आईएसआईएस एक शक्तिशाली आतंकवादी संगठन है. इसको कुचलने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को विशेष अधिकार की आवश्यकता है, जिसे अमेरिका अमेरिकी कांग्रेस के सहयोग से हासिल करना चाहता है, ताकि आईएसआईएस पर सख्त कार्रवाई कर वह दुनिया को संदेश दे सके कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में पूरा अमेरिका एक है.

barack-obama-fingerआईएसआईएस पर हमले के लिए व्हाइट हाइस ने अमेरिकी कांग्रेस को मसौदा भेज दिया है. अगर इस मसौदे को डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों की अनुशंसा प्राप्त हो जाएगी तो राष्ट्रपति ओबामा को तीन वर्ष के लिए आईएसआईएस के विरुद्ध दुनिया के किसी भी क्षेत्र में युद्ध लड़ने का अधिकार मिल जाएगा. दरअसल, अमेरिकी संविधान के अनुसार, प्रशासन को किसी भी दूसरे देश में युद्ध शुरू करने की अनुमति केवल कांग्रेस ही दे सकती है. इस प्रकार की अनुमति पहली बार राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को मिली थी. उन्हें यह अनुमति 2001 में अमेरिका पर अलक़ायदा की ओर से हमला करने के बाद 2002 में दी गई थी. इस हमले में 3000 लोगों की जानें गई थीं. प्रतिक्रिया के रूप में अमेरिकी कांग्रेस ने बुश को यह अधिकार दिया था कि वह अगानिस्तान में सैन्य कार्रवाई करके आतंकवादी संगठन अलक़ायदा का अंत कर दें. इस अधिकार का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति बुश ने अगानिस्तान में सैन्य कार्रवाई की और अलक़ायदा का खात्मा कर दिया.
तत्कालीन राष्ट्रपति बुश को दिए गए इसी अधिकार को वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा ने अपने लिए प्रयोग किया और पिछले वर्ष सितंबर में सहयोगियों के साथ मिलकर आईएसआईएस के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई शुरू की थी. हालांकि उनकी इस कार्रवाई पर सवाल भी उठते रहे कि दूसरे देश में सैन्य कार्रवाई का अधिकार अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा को नहीं है, जबकि ओबामा प्रशासन ने यह औचित्य अपना रखा था कि जॉर्ज बुश के दौर में ही अमेरिकी राष्ट्रपति को दूसरे देशों में आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की अनुमति मिल चुकी है और ओबामा प्रशासन इसी अनुमति का प्रयोग कर रहा है.
ओबामा प्रशासन पिछले वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति को मिली अनुमति का फ़ायदा उठाते हुए आईएसआईएस के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू कर दिया था. इस कार्रवाई में हल्के और मध्यम हथियारों का प्रयोग किया गया. अमेरिका इस जंग में ज़मीन पर उतरकर नहीं लड़ रहा था. वह हवाई हमले करके आईएसआईएस के ठिकानों को निशाना बनाता था, जबकि कुर्दिश सेना बशमर्गा ज़मीन पर आईएसआईएस का मुक़ाबला करती थी. आईएसआईएस को कमज़ोर करने के लिए अब तक अमेरिकी नेतृत्व में लगभग दो हज़ार से अधिक हवाई हमले किए गए, लेकिन अब अमेरिका को यह महसूस होने लगा है कि आईएसआईएस किसी साधारण शक्ति का नाम नहीं है. इसको हल्के या मध्यम हथियार से कम समय में कुचला नहीं जा सकता है. इसको कुचलने के लिए एक लंबे युद्ध की आवश्यकता है और इस युद्ध में अमेरिका को कड़ी रणनीति अपनानी होगी. इस लंबी जंग में अमेरिका को अपनी सेनाएं ज़मीन पर उतारनी पड़ सकती हैं और उसे उस समय तक आईएसआईएस से लड़ना होगा, जब तक कि उसका ख़ात्मा नहीं हो जाता. ज़ाहिर है यह एक बड़ी और जटिल समस्या है. अगर अमेरिकी सेना ज़मीन पर उतरती है और पूर्ण रूप से जंग में शामिल हो जाती है और जंग का सिलसिला लंबा हो जाता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को अमेरिकी कांग्रेस की ओर से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ेगा. इसलिए इन्होंने लंबी जंग शुरू करने से पहले कांग्रेस से विशेषाधिकार मिलने की स्वीकृति के लिए अपील कर दी है. कांग्रेस से अधिकार मिलने के बाद ओबामा प्रशासन अधिक विश्‍वास के साथ आईएसआईएस के लिए अपने सहयोगियों के साथ इसके विरुद्ध हवाई हमले जारी रख सकता है. यहां तक कि आईएसआईएस के ख़िलाफ़ ज़मीनी और समुंद्री जंग करने का अधिकार मिल जाएगा. व्हाइट हाइस ने कांग्रेस से अपील करते हुए स्पष्ट किया है कि आईएसआईएस अलक़ायदा से अधिक ख़तरनाक हो चुका है और अगर उसका ख़ात्मा नहीं किया गया तो अमेरिकी धरती पर भी ख़तरे का कारण बन सकता है. कांग्रेस के नाम राष्ट्रपति ओबामा के पत्र में ख़बरदार किया गया है कि तथाकथित इस्लामिक स्टेट ईराक, सीरिया और विस्तृत मध्यपूर्व की जनता और उनकी स्थिरता के अलावा अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी ख़तरा है. इस क्षेत्र में अमेरिकी नागरिक और प्रतिष्ठान भी सुरक्षित नहीं हैं. राष्ट्रपति ओबामा ने कांग्रेस से समर्थन की अपील करते हुए अमेरिकी नागरिकों की आईएसआईएस के हाथों विशेष उल्लेख किया और बताया कि इस आतंकवादी संगठन के ख़िलाफ़ जंग लड़ना क्यों ज़रूरी है. राष्ट्रपति ओबामा ने मसौदे में यह स्पष्ट किया है कि हम ईराक और अगानिस्तान में लंबे युद्ध जैसा रास्ता आईएसआईएस के ख़िलाफ़ नहीं चाहते हैं, लेकिन अल्पावधि के लिए युद्ध की अनुमति मिलनी चाहिए, ताकि इस सशक्त आतंकवादी संगठन का ख़ात्मा किया जा सके. अमेरिकी प्रशासन का यह एक अच्छा क़दम है और दुनिया से आतंकवाद को ख़त्म करना एक गंभीर समस्या है, लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि अमेरिका जो काम अब करने जा रहा है अगर वह पहले ही कर लिया होता तो आईएसआईएस को फलने-फूलने का मौक़ा नहीं मिला होता और निर्दोष लोगों की जानें नहीं जातीं.
