gujarati_wedding01कानून बनाए ही जाते हैं तोड़े जाने के लिए. फिल्म शहंशाह में खलनायक अमरीश पुरी के मुंह से निकला यह डायलॉग शायद महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा रोकने के लिए बने कानून 498-ए के बारे में ही कहा गया लगता है. कानून के बेजा इस्तेमाल में यूपी की महिलाएं कुछ अधिक ही अव्वल साबित हो रही हैं. आपकी पत्नी पास के पुलिस स्टेशन पर 498-ए दहेज एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक लिखित झूठी शिकायत करती है तो आप, आपके बूढ़े मां-बाप और रिश्तेदार फौरन ही बिना किसी विवेचना के गिरफ्तार कर लिए जाएंगे और गैर-जमानती मामले में जेल में डाल दिए जाएंगे, भले ही की गई शिकायत फर्जी क्यों न हो!

लखनऊ में रहने वाले मेरे एक पारिवारिक मित्र जो कि खुद पीसीएस अफसर हैं, के मुंह से यह सुनकर दंग रह गया कि उनकी पत्नी जो खुद एक डिग्री कालेज में लेक्चरर हैं, ने पारिवारिक झगड़े के बाद पुलिस में जाकर 498-ए के तहत एफआईआर दर्ज करा दीं और पुलिस उन्हें और उनकी मां को गिरफ्तार करने के लिए उनके सरकारी आवास पर पहुंच गई. अपनी पहुंच और पत्नी को दयनीय तरीके से सॉरी कहने के बाद ही उनकी जान छूटी.

अब वह घर में कैसे रहते होंगे इसे आप खुद ही समझ सकते हैं. दरअसल, 498-ए सरकार ने महिलाओं को घरेलू उत्पीड़न से बचाने और दहेज हत्याओं को रोकने के लिए बनाया था, पहले यह कानून सफल भी रहा और महिलाओं को इसका फायदा आज भी मिल रहा है, लेकिन समय के साथ वकीलों की सलाह के चलते यह कानून लड़की के पति से मनमुटाव होने पर उससे तलाक लेने और हर्जाना वसूलने के काम आने लगा.

498-ए में मुकदमा लिख जाने के बाद वर पक्ष के पास अपने को निर्दोष साबित करने की बड़ी समस्या होती है, क्योंकि यह कानून वर पक्ष पर लगे आरोप को साबित करने की जगह यह कहता है कि सजा से बचना है, तो अपने को निर्दोष सिद्ध करो. लखनऊ के इंदिरा नगर इलाके में रहने वाले रामपाल सिंह ने अपने लड़के की शादी दिल्ली में अपने पुराने परचित महेंद्रपाल सिंह की लड़की से की. शादी के बाद रामपाल सिंह का लड़का जो कि अमेरिका में एक आईटी कंपनी में अच्छे जॉब में है पत्नी को लेकर अमेरिका चला गया.

पांच साल बाद उनमें वहीं पर कुछ मनमुटाव हो गया और उनकी बहू रश्मी भारत लौट आई. बाद में पता चला कि वह उनके लड़के को तलाक देना चाहती है. रामपाल जी ने सोचा कि लड़के बहू के बीच में अनबन होगी उसी के कारण यह हो रहा है, लेकिन एक दिन लखनऊ में ही पुलिस उन्हें और उनके साथ रह रही एक भतीजी को गिरफ्तार करने पहुंच गई. पता चला कि उनकी बहू ने उनके, उनकी पत्नी और भतीजी के खिलाफ 498-ए में एफआईआर लिखाई है.

तीनों ही लोगों को जेल जाने के बाद ही जमानत मिल सकी. अब मजबूरी में वह बहू के खिलाफ अदालत में केस लड़ रहे हैं और उनके वकील उन्हें सलाह दे रहे हैं कि भूल से भी वे अपने लड़के को भारत वापस नहीं आने दें. नहीं तो यहां पहुंचते ही उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा. रामपाल रोते हुए कहते हैं, …बहू पहले ही कह देती कि उसे तलाक के साथ हर्जाने में तीस लाख रुपये चाहिए तो वह पहले ही अपना मकान बेच देते.

