इससे पहले, 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीती थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना मंत्रिमंडल तैयार कर रहे थे. उस समय संघ और भारतीय जनता पार्टी का एक खेमा वरुण गांधी को मंत्री बनाने के लिए दबाव डाल रहा था. लेकिन नरेंद्र मोदी वरुण गांधी को मंत्री नहीं बनाना चाहते थे. तब कुछ लोगों, जिनमें राजनाथ सिंह प्रमुख थे, ने वरुण गांधी से बात कर ये जानना चाहा कि वरुण गांधी अगर मंत्री न बनेे, तो क्या फायदा और नुक़सान हो सकता है.
दरअसल, वो वरुण गांधी की भविष्य की चाल जानना चाहते थे. संघ के प्रमुख लोगों से वरुण गांधी का संपर्क था, क्योंकि वरुण गांधी को संरक्षक के तौर पर सरसंघचालक सुदर्शन जी का काफी समर्थन मिलता था. संघ के लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अगर वरुण गांधी को मंत्री नहीं बनाया जाएगा, तो वह भारतीय जनता पार्टी में असंतोष को हवा देंगे और कुछ परेशानियां पैदा करेंगे.
जब उन लोगों ने वरुण गांधी से बात की, तो उन्हें यह अहसास हुआ कि वरुण गांधी यह चाहते हैं कि उनकी मां को केंद्रीय मंत्रिमंडल में ले लिया जाय. संघ के सूत्रों ने मुझे बताया कि यह इसलिए जरूरी था कि गाय को खूंटे पर बांध दिया जाय, तो बछड़ा बहुत दाएं-बाएं नहीं भागता, वो गाय के पास ही रहता है. इसी उदाहरण के अनुसार, संघ के कुछ लोगों ने और संभवत: राजनाथ सिंह ने (जिसके बारे में मैं निश्चित नहीं हूं) नरेंद्र मोदी से कहा कि मेनका गांधी को मंत्रिमंडल में ले लेना चाहिए. अंतत:, मेनका गांधी मंत्रिमंडल में आ गईं.
शहजाद पूनावाला की बहन की शादी के बाद वरुण गांधी के घर एक शाम रात्रि भोज पर प्रियंका गांधी आईं. दरअसल, प्रियंका गांधी की ये कोशिश रहती है कि वरुण उनके परिवार से बहुत दूर न जाएं. शायद इसीलिए, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तो कई बार वरुण गांधी 10 जनपथ में देखे गए. 10 जनपथ के एक सूत्र ने मुझे ये बताया कि एक बार तो 10 जनपथ में वरुण गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के एक बड़े नेता श्री सुब्रमण्यम स्वामी को सोनिया गांधी के साथ बातचीत करते हुए देख लिया था.
वरुण गांधी को देख कर सुब्रमण्यम स्वामी मुस्कुराए. वरुण गांधी चुपचाप प्रियंका गांधी के कमरे में चले गए और वहां उनसे बात करने लगे. जब प्रियंका गांधी को वरुण गांधी ने अपने घर रात्रि भोज पर बुलाया, तो उन्होंने वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होने और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने का प्रस्ताव दिया.
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