इसको समझने के लिए हमें अमेरिका की वर्तमान स्थिति का जायज़ा लेना होगा. पहली बात तो यह कि अमेरिकी राष्ट्रपति को यह अनुमान नहीं था कि आईएसआईएस इतना शक्तिशाली है. वह यह समझते थे कि हल्के और मध्यम हथियारों के प्रयोग से ही उसका ख़ात्मा किया जा सकता है और न ही अमेरिकी प्रशासन को यह आभास था कि यह लड़ाई इतनी लंबी हो सकती है. दूसरा कारण यह है कि इस समय अमेरिका का ध्यान यूक्रेन की ओर है. वह यूक्रेन में लोकतंत्र की बहाली के लिए प्रयासरत है. अगर वहां राजनयिक स्तर पर कोई हल नहीं निकलता है तो ऐसी स्थिति में यूक्रेन को रूसी वर्चस्व से आज़ाद कराना अमेरिका की प्राथमिकता में शामिल होगा. अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी भारत यात्रा के दौरान इस ओर इशारा भी कर चुके हैं कि अगर यूक्रेन में कोई हल नहीं निकलता है तो दुनिया को यह जान लेना चाहिए कि यूक्रेन की सेना को दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना बना दी जाएगी. यानी अमेरिका यूक्रेन को रूस के वर्चस्व से आज़ाद कराने के लिए अपनी ताक़त का प्रयोग कर सकता है. ऐसे में अगर वह इराक, सीरिया और आईएसआईएस के ख़िलाफ़ लंबी जंग में फंस जाता है तो अमेरिकी शक्ति द्विपक्षीय मोर्चे में बंट जाएगी. यही कारण है कि ओबामा अमेरिका को आईएसआईएस के ख़िलाफ़ किसी भी लंबी जंग में व्यस्त होने से बचाना चाहते थे, लेकिन दुर्भाग्य से बशमर्गा की सेना आईएसआईएस का मुक़ाबला नहीं कर सकी. नतीजे में आईएसआईएस का दायरा बढ़ता चला गया. न केवल ईराक व सीरिया, बल्कि लीबिया तक उसने अपनी पकड़ मज़बूत बना ली और ईसाइयों की हत्याओं का दौर चला. ऐसे में अगर आईएसआईएस के विरुद्ध युद्ध छिड़ती है तो इस जंग का दायरा लीबिया तक फैल सकता है. इसके अलावा आईएसआईएस के प्रभाव यूरोप के 22 देशों तक पहुंच चुके हैं. दूसरी ओर पाकिस्तान और अगानिस्तान में भी इसकी जड़ें मज़बूत हैं. अगाानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं के सपोर्ट मिशन के कमांडर जनरल जोन कैंप बेल इस बात का संकेत दे चुके हैं कि आईएसआईएस की ओर से पाकिस्तान और अगानिस्तान में भर्तियां हो रही हैं. इसके बढ़ते क़दमों से दुनिया समेत अमेरिका का अपना हित भी खतरे में नज़र आने लगा है, जैसा कि राष्ट्रपति ओबामा ने कांग्रेस को भेजे गए मसौदे में उल्लेख किया है. लिहाज़ा, अब अमेरिका के लिए एक ही रास्ता रह जाता है कि वह आईएसआईएस को ख़त्म करने के लिए पूर्ण रूप से संलिप्त हो. यह स्थिति अमेरिकी कांग्रेस को भी महसूस हो रही है. इसीलिए इस मसौदे को पेंटागन से मंज़ूरी के संकेत मिलने लगे हैं और आईएसआईएस के ख़िलाफ़ ज़मीनी जंग के लिए 20 हज़ार सेना तैयार करने की बात कही जा रही है. इस प्रकार देखा जाए तो अब अमेरिका ने आईएसआईएस को ख़त्म करने के लिए कमर कस ली है और आईएसआईएस की ज़मीन तंग होना शुरू हो चुकी है.

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