इस जिल्लत से तो बच जाते. उनके अनुसार वह मकान का सौदा कर लेंगे और बहू अदालत से केस वापस ले लेगी और वह मकान बेचने के बाद बची रकम लेकर अपने लड़के के पास अमेरिका ही चले जाएंगे, क्योंकि यहां अपने समाज के बीच तो अब वह सिर उठा कर जी नहीं सकते. दरअसल 498-ए दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम को केवल पत्नी या उसके सम्बन्धियों के द्वारा ही निष्प्रभावी किया जा सकता है.

पत्नी की शिकायत पर आपका पूरा परिवार जेल जा सकता है चाहे वो आपके बूढ़े मां-बाप हों, अविवाहित बहन, भाभी (गर्भवती क्यों न हो) या 3 साल का छोटा बच्चा. शिकायत को वापस नहीं लिया जा सकता और शिकायत दर्ज होने के बाद आपका जेल जाना तय है. ज्यादातर केस में यह शिकायतें झूठी ही साबित होती हैं और इसको निष्प्रभावी करने के लिए स्वयं आपकी पत्नी ही अपने पूर्व बयान से मुकर कर आपको जेल से मुक्त करा सकती है.

चर्चित निशा शर्मा केस यू.पी. का है. उसमें फंसे मुनीष दलाल को नौ साल अदालत में चले मामले में दोषी नहीं माना गया. लेकिन इन नौ साल में उसका करियर बर्बाद हो गया. नौ साल कोर्ट के चक्कर लगाते हुए लाखों रुपये खर्च हो गए. एक सर्वे के अनुसार दहेज मांगने के लाखों केस राज्य सरकार ने पूरे देश भर से मंगाए. जिसमें 94 फीसदी केस झूठे साबित हो रहे हैं, जिसके कारण न्याय मिलने में देरी हो रही है और जजों का कीमती समय खराब हो रहा है. देश को आर्थिक नुकसान होने के साथ ही लाखों पुरुष मानसिक दबाब में जी रहे हैं.

जब आईपीसी में धारा 498-ए को शामिल किया गया था, तो समाज ने, विशेषकर वैसे परिवारों ने राहत महसूस की थी, जिनकी बेटियां दहेज के कारण ससुराल में पीड़ित थीं या निकाल दी गई थीं. लोगों को लगा कि विवाहिता बेटियों के लिए सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है. इससे दहेज के लिए बहुओं को प्रताड़ित करने वालों परिवारों में भी भय का वातावरण बना.

शुरू में तो कई लोग कानून की इस धारा से मिलने वाले लाभों से अनभिज्ञ थे, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसका सदुपयोग भी करने लगे. पर कुछ ही समय बाद इस कानून का ऐसा दुरुपयोग शुरू हुआ कि यह वर पक्ष के लोगों को डराने वाला शस्त्र बन गया. इस कानून के दुरुपयोग का शिकार एक पूरा परिवार लुधियाना की जेल में बंद है. उसमें महिला की वह देवरानी भी थी, जो कुछ ही महीने पहले ब्याहकर ससुराल आई थी. किसी ने यह भी नहीं सोचा कि यह युवती, जो कुछ ही महीने पहले ब्याहकर आई है, उसका अपनी जेठानी को तंग करने या मारने में कितना योगदान हो सकता है! कहीं-कहीं तो विवाहिता और अविवाहिता ननदें भी शिकंजे में आ जाती हैं.

सच बात तो यह है कि 498-ए विवाहिता बेटी को ससुराल से मुंहमांगी रकम दिलवाने का एक प्रबल औजार बन गया. जिन लोगों ने सादगी से विवाह किया, लड़की वालों से कोई बड़ा दहेज नहीं लिया, वे भी अपराधी बनाकर जेलों में बंद किए गए. अब सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया है कि दहेज प्रताड़ना के मामले में केवल एफआईआर के आधार पर मुकदमा नहीं चल सकेगा. शिकायतकर्ता के पति व अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए स्पष्ट आरोप होना आवश्यक है.

न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर व ज्ञानसुधा मिश्र की पीठ ने यह फैसला ननद व जेठ के खिलाफ मुकदमा निरस्त करते हुए सुनाया. न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि जब तक प्राथमिकी में मुख्य अभियुक्त के रिश्तेदार सह अभियुक्तों के विरुद्ध शिकायतकर्ता (पत्नी) को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के विशिष्ट आरोप न हों, तब तक सिर्फ एफआईआर में नाम होने के आधार पर मुकदमा चलाना कानूनी और अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.

