कोविड कारणों से रुकी है आस्था की राह

भोपाल। विश्वव्यापी महामारी कोरोना ने दुनियाभर को अपने असर में ले रखा है। ऐसे में आस्थाओं के रास्ते भी रुके हुए हैं। लगातार दूसरी बार भी हजयात्रा के रद्द होने के हालात लहरा चुके हैं। ऐसे में कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने पिछले दो साल से हज सफर पर जाने की तैयारी की थी, लेकिन हालात को देखते हुए उन्होंने अपने पास जमा रकम को जरूरतमंदों में वितरित कर दिया है। मंशा यह है कि खिदमत से खुदा मिलेगा।

दुनियाभर में फैले कोरोना संक्रमण के चलते पिछले साल हजयात्रा निरस्त कर दी गई थी। हर साल लाखों लोगों के मजमे वाले इस धार्मिक समागम वाले आयोजन में महज चंद हजार लोग ही शामिल किए गए थे। सउदी अरब सरकार द्वारा की जा रही तैयारियों के अनुसार इस साल भी हजयात्रा में महज 60 हजार लोगों को शामिल किया जाएगा। सउदी सरकार द्वारा पिछले माह जारी किए गए एक आदेश में दुनिया के करीब 20 देशों के सउदी प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। कोविड के अति संक्रमित इन देशों में भारत को भी शामिल किया गया है।

ताजा तैयारियों के मुताबिक जुलाई माह में होने वाली हजयात्रा की गुंजाइशें शून्य होती जा रही हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी आस्थाओं के लिए जमा की हुई रकम को महामारी काल में जरूरत से भर चुके लोगों में खर्च करने का बीड़ा उठाया है। वे अपने हज की रकम को लोगों के इलाज, दवाईयों और राशन आदि पर खर्च करने में जुट गए हैं।

राजगढ़ निवासी अहतेशाम सिद्दीकी की वालेदा का इंतकाल तीन माह पहले कोविड से हो गया था। उनकी मंशा थी कि रमजान माह में अपनी वालेदा के लिए उमराह (धार्मिक यात्रा) पर जाने का इरादा था। लेकिन हालात बदलते गए और इस सफर की गुंजाइशें खत्म हो गईं। उन्होंने अपने इस सफर के लिए जमा राशि को उन जरूरतमंदों तक पहुंचाने की नीयत की, जो कोरोना काल में आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। अहतेशाम ने पूरे रमजान माह गरीबों को राशन पहुंचाने से लेकर बीमारी की चपेट में आए लोगों को दवाएं और इलाज के साधन मुहैया कराने की पहल की।

इस दौरान उन्होंने कब्रस्तान में आने वाले लावारिस और गरीब लोगों के जनाजों को दफनाने के लिए भी मदद पहुंचाई तो श्मशाम में लकडिय़ों की जरूरत को भी पूरा करवाया। अहतेशाम कहते हैं कि वालेदा की मगफिरत (मोक्ष) के लिए दुआएं करने की नीयत थी, लेकिन इन दुआओं में अब सैंकड़ों लोगों के हाथ भी शामिल हो गए हैं। उनका मानना है कि किसी जरूरतमंद की मदद से बड़ी नेकी दुनिया में कुछ नहीं हो सकती।

राजधानी भोपाल के निवासी रफीक अहमद अपने वालिद हाजी मोहम्मद युनूस की विरासत संभाल रहे हैं। इब्राहिमपुरा में इत्र की दुकान संचालित करने वाले हाजी युनूस अपने जीवनकाल में तीन बार हजयात्रा पर गए। उनके इसी सिलसिले को रफीक भी पूरा करने की नीयत रखते हैं। पिछले साल हजयात्रा के लिए चयनित होने के बावजूद उनका हज पर जाने का अरमान पूरा नहीं हो पाया। इस साल फिर वही हालात बने हुए हैं। इसके चलते उन्होंने अपने सफर की राशि को गरीब और जरूरतमंदों के इलाज में खर्च करने का मन बनाया।

बिना किसी प्रचार के गोपनीय तरीके से वे लोगों तक मदद पहुंचा रहे हैं। रफीक का कहना है कि वालिद साहब आसमान से इस नीयत को भी देख रहे होंगे और वे इस बात से संतुष्ट भी होंगे कि सिर्फ सफर, कुछ रस्मों और दुआओं से बढ़कर खिदमत का पुण्य ज्यादा है। रफीक कहते हैं कि जिंदगी रहेगी तो हजयात्रा बाद में भी की जा सकती है, लेकिन फिलहाल जो हालात हैं, उसमें लोगों की मदद की जरूरत ज्यादा है। वे कहते हैं कि अल्लाह उनके इस जज्बे को कुबूल करेगा और इसका सवाब उनके मरहूम वालिद को पहुंचाएगा।

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