laluऐसा हमेशा नहीं होता कि किसी खास मुद्दे पर सत्य सिर्फ एक ही हो. कभी-कभी सत्य के दो रूप हो सकते हैं और कभी ज्यादा भी. इस एक सत्य का संबंध राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन से है तो दूसरा सत्य बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के स्थानपा दिवस से. हम जिस सत्य पर आगे चर्चा करने जा रहे हैं स्वाभाविक रूप से उसका संबंध लालू प्रसाद से भी है और बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (बिरापुनिलि) से भी. क्योंकि 11 जून अगर लालू प्रसाद का जन्मदिन है तो यही दिन बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड का स्थापना दिवस भी है. वैसे लालू और बिरापुनिलि का कोई सीधा संबंध नहीं है, पर तेजस्वी यादव का संबंध यह है कि यह संस्था उस विभाग के अधीन आता है जिसके मंत्री तेजस्वी यादव हैं यानी पथ निर्माण विभाग.

ऐसे में इस बात की प्राथमिकता सुनिश्चित करना किसी के लिए भी असंभव है कि 11 जून यानी बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के स्थापना दिवस पर लालू का जन्मदिन है या लालू के जन्मदिन पर बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड का स्थापना दिवस. लेकिन राजनीति का एक दिलचस्प पहलू यह है कि वहां बहुत सारी असंभव चीजें भी संभव बना दी जाती हैं. लिहाजा यह राजनीति में ही संभव है कि सुशील मोदी 11 जून को बिरापुनिलि के स्थापना दिवस के बजाय लालू प्रसाद का सिर्फ जन्मदिन मान कर अपने सियासी तरकश से बयानों के तीर छोड़ते हैं. दरअसल 11 जून बिहार की राजनीति में पिछले दिनों राजनीतिक दावपेंच का दिन बन कर रह गया था.

इस दिन बिहार सरकार ने देश के क्रमश: पांचवें और छठे सबसे बड़े पुलों को जनता के सुपुर्द करने का ऐलान किया था. इस पुल को पथनिर्माण विभाग के अधीन काम करने वाले बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड की देख रेख में बनवाया गया था. ये दोनों पुल गंगा नदी पर बने हैं. एक आरा और छपरा के बीच तो दूसरा पटना के दीघा और सोनपुर के बीच. इन दोनों पुलों के लोकार्पण की तिथि 11 जून तय की गई थी. इसकी घोषणा होते ही सुशील मोदी ने बौखलाहट में जोरदार सियासी हमला बोल दिया.

उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव अपने पिता के जन्मदिन पर पुल उन्हें तोहफे में देना चाहते हैं, जबकि यह पुल जनता को सौंपा जाना चाहिए. जैसे-जैसे 11 जून करीब आता जा रहा था, सुशील मोदी के हमले तेज होते जा रहे थे. वह 11 जून पर लालू के जन्मदिन की बात को इतनी बार दोहरा चुके थे कि जनमानस को यह ख्याल भी नहीं रहा कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड ने इन पुलों के लोकार्पण की तिथि 11 जून को इसलिए रखी है क्योंकि उस दिन उसका 42वां स्थापना दिवस है.

यह संभव है कि जब विभाग लोकार्पण की तिथि तय करने पर विचार कर रहा हो तो उसे लगा हो कि स्थापना दिवस पर यह शुभ काम किया जाए जो संयोग से लालू का जन्मदिन भी है. ऐसे में विपक्ष की तरफ से कई आरोप लगाए जाने लगे. मोदी ने कहा कि इस सेतु का लोकार्पण एक सजायाफ्ता (लालू प्रसाद) नेता से कराया जा रहा है क्योंकि नीतीश और लालू के बीच की विश्वास की खाई को सेतु द्वारा कम करने की कोशिश की जा रही है.

दो सेतुओं को बिहार की जनता के हवाले कर नीतीश सरकार ने निश्चित तौर पर बड़ा काम किया है. सुशील मोदी की बयानबाजियों के कारण जनता का ध्यान पुल के महत्व से हटकर उससे जुड़े विवाद की तरफ चला गया. दरअसल मोदी यही चाहते भी थे, लेकिन स्वाभाविक था कि मोदी के इस राजनीतिक व्यवहार का महागठबनंधन सरकार गिन-गिन कर बदला लेने के इंतजार में थी. सो जब 11 जून का दिन आया तो उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, शिक्षा मंत्री (कांग्रेस के नेता) अशोक चौधरी, लालू प्रसाद और यहां तक कि नीतीश कुमार ने भी गिन-गिन कर भाजपा पर प्रहार किया, जब कि यह अवसर सेतुओं के लोकार्पण का था.

इन नेताओं ने इसे भाजपा के ‘खाली दिमाग’ का काम बताया तो मीडिया को भी टीआरपी के चक्कर में इस मुद्दे को हवा देने का कारण बताया. विपक्ष के हमलों से खिन्न नीतीश ने कहा कि किन-किन सवालों का जवाब दीजिएगा? वे लोग बेरोजगार हैं. वे सवाल उठाएंगे ही. अब उनके सवाल का जवाब दीजिएगा तो उनका सवाल महत्वपूर्ण हो जाएगा.

