पिछले कुछ वर्षों से महंगाई ने जैसे देश में अपना आशियाना सा बना रखा है. सरकार का न तो बाजार पर कोई नियंत्रण है और न ही जमाखोरों पर. सरकार की निष्क्रियता का ही परिणाम है कि आवश्यक वस्तुओं की कीमतें नई ऊंचाइयों पर पहुंच गईं हैं. सरकार की नीति ऐसी होनी चाहिए, जिससे बाजार और खाद्य वस्तुओं की कीमतें नियंत्रण में रहें, ताकि आम आदमी को महंगाई से राहत मिल सके. सही मायने में देखा जाए तो खाद्य वस्तुओं की कीमतों में इस तरह की तेजी देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है. इससे अर्थव्यवस्था में असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है. 

IMG_7378नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने महंगाई को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था, लेकिन हैरानी इस बात की है कि सरकार बनने के बाद जब पहला बजट पेश किया गया, तो बजट में महंगाई से निपटने का कोई जिक्र तक नहीं था. सत्य तो यह है कि सरकार चाहे किसी की भी हो, उसके लिए महंगाई कोई मुद्दा है ही नहीं, जबकि सत्ता में आने से पहले कोई भी पार्टी महंगाई पर नियंत्रण अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करती नजर आती है. मोदी ने भी सरकार बनने के बाद संसद के पहले सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण के जरिये कहा था कि महंगाई पर काबू पाना उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता होगी, लेकिन मोदी सरकार वास्तविकता से कोसों दूर चली गई. सही मायने में देखा जाए तो इस सरकार ने रेल किराये, पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने के साथ ही महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए जमाखोरों और कालाबाजारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. सवाल यह उठता है कि अगर मोदी सरकार महंगाई पर नियंत्रण को लेकर गंभीर है, तो वह यह बताए कि उसने महंगाई को बढ़ाने वाले कितने जमाखोरों और कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई की या उन्हें गिरफ्तार किया? सच तो यह है कि मोदी सरकार के ही केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह प्रेस कॉन्फे्रंस में यह बयान देते हैं कि पश्‍चिमी भारत में सूखे के हालात बन रहे हैं और मध्य भारत में भी बारिश 50 फीसदी से ज्यादा कम हो जाएगी. अब जब भारत सरकार के मंत्री ही पश्‍चिमी भारत में सूखे की एडवांस घोषणाएं करेंगे, तो पश्‍चिम भारत के राज्यों महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात आदि में जमाखोरी बढ़ने का खतरा तो पैदा होगा ही. मंत्री जी की घोषणा के बाद यह तय है कि उन इलाकों से आने वाली पैदावार की कीमतों में इजाफा होगा और देश में अधिक महंगाई बढ़ेगी. लोगों का मानना है कि किसी भी क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित सोची-समझी नीति के तहत की जाती है, क्योंकि इससे उस क्षेत्र के किसानों को अतिरिक्त पैकेज मिलने की संभावना प्रबल हो जाती है.
केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान कहते हैं कि आलू और प्याज के जो दाम बढ़ रहे हैं, वो जमाखोरी की वजह से बढ़ रहे हैं. मंत्री जी को बेतुके बयान देने की बजाय जमाखोरों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए.
पहले यह कहा जाता था कि दिल्ली में सब्जियां इसलिए महंगी हैं, क्योंकि कोलकाता, सिलीगुड़ी और राजस्थान के कुछ स्थानों से यहां सब्जियां आती हैं, लेकिन आज दिल्ली और आस-पास खूब सब्जियों की पैदावार हो रही है. फिर भी सब्जियों के दाम कम नहीं हो रहे हैं. इसके पीछे प्रमुख कारण है कि जमाखोरों ने कृत्रिम अभाव पैदा किया है. बड़े-बड़े पूंजीपति किसानों से सब्जी खरीदकर कोल्ड स्टोरेज में रख लेते हैं और जब दाम बढ़ता है, तब निकालते हैं. महंगाई के कारणों पर डालते हैं एक नज़र.
जमाखोरों पर लगाम जरूरी
सरकार को पहले जमाखोरी की मंशा और मतलब समझना होगा. सच पूछा जाए तो सरकार चाहती ही नहीं है कि जमाखोरी पर नियंत्रण हो. यही कारण है कि सरकार के हाथ ब़डे जमाखोरों या ब़डे स्टॉक रखने वाली कंपनियों के गिरेबान तक नहीं पहुंच पाते. सरकार कार्रवाई करती भी है, तो छोटे दुकानदारों या जमाखोरों पर, जबकि सरकार की सख्ती ब़डे और छोटे जमाखोरों पर समान रूप से होनी चाहिए. दूसरी बात कि सरकार को यह नीति भी साफ करनी होगी कि जमा किस हद तक होनी चाहिए. यानी उसकी लिमिट तय कर दे सरकार.

