सिंगुर में टाटा मोटर्स को क़रीब एक हज़ार एकड़ ज़मीन देना पश्‍चिम बंगाल में दशकों पुरानी वाममोर्चा सरकार के पतन का कारण बना, वहीं तृणमूल कांग्रेस के लिए यह आंदोलन एक राजनीतिक संजीवनी. मुख्यमंत्री बनने के फ़ौरन बाद ममता बनर्जी ने विधानसभा में सिंगुर के किसानों को ज़मीन लौटाने के लिए पुनर्वास एवं विकास अधिनियम-2011 पारित कराया. इस विधेयक को टाटा मोटर्स ने कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी, क्योंकि सिंगुर में नैनो परियोजना कहीं न कहीं उसके लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है. हालांकि, यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. इस बीच सिंगुर भूमि विवाद को अदालत से बाहर सुलझाने की चर्चाएं भी हुईं, लेकिन राज्य सरकार और टाटा मोटर्स के रुख़ को देखते हुए, इसकी संभावना नगण्य हैं. लिहाज़ा सिंगुर के किसान, जिन्होंने भूमि अधिग्रहण का विरोध किया, आज वे स्वयं को ठगा महसूस कर रहे हैं. पिछले आठ वर्षों से हज़ारों किसान इसी उम्मीद के सहारे जी रहे हैं कि ममता बनर्जी ने ज़मीन वापस दिलाने का जो वादा किया था, उसे वह पूरा करेंगी.
Untitled-1टाटा समूह के रिटायर्ड चेयरमैन रतन टाटा टाटा पिछले दिनों एक समारोह में हिस्सा लेने कोलकाता आए थे. अपने संबोधन में उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम लिए बग़ैर कहा कि पश्‍चिम बंगाल सरकार की ग़लत नीतियों की वजह से सूबे में औद्योगिक विकास ठप पड़ गया है. उनकी इस प्रतिक्रिया से प्रदेश की सियासत फिर से गर्मा गई. इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए तृणमूल सरकार में वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि रतन टाटा पर अब उम्र का प्रभाव दिखने लगा है, क्योंकि इस तरह का ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान वही शख्स दे सकता है, जिसकी मति ख़राब हो गई हो.
टाटा समूह और तृणमूल सरकार के बीच हुई बयानबाज़ी से उन कयासों पर भी विराम लग गया है, जिनमें कहा जा रहा था कि सिंगुर भूमि विवाद का हल बातचीत से सुलझाया जा सकता है. पश्‍चिम बंगाल सरकार और टाटा समूह के बीच सुलह की चर्चा ने रतन टाटा के रिटायर होने और साइरस मिस्त्री द्वारा कंपनी की कमान संभालने के बाद ज़ोर पकड़ा था. इस विवाद में अगर सबसे ज़्यादा नुक़सान किसी का हो रहा है, तो वे सिंगुर के किसान हैं. यह बात सही है कि तत्कालीन माकपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य ने किसानों की मर्ज़ी जाने बग़ैर सिंगुर में टाटा मोटर्स के लिए ज़मीन अधिग्रहीत करने का आदेश भू-अर्जन विभाग को दे दिया. हुगली के ज़िलाधिकारी ने सिंगुर में पैदा हुए तनाव को नज़रअंदाज़ कर भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू कर दी. नतीजतन, स्थानीय ग्रामीणों का गुस्सा भड़क उठा और सिंगुर की धरती किसानों के खून से लाल हो गई. किसानों के इस आंदोलन में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने काफ़ी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. ममता ने सिंगुर मसले को राजनीतिक, आर्थिक और सैद्धांतिक लड़ाई में तब्दील कर वामदलों को कठघरे में खड़ा कर दिया. यही वजह थी कि मार्क्सवादी विचारक, बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता बुद्धदेव सरकार के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए. तृणमूल कांग्रेस को सिंगुर और नंदीग्राम में किसानों के पक्ष में खड़े होने का ज़बरदस्त फ़ायदा वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में मिला. मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी सिंगुर के किसानों को उनकी ज़मीन लौटाने का अपना वादा पूरा करने में जुट गईं. वहीं दूसरी ओर टाटा समूह किसी भी क़ीमत पर सिंगुर की 997.11 एकड़ ज़मीन छोड़ना नहीं चाहता है. टाटा मोटर्स का कहना है कि सिंगुर में किसानों के एक बड़े वर्ग ने अपनी मर्ज़ी से ज़मीन दी है. वैसे टाटा समूह का यह कहना सही है, क्योंकि सिंगुर में सैकड़ों एकड़ ज़मीन ऐसी है, जिसे किसानों की इच्छा से अधिग्रहीत किया गया है.
