अगर हम छत्तीसगढ़ राज्य की बात करें तो यहां ऐसी महिलाओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जो अगले पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकतीं. राज्य में अगले पंचायती राज चुनाव में सरपंच पद के लिए आठवीं पास शैक्षिक योग्यता होने की बात चल रही है. अगर यह नियम पारित होता है तो निश्चित तौर पर आठवीं पास न होने वाली चुनाव की इच्छुक बहुत सी महिलाएं चुनाव लड़ने से वंचित रह जाएंगी. इनमें से कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो मौजूदा सरपंच हैं.

womenपंचायती राज चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण से एक ओर जहां स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी को बल मिला, वहीं अलग-अलग राज्यों में सरपंच व पंचायत सदस्यों के चुनाव के लिए प्रस्तावित व पारित योग्यता नियमों से स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी भी निश्चित तौर पर प्रभावित हुई है. सरपंच पद के लिए शैक्षिक योग्यता का नियम चुनाव में इच्छुक उम्मीदवार महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा बाधा बन रहा है. अलग-अलग राज्यों में सरपंच पद की उम्मीदवारी के लिए शैक्षिक योग्यता के अलग-अलग नियम हैं.

अगर हम छत्तीसगढ़ राज्य की बात करें तो यहां ऐसी महिलाओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जो अगले पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकतीं. राज्य में अगले पंचायती राज चुनाव में सरपंच पद के लिए आठवीं पास शैक्षिक योग्यता होने की बात चल रही है. अगर यह नियम पारित होता है तो निश्चित तौर पर आठवीं पास न होने वाली चुनाव की इच्छुक बहुत सी महिलाएं चुनाव लड़ने से वंचित रह जाएंगी. इनमें से कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो मौजूदा सरपंच हैं. इन्हीं में से एक नाम बलरामपुर-रामानुजगंज के राजपुर ब्लॉक की करजी पंचायत की सरपंच कमला कुजूर का भी आता है. उन्होंने  पांचवीं तक की शिक्षा प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के तहत हासिल की है.

सरपंच के तौर पर यह कमला का तीसरा सत्र है. इसके पहले वे दो सत्रों में सरपंच रह चुकी हैं. करजी पंचायत की सीट 1995-96 से ही महिला आरक्षित है. कमला ने 1995-96 में पहली बार गांव वालों के कहने पर सरपंच का चुनाव लड़ा व जीत हासिल की. 2004-2005 में कमला ने फिर सरपंच के पद पर चुनाव लड़ा व जीत हासिल की. लेकिन 2010 के चुनाव में सरपंच के पद पर कमला को हार का सामना करना पड़ा. 2015 के चुनाव में कमला ने फिर सरपंच के पद पर जीत दर्ज की. शायद अगले पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में कमला सरपंच के पद पर चुनाव नहीं लड़ सकेंगी, क्योंकि वे आठवीं पास नहीं हैं.

प्रमिला सिंह की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. प्रमिला सिंह सूरजपुर जिले के ब्लॉक सूरजपुर के लटोरी ग्राम पंचायत की सरपंच हैं. सरपंच के तौर पर यह उनका दूसरा कार्यकाल है. प्रमिला सिंह पहली बार 2004-05 के पंचायत चुनाव में सरपंच चुनी गई थीं. 2015 के पंचायत चुनाव में सीट महिला आरक्षित होने पर प्रमिला सिंह इस सीट से फिर उम्मीदवार बनीं और जीत हासिल की. प्रमिला सिंह ने प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से पांचवीं तक की शिक्षा हासिल की है. प्रमिला सिंह का परिवार भी अगली बार उन्हें सरपंच के पद पर खड़ा करना चाहता है. कमला की तरह प्रमिला भी शैक्षिक योग्यता न होने के चलते सरपंच का चुनाव नहीं लड़ पाएंगी.

