उत्तर प्रदेश राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की प्रदेश में बंद पड़ी 11 चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में एक गजब क अखेल हुआ. नीलामी की औपचारिकताओं में कुल 10 कंपनियां शरीक हुईं, लेकिन आखिरी समय में तीन कंपनियां मेरठ की आनंद ट्रिपलेक्स बोर्ड लिमिटेड, वाराणसी की गौतम रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड और नोएडा की श्रीसिद्धार्थ इस्पात प्राइवेट लिमिटेड मैदान छोड़ गईं. जो कंपनियां रह गईं उनमें पौंटी चड्‌ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज़ के साथ नीलगिरी फूड्‌स प्राइवेट लिमिटेड, नम्रता, त्रिकाल, गिरियाशो, एसआर बिल्डकॉन व आईबी ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड शामिल थीं और इनमें भी आपस में खूब समझदारी थी. नीलगिरी फूड्‌स ने बैतालपुर, देवरिया, बाराबंकी और हरदोई चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिर में बैतालपुर चीनी मिल छोड़ कर उसने अन्य से अपना दावा वापस कर लिया. इसके लिए उसे जमानत राशि भी गंवानी पड़ी. बैतालपुर चीनी मिल खरीदने के बाद नीलगिरी ने उसे भी कैनयन फाइनैंशियल सर्विसेज़ लिमिटेड के हाथों बेच डाला. इसी तरह त्रिकाल ने भटनी, छितौनी और घुघली चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिरी समय में जमानत राशि गंवाते हुए उसने छितौनी और घुघली चीनी मिलों से अपना दावा हटा लिया. वेव कंपनी ने भी बरेली, रामकोला और शाहगंज की बंद पड़ी चीनी मिलों को खरीदने के लिए निविदा दाखिल की थी. लेकिन उसने बाद में बरेली और रामकोला से अपना दावा छोड़ दिया और शाहगंज चीनी मिल खरीद ली. बाराबंकी, छितौनी और रामकोला की बंद पड़ी चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी गिरियाशो और बरेली, हरदोई, लक्ष्मीगंज और देवरिया की चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी नम्रता में वही सारी संदेहास्पद-समानताएं पाई गईं जो वेव इंडस्ट्रीज़ और पीबीएस फूड्‌स लिमिटेड में पाई गई थीं. यह भी पाया गया कि गिरियाशो, नम्रता और कैनयन, इन तीनों कंपनियों का दिल्ली के सरिता विहार में एक ही पता है. बंद पड़ी 11 चीनी मिलें खरीदने वाली सभी कंपनियां एक-दूसरे से जुड़ी हुई पाई गईं, खास तौर पर वे पौंटी चड्‌ढा की वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड से सम्बद्ध पाई गईं. लेकिन विडंबना यह है कि राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने अपने ही डीजी की छानबीन को किनारे लगा दिया और फैसला सुना दिया कि यूपी की 21 चीनी मिलों की नीलामी प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी और साठगांठ साबित नहीं पाई गई. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के इस फैसले को अभी नहीं माना है. कानून के विशेषज्ञ कहते हैं कि आयोग के जरिए केंद्र सरकार ने कानूनी पचड़ा फंसाने की कोशिश तो की है, लेकिन आयोग के डीजी की छानबीन रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट की निगाह में है.

नौकरशाहों ने दलालों की तरह काम किया

एक तरफ प्रतिस्पर्धा आयोग कहता है कि चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं हुई, दूसरी तरफ अगर दस्तावेज देखें तो धांधली साफ-साफ दिखाई देती है. चीनी मिलों की अरबों की चल-अचल सम्पत्ति को कौड़ियों के भाव बेच दिया जाना घोर भ्रष्टाचार की सनद देता है. महालेखाकार की छानबीन में भी यह स्पष्ट हो चुका है कि चीनी मिलों की विक्रय-प्रक्रिया में शामिल नौकरशाहों ने पूंजी-प्रतिष्ठानों के दलालों की तरह काम किया. सीएजी का मानना है कि निविदा की प्रक्रिया शुरू होने के पहले ही यह तय कर लिया गया था कि चीनी मिलें किसे बेचनी हैं. निविदा में भाग लेने वाली कुछ खास कंपनियों को सरकार की बिड-दर पहले ही बता दी गई थी और प्रक्रिया के बीच में भी अपनी मर्जी से नियम बदले गए. मिलों की जमीनें, मशीनें और उपकरणों की कीमत निर्धारित करने में मनमानी की गई. बिक्री के बाद रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प ड्यूटी भी कम कर दी गई. कैग का कहना है कि चीनी मिलें बेचने में सरकार को 1179.84 करोड़ रुपए का सीधा नुकसान हुआ. यानि, उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की चालू हालत की 10 चीनी मिलों को बेचने पर सरकार को 841.54  करोड़ का नुकसान हुआ और उत्तर प्रदेश राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की बंद 11 चीनी मिलों को बेचने की प्रक्रिया में 338.30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.

 

 

 

 

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