देश का हृदय प्रदेश कहलाने वाले मध्य प्रदेश पर इन दिनों हर खास-ओ-आम की नज़र टिकी हुई है. वजह यह कि इस राज्य में हुए व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है. पचास से ज़्यादा लोगों के प्राणों की आहुति लेने वाले व्यापमं घोटाले की कथा अनंत है. सीबीआई जांच किस निष्कर्ष पर पहुंचेगी, इसका अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता. लेकिन, इस घोटाले को सीबीआई के घाट तक पहुंचाने वाले व्हिसिल ब्लोअर्स, सोशल एक्टिविस्ट्‌स और सूचना के सिपाहियों ने किस हद तक जान की बाजी लगाकर काम किया, किन-किन चुनौतियों ने उनका रास्ता रोका, उसी को इस बार अपनी कवर स्टोरी का विषय बनाया है चौथी दुनिया ने. जानिए व्यापमं की पूरी कहानी, इन्हीं व्हिसिल ब्लोअर्स की ज़ुबानी… 

जनता को सुप्रीम कोर्ट से बहुत उम्मीद है -सिद्धार्थ वरदराजन

vyapam-scamयह बात पिछले दो-तीन सालों से चल रही है कि हिंदुस्तान में जो व्हिसिल ब्लोअर हैं, उन्हें महफूज रखने के लिए क़ानूनी प्रावधान होना बहुत ज़रूरी है. व्यापमं की मिसाल सबके सामने है, जिसमें 46 लोगों का इंतकाल हुआ. 46 में से 46 यानी सारे मामले रहस्यमय तो शायद नहीं हैं, लेकिन बहुत सारी मिसालें मीडिया में आ चुकी हैं, जहां पर वाकई ऐसा लगता है कि लोगों का कत्ल हुआ.

कत्ल के बाद कवरअप हुआ और जिस तरह से सियासी दबाव सब पर पड़ा है, उससे मुझे लगता है कि इस बाबत एक सख्त क़ानून लागू करने के लिए कोर्ट का इसमें इन्वॉल्व होना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि जब गुनाह के साथ सियासतदां और सत्ताधारी नेताओं की मिलीभगत होती है, तो आम नागरिक कचहरी के दरवाजे पर दस्तक देता है. न स़िर्फ व्यापमं, बल्कि सारे हिंदुस्तान में जो घोटाले हैं, उनकी ठीक से जांच नहीं हो पाएगी. दूसरी बात यह कि व्यापमं बहुत बड़े पैमाने पर पब्लिक-प्राइवेट स्कैम की एक मिसाल है.

अहिल्याबाई कॉलेज या बिहार में जो हुआ, वह अपनी जगह निंदनीय हैै, निंदा करनी चाहिए. लेकिन, व्यापमं में जो हुआ, पब्लिक-प्राइवेट शिक्षा के बाज़ारीकरण का जो सिलसिला हिंदुस्तान में चला, उसके लिए साजिश रचाई गई सियासतदां, ब्यूरोके्रट्‌स और पुलिस के साथ मिलकर. यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि कहीं न कहीं इसमें ज्यूडिशियरी या लीगल लोग भी शामिल हैं, कम से कम उनका हाथ कहीं न कहीं नज़र आता है. इस देश में स्पेक्ट्रम भी बेचा जाता है, थोक के भाव. कोयला भी बेचा गया, शिक्षा भी बेची गई और मेडिकल शिक्षा भी.

अगर इस देश में पिछले 60-65 सालों से तालीम की इतनी किल्लत है, शिक्षा का इतना अभाव है, तो उसकी वजह क्या है? वजह यह है कि शिक्षण संस्थाओं को स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से जो पैसा दिया जा रहा है, उसे वहां अच्छी से अच्छी सुविधाएं जुटाने में खर्च नहीं किया जा रहा है. क्यों नहीं किया जा रहा है? सियासतदां की वरीयता कहीं और है.

सरकारी तिजोरी खाली है, तो उसकी वजह यह भी है कि बहुत सारी चीजों, जिनसे सरकारी रेवेन्यू (पैसा) बनाया जा सकता था, को या तो मुफ्त या फिर बहुत कम दामों में उद्योगपतियों को बेचा गया. अगर हम व्यापमं की बात करें, तो एक पूरा ढांचा ही सामने नज़र आता है. व्यापमं बहुत सारी चीजों से जुड़ा हुआ है, एक्जामिनेशंस और कई चीजें. लेकिन, यहां ऐसे लोगों को डॉक्टर बनाया जा रहा है, जो एकदम काबिल नहीं हैं और ये लोग आगे जाकर लोगों की हत्या करेंगे. लेकिन, ऐसा स़िर्फ मध्य प्रदेश में नहीं हो रहा है.

आपको याद होगा, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अंदर जो स्कैम निकला और केतन देसाई के ़िखला़फ जिस तरह कोर्ट ने कार्रवाई चलाने की बात की, उस पर उन्हें इस्ती़फा देना पड़ा. लेकिन क्या कहीं मेडिकल काउंसिल में पारदर्शिता है, क्या हिंदुस्तान में मेडिकल एजुकेशन सिस्टम सही सलामत है? मुझे यकीन नहीं आता. और, इसमें हर पार्टी के लोग शामिल हैं, सड़े-गले सिस्टम को बचाने के लिए, करप्ट सिस्टम को बचाने के लिए, करप्ट लोगों को बचाने के लिए.

