prem_kumarpremkumarबिहार की राजनीति में मगध का हमेशा महत्वपूर्ण योगदान रहा है. यही वजह है कि आजादी के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव से ही सभी राजनीतिक दलों की नजर मगध पर रही है. मगध के 26 विधानसभा क्षेत्रों पर जिस भी पार्टी या गठबंधन की स्थिति मजबूत रही और वह बिहार के सत्ता शीर्ष पर काबिज रहा. अगर हम कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो बिहार में जब भी कांग्रेस की पकड़ ढिली हुई, उस समय समाजवादियों की पकड़ मगध पर मजबूत हुई और उनके गठबंधन की सरकार बनी. लेकिन यह अलग बात है कि ऐसी सरकार पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. 1990 के बाद बिहार का पूरा रजानीतिक समीकरण उलट-पलट हो गया.

लंबे समय तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया. कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई कि उसको राजद जैसी क्षेत्रीय पार्टी से गठबंधन कर अपना अस्तित्व बचाने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन 2005 में पुन: बिहार का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया. भाजपा-जदयू के गठबंधन को बहुमत मिला और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. एनडीए को तब जीत मिली, जब उसकी पकड़ मगध पर मजबूत हो गई. मगध के 26 में से 22 विधानसभा क्षेत्रों पर एनडीए की जीत हुई. बदलते राजनीतिक समीकरण में लंबे समय तक लालू का विरोध कर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे नीतीश ने 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद लालू यादव से हाथ मिला लिया.

नतीजा यह हुआ कि सामाजिक न्याय, अतिपिछड़ा और महादलित की बात कर महागठबंधन ने सरकार बना ली और इसका सबसे बड़ा खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के तमाम प्रयासों के बाद भी भाजपा को विधानसभा चुनाव में जनता का समर्थन नहीं मिल पाया. वहीं दूसरी ओर महागठबंधन को व्यापक जनसमर्थन मिला और नीतीश के नेतृत्व में उनकी सरकार बनी. इसमें मगध का सबसे बड़ा योगदान रहा. अधिकतर सीटों पर महागठबंधन के प्रत्याशी जीते. केवल चार सीटों पर भाजपा गठबंधन को सफलता मिल पाई. इसी को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने मगध में अपने संगठन को मजबूत करने की तैयारी में है.

इसके लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की योजना है कि बिहार में जिस सोशल इंजीनियरिंग के सहारे नीतीश कुमार सत्ता पर काबिज हुए हैं, उसमें सेंध लगाई जाए. इसी फॉर्मूले पर मगध में भाजपा के संगठन में व्यापक फेरबदल करने की योजना बनाई जा रही है. फिलहाल मगध के पांच जिलों में से चार जिलों में भूमिहार जाति के जिला अध्यक्ष हैं और बचे एक औरंगाबाद जिले में राजपूत जाति का जिला अध्यक्ष है. लंबे समय से मगध के इन पांचों जिलों के भाजपा के अध्यक्ष इन्हीं दो जातियों के रहे हैं. भाजपा का मानना है कि भूमिहार जाति के लोग बिहार में मतदान के समय तन-मन-धन के साथ पार्टी की मदद करते हैं.

लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरण के इस दौर में सत्ता के लिए सभी वर्ग और जाति का वोट प्राप्त करना जरूरी है. इसलिए पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित और महादलित समुदाय को भाजपा की ओर आकर्षित किया जाए, क्योंकि मगध में पिछड़ी, अतिपिछड़ी, दलित और महादलित जाति की संख्या अधिक है. इसे देखते हुए जिला अध्यक्ष के पद पर पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों से आने वाले तेजतर्रार और युवा नेतृत्व को संगठन की बागडोर सौंपी जा सकती है. लगातार ऊंची जाति के सभी जिलों में जिलाध्यक्ष होने की वजह से पिछड़ी, अतिपिछड़ी जातियों और दलित जातियों का भाजपा को व्यापक जन समर्थन नहीं मिला.

इसलिए भाजपा मगध में इस बार संगठन को मजबूत करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग पर जोर दे रही है. गया शहर के विधायक प्रेम कुमार को बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया जाना भी मगध की अतिपिछड़ी जातियों पर मजबूत पकड़ बनाना है. पिछले ढाई दशक से गया भाजपा में प्रेम कुमार और विधान पार्षद कृष्ण कुमार सिंह का चलता रहा है. प्रेम कुमार गया महानगर संगठन में पहले से ही अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाह रहे हैं, जबकि कृष्ण कुमार अपने चहेतों को ही गया जिला अध्यक्ष के पद पर बैठाते आ रहे हैं. लेकिन इस बार यह मिथक तोड़ा जा सकता है. प्रेम कुमार के चहेते और अतिपिछड़े वर्ग से आने वाले किसी युवा को गया का जिला अध्यक्ष बनाया जा सकता है और इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होगा. इसमें तेजतर्रार युवा नेता आरएस नागमणी का नाम भी शामिल है.

मगध के अन्य जिलों औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल और नवादा का भी यही हाल है. इतना निश्चित है कि इस बार संगठन चुनाव में प्रेम की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. ऐसे भी मगध में महादलित के बाद सबसे अधिक जनसंख्या पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की है. अब देखना है कि भाजाप को मगध में सोशल इंजीनियरिंग का आने वाले चुनावों में कितना फायदा मिलता है. स्थिति को भांपते हुए पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों से आने वाले कई नेता जिला अध्यक्ष बनने के लिए सक्रिय हो गए हैं. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की चाहत है कि सामाजिक समरसता और सोशल इंजीनियरिंग के सहारे पूरे बिहार में पिछड़ी, अतिपिछड़ी जातियों के साथ-साथ दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में कर सके. इन्हीं वजहों से भाजपा मगध पर पैनी दृष्टि रखे हुए हैं और भविष्य के लिए संगठन को मजबूत करने में लगी है.प

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