moodysपिछले महीने अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर सर्विस ने 13 साल बाद भारत की सॉवरन क्रेडिट रेटिंग बीएए 3 से बढ़ाकर बीएए 2 कर दी. रेटिंग में इस सुधार का अर्थ यह है कि क्रेडिट आउटलुक पहले स्थिर थी, अब सकारात्मक हो गई है. ज़ाहिर है नोटबंदी और जीएसटी को लेकर विपक्ष का वार झेल रही मोदी सरकार को यह एक राहत देने वाली खबर है. लेकिन मज़े की बात यह है कि मूडीज के एक हफ्ते बाद ही एक और अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैण्डर्ड एंड पूअर्स ने अपनी ताज़ा रेटिंग में भारत की पुरानी रेटिंग बीबीबी- (न्यूनतम निवेश ग्रेड) को बरक़रार रखा है. ज़ाहिर है इन दोनों एजेंसीज का दो अलग अलग नतीजों पर पहुंचना खुद इन रेटिंग एजेंसियों की दुविधा को बयान करता है. प्रधानमंत्री कार्यालय ने टि्‌वट कर मूडीज के ताजा फैसले का स्वागत किया है. वित्त मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी सरकार की आर्थिक सुधार नीतियों खास तौर पर जीएसटी और नोटबंदी की तारीफ की.

क्रेडिट एजेंसी की क्रेडिट!

विपक्ष दल कांग्रेस ने भी रैंकिंग सुधार के लिए अपनी पीठ थपथपाई. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने मूडीज द्वारा भारत की रैंकिंग में इजाफे का अधिक श्रेय यूपीए सरकार द्वारा सात-आठ साल पहले किए गए कार्यों को दिया. चिदंबरम ने यह भी कहा कि सरकार ने पांच महीने पहले मूडीज की रैंकिंग की पद्धति पर सवाल उठाते हुए एक पत्र लिखा था और उनकी पद्धति को बेकार बताया था और आज उन्हें मूडीज से प्यार हो गया है. दरअसल एक साल पहले रायटर्स ने एक खुलासा किया था कि उस समय मोदी सरकार ने अपनी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में सुधार के लिए मूडीज के साथ लॉबीइंग की थी. उस खुलासे में कहा गया था कि भारत ने मूडीज की रैंकिंग पद्धति की आलोचना की थी और अपनी ग्रेडिंग सुधारने की ज़ोरदार वकालत की थी, लेकिन मूडीज ने देश के ऋृण स्तर और बैंकों की नाजुक स्थिति को देखते हुए झुकने से इनकार कर दिया था. इससे ज़ाहिर होता है कि मूडीज की रैंकिंग में लॉबीइंग की गुंजाइश रहती है. इससे पहले कि मूडीज और स्टैण्डर्ड एंड पूअर्स (एस एंड पी) की रैंकिंग पर बात करें यहां उनकी विश्वसनीयता से सम्बंधित दो ख़बरों पर नज़र डाल लेते हैं. इस वर्ष जनवरी में मूडीज ने सबप्राइम मौरगेज सिक्योरिटीज क्रेडिट मामले को कोर्ट से बाहर सुलझाने के लिए अमेरिकी अधिकारियों के साथ 864 मिलियन डॉलर का समझौता किया. अमेरिकी एजेंसीज की तरफ से यह आरोप था कि मूडीज ने 2008 के वित्तीय संकट के दौरान अपनी रेटिंग में पारदर्शिता नहीं रखी थी. उसी तरह एस एंड पी को 2015 में मौरगेज सिक्योरिटीज क्रेडिट के  मामले में 77 मिलियन डॉलर का मुआवजा देना पड़ा और एक साल के लिए अपनी रेटिंग स्थगित करनी पड़ी.

क्यों बढ़ी रैंकिंग

भारत की रैंकिंग बढ़ाने के सम्बन्ध में मूडीज के बयान में कहा गया कि भारत की रैंकिंग बढ़ाने का फैसला इस अपेक्षा में किया गया है कि यहां निरंतर चलने वाली आर्थिक और संस्थागत सुधार आने वाले समय में भारत की उच्च विकास क्षमता और सरकारी ऋृण की बड़े और स्थिर वित्तपोषण के आधार को बढ़ाएंगे. सामान्य सरकारी ऋृण में धीरे-धीरे गिरावट आएगी. इस बयान से यह ज़ाहिर होता है कि मूडीज ने भारत की रैंकिंग में सुधार तात्कालिक स्थिति को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि भविष्य की आशा के साथ की है.

मूडीज ने जीडीपी के बारे में वही बातें कहीं हैं, जो सरकार की तरफ से कही जाती रही हैं. उसका कहना है कि सरकार द्वारा किए गए सुधारों के प्रभाव सामने आने में समय लगेंगे. जीएसटी और नोटबंदी ने अल्पकालिक तौर पर विकास को नुकसान पहुंचाया है. बहरहाल मूडीज के मुताबिक वित्त वर्ष 2018 जीडीपी विकास दर बढ़कर 7.5 प्रतिशत होने की सम्भावना है. गौरतलब है कि आईएमफ ने भी वर्ष 2018 के लिए 7.7 प्रतिशत विकास दर की सम्भावना जताई है. भारत की रैंकिंग वाले दूसरे देशों की तुलना में भारत की विकास दर की सम्भावना काफी अधिक है. जीडीपी विकास दर के सम्बन्ध में एस एंड पी ने भी भारत की जीडीपी को मज़बूत स्थिति में दिखाया है, लेकिन इसने यह भी कहा है कि 2017 में नोटबंदी और जीएसटी की वजह से विकास दर बाधित हुआ.

ज़ाहिर है रैंकिंग में इजाफे को लेकर जहां भाजपा के खेमे में उत्साह है, वहीं कांग्रेस भी इसका श्रेय लेने में पीछे नहीं है. कुछ विश्लेेषक यह मान बैठे हैं कि रैंकिंग में सुधार से देश में विदेशी निवेश के दरवाज़े खुल जाएंगे. जहां तक विदेशी निवेश का सवाल है तो अपने कार्यकाल के पहले दूसरे साल में प्रधानमंत्री ने ताबड़तोड़ विदेश दौरे किए. हर दौरे में उन्होंने करोड़ों के निवेश पर हस्ताक्षर भी किए, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई खास निवेश आता नहीं दिखा. ऐसे में एक ऐसी एजेंसी जिसकी भविष्यवाणी पूर्व में नाकाम हो चुकी है, विदेशी निवेशकों को उत्साहित करेगी. तात्कालिक रूप से स्टॉक मार्केट ने कोई बड़ा उत्साह नहीं दिखा कर अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर कर दी है. लिहाज़ा इस रैंकिंग से कोई उम्मीद लगाना ज्यादती होगी, खास तौर पर ऐसे में जब एक रेटिंग एजेंसी आशावादी रुख अपनाये हुए है और दूसरी एजेंसी निराशा दिखा रही है.

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