हम सब ‘ऑल’ में शामिल हैं। लेकिन हमारी स्थिति राष्ट्रीय चिह्न के उन शेरों जैसी है जो चार दिशाओं में मुंह किये बैठे हैं। यानी एक दूसरे को पीठ दिये बैठे हैं। विपक्ष बाधा दौड़ में उलझा है। नरेन्द्र मोदी को हम समझ रहे हैं सब इसी गफलत में चारों शेरों की भांति शांति का पाठ कर रहे हैं। यह भी ख्याल नहीं कि उन शांत शेरों को अब दहाड़ मारते चिन्हित किया गया है। प्रतीकों में बड़ा अर्थ हुआ करता है। सोशल मीडिया पर हमारी ऊटपटांग बहसें मोदी को कभी हिटलर के रूप में देखती हैं तो कभी इंदिरा गांधी के रूप में। कभी इमरजेंसी की बात करती हैं तो कभी 77 के आंदोलन की । ऊटपटांग लोग ऊटपटांग बहसों में कभी महंगाई की बात करते हैं तो कभी बेरोजगारी की, कभी गिरती अर्थव्यवस्था की तो कभी मोदी की छवि की । माफ़ करें लेकिन इन तथाकथित ‘मूर्खों’ को इतना समझ नहीं आता कि ये सारी समस्याएं अस्सी करोड़ जनता के राशन के साये में या उसकी आड़ में छिप चुकी हैं। सही कहें तो बड़ी चतुराई से छिपा दी गई हैं। लेकिन मोदी निश्चिंत फिर भी नहीं हैं। नरेन्द्र मोदी वो इंसान हैं जो समझते हैं कि यदि फर्स्ट क्लास लानी है तो डिस्ट्रिंक्शन की तैयारी करनी पड़ेगी। उन्हें अभी बरसों, जब वे चाहें तब तक, राज करना है। इसलिए वे अपने झूठों पर भी मुड़ कर नहीं देखते। कितना ही मजाक उड़े, कितने ही मीम बनें वे कभी परवाह नहीं करते। जैसे अरविंद केजरीवाल ने कहा था राजनीति करनी है तो कीचड़ में उतरना पड़ेगा। इसलिए वे भी परवाह नहीं करते। पर मोदी केजरीवाल से बहुत आगे हैं। दोनों में फर्क यह है कि मोदी राजनीति में घाट घाट का पानी पीकर आये हैं और बड़ी शाइस्तगी से अनैतिक शब्दों की चादर ओढ़ कर बैठे हैं। परवाह नहीं, किसी चीज की परवाह नहीं। इसलिए कि जो नजर कभी किसी प्रधानमंत्री की नहीं रही मोदी उस नज़र से खुद को गढ़ कर आये हैं। कोई प्रधानमंत्री कुर्सी के लिए नहीं आया लेकिन बाद में कुर्सी उनकी मजबूरी बन गई पर मोदी तो एक खास एजेंडा के साथ कुर्सी पर क्रूर नजरों के साथ बैठे हैं और तब तक बैठना चाहते हैं जब तक देश में बगावत के बीज नहीं पड़ जाते । जिसकी संभावना दूर दूर तक फिलहाल दिखाई नहीं देती।
जिन चुनिंदा लोगों ने मोदी के चरित्र को समझा होगा वे या तो बोल नहीं रहे या वे जानते हैं उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती जैसी होकर रह जाएगी। अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार जैसों ने इसको समझा है। लेकिन वे अकेले क्या कर सकते हैं। अस्सी करोड़ जनता मोदी का कवच है यह सब जानते हुए भी कोई वहां तक पहुंच नहीं रहा। दिन पर दिन बीत रहे हैं। अब एक बात और समझ लीजिए । 