जमाखोरों की पनाहगार बनीं मंडियां
आखिर मंडी व्यवस्था को सरकार निरस्त क्यों नहीं कर देती. ब़डे जमाखोरों के लिए ये मंडियां पनाहगार बन चुकी हैं. मंडी समिति क़ानून असल में जमाखोरी से बचाने के लिए बना था, लेकिन इसके तहत जिसे लाइसेंस मिला, वेजमाखोरी कर रहे हैं. किसान मंडी के अलावा बाहर बाज़ार में किसी को बेच नहीं पाता. असल में व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि किसान अपना सामान सीधे बाज़ार में बेच दे, लेकिन होता इसके उलट है. यही कारण है कि जो सामान मंडी में 5 रुपये किलो मिलती है, वही मंडियों के बाहर 15 रुपये किलो. सरकार की यह नीति गलत तरीके से बाजारवाद को ब़ढावा देती है.
जमाखोरों का हौंसला इतना अधिक ब़ढ गया है कि मंडियों में आए सामान का भाव वे गुप-चुप तरीके से तय करते हैं. सामान का भाव तय करने की कोई नीति ही नहीं है.
स्टोरेज की समस्या
सरकार के पास न तो गोदाम पर्याप्त हैं और न ही कोल्ड स्टोरेज. जो गोदाम हैं, वोे चावल और गेहूं से भरे प़डे हैं. इसलिए सब्जियों या अन्य खाद्यानों के स्टोरेज की समस्या बनी रहती है. सरकार की इन नीतियों का फायदा यहां जमाखोर उठाते हैं और प्राइवेट गोदामों या कोल्ड स्टोरेज का प्रयोग कर जान-बूझकर उपभोक्ता से अधिक कीमत लेने के लिए सामान को दबा देते हैं, ताकि बाजार में वे सामानों का कृत्रिम अभाव पैदा कर सकें. महंगाई ब़ढने का दूसरा कारण यह है कि खाद्यानों का संतुलित उत्पादन नहीं हो रहा है. चावल-गेहूं अधिक हैं, तो दलहन-तिलहन खपत से कम. इसलिए आयात करना प़डता है, जो देशी बाजारों में आते-आते काफी महंगे हो जाते हैं.
सप्लाई नीति में सुधार जरूरी
खाद्य पदार्थों की सप्लाई की समस्या महंगाई ब़ढने के प्रमुख कारण हैं. ज़्यादातर गोदाम शहरों में हैं, जबकि आलू-प्याज़ के गोदाम खेतों के पास होने चाहिए. दिल्ली में पॉश इलाकों में गोदाम बनाना बेमतलब है. आलू-प्याज़ के गोदाम ग्रामीण एरिया या उसके आसपास होने चाहिए. ऐसी व्यवस्था हो कि गोदामों में रखे गए सामानों के बारे में ऑनलाइन जानकारी हासिल हो सके. इससे एकाधिकार या वर्चस्व पर लगाम लगेगा, जिसका फ़ायदा किसान और उपभोक्ता दोनों को होगा.
सरकारें निष्क्रिय
मीडिया में अक्सर यह देखने-सुनने को मिलता है कि केंद्र सरकार जमाखोरी के लिए राज्य सरकारों को दोषी ठहराती हैं और राज्य सरकारें केंद्र को. असल में सरकारों का प्रमुख उद्देश्य जनता को बरगलाना है. सरकारें जमाखोरी को लेकर तनीक भी गंभीर नहीं हैं और उनकी नीयत ठीक नहीं है.


