bihar2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यूपीए और एनडीए दोनों गठबंधनों के नेता और कार्यकर्ता भी अपने-अपने हिसाब से तैयारियों में लग गए हैं. मगध में चर्चा है कि इस बार नवादा लोकसभा क्षेत्र जद(यू) के खेमे में जा सकता है. इसका कारण बताया जा रहा है कि नवादा में भाजपा का आपसी विवाद गंभीर रूप ले चुका है. वहां बयानबाजी से लेकर पोस्टर युद्ध भी हो शुरू चुका है. नवादा के सांसद व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और हिसुआ के विधायक अनिल कुमार सिंह के समर्थकों के बीच हो रहा यह पोस्टर युद्ध नवादा लोकसभा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि पटना में भी एक-दूसरे के खिलाफ बैनर-पोस्टर लगाए जा चुके हैं.

लोगों का मानना है कि इस बार नवादा से गिरिराज सिंह का पत्ता कटना निश्चित है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार में राजद-कांग्रेस का गठबंधन था, तो वहीं एनडीए में भाजपा, लोजपा और रालोसपा थे. उस समय जद(यू) दोनों गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ी थी. लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद बिहार का राजनीतिक दृश्य अचानक उस वक्त बदला, जब जद(यू) ने अपने बीस साल पुराने राजनीतिक दुश्मन लालू प्रसाद यादव की राजद से दोस्ती कर ली थी. लालू-नीतीश की दोस्ती रंग भी लाई और विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को सफलता मिली. लेकिन यह दोस्ती 20 महीने में ही टूट गई और जद(यू) फिर से एनडीए का हिस्सा बनी.

वर्तमान में, बिहार में राजद-कांग्रेस तो दूसरी ओर एनडीए में भाजपा, जद(यू), लोजपा और रालोसपा का गठबंधन है. इस बीच कांग्रेस के कई बड़े नेता जद(यू) की सदस्यता भी ग्रहण कर चुके हैं. वर्तमान में इसी समीकरण पर चुनावी चर्चा हो रही है. लोकसभा चुनाव आते-आते अगर इस समीकरण में कोई बदलाव होता है, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. बिहार में बड़े भाई के रूप में जद(यू) को उम्मीद है कि उसे लोकसभा चुनाव में सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. इसी क्रम में नवादा लोकसभा सीट भी जद(यू) को मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं. जद(यू) के कोटे में यह लोकसभा क्षेत्र आता है.

पूर्व विधायक कौशल यादव यहां से प्रबल दावेदार हो सकते हैं. जद(यू) और कौशल यादव के समर्थकों का दावा है कि यदि एनडीए की तरफ से जद(यू) के कौशल यादव को लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया, तो उन्हें रिकार्ड वोट से सफलता मिलेगी. कहा जा रहा है कि कौशल यादव के परिवार की नवादा के विकास में अहम भूमिका रही है. उनकी मां गायत्री देवी तथा पिता स्वर्गीय युगल प्रसाद लम्बे समय तक गोबिन्दपुर नवादा से विधायक रहे हैं. अब कौशल यादव और उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव भी गोबिन्दपुर नवादा विधानसभा क्षेत्र के लोगों के बीच सक्रिय हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में बिना किसी गठबंधन के जद(यू) से चुनाव लड़कर कौशल यादव ने 1.70 लाख वोट जुटाए थे. उस समय राजद-कांग्रेस के गठबंधन प्रत्याशी राज बल्लभ यादव को करीब 2.50 लाख वोट मिले थे और एनडीए के भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह को तीन लाख नब्बे हजार वोट मिले थे. लेकिन इस बार भाजपा में गिरिराज सिंह का विरोध हो रहा है. हिसुआ के भाजपा विधायक अनिल कुमार सिंह उनका खुलेआम विरोध कर रहे हैं. हिसुआ विधायक के द्वारा गिरिराज सिंह के खुलेआम विरोध के पीछे  राज्य के कुछ भाजपा नेताओं के समर्थन की बात कही जा रही है.

हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, ये तो भाजपा वाले ही जानते होंगें. इसी से लोग आनुमान लगा रहे हैं कि भाजपा आलाकमान नवादा संसदीय क्षेत्र को तालमेल में जद(यू) को देकर आपसी विवाद को शांत कर सकता है. गिरिराज सिंह को बेगुसराय लोकसभा क्षेत्र से भाजपा का टिकट मिल सकता है. वे 2014 में भी बेगुसराय से ही चुनाव लड़ना चाह रहे थे, लेकिन भाजपा के बुजुर्ग नेता भोला सिंह उन पर भारी पड़े थे. इस बार कहा जा रहा है कि भाजपा भोला सिंह को उम्र का हवाला देकर टिकट से वंचित कर सकती है. भोला सिंह के सर्मथकों का मानना है कि अगर भोला सिंह का टिकट कटता है, तो इसे पार्टी में सच बोलने की सजा के रूप में देखा जाएगा. 2009 में नवादा से भोला सिंह ही सांसद हुए थे.

जब से नवादा संसदीय क्षेत्र बना है, तब से 15 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से 13 बार प्रवासी प्रत्याशियों की ही जीत हुई है. लेकिन नवादा के लोगों ने इस बार चुनाव के लिए नारा दिया है- नवादा का बेटा नवादा का नेता. जातीय तथा गंठबंधन की राजनीति के इस दौर में यह नारा कितना सफल होता है, यह तो समय बताएगा. नवादा संसदीय क्षेत्र में छह विधान सभा क्षेत्र हैं, जिसमें बरबीधा से कांग्रेस के सुदर्शन कुमार जो कांग्रेस के चर्चित नेता राजो सिंह के पोते हैं, रजौली से राजद के प्रकाश वीर, हिसुआ से भाजपा के अनिल कुमार सिंह, नवादा से राजद के राजबल्लभ यादव, गोबिन्दपुर से कांग्रेस के पूर्णिमा यादव जो कि कौशल यादव की पत्नी हैं तथा वारसलीगंज से भाजपा की अरुणा देवी विधायक हैं. अरुणा देवी चर्चित गैंगस्टर अखिलेश सिंह की पत्नी हैं. नवादा के लोगों की मांग है कि ऐसा जनप्रतिनिधि होना चाहिए, जो नवादा को समस्याओं से उबार सके और इसका विकास कर सके. कौशल यादव के समर्थक ही नहीं, नवादा के आम लोगों की भी मांग है कि नवादा को दंगामुक्त किया जाए, क्योंकि पिछले चार-पांच वर्षों में नवादा में दंगे की कई बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिससे आम लोगों का जनजीवन सबसे अधिक प्रभावित हुआ है.

इस संसदीय क्षेत्र में जातीय समीकरण का जो अनुमान है, उसमें करीब 3.50 लाख महादलित-अतिपिछड़ा, 2.75 लाख यादव, 2.00 लाख मुस्लिम, 2.00 लाख भूमिहार, 1.00 लाख कुशवाहा दांगी तथा लगभग 1.50 लाख अगड़ी जाति के मतदाता हैं. हालांकि इनका मतदान प्रत्याशियों, जातीय व राजनीतिक समीकरण के आधार पर बदलता रहता है. उपर्युक्त जातियों का वोट भी नवादा संसदीय क्षेत्र में इधर-उधर होता रहता है. कौशल यादव के समर्थकों का कहना है कि यदि एनडीए के प्रत्याशी के रूप में उन्हें चुनाव लड़ाया गया, तो यादव और मुस्लिम वोट भी अच्छी संख्या में एनडीए को मिल सकते हैं.

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