जनरल सिंह की यमन में मौजूदगी के चलते सैन्य बलों का हौसला बुलंद था. विदेश मंत्रालय, नौसेना, वायुसेना,  जहाजरानी, रेल मंत्रालय और राज्य सरकारों के बीच बेहतरीन सामंजस्य की बदौलत बड़ी सहजता के साथ 10 दिनों तक चले इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाया गया. एयर इंडिया ने ऑपरेशन में दो एयरबस-320 और एक बोइंग-777 विमान की तैनाती की थी. वहीं भारतीय सेना ने दो सी-17 ग्लोबमास्टर और वायुसेना ने सी-17 एस वायुयान तैनात किए थे.

kamyabi-ki-misaalअजीब विडंबना है कि जब यमन में भारत सरकार द्वारा बचाव अभियान चलाया जा रहा था, उस समय भारतीय मीडिया प्रेस्टीट्यूड और प्रॉस्टीट्यूड की बहस में उलझा हुआ था. दूसरी ओर, विदेशी मीडिया ने भारत के ऑपरेशन राहत को जगह दी और इसके अगुवा विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह की जमकर तारी़फ की. वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा, भारत ने बेहतरीन ढंग से बचाव कार्य की अगुवाई की और यमन में फंसे भारतीयों के अलावा 41 देशों के नागरिकों को भी बचाया. भारतीय दल द्वारा यमन से निकाले गए 960 विदेशी नागरिकों में मिस्र की 20 वर्षीय अलया गाबेर मोहम्मद भी शामिल हैं. उन्होंने खुद को यमन से निकालने के लिए भारतीय सेना का आभार व्यक्त किया. अलया गाबेर मोहम्मद ने कहा कि आज वह भगवान और भारतीय सेना की वजह से जीवित हैं. भारत ने अपने नागरिकों को बचाने के लिए जहाज भेजा, लेकिन उसने मानवीय निर्णय लेते हुए सभी देशों के नागरिकों को वहां से निकाला. भारत सरकार के इस निर्णय को इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा. 20 वर्षीय अलया यमन के एक होटल में काम करती थीं. उन्होंने यह बात अपनी फेसबुक वॉल पर लिखी. इसके बाद उनकी पोस्ट सोशल मीडिया में वायरल हो गई. मिस्र के अधिकांश अ़खबारों एवं समाचार चैनलों ने उनकी बातों को अपने यहां प्रमुुखता से जगह दी.
अब सबके मन में यह सवाल उठ रहा है कि आ़िखर मीडिया ने इस मसले को क्यों नहीं दिखाया? क्या देश का मीडिया केवल सरकार की कमियां दिखाने के लिए है? क्या उसकी यह ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह सरकार द्वारा किए गए अच्छे एवं साहसिक कार्यों की खबरें जनता तक पहुंचाए. लेकिन भारतीय मीडिया ने ऑपरेशन राहत में दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि उसे उसमें कुछ भी सनसनीखेज नज़र नहीं आया. ऐसा इसलिए, क्योंकि बचाए गए लोगों में से अधिकांश दक्षिण भारतीय ग़रीब, कामगार मुसलमान थे, जो रोजी-रोटी की तलाश में यमन तक पहुंच गए थे. मीडिया की नज़र में उनकी जान की कोई क़ीमत नहीं थी. बचाए जा रहे लोगों में न कोई धनाढ्य था और न मध्यम वर्ग का, जिनके लिए मीडिया पर तथाकथित सिविल सोसायटी के लोग आवाज़ उठाते. या फिर मीडिया जानबूझ कर यह खबर लोगों तक नहीं पहुंचाना चाहता था, क्योंकि यह नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल से भी कम के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि थी. सोशल मीडिया में लोग कह रहे थे कि यह निर्णायक नेतृत्व है. हमने दुनिया को दिखा दिया कि भारत में भी विश्वस्तरीय नेता और नेतृत्व है. लेकिन, मीडिया जनरल वीके सिंह के ट्‌वीट को लेकर बाल की खाल निकालने में उलझा रहा और लोगों का ध्यान मुद्दे से भटकाता रहा.
