rssहालिया दो घटनाक्रमों पर एक नजर डालते हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 आरएसएस से जुड़े संगठनों को दिल्ली में जमीन आवंटन पर मुहर लगा दी है. यह फैसला ऐसे समय लिया गया, जब हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई चल रही है. इतना ही नहीं, यूपीए-वन ने इस जमीन आवंटन के संबंध में अनियमितता की रिपोर्ट मिलने के बाद 2004 में इसे खारिज कर दिया था. सरकार इन संगठनों को जमीन देने के लिए इतनी हड़बड़ी में थी कि हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करना भी जरूरी नहीं समझा.

अब शहरी विकास मंत्री वैंकेया नायडू इस सरकारी फैसले की जानकारी देने हाईकोर्ट जाने की तैयारी में हैं. लेकिन यही सरकार ऐसे समय तत्पर नजर नहीं आती, जब दिल्ली में स्कूल और अस्पताल खोलने के लिए जमीन आवंटन की मांग की जाती है. तब डीडीए का बयान आता है कि दिल्ली में जगह उपलब्ध नहीं है. ऐसे में दिल्ली सरकार को सरकारी स्कूलों में मोहल्ला अस्पताल खोलना पड़ता है. डीडीए का यही रुख पब्लिक ट्रांसपोर्ट और कूड़ा निस्तारण के मामले में जमीन आवंटन को लेकर भी है.

इन दो घटनाक्रमों से यह स्पष्ट है कि सरकार अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों से आगे बढ़कर भी फैसले लेने को तैयार रहती है, लेकिन जनहित के मुद्दों पर चुप्पी साध लेती है. अब ये कोई कूढ़ मगज भी बता सकता है कि दिल्ली को स्कूल, अस्पताल, पब्लिक ट्रांसपोर्ट व कूड़ा निस्तारण जैसी बुनियादी सुविधाओं की जरूरत है या फिर पार्टी समर्थित सोशल, कल्चरल संगठनों के विस्तार की.

अब इन धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संगठनों पर भी एक नजर डालते हैं, जिन्हें जमीन आवंटित करने का फैसला लिया गया है. इनमें से कुछ संगठन हैं, श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्मृति न्यास, विश्व संवाद केंद्र, धर्म यात्रा महासंघ और अखिल भारतीय वनवासी कल्याण परिषद इत्यादि. 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन संगठनों को जमीन आवंटित करने का फैसला किया था. यूपीए  सरकार ने 2004 में इन संगठनों के जमीन आवंटन पर रोक लगा दी.

यूपीए सरकार ने बताया कि इन संगठनों को मनमाने तरीके से जमीन का आवंटन किया गया था. यह तथ्य एक जांच समिति की रिपोर्ट पर आधारित थी, जिसकी अध्यक्षता रिटायर्ड आईएएस योगेश चंद्रा कर रहे थे. चंद्रा कमिटी ने विभिन्न संगठनों से जुड़े 100 से अधिक जमीन आवंटन के मामलों की जांच की.

समिति ने बताया कि 32 जमीन आवंटन के मामलों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. जमीन आवंटन में अनियमितता बरते जाने के कारण 29 संगठनों को जमीन का आवंटन नहीं किया जा सका. इस फैसले के विरोध में 23 संगठन हाईकोर्ट पहुंच गए.

नई समिति बनाकर खारिज की रिपोर्ट

मई 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आते ही इन संगठनों को उम्मीद बंधी कि अब जमीन आवंटन के रास्ते में आ रही बाधाओं को जल्द दूर कर लिया जाएगा. इन संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल वैंकेया नायडू से मिला.

सरकार ने जमीन आवंटन रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार करने को लेकर अटार्नी जनरल की सलाह ली. इस सलाह के बाद ही दो सदस्यीय कमिटी बनाए जाने की बात सामने आई. समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार व उनके मातृ संगठन अपनी बातों को जायज ठहरा सकते थे.

सरकार ने आनन-फानन में इस मामले की जांच के लिए पिछले साल दो रिटायर्ड सचिवों की एक समिति का गठन कर दिया. रिटायर्ड आईएएस एलके जोशी और दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव आर नारायणस्वामी को जांच रिपोर्ट शहरी विकास मंत्रालय को सौंपनी थी.

समिति को इस बात की भी जांच करने को कहा गया कि यूपीए सरकार द्वारा जमीन आवंटन रद्द किए जाने का फैसला कितना न्यायोचित था. समिति को यह भी बताना था कि क्या तत्कालीन सरकार ने जान-बूझकर इन संगठनों को टारगेट किया था.

समिति ने भी बिना विलंब के एक साल में ही यह फैसला सुना दिया कि अगर एक-दो मामलों को छोड़ दें, तो इन संगठनों को जमीन आवंटन में कोई अनियमितता नहीं बरती गई थी.

इतना ही नहीं, समिति ने यह भी कहा कि इन संगठनों के जमीन आवंटन को रद्द करने का फैसला भेदभावपूर्ण था. लिहाजा, सरकार ने जमीन आवंटन रद्द करने के फैसले को रद्द करने का निर्णय लिया. समिति का फैसला आने के बाद सरकार ने भी देर नहीं की और जमीन आवंटन को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तत्क्षण मंजूरी दे दी.

