centralचीनी मिल बिक्री घोटाले की आंच और सीबीआई जांच से मायावती को बचाने के लिए केंद्र सरकार नए-नए पैंतरे आजमा रही है. मायावती के कार्यकाल में कुछ खास पूंजी घरानों को प्रदेश की 21 चीनी मिलें कौड़ियों के भाव बेचे जाने के मामले में अब फिर से नया मोड़ आ गया है. इस नए मोड़ की खास वजहें हैं. इसे जानने के लिए पहले हम यह रुटीन सूचना प्राप्त करते चलें कि दो उन कंपनियों के खिलाफ पिछले दिनों लखनऊ के गोमती नगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया, जो चीनी मिलों की खरीद में शामिल थीं.

जबकि चीनी मिलें खरीदने में सबसे अधिक धांधली विवादास्पद पूंजीपति पौंटी चड्‌ढा (अब दिवंगत) की कंपनियों ने प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व और नौकरशाहों से साठगांठ कर मचाई थी. अब आप याद करें कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता-ग्रहण के बाद ही चीनी मिल खरीद घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मंशा जाहिर की थी. इसके फौरन बाद अरुण जेटली के कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय ने इस मामले में कानूनी बाधा डालने की कोशिश की. जेटली के मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग (कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) ने मायावती को फौरन क्लीन-चिट दे दी और कहा कि यूपी की चीनी मिलों की बिक्री में कोई गड़बड़ी नहीं हुई.

आयोग ने अपने ही डीजी (इन्वेस्टिगेशन) की जांच रिपोर्ट दबा दी और ‘दबाव’ में मायावती को बेदाग करार देते हुए चरित्र-प्रमाण-पत्र जारी कर दिया. ‘चौथी दुनिया’ ने आयोग के डायरेक्टर जनरल (इन्वेस्टिगेशन) की वह जांच रिपोर्ट छाप दी, जिसमें चीनी मिलों की बिक्री में घनघोर अनियमितताएं किए जाने की आधिकारिक पुष्टि की गई थी. ‘चौथी दुनिया’ में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद आयोग की घिघ्घी बंध गई और इस प्रकरण में केंद्र सरकार के राजनीतिक तिकड़म और केंद्र व राज्य के राजनीतिक विरोधाभास की कलई खुल गई.

शीर्ष राजनीतिक स्तर से मायावती को ‘छत्र’ देने की कोशिशें उजागर होते ही केंद्र सरकार को अपने पैर पीछे खींचने पड़े. फिर केंद्र ने एक नया कानूनी पैंतरा अख्तियार किया. इस नई पैंतरेबाजी का भी मजा देखिए… अरुण जेटली के जिस कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के एक महकमे ‘सीसीआई’ ने मायावती को बेदाग बताया, उसी मंत्रालय के एक अन्य विभाग ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ (सीआईएफओ) को चीनी मिलों की बिक्री की जांच सौंप दी गई.

मंत्रालय के ही अधिकारी कहते हैं कि यह जांच ‘बलि का बकरा’ तलाशेगी और मायावती को बचाएगी. आप यह जानते हैं कि चीनी मिलों की बिक्री में बरती गई अनियमितताएं महालेखाकार (कैग) की जांच में पहले ही पकड़ी जा चुकी हैं. इसके बाद कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक (अनुसंधान) ने भी अपनी जांच में अनियमितताएं पकड़ीं. यह अलग बात है कि आयोग ने अपने महानिदेशक (अनुसंधान) की जांच रिपोर्ट का ध्यान नहीं रखकर मायावती का ध्यान रखा.

जब दो-दो जांचें चीनी मिलों की बिक्री में घोटाले की पुष्टि कर चुकी थीं, फिर तीसरी जांच की क्या जरूरत थी? इस सवाल का जवाब देते हुए आयोग के ही एक अधिकारी ने कहा कि सीबीआई से मामले की जांच न हो, इसके लिए सारी पेशबंदियां की जा रही हैं. मायावती भविष्य की भाजपाई सियासत का तुरुप का पत्ता बनने वाली हैं, केंद्र सरकार की इन हरकतों से यही साबित हो रहा है. मायावती सीबीआई जांच के चपेटे में न आ जाएं, इसके लिए जांच, प्रति-जांच और प्रति-प्रति-जांच का नियोजित घनचक्कर चलाया जा रहा है.

