19-khg-11मांकात्यायनी के लिए दूध की नदियां बहाने वाले भक्तों के खून से बागमती नदी लाल हो गई, लेकिन शासक-प्रशासक आज तक लापरवाह बना है. मां कात्यायनी के भक्तों के लिए आज भी मौत की पगडंडी लांघकर अराधना करना मजबूरी बनी हुई है. प्रत्येक सोमवार, बुधवार तथा शुक्रवार को आयोजित होने वाले मेले में इस पगडंडी को लांघकर पहुंचने वाले भक्त सरकार को कोसते नजर आते हैं. ऐसा नहीं है कि खगड़िया-सहरसा जिले की सीमा के समीप  प्रवाहित होने वाली बागमती नदी के किनारे अवस्थित ऐतिहासिक मां कात्यायनी शक्तिपीठ तक पहुंच पथ बनाने के सवाल पर आंदोलन नहीं हुए. श्रद्धालुओं की मौत का मंजर सामने आने के पूर्व कोसी इलाका कई बार उबला और कई बार स्थानीय सांसद के साथ-साथ विधायकों ने भी मां कात्यायनी शक्तिपीठ को पर्यटक स्थान बनाने के वादे किए. लेकिन जनप्रतिनिधियों के वे वादे ही क्या जो पूरे हो जाएं. तीन वर्ष पूर्व घटित रेल हादसे ने सरकार के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया. रेल हादसे में मौत के शिकार हुए श्रद्धालुओं को शहीद मानकर कोसीवासी हर साल शहादत दिवस मनाते हैं और वादाखिलाफी करने वाले राजनेताओं को जमकर कोसते भी हैं. इसके बावजूद शासक-प्रशासक के कानों पर जूं तक नहीं रेंगा. 19 अगस्त 2013 को धमारा रेल हादसे में 28 श्रद्धालुओं की मौत के बाद लोगों ने आक्रोश में राज्यरानी एक्सप्रेस व सहरसा-समस्तीपुर पैंसेजर ट्रेन के साथ-साथ धमारा स्टेशन को भी आग के हवाले कर दिया था.   कई दिनों तक घटना के विरोध में जन अंदोलन चलता रहा. लाष की राजनीति करने वालों ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. जनांदोलन के दौरान नेताओं द्वारा किए गए वादों से ऐसा लगा कि मां कात्यायनी शक्तिपीठ तक सड़क मार्ग बनाने की दशकों पुरानी मांग पूरी हो जाएगी. इसके बावजूद

अभी तक सड़क मार्ग का निर्माण नहीं होना राजनेताओं के कथनी व करनी में जमीन आसमान का फर्क प्रमाणित कर रहा है. श्रद्धालुओं की शहादत से  न किसी स्थानीय जनप्रतिनिधि का कोई सरोकार दिखता है और न ही शासन-प्रशासन का. इतना ही नहीं रेल हादसे के बाद घड़ियाली आंसू बहाने वालों द्वारा की गई घोषणा के अनुरूप न ही धमारा स्टेशन का स्वरूप बदला और न ही मां कात्यायनी शक्तिपीठ का कायाकल्प ही हो सका. रेल हादसे के बाद धमारा स्टेशन के स्वरूप में थोड़ी-बहुत तब्दीली कर दी गई. लेकिन इस हादसे से अधिकारियों ने कोई सबक नहीं लिया. धमारा स्टेशन पर फुट ओवरब्रिज खड़े कर लिए गए हैं और ट्रेनों के आने-जाने से संबंधित उद्घोषणाएं भी होने लगी हैं. मां कात्यायनी के भक्तों का राह आसान करने की सरकारी घोषणा महज छलावा क्यों साबित होती है, यह तो नौकरशाह व राजनेता ही जानें, लेकिन इतना तय है कि अगर ऐतिहासिक शक्तिपीठ मां कात्यायनी मंदिर तक सड़क मार्ग नहीं बना तो कोई भयंकर हादसा हो सकता है. सड़क मार्ग नहीं होने से पुराना पड़ चुका रेल पुल ही भक्तों के आवागमन का एकमात्र साधन है. रेल पटरियों को लांघकर मंदिर तक पहुंचना भक्तों के लिए किसी आफत से कम नहीं है. इन परिस्थितियों में अगर किसी रेल हादसे में श्रद्धालुओं की मौत हुई तो कोसी एक बार फिर सुलग उठेगा.