अब सरकार के लिए यह जरूरी हो गया था कि दस साल पुराने फैसले को बदले जाने के बारे में दिल्ली हाईकोर्ट को पैनल रिपोर्ट की सूचना से अवगत कराया जाए, ताकि आवंटन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके. लिहाजा केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वैंकेया नायडू दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी लगाने की तैयारी में हैं. इसमें अदालत से आवंटन रद्द किए जाने के फैसले को खारिज करने की अनुमति मांगी जाएगी.

आप ने भी उठाया मुद्दा

आप सरकार ने आरोप लगाया कि सरकार अपने मातृ संगठनों को राजनीतिक अनुशंसा के आधार पर रियायती दरों पर जमीन बांट रही है. आप के कुछ नेताओं ने इस मसले को डीडीए के इंस्टीटयूशनल अलॉटमेंट कमिटी के सामने भी उठाया.

सरकार का कहना है कि इन संगठनों को जमीन आवंटन के मामले में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. हाल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट और कूड़ा निस्तारण के लिए जब आप सरकार ने जमीन की मांग की, तो डीडीए के वाइस चेयरमैन बलविंदर कुमार ने शहरी विकास मंत्रालय को जानकारी दी कि हमारे पास शहर में बस पार्किंग व कूड़ा निस्तारण के लिए अतिरिक्त जगह उपलब्ध नहीं है.

बसों के लिए मल्टीलेवल पार्किंग महंगा तो होगा, लेकिन यही एकमात्र विकल्प है. यह बयान ऐसे समय आया है जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को दुरुस्त करने के लिए परिवहन मंत्रालय से दस हजार नई बसों के लिए एक डिटेल प्लान बनाने के निर्देश दिए हैं. वहीं शहर में दस हजार टन रोज निकल रहे कूड़े के निस्तारण के लिए भी अतिरिक्त जमीन की जरूरत है.

ज़मीन की लूट में सभी दल साथ

हरियाणा में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा को व्यावसायिक और निजी कार्यों के लिए जमीनों का आवंटन किया था. जस्टिस ढींगरा ने अनियमितता के सवाल पर कहा था कि अगर अनियमितताएं नहीं होतीं, तो वे 182 पेज की रिपोर्ट नहीं सौंपते. वाड्रा पर आरोप है कि उनकी कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने 7.5 करोड़ में जमीन खरीद कर लैंड यूज बदलवा दिया और फिर उसी जमीन को 55 करोड़ में बेच दिया था.

राजस्थान में भी दीनदयाल ट्रस्ट को जमीन आवंटन करने पर   निचली अदालत ने हाल में भाजपा व संघ नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज करने के आदेश दिए थे. बाद में ट्रस्ट ने जमीन सरकार को लौटा दी थी. इसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया था.

भाजपा की सांसद व अभिनेत्री हेमामालिनी को मुंबई में अंधेरी में डांस एकेडमी खोलने के लिए दो हजार स्न्वायर मीटर जमीन का आवंटन किया गया. 50 करोड़ रुपए से अधिक कीमत की जमीन को महज 70,000 रुपए में राज्य सरकार ने दे दिया.

इतना ही नहीं, बोनस के तौर पर 30,000 स्न्वायर मीटर का एक गार्डेन भी मेंटिनेस के लिए सौंप दिया गया. यह तय था कि बाद में इस जमीन का इस्तेमाल निजी तौर पर किया जाता और भविष्य में इस पर कंस्ट्रक्शन कर आवंटित जमीन के साथ अटैच कर दिया जाता.

मणिपुर में भी भाजपा की नेता व बॉक्सर मैरीकॉम को बॉक्सिंग क्लब खोलने के लिए जमीन का आवंटन किया गया है. भाजपा शासित राज्यों में बाबा रामदेव के पतंजलि ट्रस्ट को जमीन आवंटन का मामला हमेशा सुर्खियों में रहा है.

सामाजिक हितों के आड़ में चल रहा धंधा

ऐसे ट्रस्ट और कल्चरल संगठनों को जमीन आवंटन का मकसद सरकार बताती है कि ये संगठन सरकार के ट्रस्टी के तौर पर काम करते हैं और सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों को आगे बढ़ाते हैं, जो सरकार खुद नहीं कर सकती है. इन संगठनों को मार्केट रेट पर ही सब्सिडी नहीं दी जाती, बल्कि पचास साल पुराने बाजार दर पर सब्सिडी दी जाती है.

जैसा कि हेमामालिनी को जमीन आवंटन के मामले में किया गया. उन्हें 1976 के मार्केट रेट पर जमीन का आवंटन किया गया. साथ ही उस दर पर भी केवल 25 प्रतिशत चार्ज किया गया. वास्तव में इन संगठनों को जमीन आवंटन का मकसद सांस्कृतिक, सामाजिक व धार्मिक हितों के आड़ में अपने पोषित संगठनों व अपने लोगों को उपकृत करना होता है.

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