सबा नकवी का यह वक्तव्य सुनिए – ‘मुझे लगता था बीजेपी की जीत के बाद यह सब (लिंचिंग और जहरीले भाषण आदि) कम हो जाएगा । मैं मानती हूं कि मैं गलत थी । अभय कुमार दुबे अक्सर कहते हैं कि बीजेपी का संपूर्ण आकलन अभी होना बाकी है । वे अक्सर यह भी स्वीकारते हैं कि मैं यह गलत सोच रहा था या वह गलत सोच रहा था । ऐसी स्वीकारोक्तियां पत्रकार का कद नहीं घटाती हैं लेकिन समझ के स्तर पर अपने मूल्यांकन पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगाती हैं । शरद गुप्ता ने खिसियानी हंसी के साथ आशुतोष के कार्यक्रम में कहा , हम तीस चालीस साल अनुभव वाले पत्रकार कैसे नहीं समझ पाए । विजय त्रिवेदी ने कहा , दरअसल बीजेपी निरंतर बदलती रही और हम पुराने ढर्रे से सोचते रहे । संघ और बीजेपी को अन्यों के मुकाबले कुछ अधिक समझने वाले विजय त्रिवेदी ने एक मार्के की बात आशुतोष से कही — ‘एक दिन आप सुबह आठ बजे उठ कर संघ की शाखा में जाइए । वहां देखिए शाखा खत्म होने के बाद वरिष्ठ स्वयंसेवक किसी के भी घर जाते हैं । परिवार वालों से मेल-मिलाप करते हैं चाय पीते हैं और उनका विश्वास जीतने की कोशिश करते हैं ।’ मैं स्वयं को इसका गवाह पाता हूं । बचपन में मैं शाखा में जाया करता था और वहां प्रार्थना का जिम्मा मेरा ही था । उसके बाद सभी लोग मेरे घर आते थे । मेरी मां बहनों आदि से मिल कर उनका विश्वास जीतने की कोशिश में । बावजूद इसके कि हमारे बड़े भाई हमेशा हमें संघ को लेकर चेताते रहे । पर विचित्र संयोग देखिए बुढ़ापे में वही भाई संघ और भाजपा के हो गए । मैं विपरीत दिशा में चला गया ।
यह सच है कि 2014 में मोदी की जिस छवि को लेकर मुखालिफत की गयी थी ,वह मुखालिफत मोदी के दिमाग को लेकर एक सामान्यीकरण से ज्यादा कुछ नहीं था । इस बात से वे स्वयं भली-भांति परिचित थे । लेकिन उसके अलावा उनका दिमाग और क्या क्या गुन रहा था या मथ रहा था , इसे कोई नहीं समझ पाया । यकीनन ,कोई भी नहीं। मुझे तो यकीन है कि संघ के लोग भी नहीं । मोदी ने अपने को साबित करने का यकीन जरूर संघ के पदाधिकारियों को दिलाया होगा लेकिन कैसे, यह नहीं । अन्ना आंदोलन के बाद से मोदी ने जो यात्रा शुरु की वह सतत आज तक जारी है । उसके शेड्स बदलते रहे हैं आगे भी बदलेंगे । समांतर मीडिया और बौद्धिक जनों को जो कुछ करना था वह सब उन्होंने अपने पूरे दम खम के साथ कर लिया । वाचाल मोदी ने हर किसी को हर स्तर पर शिकस्त दी । बल्कि उन्होंने बताया कि तुम्हारा दंभ ही तुम्हें मुझे समझने में बांधा है । मोदी जब विदेशों की धड़ाधड़ यात्राएं कर रहे थे और कहीं ड्रम , कहीं बीन बजा रहे थे, कहीं साइकिल चला रहे थे , कहीं बड़े बड़े विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के साथ ‘जफ्फी’ पा रहे थे । कभी अपने प्लेन को अचानक पाकिस्तान की ओर मुड़वा कर नवाज शरीफ के यहां शादी में जाकर हर किसी को अवाक कर दे रहे थे । कभी चंगेज खां के देश में लोगों के साथ झूम रहे थे । तो इन सबसे वे क्या संदेश दे रहे थे और उस समय हमारे पत्रकार और हमारे बुद्धिजीवी क्या सोच रहे थे । हर किसी को समझने में बहुत देर लगी कि यह दरअसल अपने देश के उस समाज को साधने की कोशिश कर रहे थे जो अज्ञानी अनपढ़ और चमत्कारों से प्रभावित होने वाला समाज था । या उस समाज को जो पहले से मोदीमय होकर हर तरह की सुख सुविधाओं से लैस होना चाहता है । वह पूरी ठसक से हिंदूवादी है । उन्हें ‘लिबरल लेफ्ट’ कहे जाने वाले समाज से उसी तरह नफरत थी जैसे इसके उलट इस समाज को मोदी से । यह सब कुछ अभी तक यथावत है । कहीं कुछ नहीं बदला । बल्कि मोदी ने विपक्ष को लंगड़ा बना कर अपना विस्तार और कर लिया है ।
