pic11कुलपति जीएन काज़ी ने वर्ष 2010 में जामिया हमदर्द प्रशासन को अंधेरे में रखते हुए दिल्ली के जंगपुरा एक्सटेंशन स्थित एससीएस फार्मा रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड के मालिक अल्ताफ़ लाल से गुप्त रूप से जामिया हमदर्द की दो एकड़ ज़मीन उनके सुपुर्द करने की बात पक्की कर ली. उसके बाद जीएन काज़ी ने जामिया हमदर्द के तत्कालीन रजिस्ट्रार नौशाद आलम से कहा कि वह इस बाबत एक दस्तावेज़ तैयार करें, ताकि ज़मीन उक्त कंपनी को दी जा सके. नौशाद आलम चूंकि एक सरकारी कर्मचारी थे और सचिवालय से डेपुटेशन पर हमदर्द के रजिस्ट्रार बने थे. वह क़ानूनी जटिलताएं अच्छी तरह जानते थे. नौशाद आलम जानते थे कि लीज (पट्टा) पर ली गई ज़मीन न तो किसी को बेची जा सकती है और न आगे किसी को लीज़ पर दी जा सकती है. लिहाज़ा उन्होंने उक्त कंपनी को ज़मीन देने के लिए दस्तावेज़ रजिस्ट्रार के बजाय कुलपति के नाम से बनाया. इस पर जीएन काज़ी आगबबूला हो गए और उन्होंने नौशाद आलम से कहा कि वह दस्तावेज़ रजिस्ट्रार के नाम से बनाएं या फिर यूनिवर्सिटी छोड़कर चले जाएं. नौशाद आलम ने यह ग़लत काम करने के बजाय जामिया हमदर्द छोड़ देने को वरीयता दी. हालांकि उन्हें इस वजह से जीएन काज़ी से अपमानित भी होना पड़ा. चौथी दुनिया के पास नौशाद आलम द्वारा तैयार किया गया दस्तावेज़ मौजूद है, जिस पर कंपनी की ओर से अल्ताफ़ लाल का नाम और तारीख़ 5 दिसंबर, 2010 दर्ज है. इस दस्तावेज़ में लिखा है कि जामिया हमदर्द एससीएस फार्मा रिचर्स एंड डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड को कैंपस की दो एकड़ ज़मीन पर लैबारेटरी बिल्डिंग बनाने की अनुमति देगी. कंपनी उस ज़मीन पर प्रयोगशाला की इमारत बनाने के बाद अगले 30 वर्षों तक उसे मैनेज और ऑपरेट करेगी तथा फिर 30 वर्षों के बाद बिना किसी शर्त के उसे अगले 20 वर्षों तक अपने पास रखेगी. मतलब यह कि जामिया हमदर्द को 50 वर्षों तक उस दो एकड़ ज़मीन और प्रयोगशाला से कोई मतलब नहीं रहेगा, बल्कि एससीएस फार्मा एंड रिसर्च डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड उसे केवल अपने कारोबार के लिए प्रयोग करेगी.

