गंभीर आरोपों पर कुलपति की स़फाई आरोप बेबुनियाद, नियमानुकूल काम करता रहूंगा : डॉ. अग्रवाल

vice-chanslerचम्पारणवासियों के अथक मेहनत से मोतीहारी में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना 2015 में हुई. 3 फरवरी 2016 को प्रोफेसर (डॉ.) अरविन्द कुमार अग्रवाल प्रथम कुलपति के रूप में नियुक्त किए गए. भूअर्जन नहीं होने के कारण तत्कालीन जिलाधिकारी ने मोतिहारी जिला स्कूल के छात्रावास भवन विवि संचालन के लिये आवंटित कर दिया. लगभग 2 साल तक विश्वविद्यालय का संचालन ठीक से होता रहा.

लेकिन दो शिक्षकों की बर्खास्तगी के बाद शुरू हुए आन्दोलन के बाद से ही विवि की छवि धूमित होती चली गई. हालांकि, बाद में दोनों बर्खास्त शिक्षकों की बहाली भी हो गई. लेकिन माहौल बिगड़ता चला गया. शिक्षकों और छात्रों की तरफ से लगातार कुलपति पर भ्रष्टाचार, गबन से लेकर नियुक्ति और व्यक्तिगत आरोपों का दौर चलता रहा. विगत माह से शिक्षकों के एक गुट ने अनशन और धरना शुरू कर दिया और  कुलपति पर आरोपों की बौछार कर दी. इन सभी मुद्दों पर चौथी दुनिया ने कुलपति डॉ. अरविन्द कुमार अग्रवाल से बातचीत की. पेश है, साक्षात्कार के अंश.

आप पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं?

मैं इन आरोपों का खंडन करता हूं. विश्वविद्यालय में सभी कार्य भारत सरकार के बनाए नियमों के अनुसार किए गए है और आगे भी इन्हीं नियमों के आधार पर कार्य किया जाएगा.

कहा जा रहा है कि इन्हीं आरोपों के कारण आपको हटाने के लिए राष्ट्रपति के पास फाइल गई है?

एमएचआरडी से प्राप्त लिखित सूचना के आधार पर मैं कहना चाहूंगा कि न तो इस तरह की कोई जांच प्रस्तावित है न ही ऐसी कोई जांच माननीय राष्ट्रपति की अनुमति से अनुशंसित है. ये केवल लोगों को भ्रमित करने वाली बातें हैं.

शिक्षकों में आपके प्रति भारी असंतोष है?

शिक्षकों ने आज तक कोई भी मांगपत्र विश्वविद्यालय प्रशासन को नहीं दिया है. विश्वविद्यालय के सभी कर्मचारी केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए बने कानून से अधिशासित होते हैं और कोई भी कर्मचारी अपने संस्था अध्यक्ष की अनुमति के बिना किसी दूसरे संस्थान में नौकरी के लिए न तो लिखित परीक्षा दे सकता है और ना ही साक्षात्कार दे सकता है. डॉ. बुद्धि प्रकाश जैन ने तथ्य छुपाकर, आकस्मिक अवकाश लेकर, बिना अनुमति के राजस्थान विश्वविद्यालय में शिक्षक की नौकरी के लिए आवेदन किया और परीक्षा दी. इसलिए, इनको गोपनीय कारण बताओ नोटिस दिया गया. नोटिस को इन्होंने सार्वजनिक किया और शिक्षकों और विद्यार्थियों को भड़काया और विश्वविद्यालय में अशांति फैलाई. नियमों के प्रतिकूल शिक्षक धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं.

आपकी आवाज का एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ है. इसके बारे में आपका क्या कहना है?

यह क्लिप झूठा है, गढ़ा गया है और इसकी वैधता को सत्यापित करने का जिम्मा आरोप लगाने वालों पर ही है.

आप पर यह आरोप है कि किताबों की खरीद में विश्वविद्यालय को बहुत कम छूट दिलाया गया और भ्रष्टाचार हुआ है और इसकी तुलना एक अन्य विश्वविद्यालय से की जाती है. इसके बारे में आपका क्या कहना है?

यह अत्याधिक भ्रामक आरोप है. महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में किताबों की खरीद पर मूल्यों में 25 प्रतिशत से लेकर 36 प्रतिशत तक की छूट विश्वविद्यालय को मिली है. जिस अन्य विश्वविद्यालय से तुलना की जा रही है, उसे सिर्फ 20 प्रतिशत तक छूट मिली. जो भी खरीददारी हुई है, वह भारत सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के तहत ही हुई है.

आप पर बिहार विरोधी होने का आरोप लगाया जाता है.

यह आरोप निराधार है. यह विश्वविद्यालय एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, जो भारत सरकार के द्वारा स्थापित किया गया है. यहां पर प्रवेश और चयन केवल और केवल प्रतिभा के आधार पर पारदर्शिता के साथ किये गये हैं. इस विश्वविद्यालय में बिहारवासियों का भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व है. मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि मैंने हर जगह महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में बिहार को पूर्ण सम्मान के साथ जोड़ा है. साथ ही साथ बिहार को भारतीय संस्कृति का पालना मानते हुए लॉन में तीन छोटे स्तूप भी बनाए हैं, जो जनक कालीन, नालंदा कालीन और वर्तमान काल का परिचायक है.

यह भी आरोप है कि आप रोस्टर का पालन नहीं करते?

सभी चयन प्रक्रियाओं में भारत सरकार के नियमों का पूर्णत: पालन किया गया है. ऐसा न करना एक गंभीर और अक्षम्य अपराध है. यदि रोस्टर की अवहेलना होती है तो सरकार गंभीर कार्रवाई करती है. आन्दोलन करने वाले विश्वविद्यालय में झूठ और भ्रम फैलाकर शांति भंग की स्थिति और अनुशासनहीनता चाहते हैं. मैं फिर से दोहराना चाहता हूं कि अब तक मेरे समक्ष किसी ने भी कोई मांगपत्र या शिकायत पत्र नहीं दिया है. केवल अनर्गल आरोप लगाकर, जहां लोगों को भ्रमित किया जा रहा है, वहीं महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा और गरिमा को कमतर किया जा रहा है. यह बहुत ही खेदपूर्ण है. मैं सरकार के बनाये नियमों से बंधा हूं. नियम के अनुसार कार्य करता रहा हूं और करता रहूंगा.

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