभिन्न बैंकों में लिए गए विभिन्न ़फैसलों या यूबीआई के ही खातों की सीबीआई से जांच कराई गई. नहीं तो ऐसे-ऐसे ऋणों का भेद खुल जाता, जो विजय माल्या हों या रॉबर्ट वाड्रा या पवन बंसल या सारधा चिटफंड कंपनी के सुदीप्तो सेन या सुब्रत राय सहारा जैसे कई लोगों को हल्के-फुल्के तरीके से बांट दिए गए थे.

लखनऊ की हिंद इंफ्रा सिटी प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी मास्टर डाटा के मुताबिक, इसका पता 194/18/4, लक्ष्मण प्रसाद रोड, लखनऊ है. सैयद रईस हैदर व राना रिजवी इस कंपनी के डायरेक्टर हैं. इसमें राना रिजवी का पता कंपनी वाला और रईस हैदर का पता हुंदरही, गंगौली, ज़िला गाजीपुर, यूपी लिखा है. इस कंपनी की पेड-अप कैपिटल (प्रदत्त पूंजी) आठ लाख रुपये है. महज आठ लाख रुपये की पूंजी वाली कंपनी को यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने सौ करोड़ रुपये का ऋण दे दिया.

यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के अफसरों की पहले लखनऊ की करतूतें देखते चलें. लखनऊ की हिंद इंफ्रा सिटी प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी मास्टर डाटा के मुताबिक, इसका पता 194/18/4, लक्ष्मण प्रसाद रोड, लखनऊ है. सैयद रईस हैदर व राना रिजवी इस कंपनी के डायरेक्टर हैं. इसमें राना रिजवी का पता कंपनी वाला और रईस हैदर का पता हुंदरही, गंगौली, ज़िला गाजीपुर, यूपी लिखा है. इस कंपनी की पेड-अप कैपिटल (प्रदत्त पूंजी) आठ लाख रुपये है. महज आठ लाख रुपये की पूंजी वाली कंपनी को यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने सौ करोड़ रुपये का ऋण दे दिया. कंपनी ऋण लेकर फुर्र हो गई. इस ऋण को मंजूर करने की इतनी आपाधापी थी कि यूबीआई लखनऊ के तत्कालीन चीफ रीजनल मैनेजर विनोद बब्बर ने प्रस्ताव को क्षेत्रीय स्तर पर स्वीकृत करते हुए उसे मुख्यालय भेज दिया और बैंक बोर्ड की आपत्ति के बावजूद अर्चना भार्गव ने चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक रहते हुए मंजूरी की मुहर लगा दी. इन्हीं विनोद बब्बर के ख़िलाफ़ बैंक प्रबंधन ने चार्जशीट जारी की है और इनका तबादला पश्‍चिम बंगाल के हुगली में कर दिया है, लेकिन डीजीएम की तरक्की देने के साथ.

