3ae058d5-1e59-40f5-93d5-fbfदेवभूमि उत्तराखंड की सभी पांच संसदीय सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच घमासान होना तय है. राज्य में चुनाव मैदान में उतरने वाले विभिन्न क्षेत्रीय दल वोटकटवा की हैसियत में नज़र आ रहे हैं. पिछली बार भाजपा की अंतर्कलह और राहुल गांधी के असर के चलते सभी पांच सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया था. उसके ठीक बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी जनता ने भाजपा से अपना पल्ला झाड़ लिया. राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी और कांग्रेस हाईकमान ने एक उद्योगपति घराने के दबाव में आकर अपने चुने गए विधायकों की भावना को नकार कर सांसद विजय बहुगुणा को राज्य की कमान सौंप दी.
राज्य में आई भीषण दैवीय आपदा में बहुगुणा सरकार ने जिस तरह उपेक्षात्मक रवैया अपनाया, उसके चलते जनता को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. सेना के जवानों ने आपदा में फंसी जनता का हाथ मजबूती से थामा. राज्य सरकार किसी भी प्रकार की मदद के मामले में फिसड्डी साबित हुई. देश-विदेश से अरबों रुपये की आर्थिक मदद मिली, लेकिन उसे भी जनता तक पहुंचाने में बहुगुणा सरकार असफल साबित हुई. लोगों का आरोप है कि मंत्रियों, नेताओं एवं अफसरों ने सहायता राशि की बंदरबांट कर ली. सहायता राशि प्रभावित जनता तक न पहुंचने का मामला जब कांग्रेस हाईकमान के समक्ष उठा, तो विजय बहुगुणा को हटाकर केंद्रीय मंत्री हरीश रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया. चुनाव के पहले ही बहुगुणा की विदाई का जो निर्णय कांग्रेस ने लिया, वही आज उसके लिए आत्मघाती साबित हो रहा है. सतपाल महाराज ने इस कलह की गूंज में ही टिहरी सीट पर अपनी करारी हार का अनुमान लगाते हुए राजनाथ सिंह के माध्यम से भाजपा का दामन थाम लिया. नतीजा, कांग्रेस का पूरा दुर्ग ही दहल उठा.
भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए राज्य की पांचों सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ अपने तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को उनकी उम्र और छवि का ख्याल किए बिना मैदान में उतार दिया है. पैड़ी से जनरल भुवन चंद्र खंडूरी, नैनीताल से भगत सिंह कोश्यारी एवं हरिद्वार से रमेश पोखरियाल निशंक को प्रत्याशी बनाया गया है. जनरल खंडूरी एवं कोश्यारी जहां अपनी बेदाग छवि के चलते जनता में हाथों हाथ लिए गए, वही निशंक को लोग शंका की नज़र से देख रहे हैं. कांग्रेस पर भ्रष्टाचार की कालिख उड़ेलने वाली भाजपा को महाकुंभ-2010 में निशंक सरकार के घोटाले के सवाल पर बगलें झांकने के सिवाय कुछ सूझ नहीं रहा है.
टिहरी सीट पर रानी राज्यलक्ष्मी को हरा पाना साकेत के वश की बात नहीं रह गई है, क्योंकि उनके पिता की बदनामी उन्हें कहीं का नहीं छोड़ रही है. गढ़वाल में सतपाल महाराज के रणछोड़ दास बनने के बाद जनरल की टक्कर का कोई प्रत्याशी कांग्रेसी खेमे में नहीं बचा था, बाद में हाईकमान की पहल पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. हरक सिंह रावत मैदान में उतरे. गढ़वाल सीट का इतिहास काफी रोचक है. इसी सीट पर 1980 में कांग्रेस उम्मीदवार हेमवती नंदन बहुगुणा ने रिकॉर्ड 1,25,440 मतों की शानदार जीत हासिल की थी. इसी क्षेत्र से जनरल खंडूरी ने 1998, 1999 एवं 2004 में लगातार चुनाव जीतते हुए हैट्रिक कायम की थी.
देवभूमि की जनता की अपनी अलबेली पहचान है. कांग्रेस जहां अपने नेताओं की आपसी कलह से तंग है, वहीं भाजपा के नेता भी एकजुट नहीं दिखते. विकल्प की तलाश में जनता क्या फैसला लेगी, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन इतना सच है कि मुख्य मुकाबले में होने के बावजूद कांग्रेस की राह आसान नहीं है. यदि कांग्रेस के नेताओं ने समय रहते आपसी कलह का परित्याग न किया, तो पार्टी का हश्र वही हो सकता है, जो पिछले लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में भाजपा का हुआ था.

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