तेजाब का जख्म तो ठीक हो जाता है, लेकिन वह अपने निशान कभी नहीं छोड़ता. जो निशान शरीर पर पड़ते हैं, उनसे ज़्यादा गहरे निशान दिलो-दिमाग पर पड़ जाते हैं, जो सोते-जागते हर वक्त कचोटते हैं, स़िर्फ पीड़ित को नहीं, बल्कि पूरे समाज को. अंबाह कोर्ट ने सजा-ए-मौत का जो फैसला सुनाया है, वह शायद सोते हुए समाज को जगाने की शुरुआत मात्र है.
मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले की एक अदालत ने एसिड अटैक के मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया है. देश में पहली बार एसिड अटैैक के मामले में आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई है. आम तौर पर मुरैना ज़िला किसी न किसी आपराधिक गतिविधि की वजह से सुर्खियों में रहता है, लेकिन इस बार वह अंबाह कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले की वजह से सुर्खियों में है. अंबाह के अपर सत्र न्यायाधीश पी सी गुप्ता ने मामले की सुनवाई करते हुए केवल आठ महीने में अपना फैसला सुना दिया. अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 326 (ए) के अंतर्गत आजीवन कारावास एवं धारा 450 के अंतर्गत 10 साल की सजा सुनाई, साथ ही जुर्माना लगाया. 21 जुलाई, 2013 को आरोपी योगेंद्र सिंह तोमर उर्फ जोगेंद्र ने मुरैना के पास स्थित पोरसा के गांधी नगर में अपनी प्रेमिका रूबी गुप्ता के घर में देर रात घुसकर उस पर तेजाब डाल दिया था. आरोपी के रूबी के साथ अंतरंग संबंध थे, बावजूद इसके उसने आरोपी के साथ रहने से इंकार कर दिया था. इसी वजह से योगेंद्र ने रूबी पर तेजाबी हमला किया. मुरैना के ज़िला अस्पताल में रूबी की मृत्यु हो गई थी. मरने से पहले उसने अपना बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज करा दिया था. हमलावर ने अपनी पहचान हो सकने के डर से रूबी का बचाव करने आई उसकी 60 वर्षीय दादी और उसके दो मौसेरे भाइयों 20 वर्षीय जानकी प्रसाद (जानू) एवं 14 वर्षीय राजू पर भी तेजाबी हमला किया. घटना के एक महीने बाद एक सितंबर, 2013 को पुलिस ने आरोपी को राजस्थान के धौलपुर में धर दबोचा. इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई शुरू की और रिकॉर्ड आठ महीने में सुनवाई पूरी करके बीते 24 जुलाई को अपना फैसला सुना दिया. न्यायालय ने इस मामले को विरलतम (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) मानते हुए आरोपी को सजा-ए-मौत दी.
अदालत ने माना कि आरोपी का कृत्य समाज की रूह कंपा देने और रोंगटे खड़े कर देने वाला है. विधायिका ने जिस प्रकार तेजाब जैसे ज्वलनशील अम्ल से होने वाले अपराधों की क्रूरता और वीभत्स रूप को देखते हुए दंड संहिता में संशोधन कर विकृति अथवा अंग विकार होने पर आरोपी के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान किया है, उससे यह दर्शित होता है कि विधायिका इस तरह के अपराधों से अत्यधिक व्यथित और चिंतित है तथा वह इस पर पूर्ण अंकुश लगाना चाहती है. विधायिका द्वारा दंड संहिता में किए गए संशोधन के आलोक में इस मामले पर विचार किया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि अपराधी ने ठंडे दिमाग से सोच-विचार के उपरांत अपराध को अंजाम दिया, जिसके कारण मृतका और आहत हुए लोगों के साथ-साथ समाज की आत्मा भी आहत हुई. ऐसी स्थिति में इस केस में जघन्य अपराध के स्वरूप को देखते हुए आजीवन कारावास का दंड अल्प प्रतीत होता है, क्योंकि आरोपी ने जिस दु:साहसिक तरीके से रात्रि गृह अतिचार करते हुए अपने मकान के कमरे में सो रही एक निर-अपराध महिला रूबी को तेजाब डालकर ज़िंदा जलाया और तीन अन्य को घोर क्षति पहुंचाई.