रंजीता मुंडा भी अगले पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता का दंश झेल सकती हैं. रंजीता मुंडा सरगुजा जिले के अम्बिकापुर ब्लॉक के असोला ग्राम पंचायत की सरपंच हैं. पिछली बार छठी पास होने के बावजूद रंजीता पंचायत का चुनाव लड़ीं और जीतीं भी. रंजीता के गांव वाले एक सरपंच के तौर पर उन्हें पसंद भी करते हैं. वे अपने गांव में लोकप्रिय हैं, मगर अगले पंचायती राज चुनाव में सरपंच के लिए आठवीं पास होने की बात चल रही है.

यह नियम रंजीता जैसी बहुत सी महिलाओं को आठवीं पास शैक्षिक योग्यता न होने के चलते चुनाव लड़ने से रोक देगा. यह बात रंजीता को निराश करती है. वे कहती हैं कि शैक्षिक योग्यता की सीमा की वजह से शायद मैं और मेरी जैसी बहुत सी महिलाएं चुनाव में भाग नहीं ले पाएंगी. रंजीता का मानना है कि इस नियम में संशोधन करना चाहिए. इससे बहुत सी कम पढ़ी लिखी लेकिन योग्य महिलाएं पंचायत में आ सकेंगी और शायद फिर पंचायतों की सूरत भी बदल सकेगी.

कुछ ऐसी ही दास्तां वनस्पति सिंह की है. वनस्पति सिंह भी आठवीं पास शैक्षिक योग्यता के चलते शायद अगला पंचायत का चुनाव न लड़ सकें. वनस्पति सिंह की शैक्षिक योग्यता पांचवीं पास है. वनस्पति सिंह सूरजपुर जिलेे के सूरजपुर ब्लॉक के सोनवाही ग्राम पंचायत की सरपंच हैं. वनस्पति सिंह भी आठवीं पास शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकेंगी.

अगर हम राजस्थान का रुख करें तो वहां भी शैक्षिक योग्यता के नियम ने बहुत सी महिलाओं को सरपंच का चुनाव लड़ने से रोका है. यहां भी स्थिति कमोबेश छत्तीसगढ़ जैसी है, बस फर्क इतना है कि राजस्थान में सरपंच पद के लिए शैक्षिक योग्यता का नियम पारित है, जबकि छत्तीसगढ़ में इसको पारित करने की बात चल रही है. एक ऐसी ही महिला हैं गेली बाई. गेली बाई राजस्थान के सिरोही जिले के रेवदर ब्लॉक की पादर पंचायत की वार्ड पंच हैं. गेली बाई ने कक्षा तीसरी तक शिक्षा हासिल की है. पंच के पद पर सारा काम समझने के बाद अब वे सरपंच पद के लिए चुनाव में भाग लेनेे की इच्छुक हैं.

किन्तु ऐसे में एक पंच के तौर पर सफल होने के बाद भी शायद वे सरपंच न बन पाएं. क्योंकि वे चुनावों में भाग लेने के लिए शिक्षा की आवश्यक शर्त को पूरा नहीं करती हैं. राज्य में सरपंच पद की उम्मीदवारी के लिए आठवीं पास शैक्षिक योग्यता अनिवार्य है. आठवीं पास न होने की वजह से पंचायत को एक अनुभवी और परिश्रमी उम्मीदवार से वंचित होना पड़ेगा और गेली को अपने अधिकार से. गेली बाई पिछले एक दशक से सामाजिक कार्यों में रुचि लेकर काफी अच्छा काम कर रही हैं. न सिर्फ बाल विवाह, बालिका शिक्षा जैसे सामाजिक मुद्दों पर अपने समुदाय के लोगों की समझ को साफ करने में वे सक्रिय हैं, बल्कि अपने वार्ड की समस्याओं पर भी उनकी लगातार नजर रहती है. गेली बाई की गिनती ब्लॉक के सक्रिय पंचायत सदस्यों में होती है, जिन्होंने हमेशा से महिलाओं व बालिकाओं के हित के लिए कार्य किया है. गेली बाई ने साहस के साथ काम लेते हुए पादर और भटाणा पंचायत की सात अवैध शराब की दुकानों को बंद करा दिया था.

