इस बार उत्तर-प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर पूरे देश की नज़र है. ज़ाहिर सी बात है कि 18 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाले राज्य में मुसलमानों की भूमिका बड़ी ही महत्वपूर्ण और निर्णायक होगी. इन्हीं बिन्दुओं को मद्देनज़र रखते हुए यूपी के मौजूदा हालात पर ‘ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड’ के महासचिव बुनी नईम हस्नी से चौथी दुनिया ने बातचीत की. प्रस्तुत हैं बातचीत के महत्वपूर्ण अंश…

आपके संगठन का नाम उलेमा बोर्ड है, लेकिन मुहिम आप जनता में जाकर चला रहे हैं?

बोर्ड का प्रयास यह होता है कि तमाम विचारधाराओं के उलेमा, उलेमा-ए-देवबन्द, बरेलवी, सलफी सभी मसलकों के उलेमा संगठित होकर एक प्लेटफार्म पर आएं. उलेमा के संगठित होने से जनता को आसानी से संगठित किया जा सकता है. लिहाज़ा उलेमा बोर्ड शहरों और कस्बों के इमामों और दरगाहों के जिम्मेदारों को भी इस मुहिम से जोड़ता है.

मुसलमानों को संगठित करने का आपका क्या मक़सद है?

मेरा मक़सद हर क्षेत्र में मुसलमानों को संगठित करना है. विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में इनका संगठित होना बेहद जरूरी है. इस्लाम में शिक्षा पर बहुत जोर दिया गया है. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि मुसलमान आज शिक्षा में सबसे पीछे हैं.

मुसलमानों के शैक्षणिक पिछड़ेपन का अनुमान सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. शैक्षणिक मज़बूती से दीन व दुनिया दोनों में वर्चस्व मिलता है. इसलिए हमारी कोशिश है कि मुसलमान शिक्षा के मैदान मेंआगे आएं.

आपका बोर्ड राजनीति में भी रूचि लेता है?

हमारा संगठन कोई राजनीतिक दल नहीं है. हमने न तो चुनाव आयोग में राजनीतिक दल की हैसियत से पंजीकरण कराया है और न ही हम वे फायदे लेते हैं, जो सियासी पार्टियों को मिलते हैं. हम तो चुनाव के मौके पर जनता में जाकर केवल उन्हें वोट के महत्व को बताते हैं और यह समझाते हैं कि पैसा लेकर वोट देना हराम है.

वोट देना इस्लाम के दृष्टिकोण से एक शहादत (गवाही) है और शहादत देना हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य है. हमारे इस अमल से वोट प्रतिशत में इज़ाफे की संभावनाएं बढ़ेंगी और एक पारदर्शी सरकार का गठन होगा.

उत्तर प्रदेश में आप अपनी राजनीतिक मुहिम का आगाज़ कहां से और कैसे करेंगे?

हमारी मुहिम का आगाज़ लखनऊ से होगा. मस्जिदों-मदरसों से लेकर मुहल्लों तक में व्यक्तिगत मेलजोल और नुक्कड़ सभाओं के द्वारा जागरूकता मुहिम चलाई जाएगी. मुहिम चलाने में नौजवानों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगाा. हमारे यहां एक यूथ विंग भी है, जिसकी जिम्मेदारी लखनऊ के खलीक़ुर्रहमान साहब के ऊपर है. वह हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं.

उनकी निगरानी में युवाओं में जागरूकता लाने का अमल चलता है. चुनावों के लिए हम महिलाओं को भी जागरूक करने का काम करेंगे. हमारे बोर्ड की बहुत सी महिला सदस्या हैं. वे आम महिलाओं के बीच जाकर, इस मुहिम को आगे बढ़ाएंगी. बोर्ड की ओर से इसकी जिम्मेदारी ऊरूफी सिद्दीक़ी साहिबा को दी गई है.

क्या आप किसी पार्टी विशेष को ध्यान में रखते हुए जनता को प्रेरित करेंगे?

सबसे पहली बात तो यह है कि वोट धर्म की बुनियाद पर न हो, बल्कि विकास के नाम पर हो. बोर्ड में किसी दल विशेष के लिए प्रेरणा पर अमल नहीं किया जाता है. हम उसे ही अच्छी पार्टी मानेंगे, जो मुसलमानों को अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व दे, मुसलमानों के लिए काम करे और उनकी शिक्षा व विकास पर ध्यान दे. वह पार्टी किसी मुसलमान की ही हो, ऐसा नहीं है. वह किसी भी जाति धर्म की कोई भी पार्टी हो सकती है.

उलेमा बोर्ड केवल मुसलमान ही नहीं, बल्कि सभी अच्छी सोच रखने वाले लोगों से संगठित होकर अच्छे उम्मीदवारों को वोट करने की अपील करता है. उलेमा बोर्ड किसी दल विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. हम इसपर भी ध्यान देंगे कि बड़ी पार्टियों जैसे बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने पिछली बार मुसलमानों से जो वादा किया था, उनपर कितना अमल हुआ.

इन सभी बिन्दुओं पर विचार करने के बाद फैसला होगा कि अच्छी पार्टी कौन सी है. इसे लेकर मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि हम भाजपा जैसी सांप्रदायिक पार्टी का किसी भी हाल में समर्थन नहीं कर सकते, क्योंकि सांप्रदायिकता पर विश्वास रखने वाली इस प्रकार की पार्टी देश की अस्मिता के लिए खतरा है.

क्या आप किसी दल के पास अपनी मांगे लेकर गए थे?

अभी किसी पार्टी का घोषणा-पत्र सामने नहीं आया है. जब सभी पार्टियां अपने घोषणा-पत्र जारी कर देंगी, तो हम उनके पास जाएंगे और अपनी मांगे रखेंगे. इसके बाद देखा जाएगा कि कौन सी पार्टी हमारी मांगें मानती है और कितना मानती है. इसके बाद ही निर्णय होगा कि पार्टी को समर्थन करना चाहिए या नहीं. फिलहाल हमारी मुहिम, केवल जनता में जागरूकता लाने की होगी.

इस समय मुसलमानों के लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है?

मुसलमानों के लिए सबसे बड़ा मसला उनकी सुरक्षा का है. यही कारण है कि हम उस पार्टी को बेहतर समझते हैं, जो मुसलमानों की सुरक्षा की गारंटी दे और ‘दंगा निरोधक बिल’ जैसे मुद्दों का समर्थन करे. मुसलमानों की दूसरी समस्या शिक्षा की है. शिक्षा में यह वर्ग बेहद पिछड़ा है. हम चाहेंगे कि पार्टियों के मसलों में मुसलमानों के शैक्षणिक संस्थानों, विशेष रूप से मदरसों को संरक्षण देने और उनमें पानी व बिजली की उपलब्धता की गारंटी की बात हो.

वे हमारे लिए नए संस्थान, स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी खोलने में अपना सहयोग दें. इसके अलावा मुसलमानों की वक़्फ संपत्तियां सुरक्षित हों. वक़्फ संपत्तियों को हर ओर से लूटा जा रहा है. सरकार इन संपत्तियों को सुरक्षा देने की गारंटी दे.

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