सत्ता संभालते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार पुराने, बेकार और अप्रासंगिक हो चुके क़ानूनों में से रा़ेजाना एक क़ानून से जनता का पीछा छुड़ाएगी. दवा की खुराक की तरह पेश किए जाने वाले इस नुस्खे से आशा थी कि बहुत-से बेकार और अप्रासंगिक हो चुके कम से कम 300 क़ानूनों से जनता का पीछा बहुत जल्द छूट जाएगा, लेकिन हाल में चौथी दुनिया द्वारा विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग में दाखिल की गई आरटीआई के जवाब में जो तथ्य सामने आए हैं, उनके मुताबिक, इस दिशा में कोई पर्याप्त प्रगति होती नज़र नहीं आ रही है. चौथी दुनिया ने इस आरटीआई के ज़रिये यह जानने की कोशिश की कि अब तक सरकार ने कौन-कौन से क़ानून निरस्त किए हैं? लॉ कमीशन की रिपोट्‌र्स पर कोई कार्रवाई हुई है या नहीं? इस संबंध में क्या कोई बिल लोकसभा में पेश किया गया है?

इस आरटीआई के जवाब में कहा गया कि नई सरकार की तऱफ से अब तक कोई भी अधिनियम निरस्त नहीं हुआ है. हालांकि, लॉ कमीशन ने हालिया दिनों में अपनी चार रिपोट्‌र्स 248वीं, 249वीं, 250वीं और 251वीं पेश की हैं, जिनमें क्रमश: 72, 113, 74 और 30 बेकार और अप्रासंगिक हो चुके क़ानूनों (जिनमें कुछ राज्यों के क़ानून भी शामिल हैं) की पहचान करके उन्हें जल्द से जल्द निरस्त करने की सिफारिश की गई है. विधायी विभाग का कहना है कि उसने संबंधित मंत्रालयों-विभागों व राज्य सरकारों की राय और कार्रवाई के लिए उक्त सिफारिशें भेज दी हैं, लेकिन अभी तक कहीं से भी इसका जवाब नहीं आया है. इस पर आ़िखरी फैसला संबंधित मंत्रालयों-विभागों और राज्य सरकारों की राय के बाद ही लिया जाएगा. जवाब में यह भी कहा गया कि एक सितंबर, 2014 को अप्रासंगिक और बेकार क़ानूनों की समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक दो सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसने अपनी रिपोर्ट में 637 क़ानून रद्द करने की सिफारिश की है. इस रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए संबंधित मंत्रालयों-विभागों और राज्य सरकारों को विधायी विभाग द्वारा पत्र लिखे जा रहे हैं. इन तथ्यों से तो यही ज़ाहिर होता है कि सरकारी दावों के विपरीत ज़्यादातर चिन्हित किए गए बेकार और अप्रासंगिक क़ानून अभी तक केवल विभागीय कार्रवाई के मायाजाल में ही फंसे हुए हैं. ख्याल रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों से उनके मंत्रालय के पहले 100 दिनों के कार्य का लक्ष्य तय करने के लिए भी कहा था. इस संबंध में उन्होंने तत्कालीन विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद को प्राथमिकता के आधार पर ऐसे क़ानूनों की पहचान करने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी, जो बेकार हो चुके हैं. पिछली एनडीए सरकार ने भी 1998 में इस संबंध में प्रशासनिक क़ानूनों की एक समिति गठित की थी, जिसने 1,382 अप्रासंगिक क़ानूनों की सूची पेश की थी. उन 1,382 क़ानूनों में से अब तक केवल 415 क़ानून ही रद्द किए जा सके हैं. इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री मोदी ने विधि आयोग को भी पत्र लिखकर अपनी रिपोर्ट जल्द से जल्द पेश करने के लिए कहा था. निजी तौर पर भी लोगों ने इस संबंध में अपनी तऱफ से ऐसे क़ानूनों की सूची प्रकाशित की, जो आज अप्रासंगिक और हास्यास्पद हो चुके हैं.