चीनी मिलों की बिक्री प्रकरण की सीबीआई से जांच कराने के बजाय उसकी जांच कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ को क्यों और कब दी गई? सरकार ने इस पर गोपनीयता क्यों बरती? जब कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के  ही कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया ने मायावती को क्लीन-चिट दे दी थी, फिर उसी मंत्रालय के दूसरे विभाग को जांच क्यों दी गई? अगर सीसीआई की क्लीन-चिट गलत थी तो केंद्र सरकार ने उसके चेयरमैन और अन्य सम्बद्ध सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? इन बेहद जरूरी सवालों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों अपने मुंह पर पट्‌टा बांधे हुई है.

चीनी मिल बिक्री-घोटाले की एक और जांच का ‘सीरियस-फ्रॉड’

दिलचस्प यह है कि ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ (सीएफआईओ) ने अपनी जांच में दो कम्पनियों को फर्जी पाया. चीनी मिल बिक्री प्रकरण का यह अपने आप में ‘सीरियस-फ्रॉड’ है. मायावती के शासनकाल के दरम्यान वर्ष 2010-11 में 10 चालू चीनी मिलें और 11 बंद पड़ी चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में शामिल अधिकतर कंपनियों ने सिंडिकेट बना कर घपला किया. लेकिन सीएफआईओ ने केवल नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को अलग (सिंगल आउट) किया. नम्रता मार्केटिंग ने देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज (कुशीनगर) और हरदोई की चीनी मिलें खरीदने का दावा किया था और गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने रामकोला, छितौनी और बाराबंकी की चीनी मिलों को खरीदने का दावा पेश किया था. इन दोनों कम्पनियों के निदेशकों की ओर से हस्ताक्षरित बैलेंस शीट दावे के साथ संलग्न की गई थी. उसी आधार पर सरकार ने दोनों कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया में शामिल होने के योग्य घोषित किया था. इसके बाद बिक्री प्रक्रिया पूरी हुई और कंपनियों को चीनी मिलें बेच दी गईं.

अब ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ ने अपनी जांच में इन दो कंपनियों की धांधली पकड़ी. यानि, ‘बलि का बकरा’ किसे बनाया जाएगा, यह तय हो रहा है. इस जांच के आधार पर राज्य चीनी निगम लिमिटेड के प्रधान प्रबंधक एसके मेहरा ने आनन-फानन गोमतीनगर थाने जाकर एफआईआर दर्ज करा दी. मेहरा ने नम्रता मार्केटिंग कंपनी के निदेशक दिल्ली के रोहिणी निवासी राकेश शर्मा, गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी धर्मेंद्र गुप्ता, सहारनपुर के साउथ सिटी निवासी सौरभ मुकुंद, सहारनपुर के मिर्जापुर पोल-3 निवासी मोहम्मद जावेद, दिल्ली के रोहिणी निवासी सुमन शर्मा, सहारनपुर के तहसील बेहट निवासी मोहम्मद नसीम अहमद और मोहम्मद वाजिद अली के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया.

आप जैसे-जैसे खबर के विस्तार में जाएंगे, ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ की जांच के पीछे के नियोजित षडयंत्र की परतें अपने आप खुलती दिखेंगी. महालेखाकार से लेकर सीसीआई के डीजी (अनुसंधान) की जांच में भी यह तथ्य खुल कर सामने आ चुका है कि चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में शामिल तमाम कंपनियां पूंजीपति पौंटी चड्‌ढा से ही जुड़ी थीं. कुछ अन्य कंपनियां भी एक-दूसरे से जुड़ी छद्म कंपनियां थीं. लेकिन ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ के जांच अधिकारियों को केवल दो कंपनियों का ही फर्जीवाड़ा दिखा. नम्रता और गिरियाशो जैसी दो कंपनियों के खिलाफ गोमती नगर थाने में जैसे ही एफआईआर दर्ज हुई, वैसे ही पूर्व आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह ने बेसाख्ता कहा कि यह एफआईआर ही धोखा है. सरकार को अगर ठोस कार्रवाई करनी है तो उन नौकरशाहों पर करे, जिन्होंने चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में ‘सक्रिय’ भूमिका निभाई थी.

