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उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा पूरे देश के लिए शोक का विषय है. सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों ने दिन-रात जुटकर प्रभावित लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला. लेकिन इस दौरान स्थानीय प्रशासन और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की निष्क्रियता ने कई सवाल पैदा कर दिए. पेश है, एक विचारोत्तेजक टिप्पणी.
एक और बात साफ हो गई कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) एक अप्रभावी संस्था है. एनडीएमए के अध्यक्ष श्री रेड्डी टीवी पर आए और उन्होंने यह कहा कि राष्ट्रीय आपदा की कोई परिभाषा नहीं है. यह बयान कितना हास्यास्पद है! एनडीएमए, जिस पर सरकारी पैसा खर्च किया जा रहा है और जिसके अध्यक्ष यह कहते हों कि राष्ट्रीय आपदा क्या है, हम नहीं जानते.
पिछले कुछ दिन केदारनाथ एवं रुद्र प्रयाग क्षेत्र में भारी बाढ़ की त्रासदी और उसके बाद की घटनाओं के साक्षी रहे. विभिन्न टीवी चैनलों ने नागरिकों को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को दिखाया. एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि सेना, वायुसेना एवं अर्द्धसैनिक बलों ने सराहनीय कार्य किया है. उन्होंने अपने दम पर आपदा प्रबंधन का काम संभाला. नदी पार करना यात्रियों के लिए संभव नहीं था. वे लोग न स़िर्फ हेलिकॉप्टर उड़ा रहे हैं, बल्कि उन्होंने जहां-तहां फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए पलटन एवं छोटे पुलों का निर्माण कज्ञह किया, ताकि यात्रियों को एक रस्सी पर लटका कर नदी पार कराई जा सके. यह सब वास्तव में हमारे लिए गर्व की बात थी. हमें निश्‍चित तौर पर सुरक्षाबलों को धन्यवाद देना चाहिए.
दूसरी ओर, यह भी स्पष्ट है कि इस दौरान नागरिक प्रशासन लोगों की आशाओं के विपरीत पूरी तरह विफल रही है. स़िर्फ इन्हीं क्षेत्रों की बात नहीं है, बल्कि पूरे देश में सिविलियन अथॉरिटी की यही हालत है. वे इस तरह का काम करने के लिए सक्षम तक नहीं हैं. विशेष रूप से, उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में सिविलियन अथॉरिटी की हालत और भी खराब है और यह इस वक्त उनकी कार्यप्रणाली और शैली देखकर समझा जा सकता है. यह उम्मीद थी कि एहतियाती तौर पर यहां की सिविलियन अथॉरिटी के पास कुछ तो उपाय होंगे, लेकिन अंतत: निराशा ही हाथ लगी. मैं नहीं जानता कि इस वक्त आपदा प्रबंधन के काम में उसका क्या योगदान है?
एक और बात साफ हो गई कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) एक अप्रभावी संस्था है. एनडीएमए के अध्यक्ष श्री रेड्डी टीवी पर आए और उन्होंने यह कहा कि राष्ट्रीय आपदा की कोई परिभाषा नहीं है. यह बयान कितना हास्यास्पद है! एनडीएमए, जिस पर सरकारी पैसा खर्च किया जा रहा है और जिसके अध्यक्ष यह कहते हों कि राष्ट्रीय आपदा क्या है, हम नहीं जानते. अगर एनडीएमए के अध्यक्ष को ही यह पता नहीं कि राष्ट्रीय आपदा क्या है तो इस संस्था का गठन क्यों किया गया?
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन सुनामी के बाद किया गया था. ऐसे प्राधिकरण का गठन इसलिए किया गया ताकि जब कोई आपदा हो तब राहत काम तेजी से हो सके. मुझे लगता है कि  उत्तराखंड में इस वक्त आपदा प्रबंधन में भी इसका कोई खास रोल नहीं है. सरकार को यह अब तय करना पड़ेगा क्या हमें क्या राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की जरूरत है भी या नहीं क्योंकि आपदा प्रबंधन के प्रति संवेदनहीनता का आलम यह है कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की तीन साल से कोई मीटिंग तक नहीं हुई है.

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