1मुंबई में आवास एक स्थायी समस्या है, यहां तक कि सरकारी अधिकारियों के लिए भी. राज्य सरकार के संशोधित नियमों के तहत वैसे बाबू, जिनका महाराष्ट्र में सरकारी कोटे के तहत अपना घर है, वे दूसरा घर नहीं ले सकते हैं. इस नए नियम के तहत मुंबई की मैत्री को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के लगभग 84 सदस्य अयोग्य ठहराए जाएंगे. इन अधिकारियों के लिए यह भले ही बुरी ख़बर हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे प्राथमिकता के आधार पर दूसरे अधिकारियों के लिए घर आवंटन का अवसर मिल जाएगा. सूत्रों के मुताबिक, इन फ्लैटों के दावेदारों में गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अमिताभ राजन, पुलिस ज्वाइंट कमिश्‍नर धनंजय कमलाकर, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त राजवर्धन सिन्हा और मुख्यमंत्री के सचिव विकास खड़गे भी अन्य लोगों में शामिल हैं. इसमें आश्‍चर्य की बात नहीं है, क्योंकि राज्य हाउसिंग बोर्ड के पास आवासों के आवंटन का विशेषाधिकार है. इससे यह उम्मीद बंधी है कि ये बाबू सौभाग्य से घर प्राप्त कर सकते हैं. ऐसा सौभाग्य आम मुंबई वालों के पास भला कहां है, जो महज सिर पर छत होने से ही अधिक खुश हो जाते हैं.
 
कार्रवाई की धीमी रफ्तार
2नौकरशाही का पहिया धीरे चलता है और यूपीए सरकार के दौरान यह और भी धीमा हो गया है. फिर भी मध्य प्रदेश के आईएएस अधिकारी दंपती अरविंद एवं टीनू जोशी का आय से अधिक संपत्ति का मामला सामने आने के चार साल बाद उनके ख़िलाफ़ अभियोग चलाने का रास्ता साफ़ हो गया. वर्ष 2010 में आयकर विभाग के छापे के बाद इन दोनों के घर से 3 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए थे, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैला दी थी. इस बरामदगी के बाद जोशी दंपती को निलंबित कर दिया गया था. हालांकि, अभी भी यह मामला अन्य मामलों की तरह कोर्ट में लंबे समय तक लटक सकता है, लेकिन एक बात सामने आई कि केंद्र सरकार ने उनकी बर्खास्तगी को मंजूरी दे दी और उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला शुरू करने की इजाजत भी. केंद्रीय सेवा के अधिकारियों के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार की अनुमति के बिना कोई मामला नहीं चलाया जा सकता है. खास तौर पर कार्मिक, जनशिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के अधिकारियों के ख़िलाफ़. अब जबकि यह स्पष्ट हो गया है, तो भ्रष्टाचार के मामले में अभियोग शुरू हो सकता है.
 
बंटवारे की समस्या
3आंध्र प्रदेश के बंटवारे की जटिल प्रक्रिया जारी है और केंद्र ने सीमांध्र और तेलंगाना के बीच कई विवादों को सुलझाने के लिए पूर्व शहरी विकास सचिव के शिवराम कृष्णा की अगुवाई में एक विशेषज्ञ समिति गठित की है, लेकिन यह समाधान निकालने के लिए बनाई गई अन्य समितियों में से एक ही है. केंद्र ने प्रदेश में आईएएस, आईपीएस एवं आईएफएस अधिकारियों की संख्या का निर्धारण करने के लिए 1965 बैच एवं आंध्र प्रदेश कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी आर कमलनाथन को नियुक्त किया है. इस पैनल में राज्य के मुख्य सचिव पी के मोहंती, गृह मंत्रालय के विशेष सचिव, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ फॉरेस्ट शामिल होंगे. साथ ही कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अतिरिक्त सचिव कार्यवाहक सदस्य सचिव के तौर पर शामिल होंगे. बाबुओं के बारे में जानकारी रखने वालों का कहना है कि यह मसला इतना आसान नहीं है. इसके अलावा, दोनों राज्यों में अधिकारियों की कमी की समस्या हल करना मुश्किल है. एक अखिल भारतीय सेवा अधिकारी कैडर की पसंद चाहते हैं, जबकि यह विकल्प आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत स्वीकृत नहीं है. अधिनियम में यह भी कहा गया है कि तेलंगाना को 42 फ़ीसद, तो आंध्र प्रदेश को 58 फ़ीसद आईएएस अधिकारी मिलेंगे. फिलहाल, आईएएस अधिकारियों की कुल संख्या 376 है. यहां अपनी पसंद के कैडर के लिए बाबुओं में अंतर्विरोध भी चल रहा है. देखिए, आगे-आगे क्या होता है.

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