सत्ता की हांडी, सीसीआई की खिचड़ी और सीएफआईओ का रायता

मायावती के कार्यकाल में चीनी मिलों को औने-पौने भाव में बेचे जाने के मामले की जांच की घोषणा योगी सरकार ने सत्तारूढ़ होने के महीनेभर बाद ही अप्रैल महीने में कर दी थी. अगले ही महीने चार मई 2017 को कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने मायावती सरकार को बेदाग बता दिया. जबकि महालेखाकार (सीएजी) की जांच रिपोर्ट पहले ही यह कह चुकी थी कि चीनी मिलों की बिक्री में घनघोर अनियमितताएं की गईं. सीसीआई के डायरेक्टर जनरल (इन्वेस्टिगेशन) नितिन गुप्ता ने भी अपनी छानबीन में पौंटी चड्‌ढा की कंपनी के साथ नीलामी में शामिल अन्य कंपनियों की साठगांठ की पुष्टि की थी. गुप्ता ने जांच में यह पाया कि नीलामी में शामिल कई कंपनियां पौंटी चड्‌ढा की ही मूल कंपनी से जुड़ी हैं, जबकि नीलामी की पहली शर्त ही थी कि एक मिल के लिए एक ही कंपनी निविदा-प्रक्रिया में शामिल हो सकती है.

राज्य चीनी निगम लिमिटेड की 10 चालू चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में पहले 10 कंपनियां शरीक हुईं, लेकिन आखिर में केवल तीन कंपनियां वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड और इंडियन पोटाश लिमिटेड ही रह गईं. 10 चालू चीनी मिलों को खरीदने के लिए आखिर में बची तीन कंपनियों में ‘गजब’ की समझदारी पाई गई. जिन मिलों को खरीदने में पौंटी चड्‌ढा की कंपनी ‘वेव’ की रुचि थी, वहां अन्य दो कंपनियों ने कम दर की निविदा (बिड-प्राइस) भरी और जिन मिलों में दूसरी कंपनियों को रुचि थी, वहां ‘वेव’ ने काफी कम दर की निविदा दाखिल की. इस तरह की मिलीभगत से पांच चीनी मिलें इंडियन पोटाश लिमिटेड ने और चार चीनी मिलें वेव इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड ने खरीदीं.

दसवीं चीनी मिल की खरीद में और रोचक खेल हुआ. बिजनौर की चांदपुर चीनी मिल की नीलामी के लिए इंडियन पोटाश लिमिटेड ने 91.80 करोड़ की निविदा दर (बिड प्राइस) कोट की. पीबीएस फूड्स ने 90 करोड़ की प्राइस कोट की, जबकि इसमें ‘वेव’ ने महज 8.40 करोड़ की बिड-प्राइस कोट की थी. बिड-प्राइस के मुताबिक चांदपुर चीनी मिल खरीदने का अधिकार इंडियन पोटाश लिमिटेड को मिलता, लेकिन ऐन मौके पर पोटाश लिमिटेड नीलामी की प्रक्रिया से खुद ही बाहर हो गई. लिहाजा, चांदपुर चीनी मिल पीबीएस फूड्स को मिल गई. नीलामी प्रक्रिया से बाहर हो जाने के कारण इंडियन पोटाश की बिड राशि जब्त हो गई, लेकिन पीबीएस फूड्स के लिए उसने पूर्व-प्रायोजित-शहादत दे दी. सीसीआई की जांच में यह भी तथ्य खुला कि पौंटी चड्‌ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड और पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, दोनों के निदेशक त्रिलोचन सिंह हैं.

त्रिलोचन सिंह के वेव कंपनी समूह का निदेशक होने के साथ-साथ पीबीएस कंपनी का निदेशक और शेयरहोल्डर होने की भी आधिकारिक पुष्टि हुई. इसी तरह वेव कंपनी की विभिन्न सम्बद्ध कंपनियों के निदेशक भूपेंद्र सिंह, जुनैद अहमद और शिशिर रावत पीबीएस फूड्स के भी निदेशक मंडल में शामिल पाए गए. मनमीत सिंह वेव कंपनी में अतिरिक्त निदेशक थे तो पीबीएस फूड्स में भी शेयर होल्डर थे. इस तरह वेव कंपनी और पीबीएस फूड्स की साठगांठ और एक ही कंपनी का हिस्सा होने का दस्तावेजी तथ्य सामने आया.

