वरुण गांधी का भारतीय जनता पार्टी में इस समय कोई रोल नहीं है, लेकिन लगभग 15 से 20 सांसद वरुण गांधी को ये संदेश भेज चुके हैं कि उन्हें वरुण गांधी के साथ किया गया व्यवहार अच्छा नहीं लगा और वेे राजनीतिक नहीं लेकिन नैतिक रूप से वरुण गांधी के साथ हैं.

वरुण गांधी इस समय उत्तर प्रदेश और भाजपा की सियासत से दूर नौजवानों और किसानों के बीच घूम रहे हैं. उसका प्रचार मीडिया में नहीं हो रहा है, लेकिन उनके कॉलम अखबारों में छप रहे हैं. इधर प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी वरुण गांधी को बार-बार ये संदेश भेज रहे हैं कि हम एक परिवार हैं, हमें एक साथ हो जाना चाहिए.

वरुण गांधी ने इस आमंत्रण को स्वीकार नहीं किया. अगर वे स्वीकार कर लेते, तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इस समय 400 सीटों पर चुनाव ल़ड रही होती और उसे अखिलेश यादव से गठबंधन करने की कोई जरूरत नहीं होती. तब उत्तर प्रदेश में एक दूसरी राजनीति का नजारा होता. वो राजनीति सफल होती या नहीं, कोई नहीं जानता, लेकिन जो आज हो रहा है, उससे कुछ अलग हो रहा होता.

बीजेपी के कई समर्थक वरुण गांधी को मुख्यमंत्री का दावेदार नेता मानते हैं. लेकिन वो चुनावी प्रक्रिया से लापता रहे या यूं कहें कि उन्हें बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अलग रखा गया. चुनाव के आखिरी मौके पर भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपने स्टार कैंपेनर की लिस्ट में जगह दी है.

इसलिए हमने वरुण गांधी के अंतर्ध्यान होने, उनके खबरों से गायब होने या कैंपेन से गायब होने के कारणों को तलाशा, तो हमें ये कहानी मिली. मैं इस कहानी की सत्यता पर 90 प्रतिशत विश्वास करता हूं, क्योंकि जिन सूत्रों ने मुझे ये कहानी बताई है, उन पर मुझे पूरा भरोसा है. मुझे पूरा विश्वास है कि इस कहानी का खंडन कहीं से नहीं आएगा.

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