amit-shah1सूूबे में भाजपा गठबंधन ने 73 सीटों पर नंबर वन रहकर अपना परचम फहरा दिया. मोदी की शानदार जीत में उत्तर प्रदेश की इन सीटों का बहुत बड़ा योगदान रहा. यहां की कामयाबी से ही भाजपा अकेले दम पर बहुमत जुटाने में सफल रही. इस बड़ी जीत से उत्साहित भाजपा नेता अब मिशन-2017 (उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव) जीतने की तैयारी करने लगे हैं. प्रदेश इकाई द्वारा 350 सीटों का लक्ष्य तय कर दिया गया है. चर्चा इस पर भी छिड़ी हुई है कि विधानसभा चुनाव भाजपा किस चेहरे को आगे करके लड़ेगी. हालांंकि ये सारी बातें अभी हवा-हवाई लग रही हैं, लेकिन कुछ अति उत्साही कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी रहे अमित शाह का नाम ठीक वैसे ही लेने लगे हैं, जैसे 2012 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन चुनाव प्रभारी उमा भारती का लिया गया था. संभवत: प्रदेश भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई दमदार चेहरा न होने के कारण इन हवाओं को बल मिला है. वैसे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मोदी उत्तर प्रदेश का महत्व जानते हैं, इसलिए दिल्ली का भार थोड़ा हलका होने के बाद वह उत्तर प्रदेश को लेकर कोई मजबूत रणनीति तय करेंगे. मोदी उत्तर प्रदेश के विकास को लेकर भी गंभीर हैं. आने वाले दिनों में इसका प्रभाव जमीनी स्तर पर दिख सकता है.
भाजपा को लेकर मतदाताओं के साथ-साथ विभिन्न दलों के नेताओं में भी गंभीरता दिखने लगी है. आने वाला समय भाजपा का है, यह मानकर कई ग़ैर भाजपाई नेता अपनी विधायकी बचाने के लिए अभी से भाजपा की तरफ़ देखने लगे हैं, जबकि विधानसभा चुनाव होने में तीन साल का समय बाकी है. लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर को नज़रअंदाज करने वाले विरोधी दलों के नेता भी अब मोदी की काट के लिए गंभीर हो गए हैं. सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को इस बात का एहसास अच्छी तरह हो गया है कि मोदी को मात देने के लिए जातिवादी राजनीति छोड़कर विकास की गंगा बहानी पड़ेगी. हार के बाद समाजवादी पार्टी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव यह प्रयास करते हुए दिखने भी लगे हैं, लेकिन मुलायम सिंह के मुंह लगे आजम खां, नरेश अग्रवाल जैसे नेता अभी भी हकीकत से आंख मूंदे बैठे हैं.
सपा, बसपा और कांगे्रस के पास जब मुंह दिखाने लायक कुछ नहीं बचा, तो ये दल रनर (दूसरे स्थान पर) रहने को अपनी कामयाबी बताकर प्रचारित करने लगे. विधानसभा वार आंकड़े जुटाए गए, मगर उन आंकड़ों ने ग़ैर भाजपाई दलों की हवा और पतली कर दी. लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 में से 54 सीटें ऐसी हैं, जिनकी सभी विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी नंबर एक पर रही. भाजपा सभी 80 लोकसभा सीटों से जुड़ी 403 विधानसभा सीटों में से 335 विधानसभा सीटों पर विजयी रही. 2012 के विधानसभा चुनाव में 224 सीटें लेकर समाजवादी पार्टी सबसे ऊपर रही थी, वहीं बसपा को 80 और भाजपा को 47 सीटें मिली थीं. भाजपा के साथ खड़े होकर अपना दल जैसी छोटी पार्टी ने भी अपनी किस्मत संवार ली. भाजपा से गठबंधन करके लोकसभा में अपने दो सांसद भेजने वाले अपना दल को 2012 के विधानसभा चुनाव में महज एक सीट पर विजय हासिल हुई थी, जो अपना दल अध्यक्ष अनुप्रिया के खाते में आई थी. इसके बाद विश्‍वनाथगंज विस उपचुनाव में अपना दल के डॉ. आर के वर्मा भी जीत गए थे. हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव के नतीजों पर ग़ौर करें, तो प्रतापगढ़ और मिर्जापुर लोकसभा सीटों के नौ विधानसभा क्षेत्रों पर अब अपना दल का दबदबा हो गया. मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र की ये विधानसभा सीटें हैं छानबे (सु), मिर्जापुर, मंझवा, चुनार एवं मड़िहान. इसी तरह प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र की विश्‍वनाथगंज, प्रतापगढ़, पट्टी और रानीगंज सीट पर भी अपना दल ने बढ़त बनाई.
लोकसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक, स़िर्फ 37 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां सपा नंबर एक पर रही. अमरोहा संंसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीट अमरोहा, फिरोजाबाद संसदीय क्षेत्र की जसराना, शिकोहाबाद एवं सिरसागंज, मैनपुरी संसदीय क्षेत्र की मैनपुरी, किसनी (सु), करहल एवं जसवंत नगर विधानसभा सीट पर तो सपा आगे रही, लेकिन भोगांव विधानसभा सीट पर भाजपा. कन्नौज संसदीय क्षेत्र, जहां से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव जीतीं, वहां भी हालात बदतर रहे. कन्नौज की तिर्वा और विधूना विधानसभा सीटों पर भाजपा नंबर वन रही. बाकी बचे छिबरामऊ, कन्नौज (सु) एवं रसूलाबाद विधानसभा क्षेत्रों में से किसी एक में भी सपा पिछड़ जाती, तो डिंपल का खेल बिगड़ सकता था. कौशांबी संसदीय क्षेत्र की बाबागंज और कुंडा विधानसभा सीटों पर सपा नंबर वन रही. ये दोनों सीटें निर्दलीय विधायक एवं अखिलेश सरकार में मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के दबदबे वाली हैं. इलाहाबाद लोकसभा क्षेत्र की मेजा और करछना विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा रहा. बहराइच में स़िर्फ मटेरा विधानसभा क्षेत्र ही सपा बचा पाई, जबकि बस्ती की महादेवा (सु) विधानसभा सीट पर सपा नंबर वन रही. संतकबीर नगर लोकसभा क्षेत्र की घनघटना (सु) विधानसभा सीट पर सपा का कब्जा बरकरार रहा. आजमगढ़ की सभी पांच विधानसभा सीटों पर सपा आगे रही. 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां की मुबारकपुर सीट से बसपा जीती थी, मगर लोकसभा चुनाव में बसपा विधायक अपने क्षेत्र में भी सपा को रोक नहीं पाए.
2012 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने न केवल सत्ता गंवाई, बल्कि उसके मात्र 80 उम्मीदवार चुनाव जीते थे. बीते दो वर्षों में बसपा की स्थिति और भी पतली हो गई, उसका लोकसभा में खाता बंद हो गया. लोकसभा चुनाव में महज नौ विधानसभा सीटों पर ही बसपा जीत हासिल कर पाई बसपा ने जिन नौ सीटों पर बढ़त बनाई, उनमें खीरी संसदीय क्षेत्र की गोलागोकर्णनाथ, सीतापुर संसदीय क्षेत्र की लहर एवं बिसवां, मिश्रिख (सु) संसदीय क्षेत्र की मिश्रिख (सु), लखनऊ के मोहनलालगंज (सु) संसदीय क्षेत्र की सिधौली एवं मोहनलालगंज (सु) विधानसभा सीटों पर ही बसपा बढ़त बना सकी. जालौन लोकसभा क्षेत्र की कालपी, डुमरियागंज की इटवा और मछलीशहर (सु) की केराकत (सु) विधानसभा सीटें ही बसपा के लिए सुकून पहुंचाने वाली रहीं. 2009 के लोकसभा चुनाव में 22 सीटों पर कब्जा करने वाली कांगे्रस को इस बार जब मात्र दो सीटें मिलीं, तो उसका ग्राफ भी कई विधानसभा सीटों पर गिर गया. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांगे्रस के 28 उम्मीदवार जीते थे. इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महज 13 विधानसभा सीटों पर ही विजेता रही. रायबरेली एवं अमेठी संसदीय क्षेत्र अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों ने कांग्रेस की स्थिति काफी संभाली. कांगे्रस सहारनपुर की बेहट एवं सहारनपुर, रायबरेली की बछरावां (सु), हरचंदनगर, रायबरेली, सरेनी एवं ऊंचाहार, अमेठी की तिलोई, सलोन (सु), जगदीशपुर (सु), गौरीगंज एवं अमेठी और प्रतापगढ़ की रामपुर खास विधानसभा सीटों पर आगे रही.

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