यहां तक कि वेव कंपनी और पीबीएस फूड्स द्वारा निविदा प्रपत्र खरीदने से लेकर बैंक गारंटी दाखिल करने और स्टाम्प पेपर तक के नम्बर एक ही क्रम में पाए गए. आयोग के डीजी ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि दोनों कंपनियां मिलीभगत से काम कर रही थीं. चालू हालत की 10 चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में शामिल होकर आखिरी समय में डीसीएम श्रीराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड, द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज लिमिटेड, लक्ष्मीपति बालाजी शुगर एंड डिस्टिलरीज़ प्राइवेट लिमिटेड, पटेल इंजीनियरिंग लिमिटेड, त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड, एसबीईसी बायोइनर्जी लिमिटेड और तिकौला शुगर मिल्स लिमिटेड जैसी कंपनियों के भाग खड़े होने का मामला भी रहस्य के घेरे में है.

सत्ता अलमबरदारों के होठ सिले हुए हैं, सब मिले हुए हैं

चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की बंद पड़ी 11 चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में भी यही हुआ. नीलामी में कुल 10 कंपनियां शरीक हुईं, लेकिन आखिरी समय में तीन कंपनियां मेरठ की आनंद ट्रिपलेक्स बोर्ड लिमिटेड, वाराणसी की गौतम रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड और नोएडा की श्रीसिद्धार्थ इस्पात प्राइवेट लिमिटेड मैदान छोड़ गईं. जो कंपनियां रह गईं उनमें पौंटी चड्‌ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज के साथ नीलगिरी फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, नम्रता, त्रिकाल, गिरियाशो, एसआर बिल्डकॉन व आईबी ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड शामिल थीं. इनमें भी खूब समझदारी थी. नीलगिरी फूड्स ने बैतालपुर, देवरिया, बाराबंकी और हरदोई चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिर में बैतालपुर चीनी मिल के अलावा उसने बाकी पर अपना दावा छोड़ दिया. इसमें उसे जमानत राशि भी गंवानी पड़ी.

बैतालपुर चीनी मिल खरीदने के बाद नीलगिरी ने उसे कैनयन फाइनैंशियल सर्विसेज लिमिटेड के हाथों बेच डाला. इसी तरह त्रिकाल ने भटनी, छितौनी और घुघली चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिरी समय में जमानत राशि गंवाते हुए उसने छितौनी और घुघली चीनी मिलों से अपना दावा हटा लिया. वेव कंपनी ने भी बरेली, रामकोला और शाहगंज की बंद पड़ी चीनी मिलों को खरीदने के लिए निविदा दाखिल की थी. लेकिन उसने बाद में बरेली और रामकोला से अपना दावा छोड़ दिया और शाहगंज चीनी मिल खरीद ली.

बाराबंकी, छितौनी और रामकोला की बंद पड़ी चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी गिरियाशो और बरेली, हरदोई, लक्ष्मीगंज और देवरिया की चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी नम्रता में वही सारी संदेहास्पद-समानताएं पाई गईं, जो वेव इंडस्ट्रीज़ और पीबीएस फूड्स लिमिटेड में पाई गई थीं.

यह भी पाया गया कि गिरियाशो, नम्रता और कैनयन, इन तीनों कंपनियों का दिल्ली के सरिता विहार में एक ही पता है. बंद पड़ी 11 चीनी मिलें खरीदने वाली सभी कंपनियां एक-दूसरे से जुड़ी हुई पाई गईं, खास तौर पर वे पौंटी चड्‌ढा की वेव इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड से सम्बद्ध पाई गईं. ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ ने अपनी जांच में इन सारे तथ्यों की अनदेखी कर केवल दो कंपनियों नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड पर निशाना साधा. यह सारा प्रहसन केवल मायावती को बचाने के लिए खेला जा रहा है.

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