बहरहाल, पिछले आठ वर्षों से सिंगुर में यह भूमि विवाद चल रहा है. इस बीच पश्‍चिम बंगाल सरकार और टाटा समूह के बीच क़ानूनी लड़ाई कलकत्ता उच्च न्यायालय से आगे बढ़कर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुकी है. सिंगुर के जिन 2900 किसानों की 400 एकड़ ज़मीन जबरन ली गई थी, उसे वापस करने के लिए तृणमूल सरकार ने पश्‍चिम बंगाल विधानसभा में सिंगुर पुनर्वास एवं विकास अधिनियम 2011 पारित कराया. उसके बाद 21 जून, 2011 को राज्य सरकार ने सिंगुर की ज़मीन अपने क़ब्ज़े में ले ली थी. 22 जून, 2011 को टाटा मोटर्स ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में इस विधेयक को चुनौती दी. 28 सितंबर, 2011 को न्यायालय ने टाटा मोटर्स की याचिका ख़ारिज करते हुए दो महीने के भीतर सिंगुर से सारा सामान समेट लेने का आदेश पारित किया था.
टाटा मोटर्स ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सिंगुर की ज़मीन किसानों को लौटाने की सरकारी प्रक्रिया पर भी स्टे (स्थगनादेश) मांगा था, लेकिन न्यायालय ने यह स्थगनादेश देने से मना कर दिया था. लिहाज़ा टाटा मोटर्स ने 28 जून, 2011 को उच्चतम न्यायालय में याचिका दाख़िल कर ज़मीन लौटाने की सरकारी प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की. उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय से एक महीने के भीतर टाटा मोटर्स की याचिका पर ़फैसला सुनाने का आग्रह किया और तब तक सिंगुर की ज़मीन किसानों को न लौटाने का आदेश दिया था. उच्चतम न्यायालय के इस आदेश के बाद सिंगुर में किसानों को ज़मीन देने की प्रक्रिया एक महीने के लिए टल गई.
कलकत्ता उच्च न्यायालय के पहले आदेश को ममता बनर्जी अपनी जीत बता रही थीं, लेकिन टाटा मोटर्स ने इस निर्णय के ख़िलाफ़ पुन: एक याचिका कलकत्ता उच्च न्यायालय में दायर की. जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और जस्टिस मृणाल कांति चौधरी की खंडपीठ ने सिंगुर भूमि पुनर्वास और विकास अधिनियम-2011 को असंवैधानिक बताकर ख़ारिज कर दिया. इस ़फैसले से असंतुष्ट मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है. सिंगुर पर टाटा मोटर्स और पश्‍चिम बंगाल सरकार के अपने-अपने दावे हैं. ग़ौरतलब है कि पश्‍चिम बंगाल में पिछली वाममोर्चा सरकार ने सिंगुर में नैनो कार परियोजना के लिए 997.11 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण कर उसे टाटा मोटर्स को सौंपा था. सिंगुर में टाटा मोटर्स का काम जनवरी 2007 में शुरू हुआ था, लेकिन स्थानीय किसानों के विरोध की वजह से 3 अक्टूबर, 2008 को टाटा समूह ने सिंगुर स्थित अपने संयंत्र को स्थानांतरित कर गुजरात के सानंद में ले जाने का फैसला किया. सिंगुर भूमि विवाद के आठ वर्षों बाद भी यह कहा नहीं जा सकता कि किसके पक्ष में अंतिम ़फैसला होगा. तृणमूल कांग्रेस और टाटा मोटर्स की लड़ाई में जहां एक तरफ़ हज़ारों किसान पिस रहे हैं, वहीं सत्ता खो चुकी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी इतनी मज़बूत स्थिति में नहीं है कि वह इस मामले में कोई पहल कर सके. लिहाज़ा वह सिंगुर के पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है, लेकिन टाटा मोटर्स के प्रति उसका अनुराग आज भी क़ायम है.


