bodhgayaजुलाई 2013 में हुए बम विस्फोट तथा जनवरी 2018 में महाबोधि मंदिर को दहलाने की कोशिशों ने बोधगया आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या को तो प्रभावित किया ही, इसके कारण पर्यटन पर निर्भर स्थानीय लोग अब भी परेशानी का सामना कर रहे हैं. गया जिला प्रशासन ने 2013 में बोधगया और वर्ल्ड हेरिटेज महाबोधि मंदिर की सुरक्षा को फूलप्रुफ करते हुए महाबोधि मंदिर के सामने स्थित सभी 58 दुकानों को हटा दिया था. इन दुकानदारों को मंदिर से दूर नोड वन में जगह दी गई. ये सभी दुकानदार उसी समय से विस्थापन का दंश झेल रहे हैं.

ये लोग उस मामले में अपने लिए न्याय की मांग कर ही रहे थे कि इसी साल जनवरी में फिर से बोधगया को दहलाने की साजिश सामने आई. उसके बाद सुरक्षा के नाम पर मंदिर के आसपास फूल-माला और फोटो आदि बेचने पर रोक लगा दी गई. वहीं दूसरी ओर नया ट्रैफिक प्लान बनाकर पर्यटक वाहनों, चार पाहिया वाहनों तथा ऑटो रिक्शा को महाबोधि मंदिर से करीब दो-ढाई किलो मीटर की परिधि में रोक देने का निर्णय जारी कर दिया गया. 20 फरवरी 2018 को लागू किए गए इस ट्रैफिक प्लान के कारण बोधगया के आसपास के करीब 100 गांवों का सम्पर्क मुख्यालय से टूट जाएगा, क्योंकि वाहनों को मुख्य सड़क पर ही आने से रोका जा रहा है.

शांतिपूर्ण आंदोलन करने वालों पर प्राथमिकी

सुरक्षा के नाम पर हुए इन बदलावों से स्थानीय व्यापारियों और निवासियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. यहां आने वाले पर्यटकों को भी अब मंदिर तक या होटलों तक भी पैदल ही जाना पड़ता है. मंदिर के आस-पास रहने वाले वैसे लोगों को भी अब परेशानी हो रही है, जिनके पास चार पाहिया वाहन हैं. इन सब परेशानियों के मद्देनजर स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से मांग की कि समुचित व्यवस्था होने तक पूर्व की तरह ही ट्रैफिक संचालन को बहाल किया जाय. लेकिन प्रशासन ने उनकी मांगो को खारिज कर दिया. लाचार होकर स्थानीय निवासियों ने तीन दिन के बोधगया बंद का आह्‌वान किया.

यह बंद सफल रहा. लोगों ने इस दौरान शांतिपूर्ण कैंडिल मार्च भी निकाला. लेकिन जिला प्रशासन ने शांतिपूर्ण आंदोलन और कैंडिल मार्च में शामिल बोधगया के 772 स्थानीय लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कर दी. अपनी परेशानी से निजात की मांग कर रहे लोगों पर प्रशासन द्वारा दर्ज प्राथमिकी ने उन्हें और भी आक्रोशित कर दिया है. लोगों का कहना है कि सुरक्षा जांच से हमें ऐतराज नहीं है, लेकिन इसके नाम पर हमें परेशान नहीं किया जाय. बोधगया बचाओ संघर्ष समिति के अशोक कुमार यादव ने गया के जिला पदाधिकारी को पत्र लिखकर कहा है कि ट्रैफिक प्लान वास्तव में स्थानीय लोगों की अर्थव्यवस्था व समाजिक संरचना को खत्म करने का प्लान है. बोधगया में बार-बार सुरक्षा व सौंर्दर्यीकरण के नाम पर स्थानीय लोगों को विस्थापित किया जा रहा है. 2013 में जबरन हटाए गए 58 दुकानों को भी आज तक नहीं बसाया गया है. इनमें कई ऐसे दुकानदार थे जिन्हें 1980 में विस्थापन के बाद दुकानें दी गई थीं.

व्यवहारिक नहीं है बदलाव

बोधगया बचाओ संघर्ष समिति ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मानवाधिकार आयोग सहित 21 लोगों भेजे गए पत्र के जरिए उन्हें अपनी परेशानियों से अवगत कराया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि बोधगया में जबतक संचेन मोनास्ट्री का रास्ता नहीं बन जाता, तब तक सभी वाहनों को आने-जाने की छूट दी जाय. बड़े वाहनों को छोड़कर सभी वाहनों को सुरक्षा जांच के बाद आने-जाने दिया जाय. कालचक्र मैदान के पास सुपर मार्केट का निर्माण, मायासरोवर के पास टैक्सी स्टैंड बनाने, मंदिर परिसर में जैमर लगाने, महाबोधि मंदिर में बॉडी स्कैनर लगाने और पर्यटकों के निबंधन सहित कई सुझाव भी लोगों ने प्रशासन को दिए हैं.

लेकिन इनपर कोई अमल होता नहीं दिख रहा है. 1956 के बाद से अब तक बोधगया को व्यवस्थित करने को लेकर कई प्लान आए, लेकिन किसा का भी क्रियान्वयन नहीं हो सका. उल्टा उसकी आड़ में स्थानीय लोगों और व्यापारियों को उजाड़ दिया गया. यूनाइटेड बुद्धिष्ट नेशंस ऑर्गनाइजेशन के अनागारिक धम्म प्रिय का कहना है कि वर्ल्ड हेरिटेज के नाम पर स्थानीय लोगों को परेशान किया जा रहा है और यहां के वास्तविक स्वरूप को बदलने की कोशिश हो रही है. उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन और बिहार सरकार की ओर से बोधगया व महाबोधि मंदिर की सुरक्षा के नाम पर की गई यातायात की नई व्यवस्था से स्थानीय लोगों के साथ-साथ देशी-विदेशी पर्यटकों को भी काफी परेशानी हो रही है. इस मामले को लेकर स्थानीय लोगों का आक्रोश कभी भी विस्फोटक रूप ले सकता है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here