2014 से मोदी ने जितने झूठ बोले हैं और जितनी योजनाओं की घोषणाएं की हैं उन सब पर काम हुआ है। जन धन खातों से लेकर वंदे भारत ट्रेनों तक मोदी के पास गिनाने के लिए बहुत कुछ है। सब आधी अधूरी हैं, पर हैं। इन सबके पीछे और अस्सी करोड़ जनता के राशन के पीछे हम सब ‘ऑल’ की वाट लगी हुई है। इसलिए जो लोग बहसों और चर्चाओं में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी आदि में उलझे रहते हैं उन्हें तो मूर्ख भी समझेंगे तो चलेगा। मोदी की समस्याएं और समाधान अलग हैं और अलग तरीके के हैं जो आपकी ठुकी हुई और पारंपरिक सोच से कतई अलग है। इसलिए मुझे सोशल मीडिया के किसी भी चैनल की किसी भी बहस और चर्चा में रुचि नहीं। हां, रवीश कुमार के वीडियो जरूर देखने की इच्छा होती है क्योंकि उनमें सटीक व्यंग्य भी होते हैं पर प्रश्न वही अस्सी करोड़ जनता का ।
हमारे बुद्धिजीवियों और एंकर्स को यह जान लेना चाहिए कि मोदी के बाद की मौजूदा राजनीति को अतीत की किसी भी राजनीति और सत्ता की नजर से न देखें। गहराई से देखिए तो यह सच है कि 2014 से देश नया बन रहा है । यह शगूफा तभी से छोड़ा गया है और यकीनन यह गलत नहीं है। मोदी ने चाहा है, भले आप समझें हों या नहीं, कि मुझे देखना है तो सारे अतीत को भूल जाओ। इतनी छोटी सी लेकिन गहरी और गूढ़ सच्चाई लोग आज तक नहीं समझ रहे । मोदी बेशक पढ़ें लिखे नहीं लेकिन घाघ राजनीतिक व्यक्ति हैं। मैंने अनैतिक भाषा की शब्दावली कहीं थी वह सब मोदी खुद में समेटे हुए हैं और उन्हें उस सबसे कोई और कतई परहेज नहीं। वे हर वक्त, हर भाषण में, हर इवेंट में अपने वोटरों को संबोधित करते हैं और निश्चिंत रहते हैं कि यह ‘ऑल’ उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। मोदी ने इस अर्थ में मेहनत की है । जिस समय वे देश दुनिया में यह मेहनत कर रहे थे उस समय हम उनका मजाक उड़ा रहे थे। उस समय भी और आज भी उनका कवच वोटर वर्ग था और है। इस वर्ग में कौन लोग शामिल हैं यह सब जानते हैं। मजदूर, रिक्शेवाले, रेहड़ी वाले से लेकर वंदे भारत ट्रेनों में सफर करने वाला, चौड़ी और शानदार सड़कों पर मर मिटने वाला और गरीब से अमीरों की ऊपरी तह तक मुसलमानों से नफ़रत करने वाला (इसमें आप पुलिस दल बल को भी शामिल कर सकते हैं) । ये सब बेशक संख्या (वोट शेयर) में कम हों पर मजबूती से संगठित हैं। आप यह भी कह सकते हैं कि ये सब मजबूरी में संगठित हैं। किसी हद तक यह बात सही हो सकती है। पर मोदी नहीं तो फिर कौन। यहां मोदी के पक्ष में संगठित लोगों की मजबूरी समाप्त हो जाती है ।
अभी आज कल में किसी के मुंह से सुना और सच सुना कि प्रधानमंत्री तो वाकई मोदी ही लगते हैं। जैसे आप कहें मुगले आजम तो वाकई पृथ्वीराज कपूर ही लगते हैं। किसी और की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती। मोदी ने सद्दाम हुसैन की तरह चौतरफा अपने को करीने से ढाला है। सद्दाम की क्रूरता से कृपया तुलना न की जाए । मैं सिर्फ छवि तक सीमित हूं। इनकी क्रूरता अलग किस्म की है। जो प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष है। पर साफ दृष्टव्य भी है। पूरी बात कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक हम सब की पहुंच असंगठित क्षेत्र के लोगों तक नहीं होगी, जैसा प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं, जब तक हम उन्हें यह नहीं बताएंगे कि तुम्हारी समस्याओं के लिए अडानी जैसे कॉरपोरेट के लोग और देश का समूचा पूंजीपति वर्ग जिम्मेदार हैं तब तक विपक्ष की तमाम लंगड़ी खेल की उछलकूद (एकता का झूठा दर्प) बेकार और बकवास है। और हमारे बुद्धिजीवी- वे तो ऐशोआराम की जिंदगी से रामलीला मैदान तक जाएंगे ही क्यों । इसलिए कम वोट शेयर लेकर भी मोदी का राज बरसों तक चलेगा। असंख्य झूठ बोले जाएंगे, असंख्य वायदे किये जाएंगे, असंख्य नौटंकियां की जाएंगी और हम इन्हीं सबका मजाक उड़ानें में उलझे रहेंगे। राहुल गांधी का नाम क्योंकि बड़े बड़े लोग लेने लगे हैं और देश विदेश में यह नाम चर्चा में है सिर्फ इसलिए राहुल गांधी बड़े आदमी हैं। आजकल उनकी जुबान पर बीस हजार करोड़ की रकम का सवाल है। कल कोई और सवाल होगा। मैं तो उन्हें रोबोट की तरह ही देखता हूं। कोई सहमत हो, न हो । मोदी इस पूरी शतरंज को जानते हैं। पर इतना तो तय है कि अडानी की बात जैसा प्रोफेसर साहब ने कहा उस पर तो मोदी का घिरना तय है। ऐसा पहली बार हुआ है। इन नौ सालों में मोदी पहली बार बुरी तरह अडानी पर घिरे हैं। इससे कैसे वे निपट कर लोकसभा चुनाव जीतेंगे आप देखिएगा। फिर विपक्ष का रोना भी देखिएगा। विधानसभा के चुनावों में जहां जहां कांग्रेस की जीत हो उसे राहुल गांधी से जोड़ने की भूल मत कीजिएगा। यह समझिए कि वहां मोदी शासन से निराशा है और वहां कांग्रेस स्वयं में मजबूत है। वरना कांग्रेस में ही कई लोग राहुल से बेरुखी के आलम में हैं।
कुछ लोगों ने कहा है कि मेरी अधिकांश बात लाउड इंडिया टीवी में अभय कुमार दुबे शो तक सिमट जाती है। काफी हद तक सही भी है। उसका कारण कई बार लिखा जा चुका है। लेकिन यह आपत्ति सही है और इसका ध्यान रखा जाएगा। पर फिलहाल हम सबको तय करना है कि मोदी की जीत की मंशा पर कैसे पानी फेरा जाए । मैंने तो लिखा है वे जीतते जाएंगे। लेकिन बहुत बारीक सी बात है कि मोदी वर्सेज यह’ऑल’ यदि इस बारीक लकीर को समझ लें तो बाजी पलटी जा सकती है। गरीबों के बीच काम करने को कौन तैयार है?
चलते चलते एक बात और कह दी जाए कि हाल ही में ट्विटर पर भारत का नक्शा देखा जहां भारत के हर राज्य में दुनिया के तमाम देशों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से बड़े करीने से बैठाया गया है। जैसे यूपी में ब्राजील और मध्य प्रदेश में फ्रांस आदि आदि। और उस पर लिखा हुआ है ‘हिंदुस्तान का प्रधानमंत्री एक साथ कितने देशों की जनसंख्या को संभाल रहा है। बहुत ही चिंताजनक है’। यह बात और यह नक्शा मोदी के वोटर को प्रभावित करने वाला है। तो ऐसे में आप क्या करेंगे। आप बंटे हुए लोगों से ज्यादा संगठित और प्रभावित हैं बीजेपी का आईटी सेल। जरा सोचिए !!

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