अब हमारे लोग क्या करेंगे । मोदी अपनी अज्ञानता से नहीं घबराते और झूठ बोलने से नहीं डरते । अपने मजाक बनने से, खुद पर गालियां पड़ने से और तमाम लोगों के द्वारा धमकी देने से उन पर कोई असर नहीं होता । ‘बेशर्म’ शब्द सिकुड़ गया है । पर मुझे मोदी की नीयत पर कोई शक नहीं है वे ठीक वही काम कर रहे हैं जिसे करने वे आये थे । उनकी छाया या विशाल छवि से दबा हुआ संघ खुश है । उद्योगपति खुश हैं । WTO, WORLD BANK और IMF सब खुश हैं । निजीकरण के पैरोकार खुश हैं । गांधीवादियों के बीच छिपे संघी खुश हैं और जनता खुश है कि राम मंदिर बन रहा है और देश हिंदू राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है । उन्हें नफरत की फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ का प्रोपोगेंडा करने में कोई झिझक नहीं । बल्कि उसके जरिए फिल्म जगत को अपनी मुट्ठी में करने का उनका मिशन भी पूरा होगा । उनके झूठ को सच बताने या समस्याओं को तरकीब से सरकाने वाली उनकी फौज तैयार है । अंबानी के सारे चैनल अपना काम पूरी मुस्तैदी से कर रहे हैं । और आईटी सेल ही नहीं , अब तो कुछ स्वतंत्र पत्रकार भी मोदी राग पूरी शिद्दत के साथ गा रहे हैं जैसे प्रदीप सिंह व अन्य । जब किसी शख्स का किला इतना मजबूत हो तो उसके आत्मविश्वास का अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं । रही बात मुसलमानों और उनकी लिंचिंग की तो उनके लिए वह कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि उन्हें मुसलमानों के वोट ही नहीं चाहिए । वे 2024 के लिए आश्वस्त हैं। उससे चंद दिन पहले राम मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा । और एक नयी लहर चलेगी। कन्याकुमारी जाएंगे तो देखेंगे कि पूरा समुद्र तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है । ठीक उसी तरह पूरे देश को मोदी ने तीन तरफ से घेर लिया है । एक हिस्सा जो बचा है वह उन लोगों का है जो मोदी को नापसंद करते हैं और मोदी उनको । तो ऐसे मुठ्ठी भर लोग मोदी का क्या बिगाड़ लेंगे , जबकि राष्ट्रपति उनका , उपराष्ट्रपति उनका, राज्यसभा और लोकसभा के अध्यक्ष उनके , सीबीआई ,ईडी समेत सारी संस्थाएं उनकी । तमाम महकमों और शिक्षण संस्थानों (जेएनयू समेत) के शीर्ष पर बैठे अधिकारी उनके । समाज में चौतरफा फैलीं हिंदू अनुषंगी संस्थाएं उनकी । आप कहां जाएंगे और किस रास्ते से जाएंगे । सुप्रीम कोर्ट आपका कितना अपना है यह एक भूल-भुलैया जैसा सवाल है । कुल मिलाकर आपकी आवाज नक्कारखाने में तूती जैसी बन कर रह जाएगी । बुद्धिजीवी , पत्रकार मोर्चा निकालेंगे । लामबंद होकर राष्ट्रपति वगैरह से मिलेंगे , क्या होगा यह वे स्वयं जानते हैं ।
क्षमा सहित कहता हूं मुझे तो आज के आधे पत्रकार भड़भूजे सिवाल लगते हैं । अच्छा हो अगर भारतीय राजनीति और भारतीय विपक्ष पर चर्चाएं/डिबेट्स बंद हो जाएं । अभय कुमार दुबे ने भी जैसे आजिज़ आकर ही संतोष भारतीय से कहा होगा पाकिस्तान और श्रीलंका पर भी चर्चा कीजिए । आलोक जोशी ने पिछले हफ्ते ‘बात करें तो किस पर करें’ शीर्षक से मोनोलाग किया । उनका कहना है कि वे पहले तो ऐसे ही लंबा मोनोलाग किया करता था । बहरहाल, मुझे अच्छा लगा । और मैंने आलोक जी को लिखा भी । चर्चाओं से अधिक किसी विद्वान से बातचीत ज्यादा रोचक होती है । आलोक जोशी ने श्रीलंका पर शिवकांत जी से और बीजेपी पर नीलांजन मुखोपाध्याय से बात की बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक रही । आलोक और आशुतोष किसी पुस्तक पर चर्चा करते हैं तो वह रोचक रहती है । अभय कुमार दुबे की एक टिप्पणी याद आती है जो उन्होंने कई मौकों पर दोहराई कि यदि यूपी में योगी आदित्यनाथ की अच्छी जीत होती है तो सारे भाजपा प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के लिए आसान हो जाएगा कि वे भी बुलडोजर नीति से प्रदेश को चलाएं । वही दिखाई दे भी रहा है । मध्यप्रदेश में हमने देखा । हरियाणा में कई बार खट्टर की भाषा ऐसी ही होती है । दोस्तो, मैंने लोगों ने के आग्रह पर अपनी बात लिखी ।अब आपको क्या देखना है आप तय करें । कुछ भी देखें पर इतना अवश्य खयाल रखें पत्रकारों के आकलन पर कोई राय न बनाएं ।हां, जानकारी जहां से मिलती है वह जरूर देखें । इतना मान कर चलिए देश में जहर का कारोबार हो रहा है । मुस्लिम कट्टरवाद (वहाबी) भी सिर उठा रहा है । कहूं अगर कि देश गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है तो क्या गलत होगा ? मोदी के बरक्स कोई विपक्ष तो नहीं पर केजरीवाल जरूर खड़ा हो रहा है और NDTV का सपोर्ट उसे उसी तरह नजर आता है जैसे मुख्य चैनलों का मोदी को । गरीब जनता को समझाने वाला कहीं कोई नजर नहीं आता । ऐसे में अगर किसी को पत्रकारों और बुद्धिजीवियों से चिढ़ होती हो तो वह स्वाभाविक है । जो दुकानें खुली हैं वे तो चलती ही रहेंगी ।

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