यमन में भारत ने अब तक का दूसरा सबसे बड़ा रेस्न्यू ऑपरेशन यानी ऑपरेशन राहत चलाकर दुनिया को सकते में डाल दिया और यह साबित किया कि गृहयुद्ध से जूझ रहे देश से लोगों को सफलतापूर्वक और सकुशल बचाकर लाया जा सकता है. हालांकि, यमन में भारत के अलावा सात अन्य देश, जिसमें चीन, रूस एवं पाकिस्तान आदि भी शामिल हैं, बचाव कार्य में लगे थे. अमेरिका, फ्रांस एवं जर्मनी जैसे देशों ने भारत से यमन में फंसे अपने नागरिकों को बचाने का आग्रह किया. जिन 41 देशों के 960 नागरिकों को भारतीय दल ने बचाया, वे सभी भारत की ओर बहुत आशा और विश्वास से देख रहे थे. भारत ने किसी को भी निराश नहीं किया. यहां सबसे अहम बात यह है कि अमेरिका सहित नाटो के सदस्य देशों को अपने नागरिकों को बचाने के लिए भारत की ओर देखना पड़ा. अमेरिकी सेना अभी भी इराक और अफगानिस्तान में मौजूद हैै. बावजूद इसके, वह यमन में फंसे अपने नागरिकों की मदद नहीं कर सकी और उन्हें वहां से बाहर निकालने में असमर्थ नज़र आई. ऐसे में इन सभी देशों ने विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह के नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन राहत की ओर रुख किया और अपने नागरिकों को वहां से बाहर निकालने का अनुरोध किया. अमेरिका ने यमन में फंसे अपने नागरिकों के लिए जारी की गई एडवाइजरी में सा़फ तौर पर कहा कि भारत सना से जिबूूती तक अमेरिकी नागरिकों को पहुंचाने में मदद करेगा. भारत यमन में फंसे भारतीयों और अन्य विदेशी नागरिकों को बचाने में सफल हुआ. इससे एक वर्ल्ड लीडर के रूप में भारत के कद में इजा़फा हुआ है, जिसका असर सीधे तौर पर भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के दावे पर पड़ेगा.
25 मार्च को यमन में हवाई हमले शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब के सुल्तान से फोन पर बात की और अपने नागरिकों को यमन से सुरक्षित वापस निकालने के लिए सहयोग मांगा. इसके बाद 31 मार्च को भारत सरकार ने विदेश राज्य मंत्री एवं पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह को अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए ऑपरेशन राहत की कमान देकर यमन भेजा. यह पहला मा़ैका था कि ऐसे ऑपरेशन की कमान किसी केंद्रीय मंत्री को सौंपी गई हो. जनरल सिंह ने 10 दिनों तक यमन में रहकर लोगों को वहां से सकुशल बाहर निकालने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. जनरल सिंह ने ऑपरेशन खत्म होने के बाद लौटकर बताया कि वहां कई तरह की समस्याएं सामने आईं. एक जगह किसी समस्या का समाधान हो जाता था, तो कहीं और समस्या खड़ी हो जाती थी. ऐसे में काम कर रही सभी एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर पाना बेहद जटिल था. सना के एयरपोर्ट पर हौती आतंकियों का कब्ज़ा था, लेकिन एयर कंट्रोल सऊदी अरब के नियंत्रण में था. भारत सरकार ने यमन से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए राजधानी सना में रोज़ाना हवाई जहाज उतारने के लिए अनुमति मांगी.