बहरहाल, मोदी सरकार की तऱफ से वर्ष 2014 में संसद में दो विधेयक पेश किए गए. निरस्त एवं संशोधन विधेयक-2014 में कुल 36 क़ानून शामिल थे, जिनमें 32 संशोधन अधिनियम और केवल चार मूल अधिनियम थे. उसके बाद सरकार ने निरस्त एवं संशोधन (द्वितीय) विधेयक-2014 पेश किया, जिसमें 88 ऐसे संशोधन अधिनियमों को क़ानून की किताब से हटाने की बात कही गई थी, जो अप्रासंगिक हो चुके थे और जिन्हें एक अलग अधिनियम के तौर पर रखना ज़रूरी नहीं था. आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि लोकसभा और राज्यसभा की स्वीकृति के बाद ये दोनों विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिए गए हैं. यहां पर यह बता देना ज़रूरी है कि ये वे क़ानून थे, जो दूसरे क़ानून बन जाने की वजह से अप्रासंगिक हो गए थे या जिनमें भाषा की त्रुटि थी. जब इन्हें रद्द करने में इतना समय लग रहा है, तो जिन अप्रासंगिक क़ानूनों की बात सरकार कर रही है, उन्हें ख़त्म होने में कई साल लग जाएंगे या कम से कम इस लोकसभा के कार्यकाल में तो यह कार्य संभव नहीं हो पाएगा.
अख़बारों में छपने वाली रिपोट्‌र्स के मुताबिक, सरकार ने प्राथमिकता के आधार पर फिलहाल तक़रीबन 1,400 क़ानून रद्द करने का लक्ष्य रखा है. कुछ विधि विशेषज्ञ तक़रीबन 3,000 क़ानूनों को अनावश्यक क़ानून के दायरे में रख रहे हैं. लेकिन, अब तक की कार्रवाई से नतीजा यह निकलता है कि सरकार ने जिस उत्साह से इस मुद्दे को उठाया था, वह उत्साह अब कहीं खो गया है. नतीजतन, जनता को इंडिया ट्रेजर ट्रोव एक्ट-1878, दि बंगलौर मैरिजेज वेलिडेटिंग एक्ट-1934, दि इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट-1898, दि संथाल परगना एक्ट-1855, दि शेरिफ फीस एक्ट-1852, कॉफी एक्ट-1942, दि न्यूज पेपर (प्राइस एंड पेज) एक्ट-1956, यंग पर्सन्स (हार्मफुल पब्लिकेशंस) एक्ट-1956, एक्सचेंज ऑफ प्रिजनर्स एक्ट-1948, विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए (भूमि अधिग्रहण) अधिनियम-1948 और इंडियन इंडिपेंडेंस पाकिस्तान कोर्ट्स (पेंडिंग प्रोसेडिंग्स) एक्ट-1952 जैसे बिल्कुल अप्रासंगिक और हास्यास्पद क़ानून कुछ दिन और बर्दाश्त करने पड़ेंगे.
दरअसल, ये वे क़ानून हैं, जिनका इस्तेमाल न केवल आम लोगों को परेशान करने के लिए किया जाता है, बल्कि हमारे देश में चलने वाली लंबी क़ानूनी प्रक्रिया को और जटिल बनाने के लिए भी होता है. ये क़ानून भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देते हैं, क्योंकि आम लोग लंबी क़ानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए किसी अधिकारी-कर्मचारी को रिश्वत देना ज़्यादा आसान समझते हैं. और, इन सबके बीच जिस तरह से मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक पर अड़ी हुई है, उसे देखते हुए यह आशंका अभी भी बरकरार है कि कहीं बेकार और अप्रासंगिक क़ानूनों के चक्कर में मज़दूरों और किसानों के अधिकार वाले क़ानून भी न समाप्त कर दिए जाएं.

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