आज से सैतालिस साल पहले, श्रीमती इंदिरा गांधी ने, जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से घबरा कर आनन-फानन में 25 जून 1975 के दिन आपातकाल की घोषणा की थी ! और उन्होंने भी बदले की भावना से ! जेपी से संबंधित सभी संस्थानों की जांच करने के लिए जस्टिस कुडाल कमिशन नियुक्त किया था ! और उसके जांच के बाद खोदा पहाड़ और निकला चुहां वाली बात हुई है ! और आपातकाल की घोषणा सुनने के बाद जयप्रकाश नारायणजी ने, विनाशकाले विपरीत बुद्धी और जब गिद्ध के मौत का समय आता है तो वह शहर के तरफ भागता है ! यह व्यक्तव्य भी दिया था !
और मै आपातकाल के जेल में संघीयोको कहता था ! कि श्रीमती गांधी एक व्यक्ति की आपात स्थिति में हम लोगों को जेल में रहना पड रहा है ! लेकिन कभी भविष्य में आप लोग सत्ता में आये तो , भारत की जनता को सांस लेने की तक मुश्किल करोगे !
क्योंकि श्रीमती गांधी जी की कांग्रेस पार्टी एक सत्ता के इर्द-गिर्द जमा हुई भीड़ है ! (गुड के उपर मख्खिया). लेकिन आप लोग केडर बेस होने के कारण ! जीवन के हर क्षेत्र में आप लोगों की पहुंच है ! आई बी, सीबीआई, पुलिस – प्रशासन और हर जगह 1925 से आप लोग दिमक के जैसे घुस बैठे हो ! इसलिए आप लोगों को आपातकाल की घोषणा करने की जरूरत नहीं है ! बगैर आपातकाल से आप लोग आपके विरोधी विचार वाले लोगों का पुलिस – प्रशासन के द्वारा बंदोबस्त करोगे ! और बिल्कूल यही बात शेखर गुप्ता के साथ वाक वुइथ टाल्क के कार्यक्रम में पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने आपात काल के चालिस साल पुरे होने के उपलक्ष्य में जून 2015 के समय की बात है कि “एक घोषित आपातकाल आजसे चालिस साल पहले मैंने देखा है और आज एक साल से अधिक समय से मै अघोषित आपातकाल में रह रहा हूँ !” यह नरेंद्र मोदी को राजनीतिक जीवनदान देने वाले वर्तमान समय में भारत के सबसे वरिष्ठ बीजेपी के नेता कि प्रतिक्रिया है ! वह भी आजसे छ साल पहले ! इन छ सालों में भारत के जनतंत्र से लेकर सभी संविधानिक संस्थाओं को खत्म करने से लेकर भारत के सभी मुनाफे के सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने से लेकर समस्त मिडिया के मालिकों को अपने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर करने से लेकर जिस सीबीआई और आई बी को कभी मिठ्ठु (पेरोट) बोलते थे उन्हें अब अपनी उंगलियों पर नचाने का काम कर रहे हैं !