विद्वान न्यायाधीश ने कहा कि नि:संदेह इस अपराध को अंजाम देने का तरीका और कल्पना अत्यधिक नृशंसता-क्रूरता के स्तर का होकर सुविचारित एवं घिनौनी प्रकृति का है, जो आरोपी को मृत्यु दंड देने की मांग करता है और मृत्यु दंडादेश ही इस अपराध का उचित दंडादेश है, क्योंकि एक व्यक्ति केवल महिला द्वारा साथ रहने से इंकार करने पर तेजाब जैसा पदार्थ डालकर उसकी निर्मम हत्या कर सकता है और तीन अन्य को नुक़सान पहुंचा सकता है, तो वह भविष्य में अपनी इच्छा पूर्ति न होने पर किसी भी व्यक्ति को मार सकता है. पूर्व में हत्या के आरोप की दोष सिद्धि के बाद भी आरोपी की आपराधिक मनोस्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. अत: अपराध की इस पृष्ठभूमि में आजीवन कारावास का दंड अपर्याप्त प्रतीत होता है और उससे न्याय की मंशा पूर्ण नहीं होती, क्योंकि आरोपी का आपराधिक कृत्य विरलतम (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) मामले की श्रेणी में आता है. अत: यह अदालत आरोपी योगेंद्र को आईपीसी की धारा 302 के तहत मृत्यु का दंडादेश देती है. हालांकि, मृत्यु का दंडादेश सीआरपीसी की धारा 366 के अनुसार, उच्च न्यायालय के निर्णय पर निर्भर करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर एसिड अटैक के मामलों में निर्णय दिए हैं और इस पर रोक लगाने के लिए गाइडलाइंस भी जारी की है. कोर्ट ने एसिड अटैक के मामले को ग़ैर-जमानती बनाया है सुप्रीम कोर्ट ने बिना पहचान पत्र के और 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को तेजाब की बिक्री करने पर प्रतिबंध लगाया है. यदि कोई दुकानदार पहचान-पत्र, खरीददार का पता और तेजाब खरीदने के उद्देश्य की जानकारी के बिना तेजाब बेचते पकड़ा गया, तो ऐसे मामले में उसे जमानत नहीं मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर लगातार सख्त रुख अपनाता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल में केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस भेजकर एसिड हमलों के ख़िलाफ़ उठाए गए क़दमों के बारे में छह हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है. देश की अदालतें एसिड अटैक के मामलों को लेकर सख्त हैं. अंबाह कोर्ट का निर्णय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है. सरकारी वकील राम निवास सिंह तोमर ने बताया कि एसिड अटैक के इस मामले में पुलिस ने सराहनीय काम किया. उसने न केवल आरोपी को गिरफ्तार कर समय सीमा के भीतर चालान पेश किया, बल्कि गवाहों को समय पर न्यायालय में पेश करके उनके बयान दर्ज कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसी वजह से अदालत इतने कम समय में ़फैसले तक पहुंचने में सफल रही और आरोपी को फांसी की सजा मिली.
भारत सरकार आईपीसी की धारा 326 में संशोधन कर धारा 326 (ए) और 326 (बी) लेकर आई, जिसका सीधा-सीधा संबंध एसिड अटैक और उससे होने वाले नुक़सान से है. इन धाराओं के अनुसार, यह अपराध ग़ैर जमानती है. इसके साथ ही पीड़ित के इलाज का पूरा खर्च देने और दोष सिद्ध होने पर आरोपी को कम से कम 10 साल या उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है. आरोपी पर जो जुर्माना लगाया जाएगा, वह पीड़ित को मिलेगा. विभिन्न सामाजिक संगठन सरकार के समक्ष कई मांगें रखते रहे हैं. उनका कहना है कि एसिड अटैक से अपूरणीय क्षति होती है, वह पीड़ित को विकलांग बना देता है. एसिड अटैक के पीड़ितों को विकलांगों की तरह सुविधाएं मिलनी चाहिए, जैसे मासिक पेंशन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में छूट, उच्च शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण आदि.
बांग्लादेश से सीख लेने की ज़रूरत .
यदि इस मामले में भी पीड़िता की मौत नहीं होती, तो शायद आरोपी को मौत की सजा नहीं दी जाती. एसिड अटैक की शिकार महिलाओं को मौत से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है. देश में हर साल तक़रीबन 1000 से ज़्यादा एसिड अटैक के मामले प्रकाश में आते हैं. वजह, आम तौर पर एकतरफ़ा प्यार, शादी का प्रस्ताव लड़की द्वारा ठुकराना अथवा रंजिश. सरकार ने एसिड अटैक पर लगाम लगाने के लिए क़ानून तो बनाए हैं, लेकिन वे नाकाफी हैं. भारत सरकार को एसिड अटैक पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए बांग्लादेश के पदचिन्हों पर चलना होगा, वहां नया क़ानून आने के बाद एसिड अटैक की घटनाओं में बड़े पैमाने पर गिरावट आई है. बांग्लादेश सरकार वर्ष 2002 में एसिड ऑफेंस प्रिवेंशन एक्ट और एसिड कंट्रोल एक्ट लेकर आई. इसके बाद बांग्लादेश में खुले तौर पर तेजाब बिक्री पर पाबंदी लग गई. एसिड अटैक के मामले में सजा-ए-मौत और जुर्माने का प्रावधान किया गया. मामले की जांच 30 दिनों में पूरी और मामले की सुनवाई 90 दिनों में ख़त्म करने का प्रावधान किया गया. साथ ही ऐसे मामलों की देखरेख के लिए विशेष ट्रिब्यूनल का गठन भी किया गया.