खैर, यूबीआई के सूत्रों ने कहा कि हिंद इंफ्रा के ऋण लेने का कारण हेलिकॉप्टर खरीदना बताया गया था. इसकी आधिकारिक पुष्टि के लिए इस संवाददाता ने विनोद बब्बर को फोन किया. जैसे ही हिंद इंफ्रा सिटी प्राइवेट लिमिटेड के ऋण के बारे में उन्होंने सवाल सुना, वैसे ही बोले, मैं तो मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं. आप इस बारे में मुख्यालय से बात करिए. ऋण तो आपने सैंक्शन किया था, फिर उसकी वसूली में कोताही क्यों की गई? इस सवाल को भी उन्होंने कोलकाता मुख्यालय पर टालने की कोशिश की, लेकिन इतना तो बोल ही दिया कि यह तो पुरानी कहानी हो गई. उनसे पूछा गया कि साल-दो साल के दरम्यान जारी ऋण पुरानी कहानी कैसे हो गई और ऋण वसूली की कार्रवाई नहीं हुई, तो उसे एनपीए खाते में क्यों नहीं डाला गया? इस सवाल पर बब्बर को अचानक मीटिंग की याद आ गई. बोले, मैं ज़रूरी मीटिंग में हूं, अभी बात नहीं कर पाऊंगा. और उन्होंने फोन काट दिया. अब तो बब्बर की तरक्की हो चुकी है और उनका तबादला भी हो चुका है. अर्से बाद जब बैंक प्रबंधन के अधिकारियों को अपना गला फंसता हुआ दिखा, तब उस ऋण की वसूली के लिए बैंक प्रबंधन ने ट्रिब्यूनल की शरण ली है.
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की ऐसी ही करतूतों के कारण उत्तर प्रदेश का एक बड़ा व्यवसायिक प्रतिष्ठान करोड़ों रुपये का ऋण लेकर फरार हो गया है. फरारी की वजह ऋण वसूली में बैंक की कोताही रही है. व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से उपकृत होकर बैंक के अधिकारी ऋण जारी करते हैं और जब उनकी नौकरी ख़तरे में पड़ती है, तब वे बकाया वसूली के लिए सक्रिय होते हैं. आगरा की वरुण इंडस्ट्रीज के साथ यही हुआ. आख़िरकार आगरा पुलिस को देश के बड़े स्टेनलेस स्टील एक्सपोर्टर वरुण इंडस्ट्रीज के दो प्रमोटरों और एक डायरेक्टर के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करना पड़ा. वरुण इंडस्ट्रीज के प्रमोटर किरण मेहता, कैलाश अग्रवाल और डायरेक्टर वरुण मेहता के ख़िलाफ़ आगरा के सीजेएम कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट जारी है. वरुण इंडस्ट्रीज ने एसई इंवेस्टमेंट फाइनेंस कंपनी से 70 करोड़ रुपये का ऋण तो लिया ही था. यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया समेत 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों को मिलाकर दो हज़ार करोड़ रुपये का ऋण ले रखा था. इन बैंकों के कंसोर्सियम ने भी वसूली के लिए वरुण इंडस्ट्रीज के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया है. बैंकों के कंसोर्सियम में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक, यूको बैंक, सेंट्रल बैंक, सिंडिकेट बैंक, स्टेट बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, आईडीबीआई बैंक और इलाहाबाद बैंक शामिल हैं. लेकिन, सबसे बड़ी विडंबना यह है कि उन बैंकों के आला अफसरों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होती, जो विभिन्न तरीकों से प्रभावित होकर ऋण की रेवड़ियां बांटते हैं और फंसने पर ट्रिब्यूनल के समक्ष आत्मसमर्पण करने की मुद्रा में आ जाते हैं. देश के राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा बांटे गए रद्दी ऋण के कारण 10 खरब 44 अरब रुपये का बकाया हो गया है. डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) के पास ये मामले वसूली के लिए लंबित हैं. आप समझ ही सकते हैं कि इतनी विशाल धनराशि की वसूली में कितना विशाल समय लगेगा और फिर भी वसूली हो पाएगी, इसमें संदेह ही है.
बहरहाल, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के जिन 27 आला अफसरों के ख़िलाफ़ चार्जशीट जारी हुई है, उनमें पूर्व सीएमडी अर्चना भार्गव या मौजूदा एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर दीपक नारंग का नाम शामिल नहीं है. चार्जशीट जारी किए जाने में भी बैंक प्रबंधन ने दोगला रवैया अख्तियार किया. कुछ आला अफसरों को तरक्की देकर उनका तबादला कर दिया गया, तो कुछ अफसरों को बलि का बकरा बनाकर हलाल कर दिया गया. लखनऊ के पास के ज़िले में अपना पेट्रोल पंप चलाने वाले बैंक अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. बैंक से पांच लाख रुपये निकाल कर बनारसी साड़ी खरीद कर दिल्ली में प्रमुख महिला हस्ती को भेंट करने वाले अफसर विनोद बब्बर को तरक्की देकर हुगली भेज दिया गया. इससे यह सवाल अधूरा ही रह गया कि पांच लाख रुपये की साड़ियां आख़िर किस हस्ती को भेंट की गईं? इस पर बैंक प्रबंधन भी चुप्पी साधे है. 50 करोड़ रुपये के ऋण के लिए राजेश एक्सपोर्ट्स से 50 लाख रुपये की रिश्‍वत मांगने की ऑडियो-सीडी बैंक प्रबंधन को दिए जाने के बावजूद अर्चना भार्गव के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई. प्रमुख औद्योगिक प्रतिष्ठान लैंको को वक्फ की ज़मीन पर करोड़ों रुपये का ऋण देने वाले तत्कालीन सीएमडी मधुकर रहे हों या किंग फिशर के लिए विजय माल्या को करोड़ों का ऋण देने वाले विनोद नारंग, बैंक प्रबंधन इनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं करता. जबकि ऐसी अंधेरगर्दियों से बैंक को अरबों रुपये का नुक़सान हुआ है. इसी तरह कोलकाता की एक कथित एविएशन कंपनी को ऋण देकर बैंक ने अपने सैकड़ों करोड़ रुपये डुबो दिए हैं, लेकिन बैंक प्रबंधन इस पर चुप्पी साधे है. उक्त एविएशन कंपनी को तीन हेलिकॉप्टर खरीदने के लिए यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने सौ करोड़ रुपये से अधिक का ऋण दे दिया. जबकि उस एविएशन कंपनी का ज़मीन पर कोई अता-पता नहीं है. इस तरह सैकड़ों करोड़ रुपये डूब जाने के बावजूद बैंक प्रबंधन ने दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की है. किंग फिशर की तरह स्पाइस जेट एविएशन कंपनी के डूबने की आशंका गहराती जा रही है. स्पाइस जेट भी डूबी, तो यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया द्वारा दिया गया तक़रीबन पांच सौ करोड़ रुपये का ऋण भी डूब जाएगा. इस संवाददाता ने बैंक द्वारा दिए गए अराजक ऋण से संबद्ध कुछ लिखित सवाल बैंक के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर दीपक नारंग से पूछे, लेकिन उन्होंने सवालों का जवाब नहीं दिया.


