नमामि गंगे : सरकार गंगा की पवित्रता और प्रवाह के प्रति कटिबद्ध नहीं, गंगा पर सत्ता का रवैया बेढंगा

मां गंगा की दुर्दशा से व्यथित स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद 22 जून से निरंतर उपवास पर हैं और उनका उपवास तोड़ने के लिए लिखे गए पत्र में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी झूठ का सहारा ले रहे हैं. यह पत्र गंगा की अविरलता और निर्मलता की कटिबद्धता पर सीधा सवाल खड़ा करता है. दरअसल, स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने उत्तरकाशी से 24 फरवरी 2018 को एक खुला पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लिखा था, जिसमें उन्होंने उलाहना देते हुए लिखा कि ‘2014 के लोकसभा चुनाव तक तुम मां गंगा के समझदार, लाडले और मां समर्पित बेटा होने की बात करते थे, पर चुनाव जीतने के बाद अब तुम मां के ही कुछ लालची और विलासिता प्रिय बेटे-बेटियों के समूह में फंस गए हो.

उनकी विलासिता के साधन जुटाने के लिए कभी जल मार्ग, तो कभी ऊर्जा की आवश्यकता पूर्ति का हल निकालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन उन्हें मां गंगा के स्वास्थ्य का जरा सा भी ध्यान नहीं है.’ उन्होंने पत्र में आगे लिखा ‘अग्रज होने तथा विद्या-बुद्धि में भी बड़ा होने और मां गंगा के स्वास्थ्य-सुख-प्रसन्नता के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के लिए तैयार होने के कारण मैं मां गंगा से सम्बन्धित विषयों पर समझाने तथा निर्देश देने का हक़ रखता हूं.

उसी हक़ से मैं निम्न अपेक्षाएं कर रहा हूं. उन्होंने अपने पत्र के जरिए त्रिपथा मां गंगा की अलकनन्दा बाहु को छेदन करने वाली विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना तथा मन्दाकिनी बाहु को छेदन करने वाली फाटा-ब्यूंग, सिगोली-भटवारी परियोजनाओं पर सभी निर्माण कार्य तत्काल बन्द करने की मांग की. साथ ही यह भी कहा कि ये निर्माण कार्य तब तक बन्द रहें, जब तक इन मुद्दों पर संसद में विस्तृत चर्चा न हो. उन्होंने गंगा संरक्षण के लिए सुझाव देने हेतु दो वर्ष पूर्व गठित की गई न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय समिति के द्वारा प्रस्तावित गंगा संरक्षण विधेयक को शीघ्रातिशीघ्र पारित कर लागू करने की भी मांग की.

इसके अलावा उन्होंने एक गंगा-भक्त परिषद् के गठन की मांग की, जिसमें सरकारी और गैर-सरकारी दोनों प्रकार के व्यक्ति सम्मलित हों. इस परिषद् में शामिल होने वाला प्रत्येक सदस्य यह शपथ ले कि वह कुछ भी सोचने, कहने और करते समय गंगा जी के हितों का ध्यान रखेगा. उन्होंने मांग की कि गंगा जी के विषय में किसी भी प्रकार का निर्माण या विकास कार्य गंगा-संरक्षण विधेयक के अन्तर्गत स्वीकार्य होने के साथ-साथ उसके लिए गंगा-भक्त परिषद् की भी सहमति आवश्यक हो. पत्र के अंत में उन्होंने लिखा कि मैंने निर्णय किया है कि गंगा दशहरा के अवसर पर 22 जून तक उपरोक्त मांगें पूर्ण न होने की स्थिति में मैं आमरण उपवास करूंगा.