न्यायाधीशों ने जोर देकर कहा कि अदालतों से अपेक्षा की जाती है कि वे वैवाहिक झगड़ों के मुकदमों को निरस्त करने की मांग पर विचार करते समय सतर्क रहेंगे. विशेष तौर पर उन मामलों में, जहां शादी के बाद ससुराल में पत्नी को परिवार के साथ सामंजस्य बनाने में कोई विशेष कठिनाई आई हो और पत्नी द्वारा मुख्य अभियुक्त के रिश्तेदारों पर बढ़ा-चढ़ाकर आरोप लगाए गए हों और उसमें पूरे परिवार को शामिल कर दिया गया हो.

सुप्रीम कोर्ट कई बार इस बात पर चिन्ता प्रकट कर चुका है कि आईपीसी की धारा 498-ए का जमकर दुरुपयोग हो रहा है. क्योंकि इस धारा के तहत दर्ज किए जाने वाले मुकदमों में सजा पाने वालों की संख्या मात्र दो प्रतिशत है! यही नहीं, इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज करवाने के बाद समझौता कराने का भी कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में एक बार एफआईआर दर्ज करवाने के बाद वर पक्ष को मुकदमे का सामना करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचता. पुरुष को पुलिस और पत्नी-परिवार दोनों तरफ से शोषण और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है.

सामाजिक प्रतिष्ठा भी जाती है और आर्थिक रीढ़ भी टूट जाती है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश टीएस ठाकुर और ज्ञानसुधा मिश्रा की बेंच का यह निर्णय कि केवल एफआईआर में नाम लिखवा देने मात्र से ही पति-पक्ष के लोगों के विरुद्ध धारा-498-ए के तहत मुकदमा नहीं बनता, काफी महत्वपूर्ण है, हालांकि यह इस समस्या का स्थायी समाधान भी नहीं है. जब तक इस कानून में से आरोपी के ऊपर स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने का भार नहीं हटेगा, तब तक पति-पक्ष के लोगों के ऊपर होने वाले अन्याय को रोक पाना असंभव है.

भरी पड़ी हैं क़ानून के बेजा इस्तेमाल की बानगियां : सुधीर कुमार

महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून तो कई हैं, लेकिन महिलाएं और लड़कियां रंजिश या सबक सिखाने के लिए कानून का धड़ल्ले से बेजा इस्तेमाल कर रही हैं. इसकी वजह से बेगुनाहों को जेल काटनी पड़ रही है. दुष्कर्म, दहेज प्रथा, यौन उत्पीड़न, छेड़खानी, घरेलू हिंसा जैसे कई ऐसे कानून हैं, जिनका बेजा इस्तेमाल पुरुषों के खिलाफ हो रहा है. इस संबंध में सामाजिक संस्थाओं का कहना है कि महिलाओं और लड़कियों के प्रति कोर्ट वफादार है, लेकिन पीड़ित और महिलाओं के सताए हुए पुरुष कहां जाएं? इस सवाल का जवाब दे पाने में विधायिका और न्यायपालिका दोनों असमर्थ हैं.

सामाजिक संस्था पति परिवार कल्याण समिति की अध्यक्ष इंदु सुभाष का कहना है कि इस समय महिलाएं बेचारी तो पुरुष अत्याचारी का माहौल चल रहा है. महिलाओं को सरकार की तरफ से जो कानूनी हथियार दिए गए हैं, उनका गलत इस्तेमाल हो रहा है. इसमें बेगुनाह ज्यादा फंस रहे हैं. जो महिलाएं इन कानूनों का दुरुपयोग कर रही हैं उनके खिलाफ सख्त कानून की जरूरत है. रेड ब्रिगेड की संचालिका उषा विश्वकर्मा का कहना है कि सरकार और कोर्ट को एक ऐसा कानून बनाया चाहिए, जिससे झूठे दुष्कर्म और अपहरण के केस दर्ज कराने वाली पीड़िताओं पर कार्रवाई हो सके.

इससे उनके मन में डर पैदा हो सके. ऐसे में फर्जी मामलों की तादाद कम हो सकती है. एडवा की मधु गर्ग का कहना है कि जिस तरह से दुष्कर्म के झूठे मामले सामने आ रहे हैं. इससे एक दिन दहेज प्रताड़ना की तरह यह कानून भी प्रभावहीन हो जाएगा. फर्जी मामलों की वजह से ही भुक्तभोगी महिलाओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है.