बैंक में घोटाले बेइंतिहा, ईडी कुछ जानते ही नहीं

यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर दीपक नारंग से यह पूछा गया कि यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की किसी शाखा में रॉयल एविएशन या एयर रॉयल एविएशन नामक कंपनी का खाता है कि नहीं और अगर है, तो यह खाता स्ट्रेस्ड अकाउंट है या उसे एनपीए घोषित किया जा चुका है? तृणमूल कांग्रेस के सांसद केडी सिंह क्या इनमें से किसी फर्म के मालिक हैं? सीबीआई ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के कुछ अधिकारियों से पूछताछ क्यों की है? बैंक ने सरकारी ज़मीनों के एवज में जो ऋण दे रखे हैं, उनकी वसूली के क्या उपाय किए गए हैं या किए जा रहे हैं? यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ईडी दीपक नारंग ने ये सारे सवाल तसल्ली से सुने, लेकिन जवाब में कहा, आई एम नॉट अवेयर (मेरी जानकारी में नहीं है). विडंबना ही तो है कि यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया में घोटाले बेइंतिहा हो रहे हैं, लेकिन बैंक के ईडी कहते हैं कि उन्हें कुछ पता ही नहीं. उल्लेखनीय है कि हेलिकॉप्टर खरीदने के नाम पर लखनऊ की हिंद इंफ्राटेक कंपनी रही हो या कोलकाता की एविएशन कंपनी, उसे यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने सैकड़ों करोड़ रुपये के ऋण दिए, जिसे लेकर उक्त कंपनियां फरार हो गईं. इसी तरह बैंक के कर्ता-धर्ता होते हुए नारंग ने किंग फिशर को अनाप-शनाप ऋण दिए और सुनियोजित तरीके से किंग फिशर के मालिक विजय माल्या ने कर्ज के रुपये बैंक को नहीं लौटाए. लैंको या कई अन्य फर्मों को दिए गए ऋण के उदाहरण हमारे सामने हैं, जिनमें सरकारी ज़मीनों को भी गिरवी रखकर करोड़ों रुपये के ऋण हासिल कर लिए गए और बैंक उन ऋणों की वसूली नहीं कर पाया. इस तरह के ऋणों की रेवड़ियां बांटने में बैंक के अधिकारी खुद ही लिप्त रहते हैं और बाद में वे सुनियोजित रूप से ऋण लेकर भागने वाली फर्मों को दिवालिया, डिफॉल्टर या फरार घोषित कर देते हैं. इससे बैंक अधिकारियों की खुद की नौकरी बची रहती है और सारा नुक़सान बैंक को झेलना पड़ता है. ऐसी मिलीभगत के चलते अभी कुछ ही अर्सा पहले दिल्ली में भी यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का आठ सौ करोड़ रुपये का ऋण घोटाला उजागर हो चुका है. डूबे हुए या डुबाए गए कर्जों की वजह से बैंक का अस्तित्व ख़तरे में पड़ा और इससे बचने के लिए बैंक की अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक अर्चना भार्गव इस्तीफ़ा देकर चलती बनीं. दिल्ली ऋण घोटाले में भी वही तौर-तरीका अख्तियार किया गया था, जो लखनऊ या कोलकाता में अपनाया गया था. दिल्ली में तक़रीबन डेढ़ सौ अकाउंट्स को 800 करोड़ रुपये की लाइन ऑफ क्रेडिट मंजूर की गई और खाताधारकों के माल की जांच किए बगैर उनके बिल को डिस्काउंट किया गया. दिल्ली की एक ही ब्रांच में इन खातों पर लगभग 300 करोड़ रुपये का ऋण बकाया पाया गया. इस तरह आठ सौ करोड़ रुपये के ऋण फर्मों की वित्तीय सच्चाई जांचे बगैर बांट दिए गए. यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया किंग फिशर एयरलाइंस के विजय माल्या एवं तीन अन्य निदेशकों को ऋण लेकर जान-बूझकर फरार घोषित करने वाला पहला बैंक है. वह इसलिए, क्योंकि किंग फिशर एयरलाइंस को दिया गया करोड़ों रुपये का ऋण खुद में एक घोटाला है, जिसकी निष्पक्षता से जांच हो जाए, तो शायद यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया बंद हो जाएगा. पश्‍चिम बंगाल के सारधा चिटफंड घोटाले में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का भी नाम आ रहा है. सारधा कंपनी को बैंक ने करोड़ों रुपये का ऋण दे रखा है. जिस एविएशन कंपनी को हेलिकॉप्टर के लिए बैंक द्वारा ऋण दिए जाने की बात सामने आ रही है, उसके भी सारधा चिटफंड मामले से लिंक हैं. यह भी बताया जा रहा है कि उसी एविएशन कंपनी के विमान चुनाव प्रचार अभियान में ममता बनर्जी के काम आते रहे हैं. वैसे, एलकेमिस्ट नामक कंपनी के चार्टर्ड विमानों का इस्तेमाल करने में ममता बनर्जी का नाम सामने आ चुका है. सारधा चिटफंड मामले से एलकेमिस्ट के भी जुड़े होने की ख़बरें हैं. एलकेमिस्ट कंपनी के मालिक केडी सिंह हैं, जो तृणमूल कांग्रेस के सांसद भी हैं. एलकेमिस्ट कंपनी और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया से ऋण लेकर फरार हुई एविएशन कंपनी के बीच कोई सूत्र जुड़ते हैं कि नहीं, यह पता लगाना तो केंद्रीय खुफिया एजेंसी का काम है. बहरहाल, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की कोलकाता के सॉल्ट लेक स्थित शाखा में रात के ढाई बजे सारधा चिटफंड कंपनी के मालिक के 13 लॉकर किसके आदेश पर खुलवाए गए थे, यह रहस्य आज तक बना हुआ है. हालांकि, जो लोग जानकारियां रखते हैं, उन्हें देर रात को लॉकर खोले जाने का रहस्य पता है…