12 जून तक प्रधानमंत्री की तरफ से इस पत्र का जवाब न मिलने की स्थिति में स्वामी सदानन्द ने 13 जून को अपने पहले पत्र की याद दिलाते हुए एक दूसरा पत्र लिखा. प्रधानमंत्री की तरफ से दूसरे पत्र का भी कोई जवाब नहीं आया. इसके बाद स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद मात्र सदन कनखल जनपद हरिद्वार, उत्तराखंड में गंगा दशहरा के दिन 22 जून को उपवास पर बैठ गए. उनके उपवास पर बैठने के आठ दिन बाद सरकार की तन्द्रा टूटी और 30 जून को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने उन्हें एक पत्र लिखा.

पत्र में उन्होंने कहा कि गंगा की शुद्धिकरण को लेकर अनेक कदम उठाए जा रहे हैं. इससे सम्बन्धित कई परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं तथा बाकी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाई गई है. उन्होंने उदहारण देते हुए लिखा कि कानपुर में शीशामऊ नाले का 140 एमएलडी पानी गंगा में जाता था, जिसमें से 80 एमएलडी पानी डायवर्ट करके बिंगावन सीवरेज पानी शोधन पम्प पर भेजा जा रहा है. उन्होंने अनुरोध करते हुए लिखा कि आप अपना अनशन त्याग दें और प्रत्यक्ष रूप से अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराने का अनुरोध स्वीकार करें. नितिन गडकरी के बाद पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने भी 1 जुलाई को सानंद जी को पत्र लिखकर अनशन तोड़ने का अनुरोध किया.

मंत्री के दावे झूठे निकले

स्वामी सानंद को लिखे पत्र में नितिन गडकरी ने जो दावे किए, वो हकीकत से काफी दूर हैं. करीब दो वर्ष पूर्व बनाए गएबिनगांव एसटीपी सीवरेज पम्प की क्षमता 200 एमएलडी है. इस पम्प को जल निगम कानपुर संचालित करता है. इस पम्प में 65.09 एमएलडी क्षमता वाले गन्दे नाले, 11.44 क्षमता वाले हलवा नाले, 30.40 क्षमता वाले थर्मल पावर नाले तथा 1.00 एमएलडी क्षमता वाले आईसीआई नाले का पानी शोधन के लिए ले जाया जाता है. एक माह पूर्व ही गंगा में गिरने वाले 140 एमएलडी क्षमता वाले शीशामऊ नाले को डायवर्ट कर बिनगांव एसटीपी सीवरेज पम्प ले जाया गया है.

खास बात यह है कि शीशामऊ नाले के 80 एमएलडी सीवर पानी को डायवर्ट करने का दावा किया गया है, जो सच नहीं है. बिनगांव एसटीपी सीवरेज पम्प पर तैनात कर्मचारी के अनुसार, पूर्व में पम्प पर 72-80 एमएलडी पानी शोधन के लिए आता था. जब से शीशामऊ नाला डायवर्ट हुआ है, उसके बाद से लगभग 127-130 एमएलडी पानी पम्प पर शोधन के लिए आता है. इसकी पड़ताल के लिए हमने पम्प पर आने वाले सीवर पानी की रजिस्टर में दर्ज रीडिंग देखी, जो 1 जून से 10 जून तक इसप्रकार है.

1 जून- 92.69 एमएलडी, 2 जून- 108.83 एमएलडी, 3 जून- 96.15 एमएलडी, 4 जून- 96.15 एमएलडी, 5 जून- 89.73 एमएलडी, 6 जून- 96.67 एमएलडी, 7 जून-  83.32 एमएलडी, 8 जून- 95.29 एमएलडी, 9 जून- 105.02 एमएलडी, तथा 10 जून- 124.98 एमएलडी.

कर्मचारी ने यह भी बताया कि यहां 12 पम्प हैं, लेकिन इस समय 3 पम्प ही कार्य में लाए जा रहे हैं. विद्युत अवरोध होने पर पम्प काम नहीं करता है. ऐसे में आने वाला पानी बिना शोधन के ही आगे बढ़ जाता है. कर्मचारी के अनुसार, यहां 2 बड़े जेनरेटर यूं ही रखे हुए हैं, उनसे काम नहीं लिया जाता है.