संयोग से यह दस्तावेज़ तैयार होने के एक दिन बाद यानी छह दिसंबर, 2010 को जामिया हमदर्द की कार्यकारिणी (ईसी) की बैठक थी, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन कुलाधिपति सैयद हामिद कर रहे थे. किसी तरह यह बात उनके कानों तक पहुंच गई और उन्होंने बैठक के दौरान ही कुलपति जीएन काज़ी से सवाल कर दिया कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? जीएन काज़ी ने वहीं बैठे-बैठे पूरी प्लानिंग बदल दी और झूठ बोला कि वह उक्त कंपनी को प्रयोगशाला बनाने के लिए एक इमारत की केवल दूसरी एवं तीसरी मंजिल किराये पर दे रहे हैं, दो एकड़ ज़मीन नहीं. बैठक के बाद जीएन काज़ी ने एमएसडी वेलकम ट्रस्ट हिलमैन कंपनी के साथ नया एग्रीमेंट तैयार कराया, जो 31 दिसंबर, 2010 को फाइनल हुआ. उस पर हिलमैन कंपनी की ओर से एस विश्वनाथन, पूजा मलिक एवं मुकेश अग्रवाल के हस्ताक्षर हैं, जबकि जामिया हमदर्द की ओर से वीके कक्कड़, एमएच ज़ाहिदी एवं प्रोफेसर एसके जैन के हस्ताक्षर हैं. इस एग्रीमेंट की ज़ुबान पूरी तरह बदली हुई है और अब इसमें साफ़-साफ़ लिखा है कि हिलमैन प्रयोगशाला का मकसद नए वैक्सीन तैयार करने के अलावा वैक्सीन डेवलपमेंट एंड ईवेलुएशन से जुड़े ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों को प्रशिक्षण देना है. लिहाज़ा, जामिया हमदर्द की ओर से हिलमैन कंपनी को नैनो टेक्नोलॉजी बिल्डिंग की दूसरी एवं तीसरी मंजिल और उसकी छत प्रयोगशाला बनाने के लिए दी गई, जो अब भी वहां मौजूद है और वैक्सीन से संबंधित रिसर्च व डेवलपमेंट के काम में लगी हुई है. आप अगर हिलमैन कंपनी की वेबसाइट पर जाएंगे, तो देखेंगे कि उसने भारत में अपने कॉरपोरेट कार्यालय के पते के रूप में द्वितीय मंजिल, नैनो टेक्नोलॉजी बिल्डिंग, जामिया हमदर्द, नई दिल्ली लिख रखा है. यानी जामिया हमदर्द ही वह जगह है, जहां से भारत में उक्त कंपनी वैक्सीन बनाने का अपना कारोबार चला रही है. यह कंपनी अमेरिका और ब्रिटेन की दो दवा निर्माता कंपनियों द्वारा संयुक्त रूप से 2009 में स्थापित की गई थी.

ई-गवर्नेंस के नाम पर क़ानून से खिलवाड़

जामिया हमदर्द का कुलपति बनते ही डॉ. जीएन काज़ी ने यूनिवर्सिटी में ई-गवर्नेंस प्रोग्राम शुरू करने के लिए अंग्रेज़ी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के एक अप्रैल, 2009 के अंक में विज्ञापन प्रकाशित कराकर कोटेशन मंगवाया, जिसके जवाब में पांच कंपनियों ने रुचि दिखाई. उनके नाम हैं, व्याम टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड, एमजीआरएम नेट लिमिटेड, वीरमति सॉफ्टवेयर एंड टेली कम्युनिकेशंस लिमिटेड, मस्तीक लिमिटेड और स्कोर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड. हैरानी की बात यह है कि पांच मई, 2009 को बोली लगाने के दौरान केवल टेक्निकल बिड की बुनियाद पर ़फैसला एमजीआरएम नेट लिमिटेड के हक़ में सुना दिया गया, जबकि कमर्शियल बिड्‌स खोले ही नहीं गए. बाद में एमजीआरएम लिमिटेड को ही कमर्शियल बिड्‌स खोलने की अनुमति दी गई और उसे बाकी चार कंपनियों के मुक़ाबले अधिक बेहतर बताया गया.

सच्चाई यह है कि एमजीआरएम को जिस समय जामिया हमदर्द में ई-गवर्नेंस का काम सौंपा जा रहा था, उस समय कंपनी आर्थिक संकट की शिकार थी और उसके ख़िला़फ अदालत में कई मामले भी विचाराधीन थे. स्वयं एमजीआरएम ने दिल्ली हाईकोर्ट में 30 अप्रैल, 2009 को याचिका संख्या 164/2008 के तहत स्वीकार किया था कि उसके पास निरंतर आय का कोई स्रोत नहीं है और उसने अपना कमर्शियल ऑपरेशन अभी शुरू नहीं किया है. इसके बावजूद प्रोफेसर एसके जैन, रजिस्ट्रार नौशाद आलम, डॉ. एस रईसुद्दीन, वित्त अधिकारी वीके कक्कड़, प्रो. एम अफशार आलम, प्रो. अभिमन्यु आचार्या, आज़म खां और क्यूपी राणा की कमेटी ने एमजीआरएम प्राइवेट लिमिटेड को 50 करोड़ रुपये की लगात से जामिया हमदर्द में ई-गवर्नेंस का काम शुरू करने की अनुमति दे दी.