दुष्कर्म और गैंग रेप बहुत ही संगीन अपराध है. ऐसे अपराधों का माखौल नहीं उड़ाना चाहिए. कानून के बेजा इस्तेमाल से पीड़ित हुए लोगों की व्यथा कथा सुनें तो आपको हैरत होगी. लखनऊ में अलीगंज के निवासी कपिल मोहन चौधरी का कहना है कि उनके ससुरालवालों ने परिवार से अलग रहने का दबाव बनाया. जब विरोध किया तो दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया.

कोर्ट से जमानत हुई, तो पत्नी ने तलाक ले लिया. इसके बाद ससुरालवालों ने कोर्ट में एक अर्जी लगा दी. इसके बाद अब वे पत्नी से दूर रहकर एक हजार रुपये हर महीना भत्ता दे रहे हैं. कोर्ट या पुलिस स्टेशन कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं हुई. कृष्णानगर के भोलाखेड़ा निवासी संजय उपाध्याय के घर वालों ने बताया उनकी पत्नी उषा उपाध्याय ने फर्जी तरीके से दहेज के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज करा दिया था.

पुलिस ने विजयनगर से संजय को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया और उसका जीवन नष्ट हो गया. ऐसी कई घटनाएं सामने हैं जो बाद में फर्जी पाई गईं. कुछ ही अर्सा पहले गोसाईगंज के अमेठी कस्बे में ही एक महिला ने गांव के कोटेदार पर तीन महीने तक बंधक बनाकर दुष्कर्म किए जाने का आरोप लगाया था. यहां भी पुलिस की जांच में सामने आया था कि महिला ने रंजिशन रिपोर्ट दर्ज कराने का दबाव बनाया था. पिछले साल अलीगंज से एक 12 साल की लड़की को अगवाकर गैंग रेप किए जाने की घटना ने भी हड़कंप मचा दिया था.

पुलिस ने इस मामले में दो युवकों को हिरासत में भी लिया था. जांच हुई तो मामला सामने आया कि किशोरी अपने परिचित के साथ गई थी. परिजनों की डांट से बचने के लिए उसने नाटक रचा था. कुछ ही अर्सा पहले महानगर इलाके में निशातगंज से दिनदहाड़े एक युवती को अगवाकर गैंग रेप किए जाने का मामला सामने आया था.

युवती का आरोप था कि वैन सवार चार लड़के और तीन लड़कियों ने उसे अगवा किया और एक जंगल में ले जाकर गैंग रेप किया, लेकिन जब मेडिकल जांच हुई, तो युवती की रिपोर्ट में गर्भपात करने वाले गोलियों के सेवन की पुष्टि हुई. बाद में युवती ने भी घटना को झूठा बताते हुए चुप्पी साध ली. मोहनलालगंज के गोपालखेड़ा गांव में एक युवती के घरवालों ने मुर्गी फार्म पर काम करने वाले चचेरे भाइयों पर बेटी को अगवाकर गैंग रेप किए जाने का आरोप लगाया था.

जांच में सामने आया कि युवती का मुर्गी फार्म पर काम करने वाले युवक से प्रेम प्रसंग था और उसके साथ उसके घर गई थी. गोसाईगंज में एक ईंट भठ्ठे पर काम करने वाली युवती ने गांव के ही युवक पर कीटनाशक पिलाकर अगवा करने और दुष्कर्म का आरोप लगाया था. लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में मकदूमपुर चौकी के पास झोपड़ी डालकर रहने वाली एक महिला ने पड़ोस में रहने वाले सुभाष और उसके साथियों पर गैंग रेप का आरोप लगाया था. पीड़िता का कहना था कि सुभाष जबरन उसे अपने साथ झोपड़ी में उठाकर ले गया और साथियों के साथ गैंग रेप किया. बाद में महिला ने बयान बदला और सिर्फ सुभाष पर दुष्कर्म का आरोप लगाया. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया. बाद में मामला ही झूठा साबित हुआ.