जिसका परिचय नरेंद्र मोदीजी ने , मई 2014 में सत्ता में आने के चंद दिनों के भीतर तिस्ता सेटलवाड के घर पर छापा मारने की कृति उस बातका सबसे पहला उदाहरण है ! तिस्ता और उसके साथियों का सबसे बड़ा गुनाह था ! 28 फरवरी 2002 के गोधरा कांड के बाद हुआ राज्य पुरस्कृत दंगे की क्राईम अगेन्स्ट ह्युमॅनिटी नामक रिपोर्ट को, जस्टिस कृष्णा अय्यर, जस्टीस पी बी सामंत, जस्टिस होस्बेट सुरेश , एडवोकेट के जी कन्नाबरियन, प्रोफेसर घनश्याम शाह, प्रोफेसर तनिका सरकार, रिटायर आई ए एस अरूणा राय और रिटायर आई पी एस डॉ के एस सुब्रमण्यम जैसे धाकड़ लोगों की टीम द्वारा गुजरात दंगों के थमने के छ महिनो के भीतर ही 21 नवंबर 2002 को दो भागों में निकाली हुई रिपोर्ट ! भारत के आजादी के बाद और भी कई बार दंगे हुए हैं ! लेकिन गुजरात दंगा भारत के इतिहास में पहली बार राज्य पुरस्कृत दंगा किया गया है ! यह गवाही उसी मंत्रीमंडल के एक वरिष्ठ मंत्रियों में से एक श्री हरेन पंड्या ने इस जांच आयोग को शपथ-पत्र देकर कहा “कि 27 फरवरी 2002 के रात को कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कल जो भी कुछ होगा उसे कोई नहीं रोकेगा !” यह हरेन पंड्या ने कहने के बाद जांच आयोग ने कहा कि “आप को पता है आप अभी हमारे सामने जो कुछ भी कह रहे हो इसका परिणाम क्या होगा ?” तो हरेन पंड्या ने कहा ” कि मुझे मालूम है कि इस कारण मेरी जान भी जा सकती है ! लेकिन जहाँ हजारों की संख्या में बेकसूरों को मारा गया वहां मै अपने अकेले की जान बचाने के लिए अगर सच नहीं बोलुंगा तो अपने आप को जिंदगी में कभी भी माफ नहीं कर सकता हूँ !”
और इस पाचसौ से भी अधिक पन्नौकी रिपोर्ट के कारण नरेंद्र मोदी को विश्व के कई देशों के वीजा बैन किए गए थे ! तो नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद तुरंत ही तिस्ता के घर पर रेड डालने का काम किया !
अब मेधा पाटकर की बारी आई है ! आजसे पैतिस साल के भी पहले से ! तथाकथित सरदार सरोवर, जो मुख्य तौर पर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के त्रिकोणीय जगह पर बने नर्मदा नदी के बांध के निर्माण के खिलाफ, नर्मदा बचाव आंदोलन के तरफसे चलाए जा रहे आंदोलन के कारण ! गुजरात की सभी सरकारों के आखों की किरकिरी, मेधा पाटकर के उपर बडोदा कार्यालय में घुस कर हमले करने की कोशिश नब्बे के दशक में ! तब गुजरात में कांग्रेस की सरकार थी ! और केंद्र में भी !
और 2002 के मार्च प्रथम सप्ताह में गुजरात दंगों के बाद साबरमती आश्रम में, शांतिसदभावना की तैयारी बैठक में ! शामिल मेधा को विशेष लक्ष्य करके ! हमला करने की कोशिश किसी सभ्य पुलिस अफसर के कारण वह बची अन्यथा कुछ भी हो सकता था !
तो बांध विरोधी आंदोलन के कारण मेधा गुजरात के सभी राजनीतिक दलों के राडार पर रही है ! और सबसे हैरानी की बात हमारे कई सेक्युलर और रेडिकल साथियों के भी ! विरोध मेधा पाटकर को झेलना पड़ा है ! सबसे मुखर विरोध जयप्रकाश नारायण की संघर्ष वाहीनी की गुजरात ईकाई ! जिसने अपने नाम के आगे आर्च शब्द लगा कर ! आर्च वाहीनी ने पुनर्वास की निति बना कर ! तत्कालीन गुजरात सरकार की मदद से ! पुनर्वास कम ! और गुजरात पुलिस को नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथीयो के नाम बताने में ! और लगातार नर्मदा बचाओ आंदोलन की मुखालफत करने के लिए ! सबसे ज्यादा समय व्यतीत किया है !
और अभी मेधा पाटकर के ईडी की जांच के विवाद में एक पुराने संघर्ष वाहीनी के साथीयो में से एक ने !” कहा कि मेधा किसानों को नई तकनीक नहीं मीले इसलिए विदेशी एजेंसियों की घुबड(उल्लू) यह शरद जोशी ने कहा ऐसा बयान दिया है” !