19 अगस्त 2013 को सोमवार के दिन बागमती नदी के किनारे अवस्थित मां कात्यायनी शक्तिपीठ मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही थी. धमारा स्टेशन पर सहरसा-समस्तीपुर पैसेंजर ट्रेन के पहुंचते ही श्रद्धालुओं का एक कारवां मां कात्यायनी मंदिर की ओर बढ़ा. तभी अचानक सहरसा से पटना जाने वाली राज्यरानी एक्सप्रेस आ गई और श्रद्धालुओं को गाजर-मूली की तरह रौंद दिया. धमारा स्टेशन पर गाड़ियों के आने-जाने के संबंध में कोई उद्घोषणा नहीं की जाती थी. ट्रेन पर सवार यात्रियों के साथ-साथ प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा शोर मचाए जाने पर जब तक इमरजेंसी ब्रेक लगाकर राज्यरानी एक्सप्रेस को रोका जाता तब तक दर्जनों लाशें  बिछ चुकी थीं. जहां कभी श्रद्धालु दूध की नदियां बहाते थे, वहीं उस दिन वहां भक्तों की खून की नदियां बह रही थीं. श्रद्धालुओं के मौत की खबर मिलते ही इलाके में कोहराम मच गया. अपने-अपने रिश्तेदारों की खोज में लोग वहां पहुंचने लगे. हादसे के बाद  कोई भी सरकारी पदाधिकारी घटनास्थल के आस-पास फटकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. मौके पर भारी पुलिस बल पहुंचने के बाद ही जिला प्रशासन व रेल अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे, लेकिन तब तक कई घरों का चिराग बुझ चुका था. लोगों का गुस्सा जनप्रतिनिधियों के खिलाफ भड़क गया क्योंकि कात्यायानी स्थान पहुंचने के लिए सड़क मार्ग बनाए जाने के सवाल पर वे कई बार ठगे जा चुके थे. खगड़िया के तत्कालीन सांसद दिनेश चन्द्र यादव के प्रति लोग खासे नाराज थे. आक्रोशित लोगों का कहना था कि उन्होंने कई बार लोगों से इस स्थल पर पुल बनाने का वादा किया था. माहौल शांत होने के बाद घटनास्थल पर पहुंची जदयू टीम के साथ-साथ अन्य दलों की टीम को भी स्थानीय लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा था. जदयू की टीम ने इस घटना को वीभत्स बताते हुए रेल मंत्रालय से मांग की थी कि सभी मृतकों के परिजनों को कम से कम दस लाख रुपए मुआवजा व मां कात्यायनी मंदिर तक पहुंच पथ बनाया जाए. इसके अलावा घायलों को एक लाख रुपए सहायता राशि देने की भी मांग की गई थी. उस दौरान सत्ता पक्ष व विपक्ष के नेताओं ने भी मां कात्यायनी मंदिर तक सड़क संपर्क बहाल करने का एलान किया था. सभी जख्मी श्रद्धालुओं को आर्थिक सहायता प्रदान कर मानवीय संवेदनाओं का परिचय तो दिया गया, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी न तो मां कात्यायनी शक्तिपीठ को पर्यटक स्थल बनाया जा सका और न ही सड़क मार्ग को लेकर कोई काम शुरू हुआ. इधर खगड़िया की जदयू विधायक पूनम देवी यादव ने 2013 में घटित रेल हादसे पर दु:ख व्यक्त करते हुए कहा कि मां कात्यायनी शक्तिपीठ तक सड़क मार्ग बनाने सहित अन्य समस्याओं के समाधान के लिए वे प्रयत्नशील हैं. बहरहाल, विधायक की बातों में कितना दम है, इसकी परख भी जल्द हो जाएगी.