ऐसी मनोवृत्तियों के बारे में केजीएमयू के मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर अब्दुल कादिर का कहना है कि ऐसी महिलाओं के दिमाग में दूसरों को सबक सिखाने की भावना घर बना लेती है. जब तक वह अपना काम नहीं कर देती, तब तक उन्हें वही आवाजें दिमाग में गूंजती रहती हैं. इसका इलाज संभव है. इस संबंध में महिलाओं से बातकर उन्हें समझाने का प्रयास करते हैं. वहीं, लखनऊ के एसएसपी राजेश कुमार पांडेय का कहना है कि महिला अपराध को संवेदनशीलता से लिया जाता है. लगातार बढ़ रहे फर्जी मामलों की वजह से पुलिस को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए अब झूठा केस दर्ज कराने वालों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जाएगी. पुलिस ने इसके लिए तैयारी कर ली है. जल्द इसे लागू कर दिया जाएगा. 

पुरुष आयोग बनना बहुत जरूरी : अमिताभ ठाकुर (आईपीएस अधिकारी)

दर्द को दर्द नहीं होता प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन ने आज से कई साल पहले मर्द फिल्म में जब यह डायलॉग बोला था, तो सारा हॉल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज गया था. लेकिन हकीकत और फसाने में बहुत अंतर होता है. पुरुष और स्त्री को बिलकुल अलग प्रजाति का समझना न सिर्फ गलत है बल्कि सामाजिक-मनोवैज्ञानिक-सांस्कृतिक रूप से त्रुटिपूर्ण और घातक भी है. यह संभव है कि कभी स्त्री और पुरुष की सामाजिक हैसियत में काफी अंतर रहा होगा और सामाजिक-आर्थिक रूप से दबी-कुचली होने के कारण स्त्रियों का शोषण भी हुआ होगा. आज भी समाज में पुरुषों की तुलना में औसतन महिलाओं की स्थिति कमजोर है. लेकिन इसके साथ यह भी सत्य है कि सामाजिक परिवर्तन के साथ आज पहले की तुलना में बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं समाज में हैं जो सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक दृष्टि से मजबूत हैं.

ऐसी कई सशक्त महिलाओं द्वारा अपने श्रेष्ठतर प्रभाव, स्थान और महिला-संदर्भित कानूनों का प्रयोग कर पुरुषों का उत्पीड़न करने की बातें सामने आ रही हैं. जिस तरह से महिलाओं के लिए नए सख्त कानून बनाए गए हैं उनसे इन कानूनों के दुरुपयोग की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ गई है और ऐसा बहुत कुछ अपने इर्द-गिर्द हम देखते भी हैं. इन्हीं स्थितियों के दृष्टिगत मैंने पुरुषों की समस्याओं को विशेष रूप से देखने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पुरुष आयोग बनाए जाने हेतु इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में रिट याचिका दायर की थी.

मैंने पूर्व में केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव और उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को भी पत्र भेज कर इस दिशा में कार्रवाई की मांग की थी. पुरुषों की विशिष्ट समस्याओं की संवेदनशील अनुभूति और निराकरण के लिए पुरुष आयोग बनाए जाने की अनिवार्यता है, क्योंकि अक्सर ऐसा देखने में आता है कि किसी मामले में पुरुष फंस जाता है और अंत में जब वह निर्दोष साबित होता है तो काफी देर हो चुकी होती है. और तब तक वह अपना सामाजिक सम्मान भी खो चुका होता है. तमाम पुरुष अधिकारियों को अपने मातहत काम करने वाली महिलाओं से भी झूठे आरोपों का डर बना रहता है.

जब मैंने पुरुष आयोग बनाने की मांग को लेकर याचिका दायर की तो कई लोगों ने मुझसे सम्पर्क किया, जो उत्पीड़न का शिकार हुए थे. इनमें से ज्यादातर दहेज के मामले थे. इसके बाद छेड़खानी के मामले सबसे ज्यादा आए, जिसमें जान-बूझकर पुरुषों को फंसाया गया था. जिस तरह महिलाओं की समस्याओं को सुनने समझने के लिए महिला आयोग बने हैं और इन आयोग में महिलाओं की तैनाती होती है उसी आधार पर पुरुष आयोग बने और उनमें पुरुष अधिकारों के लिए लड़ने वाले तजुर्बेकार व्यक्तियों को रखा जाए. इस आयोग में पुरुष अपने साथ हो रहे अत्याचार और उत्पीड़न की शिकायत लेकर जाएंगे.

 

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