कमला देवी भी आठवीं पास न होने की वजह से 2015 के पंचायत के चुनाव में सरपंच के पद पर चुनाव नहीं लड़ सकीं. कमला सिरोही जिले के पिंडवाड़ा तहसील की बरजा पंचायत की पूर्व सरपंच हैं. 2005 में जब बरजा पंचायत में सरपंच की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हुई तो कमला ने सरपंच के पद पर चुनाव लड़ा व जीत हासिल की. कमला को इस बात का दुख है कि वे 2015 के चुनाव में भाग नहीं ले पाईं. उन्हें लगता है कि एक सत्र के अनुभव के बाद उनकी समझ पक्की हुई है.

उनका सपना अपने गांव को ‘स्मार्ट विलेज’ बनाना था. उनकी योजनाओं में यह काम उन्होंने अपने अगले सत्र के लिए निर्धारित कर रखा था. किन्तु पंचायत चुनावों में शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता ने न सिर्फ उनसे चुनावों में शामिल होने का अवसर छीना है बल्कि गांव के स्वरूप को बदलने की उनकी इच्छा को भी खामोश कर दिया है. कमला सिर्फ अकेली ऐसी महिला नहीं हैं, ऐसी बहुत सी महिलाएं राजस्थान के अनेक गांवों में मिल जाएंगी, जो शैक्षिक योग्यता न होने के चलते अब इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में अब कभी शामिल नहीं हो सकतीं.

राज्य में गेली बाई और कमला देवी ही ऐसी महिला नहीं हैं जो शैक्षिक योग्यता न होने की वजह से अगला सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकतीं. रमिया देवी भी शैक्षिक योग्यता के चलते अगली बार सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकतीं. रमिया देवी सिरोही जिले के पिंडवाड़ा तहसील की अचपुरा पंचायत की रहने वाली हैं. रमिया ने कक्षा पांच तक की शिक्षा मुक्त विद्यालय से हासिल की है. 2015 के चुनाव में अचपुरा पंचायत की सीट महिला सीट होने के बाद रमिया व उनके परिवार ने सोचा कि अब रमिया के पति की जगह रमिया को चुनाव में भाग लेने का अवसर दिया जाए. पर राजस्थान के पंचायत चुनावों की नियमावली के चलते वे इन चुनावों में भाग नहीं ले सकीं.

शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते रमिया को यह अवसर शायद अब कभी नहीं मिलेगा कि वे चुनाव में भाग लेकर गांव के विकास की दिशा में अपने सपनों को साकार कर सकें. हालांकि रमिया के लिए शायद यह पहला अवसर होगा, जब वह पंचायत की प्रधान बनने का सपना देख रही हैं. ग्रामीण औरतों की आंखों में यह सपना 73वें संविधान संशोधन के बाद आए आरक्षण से जागा है. औरतें अब घर से बाहर आकर गांव के काम-काज में जुड़ने का सपना देख रही थीं कि नई नियमावली इन सपनों पर पानी फेर रही है.

कमला कुजूर, प्रमिला सिंह, रंजीता मुंडा, वनस्पति सिंह, गेली बाई, कमला देवी ही ऐसी महिलाएं नहीं हैं, जो शैक्षिक योग्यता न होने की वजह से सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकतीं. छत्तीसगढ़ व राजस्थान की तरह देश के दूसरे राज्यों में भी ऐसी महिलाओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जो शैक्षिक योग्यता न होने के चलते अब कभी सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकेंगी. पंचायत चुनाव में आरक्षण से भले ही महिलाओं की भागीदारी को बल मिला, वहीं यह भी सच है कि नई नियमावली चुनाव में इच्छुक शैक्षिक योग्यता न रखने वाली बहुत सी महिलाओं के सपने पर पानी भी फेर रही है.

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