उसके बाद एमजीआरएम ने जामिया हमदर्द में अंतिम वर्ष के छात्रों के परिचय-पत्र बनाने का काम शुरू किया, यह जानते हुए कि उक्त छात्र कुछ माह बाद जामिया से चले जाएंगे. हुआ भी यही. अधिकतर छात्र परिचय-पत्र बनने से पहले ही अपनी पढ़ाई पूरी करके जामिया से चले गए. इस तरह एमजीआरएम को बिना कुछ खर्च किए लाभ हुआ. बाद में भी एमजीआरएम ने कई वर्षों तक कोई काम नहीं किया, जबकि उसे जामिया हमदर्द की ओर से बराबर पैसा मिलता रहा. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जामिया हमदर्द ने एमजीआरएम नेट लिमिटेड को आर्थिक संकट से उबारने के लिए काम सौंपा और उसके लिए सभी नियमों की अनदेखी की गई.

मेडिकल कॉलेज की आड़ में पैसों की लूट

जामिया हमदर्द अपने कैंपस में हमदर्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (एचआईएमएसआर) स्थापित करना चाहता था. उसके लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से स्वीकृति लेने के लिए जामिया हमदर्द के वर्तमान कुलपति डॉ. जीएन काज़ी ने विज्ञापन, चयन समिति के गठन और नियुक्ति के लिए बनाए गए किसी भी नियम पर अमल किए बिना डॉ. केबी सूद को एचआईएमएसआर का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया, हालांकि, डॉ. सूद के पास पहले से मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का कोई भी अनुभव नहीं था. मैनेजिंग डायरेक्टर बनने के बाद डॉ. सूद ने मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के लिए आवश्यक वस्तुएं बाज़ार से ज़्यादा क़ीमत पर खरीदीं और जामिया हमदर्द की पहले से मौजूद इमारतों की नए सिरे से मरम्मत व सजावट का काम शुरू किया, जिस पर लगभग 30 करोड़ रुपये खर्च हुए. डॉ. जीएन काज़ी ने इस सिलसिले में सिविल वर्क्स के लिए डॉ. को 20 जनवरी, 2011 को 6,31,436.12 रुपये का भुगतान किया, जिसका बिल नंबर-एनओयूएस/एकाउंट/एच-71/133/2009/बिल/004 है.  इसी तरह चिकित्सा संबंधी उपकरणों की खरीद के लिए केबी सूद को 20 अगस्त, 2011 को 8,26,695.43 रुपये का भुगतान किया गया, जिसका बिल नंबर- एनओयूएस/एकाउंट/एच-71/133/2009/बिल/007 है.

डॉ. सूद के बारे में यह बात मशहूर थी कि वह हर सामान की खरीद पर दो प्रतिशत कमीशन लेते थे. यही नहीं, मेडिकल कॉलेज और अस्पताल स्थापित करने में डॉ. सूद ने ज़रूरत से अधिक देर की, जिससे काफी आर्थिक नुक़सान हुआ और एक दिन उन्होंने यह काम बीच में छोड़कर जामिया हमदर्द को अलविदा कह दिया. जामिया के स्टॉफ ने डॉ. सूद पर बहुत-से आरोप लगाए और उनके ख़िला़फ जांच की मांग की, लेकिन कुलपति जीएन काज़ी और जामिया प्रशासन ने सूद को आसानी से वहां से निकलने का मौक़ा दिया. यहां उल्लेखनीय है कि जामिया हमदर्द में कुलपति जीएन काज़ी जो मेडिकल कॉलेज बनाना चाहते थे, उसे वर्ष 2011-12 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने स्वीकृति ही नहीं दी थी. इसके बावजूद मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के नाम पर उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर पैसों की लूट मचाई.