कानपुर में गंगा नदी में 17 नालों का गन्दा सीवर पानी डाला जाता है. जिनकी क्षमता जल निगम प्रोजेक्ट मैनेजर घनश्याम दिवेदी अनुसार निम्न है- परमिया पुरवा नाला-3.5 एमएलडी, नबाबगंज नाला- 0.52, रानी घाट नाला- 0.43 एमएलडी, शीशामऊ नाला- 140.146 एमएलडी, टेफ्को नाला- 0.43 एमएलडी, परमट नाला- 1.78 एमएलडी, म्योर मिल नाला- 3.25 एमएलडी, पुलिस लाइन नाला- 0.79 एमएलडी, जेल नाला- 1.22 एमएलडी, गोला घाट नाला- 1.44 एमएलडी, गुप्तार घाट नाला- 2.38 एमएलडी, सत्तीचौरा नाला- 2.0 एमएलडी, दबकेश्वर नाला- 2.56 एमएलडी, शीतला बाज़ार नाला- 5.75 एमएलडी, बुढ़िया घाट नाला- 2.34 एमएलडी, तथा वाज़िदपुर नाला- 7.66 एमएलडी है.

पांडु नदी से होकर गंगा नदी में गिरने वाले 5 नालों की क्षमता:  गन्दा नाला- 65.09 एमएलडी, हलवा नाला  11.44, सीओडी नाला- 8.81, थर्मल पावर नाला- 30.00 एमएलडी, आईसीआई नाला- 1.00 एमएलडी कुंभ में भी गन्दी होती रहेगी गंगा अगले वर्ष इलाहाबाद में आयोजित होने वाले कुंभ से पहले गंगा को निर्मल करने की योजना को एक बड़ा झटका लगा है. कानपुर के छावनी क्षेत्र में पड़ने वाले नालों को बन्द करने को लेकर जल निगम पहले ही मना कर चुका है.

अब छावनी परिषद् ने भी आर्थिक बदहाली का हवाला देते हुए नालों को बन्द करने में असमर्थता जताई है. केंद्र तथा राज्य सरकार ने सम्बन्धित विभागों को कुंभ से पूर्व गंगा को अविरल और निर्मल करने के निर्देश दिए हैं. इसके तहत, गंगा में सीधे गिरने वाले नालों को बन्द करने की बात कही गई है. कानपुर में ऐसे 17 नाले हैं, जो सीधे गंगा में गिरते हैं और 5 नाले पांडू नदी के माध्यम से गंगा में आते हैं. इनमें से 7 नाले ऐसे हैं जो छावनी क्षेत्र से होकर गुजरते हैं.

वर्ष 2008 में जेएनएनयूआरएम के तहत 2000 एमएस की आरसीसी सीवर लाइन बिछाकर छावनी के सभी नालों को बन्द करने की योजना थी, लेकिन रक्षा मंत्रालय से अनुमति न मिलने के कारण इस योजना पर अमल नहीं हो सका. नवंबर 2016 में रक्षा मंत्रालय से अनुमति मिलने के बाद जब योजना की लागत की समीक्षा की गई और अनुमान लगाया गया तो उसकी लागत काफी बढ़ गई. व्यय में हुई इस वृद्धि पर राज्य सरकार का निर्णय आना अभी बाकी है. कुंभ को लेकर हुए आदेश के बाद जल निगम ने छावनी क्षेत्र में आने वाले नालों पर काम करने से इन्कार कर दिया है.