सब्जियोंं की कीमतें आसमान पर
कुछ राज्यों में सब्जियों की कीमतों पर हम नजर डालें तो पाएंगे कि पिछले कुछ दिनों में सब्जियों की कीमतों में 70 से 72 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. देश की राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भिंडी, करेला और तोरी 100 रुपये किलो की दर से बिक रही है, जबकि लौकी 60 रुपये किलो बिकने लगी है. प्याज 30 रुपये प्रति किलो से उछाल मारकर 40 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया है. मटर और टमाटर भी 40 रुपये किलो बिक रहा है. अहमदाबाद में भिंडी की कीमत 100 रुपये किलो पर पहुंच गई है. जम्मू में भिंडी 80 रुपये किलो बिक रही है, जबकि टमाटर 40 रुपये, मटर 25 रुपये, करेला 85 रुपये, बैंगन 35 रुपये किलो बिक रहा है. जयपुर में अरबी की कीमत 40-60 रुपये पर पहुंच गई है. करेला भी 60 रुपये किलो मिल रहा है, जबकि भिंडी एक हफ्ते में 40 से 70 रुपये प्रति किलो की कीमत पर पहुंच गई है. एशिया की सबसे बडी सब्जी मंडी आजादपुर में इन दिनों आलू का थोक रेट 5 रुपये प्रति किलोग्राम है और खुदरा में यह रेट 10 से 12 रुपये प्रति किलोग्राम है, लेकिन आनेवाले 15 से 20 दिनों में मंडी में आलू की फसल का अंतिम हिस्सा समाप्त हो जाएगा. व्यापारियों के अनुसार, आलू के दाम थोक में 20 रुपये प्रति किलाग्राम और खुदरा में 35 पर रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकते हैं.


महंगाई के आंक़डे
आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2015 में साल दर साल आधार पर प्याज की कीमत 26.58 प्रतिशत, फलों की कीमत 16.84 प्रतिशत, सब्जियों के दाम 15.54 प्रतिशत तथा दालों के दाम 14.59 प्रतिशत बढ़ गए. इनके अलावा दूध के दाम में 7.33 प्रतिशत तथा चावल के दाम में 3.82 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई. खाद्य पदार्थों में सिर्फ आलू और गेहूं के दाम क्रमश: 3.56 फीसदी और 2.40 फीसदी घटे हैं. इस दौरान पेट्रोल के दाम 21.35 प्रतिशत, डीजल के 16.62 प्रतिशत तथा रसोई गैस के दाम 8.86 प्रतिशत कम हुए. वहीं खनिजों के दाम भी 25.57 प्रतिशत कम हुए. दिसंबर के थोक महंगाई सूचकांक में संशोधन करते हुए इसे 0.11 प्रतिशत से घटाकर 0.50 प्रतिशत ऋणात्मक कर दिया गया है.


बेमौसम बारिश का कहर देश के कई राज्यों राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र के रबी फसलों पर पड़ा है. उत्तर प्रदेश में आलू की 70 फीसदी और गेहूं की 50 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है. मध्यप्रदेश में 15 जिलों की 1400 गांवों की पूरी फसल तबाह हो गई है. राजस्थान के 26 जिलों में फसल को भारी नुकसान पहुंचा है. महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में भी नुकसान हुआ है और 8000 हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई है. एक अनुमान के अनुसार 50 लाख एकड़ भूमि में रबी की फसल बर्बाद हो गई है. उत्तर प्रदेश में करीब 2 लाख एकड़, महाराष्ट्र में 7.5 लाख एकड़, राजस्थान में 14.5 लाख एकड़, पश्‍चिम बंगाल में 50,000 एकड़ और पंजाब में 6000 एकड़ में फसल बर्बाद हो गई है. फसलों की बर्बादी भी महंगाई के लिए जिम्मेदार है.

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