और इसी तरह के संपूर्ण क्रांति के सिपाहियों ने शरद जोशी का समर्थन अस्सी वाले दशक में शुरू किया ! जिसमें से कुछ अपेक्षाभंग के शिकार होकर वापस आये हैं ! लेकिन कुछ अभिभी नरेंद्र मोदी के किसानों के विरोधी बिल के समर्थन से लेकर छोटे किसानों की जमीन कार्पोरेट के हवाले कर देनी चाहिए जैसे तर्क दे रहे हैं !
मुख्य मुद्दा नरेंद्र मोदी की सरकार चुन – चुनकर विरोधी लोगों के खिलाफ किसी को राष्ट्रद्रोह के केसेस लगा दी गई है ! तो कुछ लोगो का अपने जनांदोलनों के साथ कुछ रचनात्मक कार्यों को धन की आवश्यकता होती है तो ! वह कुछ शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रबोधन के काम करने के लिए, कुछ न्यासो द्वारा अपने क्षेत्रों में काम करने के लिए जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन के लोगो द्वारा महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में गत पच्चीस साल पहले से जीवन शाला नाम से ! आदिवासियों के बच्चों को शिक्षा देने के लिए विशेष रूप से कोशिश कर रहे हैं ! और उसी काम को कोई दानदाताओं द्वारा कुछ मदद दी जा रही है ! और उसी काम की जांच बीजेपी या संघ के किसी खुरापती तत्वों के कारण करने की बात सुनकर, विवाद शुरू हुआ है !
तो मै इस बहाने संघ के सभी सरस्वती शिशु मंदिर, वनवासी कल्याण आश्रम, विवेकानंद केंद्र और उनके द्वारा दक्षिणी भारत से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों में और देश के अन्य हिस्सों में चल रही ! अरोबो – खरोबो रुपये के बजट से चल रहे ! सभी कामों की भी जांच होनी चाहिए ! इनके कुछ प्रोजेक्ट वहां की राज्य सरकारों के बजेटो को भी पिछे छोडने की खबरें हैं ! और संघ की स्थापना के बाद संघ ने एक रुपये का भी हिसाब – देने के लिए कितनी बार कोशिश की गई है ! लेकिन यही सुन रहे हैं कि संघ रजिस्टर संस्था नही है ! फिर सौ साल से एक महीने से भी अधिक समय का ओटीसी कैम्प तथा एक लाख से अधिक प्रचारकों का खर्च और साहित्य प्रसार करने से लेकर पांचजन्य, आर्गनाइजर जैसे और प्रादेशिक भाषाओं में चलाए जा रहे पत्र – पत्रिका और दिल्ली से लेकर गली मुहल्ले तक उसकी संपत्ति का ब्योरा देने की जिम्मेदारी किसकी है ? सुनते हैं कि आज की तारीख में संघ के इतने बड़े संघठन विश्व में कहीं भी नहीं है तो फिर इतने बड़े संघठन की जिम्मेदारी अपने गतिविधियों के लिए किया जाने वाला खर्च का हिसाब नहीं देना ! कहा तक उचित है और क्या यह राष्ट्रद्रोह नही है ?
इसके अलावा आस्था के नाम पर गोहत्या, मंदिर तथा अन्य धार्मिक कार्यों के लिये जो अकुत धन इकठ्ठा किया जा रहा है ! उसका हिसाब किताब कौन देगा ?
और आखिरी बात बीजेपी विश्व की सबसे बड़ी और सबसे अमीर पार्टी बनाने के लिए क्या – क्या कारनामे किए हैं ? और गत आठ साल के दौरान बीजेपी के सत्ताधारी लोगों की संपत्ति की जांच करने की मांग कर रहा हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 10 अप्रैल 2022, नागपुर