कई और भी धंधे हैं इस राह में…

सहारा समूह की कंपनी सहारा फाइनेंस यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ज़रिये कॉल मनी और नोटिस मनी का धंधा भी करती रही है. कॉल मनी के धंधे से हज़ारों करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन एक ही दिन में हो जाता है. कॉल मनी के धंधे की प्रक्रिया जानते चलें. मुद्रा बाज़ार मुख्यत: बैंक और प्राथमिक डीलर (पीडीएस) जैसी संस्थाओं के बीच धन उधार देने और उधार लेने की प्रक्रिया को सुलभ बनाता है. बैंक और पीडीएस अपनी निधियों की स्थिति के असंतुलन को दूर करने के लिए रात भर के लिए अथवा अल्प अवधि के लिए उधार लेते और देते हैं. यह उधार लेना और देना ग़ैर-प्रतिभूत आधार पर होता है. एक दिन के लिए निधियां उधार लेने अथवा देने को कॉल मनी कहा जाता है. जब दो दिन से 14 दिन के बीच की अवधि के लिए धन उधार लिया अथवा दिया जाता है, तो उसे नोटिस मनी कहा जाता है. 14 दिन से अधिक की अवधि के लिए निधियां उधार लेने या देने को टर्म मनी कहा जाता है. यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ज़रिये सहारा फाइनेंस कॉल मनी का बड़ा धंधा करता रहा है. यूबीआई सूत्रों का ही कहना है कि सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय के बहनोई अशोक रॉय चौधरी यूबीआई के कर्मचारी रहे हैं, इसलिए सहारा से बैंक की काफी नज़दीकियां हैं. ऋण घोटाले में खुद को फंसता देखकर स्वैच्छिक अवकाश लेकर परिदृश्य से गुम हो जाने वाली यूबीआई की चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक अर्चना भार्गव के भी सहारा प्रबंधन से मधुर रिश्ते रहे हैं. इस नज़दीकी रिश्ते के कारण ही यूबीआई के शीर्ष अधिकारी भी अपने बायोडाटा में सहारा के लिए काम करने का विशेष जिक्र करते हैं.


 

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