गर्ल्स हॉस्टल बना भ्रष्टाचार का शिकार 

लड़कियों के लिए छात्रावास बनाने का ठेका 2011 में अहलूवालिया कंस्ट्रक्शन समूह को 1500 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर पर दिया गया. 2012 में उसे 1850 रुपये प्रति वर्गमीटर कर दिया गया. इसी तरह 2012 में 25 करोड़ 87 लाख 21 हज़ार 649 रुपये की लागत से एक यूनानी अस्पताल की इमारत का प्रोजेक्ट शुरू होना था. जामिया हमदर्द कंस्ट्रक्शन कमेटी, जिसके चेयरमैन जामिया हमदर्द के पूर्व चांसलर स्वर्गीय सैयद हामिद के बड़े बेटे समर हामिद हैं, ने 16 मई, 2012 को तय किया कि यूनानी अस्पताल की इमारत बनाने के लिए अलग से क़ीमत तय की जाएगी, लेकिन उसके बावजूद यूनानी अस्पताल बनाने का प्रोजेक्ट भी 1850 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से अहलूवालिया कंस्ट्रक्शन समूह को दे दिया गया. हैरानी की बात यह है कि यूनानी अस्पताल की इमारत बनाने के लिए जामिया हमदर्द की ओर से न तो किसी अख़बार में कोई विज्ञापन दिया गया और न कोई टेंडर तलब किया गया, जो कि स्वयं जामिया हमदर्द के सिद्धांतों, यूनिवर्सिटी को लेकर बनाए गए सरकारी क़ानूनों, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन एवं केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देशों का खुला उल्लंघन है.

जामिया स्टॉफ और छात्रों के पैसों का दुरुपयोग

जामिया हमदर्द अपने स्टॉफ की भविष्य निधि (जीपीएफ एवं सीपीएफ) पीएफ कमिशनर के पास जमा नहीं करता और न उसने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की स्वीकृति से उसके विकल्प के रूप में कोई ट्रस्ट बनाया है. इसका मतलब तो यह हुआ कि जामिया हमदर्द प्रशासन अपने स्टॉफ से जमा किए गए पैसे अपने विभिन्न बजट के तहत प्रयोग करता है, जो कि भारत सरकार के नियमों का उल्लंघन है. स्वयं जामिया के जन सूचना अधिकारी एस मसरूर एच जैदी ने तीन जुलाई, 2012 को एक आरटीआई-जेएच/एलसी/आरटी-334/2012  के जवाब में स्वीकार किया है कि जामिया हमदर्द के पीएफ की राशि पब्लिक सेक्टर और भारत सरकार के बैंकों में निवेश की जा रही है. यही नहीं, जामिया हमदर्द में प्रवेश लेने वाले छात्रों से जो फीस ली जाती है, उसे जामिया के बैंक खाते के बजाय किसी और खाते में जमा कराया जाता है, जो नियम विरुद्ध है. स्वयं जामिया हमदर्द के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन के सेक्शन 35 (2) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यूनिवर्सिटी के बैंक खाते केवल जामिया हमदर्द के नाम पर होंगे, लेकिन 2008 में डिपार्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में बीए (प्रथम वर्ष) में प्रवेश लेने वाले एक भारतीय और एक विदेशी, दोनों ही छात्रों से विभाग के अध्यक्ष शीबू खां ने कहा कि वे 35,000 रुपये मैनेजमेंट एक्टिविटीज नेटवर्क (एमएएन) के खाते में जमा करें.