जनरल सिंह की यमन में मौजूदगी के चलते सैन्य बलों का हौसला बुलंद था. विदेश मंत्रालय, नौसेना, वायुसेना, जहाजरानी, रेल मंत्रालय और राज्य सरकारों के बीच बेहतरीन सामंजस्य की बदौलत बड़ी सहजता के साथ 10 दिनों तक चले इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाया गया. एयर इंडिया ने ऑपरेशन में दो एयरबस-320 और एक बोइंग-777 विमान की तैनाती की थी. वहीं भारतीय सेना ने दो सी-17 ग्लोबमास्टर और वायुसेना ने सी-17 एस वायुयान तैनात किए थे. यमन में सैनिक जहाजों को उतारने की अनुमति नहीं थी. इसलिए भारत ने इसके लिए अपने सी-17 ग्लोबमास्टर एयर क्राफ्ट का उपयोग किया, जिन पर गोलियों और छोटे हथियारों का असर नहीं होता है. उनकी मदद से हर दिन लोगों को सना से जिबूूती पहुंचाया गया, वहीं नौसेना ने भी लोगों को अदन से जिबूूती पहुंचाया, जहां से उन्हें भारत के लिए रवाना किया गया. नौसेना ने आईएनएस मुंबई, आईएनएस तर्कश, आईएनएस सुमित्रा जैसे जहाज ऑपरेशन में तैनात किए थे.
बचाव दल के लिए वहां काम कर रही एजेंसियों के साथ समन्वय बना पाना सबसे बड़ी परेशानी थी. एयरपोर्ट पर विद्रोहियों का कब्ज़ा था, लेकिन वहां के एयर स्पेस को सऊदी अरब कंट्रोल कर रहा था. ऐसे में एयरपोर्ट पर लैंड करना और तय समय सीमा के अंदर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को वहां से निकालना एक बड़ी समस्या थी. वहां भी लोग किसी एक जगह एकत्र नहीं थे. एक समय सीमा के अंदर ही स़िर्फ जा सकते थे और उसके बाद भारतीयों तक खबर पहुंचाना. जनरल वीके सिंह के वहां मौजूद रहने का सबसे बड़ा ़फायदा यह हुआ कि समस्याओं की सही समीक्षा करके उन पर त्वरित ़फैसला ले लिया गया. आ़िखरी दिन सना में एयरक्राफ्ट उतारने की अनुमति नहीं थी और वहां लोग फंसे हुए थे. ऐसे में जनरल सिंह को ़फैसला लेना था कि छह सौ लोगों को वहां से निकाला जाए या वापस लौट जाया जाए. उस दिन हवाई अड्डे पर और कोई नहीं बचा था. जो लोग बचे थे, उनमें 140 विदेशी नागरिक थे. ऐसे में लोगों को बचाने के लिए उन्होंने जोखिम लिया, जो जायज था.
राहत अभियान की निगरानी के लिए जनरल सिंह जिबूती में डेरा डाले रहे. पहले दो दिनों तक सऊदी अरब से सना जाने की अनुमति नहीं मिली. फिर सरकार ने उनसे वहां अपने सैन्य जहाज ले जाने की बात कही. इसके बाद जब जनरल वीके सिंह सना गए और उन्होंने यमन के अधिकारियों से बातचीत की, तो बताया गया कि एयरपोर्ट पर विद्रोहियों का कब्जा है. उन्हें यह नहीं मालूम कि जो जहाज वहां उतर रहा है, वह अमेरिका का है, भारत का है या सऊदी अरब का है. यदि वहां गोलीबारी होती है, तो आप क्या करेंगे? ऐसे में लोगों को वहां से निकालने के लिए सैन्य जहाजों की जगह एयर इंडिया के विमानों को सना ले जाया गया. भारत सरकार ने पहले से ही दो विमान ओमान में तैयार कर रखे थे, जिन्हें सना ले जाया गया और वहां से लोगों को जिबूती लाया गया. लोगों को वहां से निकालने में दूसरी सबसे बड़ी समस्या इमीग्रेशन की थी. यमन से वापस आते वक्त एक्जिट वीजा की ज़रूरत होती है, जो वहां की इमीग्रेशन अथॉरिटी जारी करती है. एक मामला तो ऐसा था कि एक शख्स वहां विजिट वीजा पर गए थे और छह साल ज़्यादा रुक गए. इमीग्रेशन अधिकरियों ने कहा कि वे उसे कैसे एक्जिट वीजा दे सकते हैं? ऐसे में उन अधिकारियों को मनाना पड़ा. भारतीय दूतावास और जनरल वीके सिंह को इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. इसके अलावा एक समस्या यह थी कि भारत सरकार द्वारा इस संबंध में जारी एडवाइजरी जनवरी में खत्म हो चुकी थी और लोग अंतिम समय तक हालात सुधरने का इंतजार करते रहे. जब हालात बेकाबू हो गए, तो लोग एक साथ बड़ी संख्या में यमन से बाहर निकलने के लिए तैयार हो गए. जबकि एक बार में सीमित संख्या में ही लोगों को बाहर निकाला जा सकता था. ऐसे में किसी तरह विमानों में क्षमता से अधिक लोगों को बैठाकर यमन से बाहर निकाला गया.