सिंगुर विवाद पर एक नज़र

  • मई, 2006 को टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा और तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सिंगुर में नैनो परियोजना की घोषणा की.
  • टाटा मोटर्स के लिए वाममोर्चे की सरकार ने भूमि अधिग्रहण क़ानून 1894 के तहत 997.11 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की, जिसमें 404 एकड़ भूमि के अधिग्रहण का विरोध हो रहा है.
  • टाटा मोटर्स के लिए अधिग्रहीत की गई ज़मीनें बहुफ़सली हैं.
  • 25 सितंबर, 2006 को सिंगुर में भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ ममता बनर्जी ने आंदोलन शुरू किया.
  • 4 दिसंबर, 2006 को भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ ममता बनर्जी ने भूख हड़ताल शुरू की.
  • 29 दिसंबर, 2006 को प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति के अनुरोध पर ममता बनर्जी ने 25 दिनों की भूख हड़ताल समाप्त की.
  • 10 फरवरी, 2007 को सिंगुर में टाटा मोटर्स ने निर्माण कार्य शुरू किया.
  • 20 फरवरी, 2007 को ममता बनर्जी ने इसके ख़िलाफ़ पुन: आंदोलन शुरू किया.
  • 20 मई, 2007 को सिंगुर में पत्रकारों की पिटाई के ख़िलाफ़ कोलकाता में पत्रकार संघों का विरोध-प्रदर्शन
  • 10 जनवरी, 2008 को टाटा समूह के तत्कालीन अध्यक्ष रतन टाटा ने नई दिल्ली में आयोजित ऑटो एक्सपो में नैनो कार के मॉडल का अनावरण किया.
  • 11 जनवरी, 2008 को सिंगुर में फैली हिंसा में 20 लोग घायल हो गए.
  • 24 अगस्त, 2008 को आंदोलन बंद न होने से आहत टाटा मोटर्स ने सिंगुर छोड़ने की धमकी दी.
  • 3 अक्टूबर, 2008 को टाटा समूह ने सिंगुर स्थित अपने संयंत्र को स्थानांतरित कर गुजरात के सानंद में ले जाने का फैसला किया.
  • मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी ने पश्‍चिम बंगाल विधानसभा में सिंगुर भूमि पुनर्वास और विकास अधिनियम-2011 पारित किया.
  • 21 जून, 2011 को ममता सरकार ने सिंगुर की पूरी ज़मीन अपने क़ब्ज़े में ले ली.
  • इस विधेयक के ख़िलाफ़ टाटा मोटर्स ने 22 जून, 2011 को कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की.
  • 28 सितंबर, 2011 को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने याचिका ख़ारिज करते हुए टाटा मोटर्स को दो महीने के भीतर सिंगुर से सारा सामान हटा लेने का आदेश दिया.
  • इस फैसले के ख़िलाफ़ टाटा मोटर्स ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में पुन: एक याचिका दायर की. जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और जस्टिस मृणाल कांति चौधरी की खंडपीठ ने ममता सरकार द्वारा पारित सिंगुर भूमि पुनर्वास और विकास अधिनियम-2011 को 22 जून, 2011 को असंवैधानिक बताकर ख़ारिज कर दिया.
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय के इस ़फैसले से असंतुष्ट मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की.
  • वर्ष 2012 में उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस ़फैसले को जारी रखा, जिसमें पश्‍चिम बंगाल सरकार को यह आदेश दिया गया था कि फ़िलहाल मूल मालिकों को भूमि वापस न दी जाए.
  • 5 जनवरी, 2013 को ममता बनर्जी ने सिंगुर विवाद पर टाटा मोटर्स के साथ सुलह के संकेत दिए.
  • अगस्त 2014 में सिंगुर मसले पर टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा के एक बयान पर तृणमूल कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की. राज्य सरकार और टाटा समूह की बयानबाज़ी के बाद अदालत से बाहर सिंगुर मसले के समाधान की संभावनाएं फ़िलहाल धूमिल पड़ गई हैं.

 

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here