व्यापमं स्कैम से पहले मीडिया में मोदीगेट खूब चला. मोदीगेट और व्यापमं में कॉमन चीज क्या है? कॉमन चीज यह है कि नेता और क्रिकेट का मिश्रण, नेता और शिक्षा का मिश्रण. सियासतदां का इन्वॉल्वमेंट इन चीजों में मुझे लगता है कि कहीं न कहीं घोटाले की जड़ बन चुका है. आने वाले दिनों में अगर हिंदुुस्तान इन चीजों से अपने आपको मुक्त कराना चाहता है, तो तमाम जो हिंदुस्तान के नेता हैं, उनसे हमें हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए कि भाई, आप सियासत तक अपना काम सीमित रखें, क्रिकेट में मत जाइए, शिक्षा में मत जाइए, स्वास्थ्य में मत जाइए.

जो भी नुक़सान आपको करना है, एक क्षेत्र में करें, उसी दायरे में रहिए. चौथी बात यह कि इंवेस्टिगेशन करेगा कौन हिंदुस्तान में? मेरे ज़ेहन में यह सवाल उठा कि हिंदुस्तान एक ऐसा मुल्क है कि अगर कोई बात छिपानी हो, तो आप कमीशन या कमेटी का गठन कर दें, उसे स्थापित कर दें. और, हमारे देश में कोई ऐसी खास जगह है, जहां से जजेज को चुन-चुन कर निकाला जाता है. कभी नानावती के नाम से, कभी रंगनाथ मिश्र के नाम से या लिब्रहान के नाम से, जो 10-12 या 15-20 साल लगाएंगे, लेकिन सच आपके सामने कभी पेश नहीं करेंगे.

अगर हिंदुस्तान इन घोटालों का ़खात्मा करना चाहता है, तो कम से कम यह जो खास जगह है, जहां से जजेज का चयन होता है, वह जगह प्लीज हम बंद कर दें. रही सीबीआई की बात, तो मैं भी उम्मीद करता हूं, प्रार्थना करता हूं कि सीबीआई इस जांच (व्यापमं) को सही-सलामत ठीक तरीके से चलाए, लेकिन सीबीआई की हालत क्या है, वह सभी लोग जानते हैं.

हम रहस्यमय स्थितियों में हुई मौतों की बात कर रहे हैं. गुजरात में एक महिला कौशर बी का कत्ल हुआ, उनके शौहर सोहराबुद्दीन का कत्ल हुआ, उनके दोस्त तुलसीराम प्रजापति का कत्ल हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इन तीनों कत्ल की जांच ठीक तरीके से सीबीआई करे. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हुई, चार्जशीट वगैरह दाखिल हुई, लेकिन पिछले साल दिसंबर में एक प्रमुख आरोपी को मुक़दमे से पहले ही केस से डिस्चार्ज कर दिया गया.

चलिए यह सब होता है, लेकिन हिंदुस्तान की क्रिमिनल हिस्ट्री या क्रिमिनल ज्यूरिडिक्शन में शायद कभी ऐसा नहीं हुआ कि जिस सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तफ्तीश की, केस फाइल किया और जिसके बारे में हम लोग सही कहा करते थे कि यह पिंजरे के अंदर बंद तोता है, तो उस तोते ने आज तक अपील नहीं की और अमित शाह के साथ-साथ सात अन्य लोग भी डिस्चार्ज हो गए. वह केस कहां जाएगा, किस मुकाम तक पहुंचेगा, यह कहना बहुत मुश्किल है, लेकिन मुझे लगता है कि वह इंसाफ की दिशा में नहीं जा रहा है.

एक और मिसाल. रोहिणी सालियान नामक एक सरकारी वकील हैं. उन्होंने अ़खबारों में, टेलीविजन में बयान दिया है कि उन पर दबाव पड़ रहा है कि वह कुछ लोगों के ़िखला़फ, जिन पर दहशतगर्दी का इल्जाम है, म़ुकदमा सही तरीके से न चलाएं. उन्होंने न स़िर्फ आरोप लगाया है, बल्कि हाल में उन्होंने कहा कि वह वरिष्ठ वकील हैं, वह ऐसे आरोप यूं ही नहीं लगातीं, उनके पास सुबूत भी हैं. मैं इंतजार कर रहा हूं कि इस देश का सुप्रीम कोर्ट सुओ-मोटो एक्शन ले कि एक वरिष्ठ वकील सरकार पर ऐसा गंभीर आरोप लगा रही है, इसे इंवेस्टिगेट किया जाए.

अगर सुप्रीम कोर्ट यह तय करे कि सीबीआई वाकई में सरकार के दबाव में काम करती है, अगर सुप्रीम कोर्ट यह तय करे कि व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई उसकी देखरेख या नियंत्रण में करे और सिविल सोसायटी, मीडिया का दबाव बना रहे, तो हो सकता है कि तमाम बाधाओं के बावजूद जांच अपने सही अंजाम तक पहुंचे. सुबूत तो पहले ही नष्ट किए जा चुके हैं, लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट यह समझ ले कि देश की जनता देख रही है, देश की जनता की उम्मीद उससे जुड़ी है, तो हो सकता है कि तमाम जो लोग इस घोटाले में शामिल रहे हैं, उन्हें अपने किए की सजा मिले.

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