वे महत्वपूर्ण हो जाएंगे. नीतीश ने भाजपा के आरोपों की लिस्ट में जिक्र किए गए एक-एक सवाल का जवाब देना शुरू किया और बताया कि दीघा के पुल के निर्माण में लालू जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. रेल मंत्री की हैसियत से उन्होंने इस पुल का शिलान्यास तत्कालीन प्रधानमंत्री देवेगौड़ा जी से करवाया था.

लेकिन जब मैं रेल मंत्री बना तो पाया कि इस प्रोजेक्ट की तैयारी का काम ही नहीं हुआ है. लिहाजा मैंने इसे पूरा करवा और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी से इस रेल पुल का कार्यारंभ करवाया. फिर जब अगली सरकार आयी और लालू जी फिर रेल मंत्री बने तो उन्होंने इस रेल पुल के साथ ही इसमें रेल सह सड़क पुल बनाने की कोशिश शुरू की ताकि कम खर्च में दोनों काम हो सके. नीतीश ने कहा कि मौजूदा सड़क पुल का जो लोकार्पण आज हुआ है वह, लालू जी के कठिन परिश्रम से ही बन सका है.

नीतीश इन तमाम बातों को कहकर सुशील मोदी के उन सवालों का जवाब दे रहे थे जिसके तहत उन्होंने (मोदी) इस पुल के लोकार्पण की तारीख पर सवाल उठाए थे. नीतीश कुमार मोदी को यह भी बताना चाह रहे थे कि वे यह भ्रम ना फैलाएं कि इस पुल के निर्माण में वाजपेयी सरकार का ही हाथ था. लिहाजा नीतीश यह साफ कर देना चाहते थे कि वाजपेयी ने जिस रेल पुल का कार्यारंभ किया था, उसमें सिर्फ रेल पुल था जबकि उस रेल पुल में सड़क पुल के प्रोजेक्ट को लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहते जोड़ा गया.

लेकिन आरा-छपरा वीर कुंवर सिंह सेतु और दीघा-सोनपुर जेपी सेतु के लोकार्पण को मोदी ने जिस तरह से अपनी राजनीति के रंग में रंगने की कोशिश की तो उसके जवाब में महागठबंधन के नेताओं ने भी लोकार्पण समारोह को आक्रमण समारोह में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस अवसर पर तेजस्वी ने अपना क्रोध निकाला और कहा कि वे (सुशील मोदी) झूठ की गंगा बहाते हैं और हम लोग गंगा पर विकास और एकता का सेतु बनाते हैं. इसी दौरान कांग्रेस के नेता अशोक चौधरी ने जमकर लालू और तेजस्वी का साथ दिया.

उन्होंने कहा कि अगर वे कहते है कि 11 जून को लालूजी का जन्मदिन है तो हम लोगों को सीना ठोक कर स्वीकार कर लेना चाहिए कि हां है. सारांश यह कि इन दो सेतुओं के लोकार्पण के बहाने गठबंधन के तमाम नेताओं ने भी सुशील मोदी और भाजपा पर जवाबी हमला बोला.  लेकिन सुशील मोदी राजनीतिक तौर पर जो हासिल करना चाहते थे, उसमें एक हद तक कामयाब रहे. पुलों के लोकार्पण पर सुशील ने  एक ऐसे मुद्दे को आगे बढ़ाया, जिसमें बहुत दम नहीं था. हमने ऊपर उल्लेेख किया है कि 11 जून का महत्व बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के लिए जिनता है, उसे नकारा नहीं जा सकता.

लेकिन सुशील मोदी ने इस 11 जून को सिर्फ लालू प्रसाद से जोड़ दिया और अपनी बनाई हुई पिच पर बाउंसर डालने लगे. बाद में स्थिति यह आई कि पहले तेजस्वी यादव और राजद के लोगों पर बाउंसर फेंका गया और फिर अंत में सुशील मोदी ने आखिरी गुगली नीतीश कुमार पर यह कहते हुए डाल दी कि एक मुख्यमंत्री को यह अधिकार है कि किसी पुल या भवन के लोकार्पण के लिए खुद तारीख तय करें. लेकिन सत्ता के अहंकार में क्या वे किसी भवन के लोकार्पण के लिए शहाबुद्दीन, प्रभुनाथ सिंह या राजबल्लभ यादव के जन्म को चुन लेंगे?

गौर से देखें तो पुल पर राजनीति का कोई औचित्य नहीं था. पुल निर्माण के इस गंभीर पहल को सुशील मोदी ने पूरी अगंभीरता से राजनीतिक  रंग दे दिया. यही वजह है कि राजद के लोग उन पर अगंभीर नेता होने का आरोप लगाते हैं. इन तमाम बातों के अलावा भले ही मोदी पर अगंभीर या कई बार झूठ बोलने तक के आरोप लगाए जाते हैं, लेकिन इतना तय है कि सुशील मोदी ने पुल की राजनीति कर सत्ता पक्ष को अपने जाल में उलझा लिया. और कम से कम एक पखवाड़े तक बिहार की राजनीति दो सेतुओं के बजाय मोदी के इर्द-गिर्द घूमती रही.

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