बर्निंग ट्रेन बन गई थी राज्यरानी एक्सप्रेससहरसा-खगड़िया रेलखंड पर धमारा स्टेशन के समीप तीन वर्ष पूवर्र् घटित रेल हादसे को यादकर न केवल कोसीवासी सिहर उठते हैं बल्कि इस घटना पर राजनीति करने वाले नेताओं को भी आड़े हाथों लेने से नहीं चूकते. इतना ही नहीं, वे यह भी कहने से बाज नहीं आते कि इन नेताओं के प्रति आक्रोश के कारण ही भीड़ ने  राज्यरानी एक्सप्रेस की पंद्रह तथा सहरसा-समस्तीपुर पैसेंजर ट्रेन की सात बोगियों को आग के हवाले कर दिया था. स्थानीय लोगों का कहना है कि लोग इतने आक्रोश में थे कि अगर उनको नहीं रोका जाता तो वे ट्रेनों में सफर कर रहे लोगों को भी जिंदा जला देते. तथाकथित नेताओं के उकसावे पर उपद्रवी तत्व किसी भी कीमत पर प्रशासनिक पदाधिकारियों को घटनास्थल पर बुलाकर किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे. नेताओं के मंसूबे को भांपकर स्थानीय लोगों ने न केवल घटनास्थल की एक तरह से किलाबंदी कर दी बल्कि घायल श्रद्धालुओं का स्थानीय स्तर पर इलाज भी शुरू करा दिया. सड़क मार्ग नहीं रहने के कारण जख्मी यात्रियों को इलाज के लिए अन्यत्र ले जाना मुश्किल था. इन परिस्थितियों में इंजीनियर धर्मेन्द्र कुछ डॉक्टर साथियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे और स्टेशन के आस-पास पड़े बांस-बल्लों के सहारे जख्मी लोगों को आस-पास ले जाकर इलाज शुरू कर दिया, अन्यथा कई जख्मी श्रद्धालुओं को बचाना मुश्किल था.  प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक 19 अगस्त को मंदिर में जमा भीड़ मां की अराधना करने वालों की कम श्रद्धालुओं की मौत पर मातम मनाने वालों की अधिक थी. सुबह-सुबह लोग अभी अपनी दिनचर्या में जुटे भी नहीं थे कि मां कात्यायनी मंदिर के समीप चीख-पुकार मचने लगी. खेत-खलिहान के साथ-साथ आस-पास के लोग जब तक घटनास्थल पर पहुंचते तब तक लाशों को ढेर लग चुका था और दर्जनों लोग रेल पटरी के आस-पास तड़प रहे थे. राज्यरानी एक्सप्रेस धमारा स्टेशन से कुछ आगे बढ़कर रुकी भी नहीं थी कि लोगों ने ट्रेन के चालक एवं गार्ड को खींचकर बुरी तरह से पीटना शुरू कर दिया. गार्ड और चालक ने किसी तरह पानी में कूदकर जान बचाई. खगड़िया जिले के मानसी निवासी अभय कुमार उर्फ गुड्‌डू यादव कहते हैं कि आक्रोशित लोगों की भीड़ में कुछ उपद्रवी तत्व भी घुस गए थे, जिन्हें अगर स्थानीय लोगों ने नहीं रोका होता तो कोई बड़ा हादसा हो सकता था. साथ ही रेल को भी अरबों रुपए का नुकसान होता.

जहां दूध की नदियां बहती थी वहां बहती है अश्रुधारा- इस शक्तिपीठ में पहुंचकर लोगों के मन की मुराद पूरी हो जाती है.  मुराद पूरी होने से पहले और मुराद पूरी होने के बाद भक्तों द्वारा मां कात्यायनी पर दूध चढ़ाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि पशुओं के दूध का सेवन तब तक लोगों को नहीं करना चाहिए जब तक मां कात्यायनी को दूध न अर्पित कर दिया जाय. सदियों से चली आ रही परम्परा के कारण यहां सदैव दूध की नदियां बहती रहती हैं. बीते 19 अगस्त 2013 को श्रद्धालुओं की भीड़ इसी परम्परा के निर्वहन के लिए मां कात्यायनी स्थान पर उमड़ी थी. लेकिन इस दिन होनी को कुछ और मंजूर था. उस दिन श्रद्धालुओं के लिए राज्यरानी एक्सप्रेस काल बनकर पहुंची थी. युवाशक्ति के प्रदेश अध्यक्ष नागेन्द्र सिंह त्यागी, लोक गायक सुनील छैला बिहारी, सुभाष चन्द्र जोशी, जिप उपाध्यक्ष मिथिलेश यादव, सरसवा पैक्स अध्यक्ष मनोज यादव आदि कहते हैं कि श्रद्धालुओं की मौत के बाद भी सरकार कुम्भकर्णी निद्रा में सोयी है. अगर इस सड़क मार्ग का निर्माण अविलंब नहीं किया गया तो अगले वर्ष से चरणबद्ध आंदोलन का आगाज किया जाएगा. युवाशक्ति के प्रदेश अध्यक्ष  त्यागी स्पष्ट कहते हैं कि रेल हादसे के बाद स्थानीय लोगों द्वारा  आंदोलन किए जाने के बाद भी केन्द्र व राज्य सरकार बहरी क्यों बनी हुई है, यह तो समझ में नहीं आता. लेकिन मां कात्यायनी मंदिर को पर्यटक स्थल का दर्जा तथा फरकिया के विकास को लेकर जनता अब चुप बैठने वाली नहीं है. यह आंदोलन अब धीरे-धीरे जन आंदोलन का रूप धारण करता जा रहा है. जल्द ही केन्द्र तथा राज्य सरकार के विरोध में आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी. बहरहाल, मां कात्यायनी मंदिर के विकास का द्वार खुलेगा या श्रद्धालु मौत की पगडंडी लांघकर मां के दरबार पहुंचते रहेंगे, यह सवाल भविष्य के गर्भ में है. लेकिन घमारा में हुए रेल हादसे के बाद अब लोगों के मुंह से यह बात बरबस निकल जाती है कि  जहां बहती थी दूध की धारा वहां बहती है अश्रुधारा.

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