उल्लेखनीय है कि जामिया हमदर्द ने 2003 में बैंक ऑफ इंडिया की नई दिल्ली स्थित नेहरू प्लेस शाखा में मैनेजमेंट एक्टिविटीज नेटवर्क के नाम से एक खाता खुलवाया था, जिसका नंबर है, 601812100114345. हैरानी की बात तो यह है कि इस खाते का अब तक न तो कोई इनकम व एक्सपेंडिचर रिकॉर्ड है और न इनकम टैक्स या ऑडिटिंग का. यही नहीं, इसी बैंक में मैनेजमेंट एक्टिविटीज नेटवर्क के एक लाख 55 हज़ार और पांच लाख रुपये के दो फिक्स्ड डिपोजिट खाते भी क्रमश: 2003 और 2005 में खोले गए. कुछ लोगों ने जब इस पर आपत्ति की, तो जामिया प्रशासन ने उसकी जांच कराने के बजाय दोनों खाते आनन-फानन बंद करा दिए. ग़लत तरीके से बैंक खाते खोलने का यह मामला केवल डिपार्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज तक सीमित नहीं है, बल्कि फैकल्टी ऑफ नर्सिंग, फैकल्टी ऑफ फॉर्मेसी और डिपार्टमेंट ऑफ कंप्यूटर साइंस द्वारा भी बैंकों में ऐसे खाते खोले गए, जिनसे जामिया हमदर्द के नियमों का उल्लंघन होता है.

फैकल्टी ऑफ नर्सिंग द्वारा बैंक ऑफ इंडिया में एसएनए यूनिट, फैकल्टी ऑफ नर्सिंग के नाम से एक खाता खुलवाया गया, जिसका खाता नंबर है, एसबी-11619. जामिया हमदर्द के वित्त अधिकारी विनोद कुमार कक्कड़ द्वारा 18 अगस्त, 2010 को उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार, एसएनए ट्रेंड नर्सिंग एसोसिएशन का ही एक हिस्सा है, जो 1989 से स्थापित है. इसके खाते की न तो ऑडिटिंग होती है और न इसकी वार्षिक आमदनी एवं व्यय संबंधी कोई बैलेंस शीट तैयार की जाती है. यही नहीं, कक्कड़ साहब यह भी बताते हैं कि जब एसएनए की पासबुक की जांच की गई, तो पता चला कि उसमें छात्रों से एसएनए फीस, यूनिफॉर्म एवं टीकाकरण के नाम पर वसूले गए पैसे जमा कराए गए, लेकिन उसके बदले छात्रों को रसीद नहीं दी गई. हालांकि, यूनिवर्सिटी के प्रोस्पेक्टस में इन चीजों का कोई उल्लेख नहीं है, फिर भी छात्रों से इस बाबत ग़लत तरीके से पैसे वसूले गए, जिन्हें जामिया हमदर्द के बैंक खाते के बजाय एसएनए यूनिट, फैकल्टी ऑफ नर्सिंग के बैंक ऑफ इंडिया के खाते में जमा कराया गया. इसी तरह फैकल्टी ऑफ फार्मेसी द्वारा वार्षिक उत्सव या अलग-अलग कार्यक्रमों के नाम से नए-नए बैंक खाते खोले जाते रहे.

अब देखना यह है कि इन तथ्यों के सार्वजनिक होने के बाद मुसलमानों पर क्या प्रभाव पड़ता है और उनमें से कोई जामिया हमदर्द को लुटेरों के हाथ से बचाने के लिए आगे आता है या नहीं. अगर अब भी कोई जागरूक नहीं होता है, तो यही समझा जाएगा कि मुसलमान अपनी ग़रीबी और निक्षरता के लिए स्वयं ज़िम्मेदार हैं. दूसरी ओर यह नरेंद्र मोदी के लिए भी एक बड़ा इम्तिहान है, जो हमेशा कहते हैं कि वह 125 करोड़ भारतीयों के प्रधानमंत्री हैं. अगर वह वाक़ई यह बात दिल की गहराइयों से कह रहे हैं, तो उन्हें भारतीय मुसलमानों की इस महान विरासत को भ्रष्ट लोगों के हाथों से आज़ाद कराने की पूरी कोशिश करनी चाहिए. वरना यही समझा जाएगा कि वह सबके प्रधानमंत्री तो हैं, लेकिन मुसलमानों के नहीं.

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