जल निगम महाप्रबंधक आर के अग्रवाल का कहना है कि छावनी क्षेत्र में आने वाले नालों को बन्द करने की जिम्मेदारी छावनी परिषद् की है, जबकि छावनी परिषद् सीईओ हरेंद्र सिंह का कहना है कि कार्य तो जल निगम का ही है, फिर भी डीपीआर बनाने के आदेश दिए गए हैं, लेकिन आर्थिक बदहाली के चलते नालों को बन्द करना संभव नहीं होगा. छावनी क्षेत्र के प्रमुख नालों में,गोलाघाट नाला, सत्तीचौरा नाला, मस्कर घाट नाला, संजय नगर नाला तथा डबकेश्वर नाला प्रमुख हैं.

गंगा में ज़हर घोल रहीं डाइंग इकाइयां   

फर्रुखाबाद, कानपुर तथा उन्नाव की नौ डाइंग इकाइयां गंगा में अपना जहर घोल रहीं हैं. यह खुलासा हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी की एक जांच में हुआ है. इसकी रिपोर्ट केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड को भेजी गई है. केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने कंसल्टेंसी रिजल्ट में एचबीटीयू तथा बीएचयू समेत कई तकनिकी विश्वविद्यालयों को नामित किया है. एचबीटीयू को फर्रुखाबाद, कानपुर तथा उन्नाव क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसे 63 डाइंग इकाइयों की रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया था. इसमें औद्योगिक प्रक्रिया इन्फ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट, बॉयलर, तथा विद्युत क्षमता शामिल था. विशेषज्ञों ने इकाइयों पर शोध करने के बाद पाया है कि नौ इकाइयां मानकों पर खरी नहीं हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, इकाइयों में ईटीपी की क्षमता मानक के विपरीत है. डिस्चार्ज वाटर के लिए जो पैरामीटर सरकार ने तय किए हैं, उससे कहीं ज्यादा डिस्चार्ज वाटर पैरामीटर इनमें पाया गया है.

कानपुर जाजमऊ – गंगाजल में नए जीव

हरिद्वार से वाराणसी के बीच हुए सर्वे में कानपुर स्थित जाजमऊ के सिद्धनाथ घाट के पास गंगा में एक नए प्रकार का सफ़ेद रंग का जीव मिला है. यह जीव बिना किसी उपकरण की सहायता से देखा जा सकता है. खास बात यह है कि जिस जगह ये जीव मिले हैं, वहां घुलित ऑक्सीजन की मात्रा तीन मिलीग्राम से भी कम है. उसके बावजूद ये जीव जीवित हैं. यह खुलासा छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के प्रो़फेसर्स की टीम द्वारा गंगाजल के सैम्पल की जांच के बाद हुआ है. विश्वविद्यालय की यह टीम इसरो के लिए यह जांच कर रही है.

इस शोध का विषय यह है कि यह नया जीव गंगाजल में कैसे आया और यह मानव जीवन के लिए कितना खतरनाक है. गंगा के पानी में बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर तमाम कवायत चल रही हैं. माना जा रहा है कि यह जीव टेनरियों के पानी के कारण उत्पन्न हुआ है. हरिद्वार से वाराणसी तक इसरो तथा सीजेएमयू के सर्वे चौकाने वाले हैं. इसरो रिमोट सेन्सिंग सेटेलाइट से पानी की गुणवत्ता की रिपोर्ट लेता है.

इसके लिए वह फिजिक्स बेस्ड रेडियेशन ट्रांसफर मॉडल और सेमी एनालिटिकल रिग्रेशंस का तरीका अपना रहा है. कानपुर में पानी कम होने के कारण दो सैम्पल और नहीं लिए जा सके हैं. इसरो भी सैटेलाइट के जरिए गंगा की रिवर इमेज की कलर कोडिंग कर रहा है. आठ वर्ष पूर्व शुरू हुआ यह सर्वे कानपुर में अप्रैल 2016 में शुरू हुआ. इस कार्य में सीजेएमयू के प्रो़फेसर्स की टीम मदद कर रही है. दो वर्ष में पांच सैम्पल के प्रोजेक्ट में से अभी तक तीन सैम्पल लिए जा चुके हैं.

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