नब्बे के दशक में खाड़ी युद्ध के दौरान हुए बचाव कार्य और इस बचाव कार्य में एक बड़ा ़फर्क़ था. इराक द्वारा कुवैत पर हमला किए जाने के बाद अमेरिका जवाबी हमला करने की तैयारी कर रहा था. अमेरिकी हमले की आशंका के उस दौर में इराक में रह रहे दूसरे देशों के लोगों को निकलने में इराकी प्रशासन भी मदद कर रहा था, लेकिन यमन में सरकार और प्रशासन नामक कोई चीज नहीं बची थी. राष्ट्रपति हादी ने सऊदी अरब में शरण ले रखी है. ऑपरेशन राहत ने हमारी सेनाओं के शौर्य और कौशल के अलावा भारत की कूटनीतिक शक्ति भी रेखांकित की है. इससे एक बार फिर यह साबित हुआ है कि मध्य-पूर्व को लेकर हमारी तटस्थता की नीति बिल्कुल सही है और हमें इसी दिशा में चलते रहने की ज़रूरत है. सऊदी अरब से हमारे मधुर संबंध काम आए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां के शासक शाह सलमान से लगातार संपर्क में रहे. वहीं भारतीय खुफिया एजेंसियां अमेरिका और सऊदी अरब की खुफिया एजेंसियों की मदद से हर पल की जानकारी भारतीय टीम को देती रहीं, जिससे बिना किसी नुक़सान के यह ऑपरेशन सफल हो सका. भारत सरकार ने इराक में फंसे भारतीयों को निकालने में हुई परेशानियों से सबक लिया था. इस बार उसने सही वक्त पर सही फैसला लिया और एक केंद्रीय मंत्री को इस अभियान में लगाया, ताकि मा़ैके पर ही आकस्मिक फैसले लिए जा सकें. इसका फायदा भी सा़फ तौर पर नज़र आया. ऐसे मामलों को नौकरशाहों के भरोसे छोड़ देने से कई चीजें ऐन मा़ैके पर अटक जाती हैं. ऑपरेशन राहत को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने से दुनिया में भारत का कद बढ़ा है. आने वाले समय में यह भारत के वैश्विक शक्ति बनने की राह में एक बड़ा और महत्वपूर्ण क़दम साबित होगा.


कब, कैसे, क्या हुआ

  • 31 मार्च, 2015 को ऑपरेशन राहत प्रारंभ.
  • 09 अप्रैल को मिशन पूरा.
  • 5,600 लोग सुरक्षित निकाले गए.
  • 4,640 भारतीय, 960 विदेशी.
  • 41 अन्य देशों के नागरिक बचाए गए.
  • 2,900 लोग राजधानी सना से विमान द्वारा निकाले गए.
  • 2,700 लोग युद्धपोतों के ज़रिये बचाए गए, जिन्हें अदन, अल-हुदायदाह और अल-मुकल्ला नामक शहरों से निकाला गया.
  • 18 विशेष उड़ानों के ज़रिये ऑपरेशन को अंजाम दिया गया.
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